शुक्रवार, 30 जुलाई 2021

ट्रेन ला सकती है तीसरी लहर

 

नागपुर रेलवे स्टेशन पर रोजाना 5 हजार से अधिक यात्रियों का आना-जाना होता है। कोरोना की तीसरी लहर की आशंका व्यक्त की जा रही है। सतर्कता बरतने की सलाह दी जा रही है, लेकिन दिख रही  है सिर्फ लापरवाही। रेल यात्रियों को आरटीपीसीआर टेस्ट रिपोर्ट साथ रखना अनिवार्य है। राज्य शासन का आदेश है कि रेलवे स्टेशन पर उतरने वाले सभी यात्रियों की आरटीपीसीआर रिपोर्ट की जांच की जाए, मगर  नागपुर रेलवे स्टेशन पर ऐसा नहीं हो रहा है। रेलवे स्टेशन के मुख्य द्वार पर तैनात एक अधिकारी ने अंदर की बात बताते हुए कहा कि कहा कि वरिष्ठों के आदेश के बाद रेलवे स्टेशन पर यात्रियों की आरटी-पीसीआर रिपोर्ट की जांच  जांच बंद कर दी गई है। दूसरी ओर, नागपुर रेलवे स्टेशन पर ही मनपा की टीम आरटी-पीसीआर जांच के लिए नमूने एकत्र कर रही है, मगर यह टीम सुबह 10 से दोपहर 2 बजे तक ही मौजूद रहती है। यहां तैनात डॉ. अतिक खान ने बताया कि रेलवे अधिकारियों द्वारा जिन यात्रियों को उन तक पहुंचाया जा रहा है, उनका आरटी-पीसीआर टेस्ट किया जा रहा है। टीम के जाने के बाद आरटी-पीसीआर जांच के लिए नमूने इकट्ठा नहीं हो पा रहे। ऐसे में शहर में कोराना संक्रमितों के दाखिल होने का खतरा बढ़ गया है। रोजाना हजारों यात्री बगैर आरटी-पीसीआर रिपोर्ट के शहर में दाखिल हो रहे हैं। यह लापरवाही खतरनाक साबित हो सकती है। हालात यही रहे, तो कोरोना की तीसरी लहर कोहराम मचा सकती है।

कोरोना की दो लहरों का नतीजा हम भुगत चुके हैं। तीसरी लहर की आशंका व्यक्त की जा रही है। इसमें विशेष रूप से बच्चों के प्रभावित होने की आशंका जताई जा रही है। केरल में संक्रमण के लगातार सामने आ रहे मामलों में तेजी से उछाल आया है। स्थिति की गंभीरता को भांप केंद्र ने तत्काल उच्च स्तरीय टीम को वहां रवाना किया है। यह टीम अपनी पूरी रिपोर्ट राज्य और केंद्र सरकार दोनों के साथ साझा करेगी। केरल में बढ़ते कोरोना संक्रमण का असर अन्य राज्यों में भी मामूली रूप से दिखाई पड़ रहा है।  महाराष्ट्र में उतार-चढ़ाव जारी है। उत्तर प्रदेश और मणिपुर सहित कुछ राज्यों में भी नए मामले बढ़े हैं। स्वास्थ्य डाटा विशेषज्ञ प्रो. रिजो एम जॉन के अनुसार हालात ऐसे हैं कि पिछले 51 दिन से देश में औसतन 40 हजार से अधिक दैनिक मामले सामने आ रहे हैं। इससे साफ पता चलता है कि दूसरी लहर से बाहर आने के बाद भी देश में रोजाना संक्रमित मरीजों की संख्या एक पैमाने पर आकर रुक सी गई है, जिसमें कभी भी उछाल आ सकती है। 

बीते मार्च, अप्रैल और मई में कोरोना महामारी की दूसरी लहर आई थी। 10 मई को इसका पीक गुजरने के बाद नई लहर को लेकर कयास लगाए जा रहे थे। आईसीएमआर का अनुमान था कि अगस्त में तीसरी लहर दिखाई दे सकती है, जबकि केंद्र सरकार के ही सुपर मॉडल के अनुसार तीसरी लहर अक्टूबर से नवंबर के बीच देखने को मिल सकती है। इसलिए खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सतर्क रहने पर लगातार जोर दे रहे हैं। मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग की दुहाई दे रहे हैं, लेकिन लापरवाही बरतने वाले मान नहीं रहे हैं। कोरोना नियंत्रण के लिए जारी की गई गाइड लाइन का रेलवे स्टेशन परिसर में जिस तरह से खुलेआम उल्लंघन हो रहा है, उससे ही इन आशंकाओं को बल मिलता है। यात्री बगैर मास्क के नजर आते हैं। सामाजिक दूरी के नियम का पालन भी नहीं हो रहा। कई यात्री स्टेशन परिसर में झुंड के रूप में दिखाई देते हैं। इन लोगों को नियम का पालन करने की समझाइश देने वाले भी कहीं नजर नहीं आते। इसका परिणाम घातक हो सकता है।

साफ है कि भारतीय रेलवे के कोरोना नियमों का यहां साफ उल्लंघन हो रहा है। रेलवे स्टेशनों पर लोगों के मास्क पहनने को लेकर खास गाइडलाइंस जारी की गई हैं। रेलवे परिसर में या फिर ट्रेन के अंदर मास्क न पहनने पर जुर्माने का प्रावधान भी किया गया है, जो 500 रुपये तक हो सकता है। जुर्माना का प्रावधान सिर्फ मास्क को लेकर नहीं है, बल्कि यहां-वहां थूकने या गंदगी फैलाने को लेकर भी है। अगर आप रेलवे स्टेशन या ट्रेन के अंदर यहां-वहां थूकते हैं या फिर गंदगी फैलाते हैं तो भी आप पर 500 रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है। रेलवे का कहना है कि बिना मास्क के स्टेशन परिसर या ट्रेन में घूमना और यहां-वहां थूकने से स्टेशन परिसर और ट्रेन में गंदगी रहेगी। गंदगी की वजह से लोगों को तमाम तरह की बीमारियां हो सकती हैं और अभी कोरोना काल में तो साफ-सफाई न रखने की वजह से कोरोना वायरस भी फैल सकता है, पर सुनने वाला कोई नहीं और उन्हें गलतियों पर समझाने वाला भी नहीं। इसलिए कोरोना के तीसरी लहर को शहर में आने से रोकना सहज नहीं। 

कई प्रदेशों में कोरोना के मामलों में तेजी दर्ज की जा रही है। ऐसे में ट्रेनों से आने-जाने वालों पर सख्ती बरतना ही एकमात्र उपाय है। नियमों में ढील देने का मतलब कोरोना को आमंत्रण देने जैसा ही है। बेहतर होगा कि यात्रियों के लिए बनाए गए नियमों का सख्ती से पालन कराया जाए। लोग चोर-दरवाजे से भागने की कोशिश न करें, शहर की सेहत पर इसका असर पड़ सकता है।

आया चुनावी मौसम, छटपटाने लगे नगरसेवक

 

यह सच है कि राजनीति में कुछ भी निश्चित नहीं होता, लेकिन इरादे सच्चे हों तो राजनीति में करियर बनाकर आप देशवासियों की सेवा कर सकते हैं। राजनीति में आने के बाद बेहद जरूरी कामों में है एक है चुनाव लड़ना। प्राथमिक पाठशाला हैं निकाय चुनाव। यह सामान्य लोगों के लिए पहला पायदान होता है। इसके लिए सबसे पहले जनता से जुड़ना होता है। कोरोनाकाल में जनता से सीधे जुड़ने का मौका तो नहीं मिला, लेकिन डिजिटल प्लेटफार्म सहारा है। अगले साल फरवरी महीने में नागपुर महानगरपालिका के चुनाव होने जा रहे हैं।  नगरसेवक अभी से काफी सक्रिय हो गए हैं। सोशल मीडिया पर भूमिपूजन, उद्घाटन आदि कार्यक्रम के फोटो अपलोड़ किए जा रहे हैं। हालांकि, अचानक सक्रिय हुए नगरसेवकों से जनता भी सवाल कर रही है।  जवाब देना उनके लिए बहुत मश्किल भी हो रहा है। बहुत से नगरसेवकों को कड़वे अनुभव मिल रहे हैं। चूंकि बात करियर की है, इसलिए कड़वे बोल वे नहीं बोल सकते। महानगरपालिका के 151 नगरसेवक हैं। इनमें से लगभग 90 फीसदी से ज्यादा सोशल मीडिया पर सक्रिय हैं। जो नहीं हैं, उन्हें उनके चाहने वालों ने सक्रिय कर दिया है। कोरोनाकाल में अमूमन सभी काम ठप रहे। नगरसेवक चाहकर भी बहुत ज्यादा हाथ-पैर नहीं मार सके। इसलिए बेचैन हैं। अपनी उपस्थिति जनता तक दर्ज कराने की जुगत में लगे हुए हैं। फिलहाल नागपुर मनपा में भाजपा की सत्ता है। करार के अनुसार, ढाई साल के कार्यकाल के बाद महापौर संदीप जोशी ने पद छोड़ा और वरिष्ठ नेता दयाशंकर तिवारी महापौर पद पर काबिज हुए। संदीप जोशी के समय तुकाराम मुंढ़े जैसे तेजतर्रार मनपा आयुक्त से नगरसेवकों को पाला पड़ा। अब राधाकृष्णन, बी. आयुक्त हैं। नगरसेवकों की कुछ पूछ-परख तो बढ़ी है, लेकिन उतनी नहीं, जितनी उन्हें उम्मीद थी। इसलिए नगरसेवक छटपटा रहे हैं। वे जानते हैं कि अगले साल मैदान में उन्हें खुद के भरोसे उतरना है और गिनाने के लिए किए गए कामों की कोई लंबी फेहरिस्त नहीं है। जो भी है, वह पार्टी के उधार का चेहरा है और भाजपा का वास्ता देकर ही जीत का ख्वाब देखना है।

राज्य में नागपुर सहित 5 महानगरपालिकाओं के लिए 2022 में चुनाव होंगे। नागपुर महानगरपालिका का चुनाव वार्ड पद्धति से कराने की घोषणा राज्य सरकार कर चुकी है। वार्ड पद्धति से चुनाव की तैयारी के संबंध में आवश्यक प्रक्रिया शुरू भी कर दी गई थी, लेकिन कोरोना महामारी के कारण राज्य सरकार चुनाव तैयारी के संबंध में अधिक काम नहीं कर पाई। लिहाजा वार्ड पद्धति से चुनाव कराने को लेकर विपक्ष ही नहीं, महाविकास आघाड़ी के नेताओं मं। भी असमंजस की स्थिति बन रही है। 

देखा जाए तो नागपुर मनपा का पहला चुनाव एक वार्ड एक सदस्य पद्धति से हुआ था। वर्ष 2002 में प्रभाग पद्धति लागू कर 3 सदस्यों का प्रभाग बनाया गया। वर्ष 2007 में इसे रद्द कर फिर एक सदस्य पद्धति लागू की गई। इसके बाद वर्ष 2012 में दो सदस्यों का प्रभाग बनाया गया। वर्ष 2017 में इससे भी आगे जाकर एक प्रभाग में 4 वार्ड जोड़कर 4 सदस्यों का निर्वाचन किया गया। अब पुन: एक वार्ड एक सदस्य चुनाव पद्धति लागू कर दी गई है। नागपुर में प्रभाग पद्धति में 38 प्रभाग हैं। एक प्रभाग का 4 नगरसेवक प्रतिनिधित्व करते हैं। वार्ड पद्धति में 151 वार्ड रहेंगे।  18 से 20 हजार जनसंख्या पर एक वार्ड बनेगा।  जनंसख्या के आधार पर मनपा सीटों का आरक्षण तय किया जाएगा। इसमें अनुसूचित जाति, जनजाति, ओबीसी और महिलाओं के लिए सीटें आरक्षित रखी जाएंगी।

यह तो रही प्रशासनिक तैयारी, लेकिन जमीनी लड़ाई भी तेज हो चुकी है। सोशल मीडिया पर नगरसेवकों की सक्रियता देखते ही बन रही है। धड़ाधड़ पोस्ट डाले जा रहे हैं। सबकी अपनी-अपनी टीम है। इस टीम में ज्यादातर युवा हैं। बेहद सफाई से वे अपनेनेताकी तस्वीर को चमका रहे हैं। चुनाव करीब होता जा रहा है, इसलिए स्पीड भी तेज है। अब तक नहीं दिखाई देने वाले चेहरे भी अक्सर सामने आने लगे हैं। सोशल मीडिया विश्लेषकों  की मानें तो  अभी कुछ विकास कार्यों पर ब्रेक लगा हुआ है। सभागृह में मंजूर 75 ऑक्सीजन जोन, 75 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र बनाने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। विकास बंद होने के कारण अब वे परिसर का मुआयना, भूमिपूजन आदि के फोटो सोशल मीडिया पर शेयर किए जा रहे हैं। लेकिन सोशल मीडिया पर हाईटेक प्रचार करते समय मतदाताओं के प्रश्नों के समाधानकारक उत्तर देना भी आवश्यक है। अन्यथा नगरसेवकों के राजनीतिक भविष्य पर विपरीत परिणाम होने की आशंका रहती है, क्योंकि मोहभंग घटना नहीं, प्रक्रिया है। होते होते होता है। ऐसा नहीं होता कि सुबह सो कर उठे और बीती रात की किसी घटना की वजह से मोहभंग हो गया। समाज अलग ही मिट्टी का बना है। राजनीतिक दल ये बात अच्छी तरह समझते हैं। सांप्रदायिक सद्भाव तब भी मुद्दा था और आज भी है, लेकिन महंगाई और गरीबी उसमें जुड़ गई हैं। कोरोना किसी के लिए बहाना बना है, तो किसी के लिए अवसर।

मनपा के अधिकतर नगरसेवक इस कोरोना को कोस भी रहे हैं और पकड़े हुए भी हैं। कोई दूसरी लहर के समय संकट में साथ देने की दुहाई दे रहा है, तो कोई कहते सुना जा रहा है कि कोरोना ने सब काम रोक दिए हैं, वर्ना हम तो काम के थे। अब बाजी जनता के हाथ में है, कि वह किसे कितना नंबर दने के मूड में है।

प्रदेश स्तर पर देखा जाए तो अजीबोगरीब समीकरण बने हुए हैं। शिवसेना की सरकार में राष्ट्रवादी और कांग्रेस शामिल हैं, पर निकाय चुनाव में अलग ताल ठोंकने पर आमादा हैं। वैसे देखा जाए तो शिवसेना-भाजपा की युति काफी वर्षों तक लोगों के जेहन पर छाई रही। 1989 से दोनों साथ-साथ रहे, इसलिए दिमाग से इन्हें जुदा करना आसान नहीं रहा। इस युति के शिल्पकार बालासाहब ठाकरे एवं प्रमोद महाजन थे। आज ये दोनों नेता नहीं हैं। तब और आज की राजनीतिक स्थिति में भी जमीन-आसमान का अंतर गया है।   बालासाहब ठाकरे के निधन के बाद महाराष्ट्र में राजनीतिक समीकरण तेजी से बदलने लगे।  

अपने बलबूते लड़ने के जिस तरह कुछ लाभ होते हैं, उसी तरह कुछ हानियां भी होती हैं। लाभ यह कि मतदाताओं में अपनी ताकत कितनी है, इसका सही अनुमान आता है। अन्यथा युति की जीत में अपना हिस्सा कितना है और मित्र दल का कितना है, इस बारे में भ्रम उत्पन्न होता है। मार्केटिंग की भाषा में इसेप्वाइंट ऑफ परचेसकहते हैं। जब ग्राहक दुकान में वस्तु खरीदी के लिए जाता है तब उसके मन पर प्रभाव डालने का माध्यम यहीप्वाइंट ऑफ परचेसहोता है। इसी माध्यम का भाजपा ने प्रभावी रूप से इस्तेमाल किया, पिछली बार अनेक नगरनिगमों में अभूतपूर्व सफलता हासिल की।  अब असली परीक्षा की तैयारी है, और नंबर देने की जनता की बारी है।

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कमजोर दावे के भरोसे तीसरी लहर की मजबूत लड़ाई

दिल्ली एम्स के डायरेक्टर रणदीप गुलेरिया ने हाल ही में कहा था कि स्कूलों को खोलने के प्लान पर अब विचार करना चाहिए। उनके अनुसार, बच्चों की पढ़ाई-लिखाई के लिए ही नहीं, बल्कि उनके सर्वांगीण विकास के लिए ये बेहद ज़रूरी है। यहां गुलेरिया की बातों को उद्धृत करने का कारण तीसरी लहर की आशंकाएं हैं, क्योंकि तीसरी लहर में बच्चों के प्रभावित की आशंका जताई गई है। केंद्र और राज्य सरकारों की ओर से विभिन्न उपाय योजनाओं पर जोर दिया जा रहा है। नागपुर में भी तैयारी पुरजोर है, लेकिन इसकी जमीनी हकीकत कुछ और है। पूर्व विभागीय आयुक्त संजीव कुमार ने जिले के बाल रोग विशेषज्ञों की एक टास्क फोर्स तैयार की थी। इसमें डॉ. उदय बोधनकर, डॉ. सतीश देवपुजारी, डॉ. विनिता जैन आदि डॉक्टर शामिल हैं। इन्हें रिपोर्ट तैयार करने को कहा गया था। टास्क फोर्स ने अपनी रिपोर्ट में सभी बड़े अस्पतालों में बेड आरक्षित करने से लेकर उपकरणों तक की विस्तृत जानकारी दी थी। इसमें ग्रामीण में पीएचसी स्तर पर चाइल्ड कोविड केयर सेंटर बनाने का सुझाव भी दिया गया था, जिसे सरकार ने नकार दिया। इसके बाद टास्क फोर्स की एक भी बैठक नहीं हुई। टास्क फोर्स को बच्चों में होने वाले प्रभाव और दवाइयों और स्टॉक की भी रिपोर्ट तैयार करनी थी। बचाव और तैयारी के भी दिशा निर्देश जारी होने थे, लेकिन पिछले दो माह से अधिक समय हो गया, कोई बैठक नहीं हो पाई। कोरोना के तीसरी लहर को रोकने के प्रशासनिक दावों की पोल खोलती रिपोर्ट।

नागपुर जिले में दूसरी लहर का प्रकोप अब लगभग खत्म हो गया है, पर विशेषज्ञों ने तीसरी लहर के संकेत दिए हैं। इसमें बच्चों के अधिक प्रभावित होने की आशंका है। पूर्व विभागीय आयुक्त संजीव कुमार ने आशंकाओं को देखते हुए कमेटी बनाई थी, जिसमें बाल रोग विशेषज्ञ शामिल थे। कमेटी ने पहली रिपोर्ट सौंपी, लेकिन कुछ दिन बाद ही विभागीय आयुक्त का मुंबई ट्रांसफर हो गया। इसलिए कमेटी की कोई बैठक नहीं हो पाई। नई विभागीय आयुक्त के सामने चुनौती अहम है। टास्क फोर्स की रिपोर्ट पर मंथन के बाद चौतरफा उपाय योजनाओं को लागू करा है, क्योंकि आशंकाओं के दिन करीब आते जा रहे हैं। 

जुलाई महीने की शुरुआत में प्रिंसिपल साइंटिफिक एडवाइजर के. विजय राघवन ने कोरोना की तीसरी लहर को 'ना टाले जाने योग्य' कहा था। हालांकि उनके मुताबिक यह कब आएगी,इसकी भविष्यवाणी नहीं की जा सकती है। विजय राघवन ने उसके 2 दिन बाद एक चेतावनी देते हुए कहा कि 'मजबूत उपायों' के माध्यम से तीसरी लहर से बचा जा सकता है।

27 जून को केंद्रीय कोविड-19 वर्किंग ग्रुप के चीफ डॉ. एन.के अरोड़ा ने बताया कि कोरोना की तीसरी लहर इस साल दिसंबर तक आ सकती है। उन्होंने यह दावा के आईसीएमआर की एक स्टडी के आधार पर किया था। उनके अनुसार कोविड के नए वैरिएंट, डेल्टा प्लस को तीसरी लहर से अभी नहीं जोड़ा जा सकता। वहीं एसबीआई ने रिसर्च रिपोर्ट में कहा है कि कोविड-19 की तीसरी लहर अगस्त तक आएगी और सितंबर महीने में यह अपने पीक पर होगी। 'कोविड-19 : द रेस टू फिनिशिंग लाइन' नामक इस रिपोर्ट में दावा किया गया कि तीसरी लहर में दूसरी लहर की अपेक्षा मरने वालों की संख्या कम रहेगी।

भले ही 'तीसरी लहर कब आएगी' इस पर आम सहमति न हो, लेकिन अधिकतर एक्सपर्ट का मानना है कि तीसरी लहर आनी ही है। ऐसे में जरूरत है अत्यधिक सतर्कता की, लेकिन हो रहा है ठीक इसके उल्टा। बंदिशों के साथ बाजार खुल चुके हैं। बंदिशें पूरी तरह हटाने की मांग तेज हो चली है। प्रदेश की उद्धव सरकार भी सहमति की मुद्रा में दिख रही है, मगर क्या यह कदम सही होगा। जवाब नहीं में ही होगा, क्योंकि भीड़ इसकी इजाजत नहीं देती। लापरवाही भी ऐसा करने से मना कर रही है। 

विश्वास नहीं, तो सीताबर्डी के गुलजार बाजार को देख लीजिए। इतवारी में भी कुछ कम रौनक नहीं। त्योहारों का मौसम आ चुका है। रही-सही कसर फुटपाथ पर लगने वाली दुकानें पूरा करने के लिए आतुर हैं।  रेलवे स्टेशन पर जाकर देख लीजिए, आपको कहीं कोरोना प्रोटोकाल नजर नहीं आएगा। बस स्टैंड का भ्रमण कर लीजिए, कहीं कोई सोशल डिस्टेंसिंग नहीं दिखेगी। बाजारों में घूम लीजिए मास्क की अनिवार्यता का भ्रम दूर हो जाएगा। पूरी तरह हम कोरोना की तीसरी लहर के लिए माकूल व्यवस्था को बनाने में लगे हैं। 

कोविड-19 की दूसरी लहर ने स्वास्थ्य क्षेत्र को घुटनों के बल ला खड़ा कर दिया था। आवश्यक दवाइयों की किल्लत से कालाबाज़ारी में भारी इज़ाफ़ा हुआ। स्वास्थ्य से जुड़ा बुनियादी ढांचा अपर्याप्त और नाकाफ़ी साबित हुआ। चारों ओर संसाधनों का कुप्रबंधन देखने को मिला। इतना ही नहीं, अब तो डॉक्टरों, नर्सों और स्वास्थ्य सेवा से जुड़े तमाम लोगों में थकावट साफ़ दिखने लगी है। पारंपरिक तौर पर संकट के समय लोगों को मानवीय स्पर्श और सामाजिकता के ज़रिए नियमित रूप से जो मरहम पट्टी या सहानुभूतिपूर्ण माहौल मिला करता था, वो इस महामारी के दौर में पूरी तरह से नदारद रहा। भौतिक रूप से होने वाले संवादों के अचानक बंद हो जाने से मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी सेवाओं और इन समस्याओं से उबरने वाले तंत्र तक पहुंच पाना और कठिन होता जा रहा है। ऊपर से घरेलू हिंसा, यौन उत्पीड़न, घरेलू कार्यों और देखभाल करने से जुड़ी ज़िम्मेदारियों के बढ़ जाने, बच्चों के पालन-पोषण और वित्तीय मोर्चे पर असुरक्षा की भावनाओं में चिंताजनक बढ़ोतरी ने तनाव और अवसाद को कई गुणा बढ़ा दिया है। डिजिटल जुड़ाव युवाओं को बुरी तरह से प्रभावित कर रहा है। ऐसे में आसन नहीं होगा तीसरी लहर से लड़ना। एक बार पूरी ताकत के साथ उठ खड़े होने की जरूरत है। टास्क फोर्स की यूं अनदेखी भारी पड़ सकती है। इसलिए जल्द से जल्द एक्शन मोड में आना बेहद जरूरी है।


भागो मत, जागो….दहलीज के उस पार ‘दर्द’ बेशुमार

 

 

महाराष्ट्र की उपराजधानी नागपुर को संस्कारधानी के रूप में स्वीकार्यता बढ़ रही थी, लेकिन युवाओं के कारण इसमें ग्रहण लगता नजर आ रहा है। पश्चिमी देशों में प्रचलित भौंडापन यहां शगल बनता जा रहा है। फोन से लेकर लैपटॉप तक एक क्लिक पर उपलब्ध यौन सामग्री युवा मन में सेक्स का ओवरडोज उड़ेल रही हैं। नतीजा, मानसिक और शारीरिक विकृति तक पहुंच गया है। फिर ये नशाखोरी से लेकर यौन अपराध तक के रूप में सामने आ रहे हैं। परामर्श केन्द्रों में 14 से 16 की उम्र के युवाओं की काउंसलिंग के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं, जो सब कुछ भूल भविष्य को अनदेखा कर रहे हैं। हैरत यह है कि 70 प्रतिशत मामले ऐसे हैं, जिसमें हाईस्कूल व इंटर में पढ़ने वाले बच्चों से जुड़े हैं। विपरीत लिंगी सेक्स के प्रति आकर्षण उनकी जिंदगी में ग्रहण लगा रहा है। आंकड़े बताते हैं कि सिर्फ नागपुर जिले में लगभग साढ़े 3 साल में अपने-अपने घरों से कुल 317 लड़कियां घर से भाग निकलीं। इसमें सिर्फ पिछले डेढ़ साल में 133 लड़कियों ने घर-बार छोड़ दिया। यहां ध्यान रखने वाली बात यह कि ये वे मामले हैं, जो पुलिस तक पहुंचे हैं। इससे कहीं तिगुने-चौगुने मामले लड़कियों के घर से भागने के हो सकते हैं। चूंकि हमारे देश में अभी भी लड़कियों को घर की लाज के रूप में मान्यता दी गई है, इसलिए बहुत से लोग बदनामी की डर से पुलिस तक शिकायत लेकर नहीं पहुंचते हैं, इसलिए उनकी गिनती नहीं हो पाती। नागपुर की बदलती आबोहवा हैरान कर रही है, आपराधिक आंकड़े परेशान कर रहे हैं। आपनों के दिए जख्मों का दर्द बेइंतेहा है, दबाने से नासूर बन जाएगा। समय रहते पुलिस का साथ लें, भीतरघात थोड़ी देर के लिए ही विचलित करेगी…

समाज की धुरी नारी होती है, पूरी संस्कृति उसी नारी पर निर्भर है। नारी जितनी सुरक्षित, शिक्षित, श्रेष्ठ, धार्मिक और पवित्र है, धर्म का राज्य उतना ही सुरक्षित है। यही चिंता अर्जुन द्वारा श्रीकृष्ण से भी व्यक्त की गई थी कि युद्ध का सबसे बड़ा नुकसान होता है नारियों पर संकट और उनकी सुरक्षा के अभाव में उनका भ्रष्ट हो जाना। हज़ारों वर्षों से सनातन परम्परा से अपने परिवारों को जोड़े हुए हैं और श्रेष्ठ से श्रेष्ठ संतानों को जन्म दे रही हैं। समानता का अधिकार विपन्नता का पोषक हो चला है। एक ऐसी विपन्नता, जिसके चलते कई पीढ़ियां संभल नहीं पातीं।  

दरअसल इन घटनाओं की वजह बहुत ही साफ और सच्ची है। जो बच्चे ऐसी घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं, उन के आदर्श फिल्मी हीरो, हिंसक वीडियो गेम हैं। माता-पिता द्वारा बच्चों को ऐश-ओ-आराम के साथ महत्वाकांक्षी दुनिया की तस्वीरों के अलावा जिन्दगी के वास्तविक यथार्थ बताएं और दिखाए नहीं जा रहे हैं। संघर्ष करना नहीं सिखाया जा रहा। हां, सब कुछ हासिल करने का ख्वाब जरूर दिखाया जा रहा है। वह भी कोर्इ संघर्ष किए बिना। दरअसल, जो बच्चे संघर्षशील जीवन जीते हैं, उनकी संवेदनाएं मरती नहीं हैं। वे कठिन परिस्थितियों में भी निराश नहीं होते और हर विपरीत परिस्थिति से लडने के लिये तैयार रहते हैं। कुछ घटनाओं के पीछे शिक्षा और परीक्षा का दबाव है, तो कुछ के पीछे मात्र अभिभावकों और अध्यापकों की सामान्य सी डांट। 

मामूली बातों पर गंभीर फैसले ले लेने वाली इस युवा पीढ़ी को न तो अपनी जान की परवाह है और न ही उन के इस कदम से परिवार पर पड़ने वाले असर की उन्हें कोर्इ चिंता है। आंकड़े बताते हैं कि नागपुर जिले में वर्ष 2018 में 102 लड़कियां कतिपय मामले में घर से भाग निकलीं। पुलिस ने 97 को खोज निकाला और उन्हें परिजनों के सुपुर्द कर दिया, जबकि 5 लड़कियां खुद घर लौट आईं। इसी प्रकार 2019 में 126 लड़कियां घर से भाग निकलीं। पुलिस ने इनमें से 112 को ढूंढ निकाला और 14 खुद लौट आईं। वर्ष 2020 में 89 लड़कियां भागीं, तो पुलिस ने 78 को ढूंढ निकाला और 2 अपने आप वापस आ गईं। 2021 में जून माह के अंत तक 44 लड़कियां परिजनों को छोड़कर भागीं, जिनमें से 28 को पुलिस ने खोज निकाला। यह बात अच्छी रही कि इनमें से 16 खुद लौट आईं। लौटने वाली लड़कियों में यह अभी तक का सबसे बड़ा आंकड़ा है। 

जानकार मानते हैं कि सोशल साइट्स पर पोर्न साइट्स के प्रति बढ़ते आकर्षण से भी कच्ची उम्र के युवा भटक रहे है। अधिकतर युवा ऐसे हैं, जो  शिक्षा के अभाव में गलत कामों में लिप्त हो रहे हैं। उन्मुक्त पूंजीवाद और व्यक्तिवाद की देन परिवारों के टूटने का कारण बनती जा रही है। शहरों के साथ ही कस्बों में भी असंख्य लड़के-लड़कियों की भीड़ बढ़ती जा रही है, जो अपनों के ही बीच पराए हो जाते हैं। जिन मां-बाप ने वृद्धावस्था का सहारा मानकर लाड़-प्यार और शिक्षित करने में अपने जीवन की खुशियों की बलि चढ़ाकर शिक्षित-दीक्षित किया, खुली छूट दी और सोचा कि उनके बच्चे मर्यादाओं-परंपराओं का निर्वाह करते हुए घर, परिवार, समाज और देश को उन्नत बनाने में सफल होंगे, परंतु सब-कुछ विपरीत हो रहा है।

बड़े बड़े कॉम्प्लेक्स के बेसमेंट इत्यादि में नशे के अड्डे संचालित हो रहे हैं। फिल्मी स्टाइल में रंगीन लाइट, डीजे की धुन पर थिरकती युवा पीढ़ी। अय्याशी के पहले पायदान पर पैर रखने का मतलब ऊपर चढ़ना नहीं, खाई में गिरना ही है। न जाने क्यों पुलिस और आला अधिकारी इन सारी चीजों को नजरअंदाज कर रहे हैं। अभिभावकों से अपील है कि वो अपने बच्चों पर कड़ी नजर रखें, मासूम बच्चों को इनमें संलिप्त होने से बचाएं। हर बार प्रशासन पर ही सारा ठीकरा न फोड़े। कुछ उन अभिभावकों की भी गलती है जो बच्चों को आवश्यकता से अधिक पैसे देते है, और उन पैसों के खर्च का ब्योरा नहीं लेते है। किशोरों की संगति एवं उनके कार्यो पर नजर रखें, उनसे मित्र जैसा व्यवहार रखें, तर्कों के साथ उनके भावनाओं को आहत किए बगैर उनकी समस्याओं का निवारण करें। उपाय काउंसलिंग भी है। ऐसे युवाओं को काउंसलर्स अपने विश्वास में लेकर उनसे ऐसा होने के कारण के बारे में पता लगाते हैं और सही रास्ते पर लाने का प्रयास करते हैं। साथ दें, पीढियों को बचाने की भारी जिम्मेदारी आपके ही ऊपर है। 

रेल यात्रियों पर पत्थरबाजी, निशाने पर मोबाइल

आज की जिंदगी मोबाइल फोन के सहारे है। मोबाइल नहीं, तो पूरा सिस्टम ठप। नींद खुलने के साथ और नींद आने के पहले तक बगैर इसके चैन नहीं। बेचैन वे भी हैं, जिन्हें आपका चैन छीनना है। चंद रुपयों की खातिर आप पर सीधा हमला किया जाता है। कोई राह रहते लुट जाता है, तो किसी के घर से चोरी हो जाती है। साइबर अपराधों से निपटने वाली पुलिस हाथ मलती रह जाती है, लेकिन कुछ पता नहीं चल पाता। अब मोबाइल हथियाने का नया फंडा निकल पड़ा है। नागपुर आउटर पर इससे कभी भी वास्ता पड़ सकता है। नागपुर आने के पहले आपको रेलवे लाइन के पहले बच्चे खेलते नजर आएंगे। आपको विश्वास ही नहीं हो सकता कि अपराध की दुनिया से दूर अपनी जिंदगी में मस्त ये बच्चे शातिर अपराधी भी सकते हैं। कुछ ही दूरी पर इनकी सुरक्षा के लिए कुछ लोग बैठे होते हैं, जो पलक झपकते कुछ भी कर सकते हैं। चूंकि पुलिस सीधे वहां नहीं पहुंच पाती है, इसलिए बेखौफ होते हैं और पुलिस पहुंचना चाहती भी नहीं। इसके कारणों तक जाने की जरूरत नहीं, यह अंदर की बात है। बहरहाल, बाहर की बात यह है कि नागपुर पहुंचने से पहले सावधान रहें। अगर आप फोन पर बात कर रहे हैं, तो कृप्या खिड़की और दरवाजे के पास न रहें। मोबाइल पर हाथ साफ करने वाले आपके मोबाइल वाले हाथ पर पत्थर अथवा डंडे से प्रहार कर सकते हैं। उन्हें मालूम है कि धीमी ही सही, चलती ट्रेन से कूदने और इन्हें पकड़ने का आप हिम्मत जुटा ही नहीं सकते। आपकी सुखद और मंगलमय यात्रा की हम कामना करते हैं…। 

नागपुर रेलवे स्टेशन को विश्वस्तरीय बनाने की जी-जान से कोशिश की जा रही है, मगर मानसिकता नहीं बदल रही। बात सभी की नहीं, उन चंद चोर-उचक्कों की है, जो अपनी फितरत बदलने की कोशिश नहीं करते। ट्रेन से सफर कर रहे लोग आजकल इनके निशाने पर हैं। अनेक यात्री गंभीर रूप से घायल हो चुके हैं।  ट्रेन की पटरियों के आसपास कई युवक घात लगाकर बैठते हैं। तेज रफ्तार ट्रेन की खिड़कियों और दरवाजे पर मोबाइल का उपयोग कर रहे लोगों को निशाना बनाते हैं। पत्थर की चोट खाकर कुछ यात्रियों के हाथ से मोबाइल छूटकर गिर जाता है।  इस तरह की घटनाएं आए दिन हो रही हैं। मोबाइल से हाथ धो चुके यात्री घटना की शिकायत भी नहीं करते। 

नागपुर रेलवे स्टेशन से 1-2 किलोमीटर के अंतराल में ट्रेन यात्रियों के हाथ पर डंडा मारकर मोबाइल हथियाने की घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं। विशेषकर मोमिनपुरा के पिछले हिस्से में नोगा फैक्टरी के आसपास अनेक यात्रियों से इस तरह मोबाइल हथियाए गए हैं। कुछ दिन पूर्व एक युवक का इसी तरह मोबाइल गिरा दिया गया था। अपना मोबाइल वापस हासिल करने के लिए यह युवक चलती ट्रेन से कूद पड़ा और ट्रेन की चपेट में आ गया। शरीर दो टुकड़ों में बंट गया। घटनास्थल पर ही उसकी मौत हो गई। 

मामले को गंभीरता से लेते हुए दपूम रेलवे द्वारा विशेष टास्क फोर्स बनाई गई है। पटरियों के आसपास बसी बस्तियों में रहने वालों को टास्क फोर्स के सदस्यों ने समझाने का प्रयास किया, साथ ही कार्रवाई की चेतावनी भी दी। दरअसल, चलती ट्रेन पर पत्थरबाजी और डंडा मारकर मोबाइल हथियाने की घटनाओं का बड़ा कारण रेलवे की जमीन पर अतिक्रमण कर बसर कर रहे अतिक्रमणकारी हैं। शहर के अनेक इलाकों में ट्रेन की पटरियों के आसपास झुग्गियां तैयार हो गई हैं। इन झुग्गियों में रहने वाले युवक बेरोजगारी की मार के कारण पत्थरबाजी की घटनाओं को अंजाम देते हैं। 

दूसरी तरफ, इन बस्ती वालों के भी आरोप हैं। इनका कहना है कि कुछ यात्री सफर के दौरान ट्रेन से बाहर झांककर पटरियों के आसपास खड़े युवकों को मुंह चिढ़ाने का प्रयास करते हैं।  कभी घर के सामने काम करती महिलाओं को देखकर कुछ यात्री अश्लील इशारे करते हैं। जवाब में यहां खड़े युवक गुस्से में ट्रेन की ओर पत्थर फेंकना शुरू कर देते हैं। पटरियों के आसपास बसर करने वालों को इस तरह की ओछी हरकतों का रोज ही शिकार होना पड़ता है।  गुस्सा पत्थरबाजी से फूटता है। इन मुंह चिढ़ाते यात्रियों पर पत्थर तो उछाला जाता है, लेकिन इसका निशाना कोई और ही बन जाता है। कभी किसी महिला यात्री का सिर फूटता है, तो कभी कोई गंभीर रूप से घायल हो जाता है। 

पांचपावली रेलवे क्रासिंग से तकरीबन 500 मीटर की दूरी पर ट्रेन की पटरियों के आसपास रहने वालों की अपनी व्यथा है, तो पत्थरबाजी के शिकार हुए यात्रियों की अपनी व्यथा। गलत दोनों ही हैं। ट्रेन के यात्रियों की सुखद और मंगलमय यात्रा की कामना रेलवे चीख-चीख कर करती है, पर यात्री ही अपनी सुखद यात्रा में विघ्न डालने की कोशिश करें, तो कौन बचाए। और ट्रेन के यात्रियों को ‘अतिथि देवो भव:’ स्वीकार करते हुए तथाकथित पत्थरबाजों को चाहिए कि वह उनकी हरसंभव सहायता की कोशिश करें, वर्ना वे आपकी पहचान नहीं, आपके शहर की इस कलंकित पहचान को दुनिया के सामने रखेंगे।  


मंगलवार, 27 जुलाई 2021

अब छत्तीसगढ़ की बारी, घमासान जारी

  


विद्रोह के संकेत छत्तीसगढ़ में मिलने लगे हैं। 10 जनपथ को अब एक और मोर्चे से झटका लगने की संभावना है। कांग्रेस विधायक बृहस्पति सिंह के आरोपों पर स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंह देव भी अब आरपार के मूड में हैं। कांग्रेस विधायक ने टीएस सिंह देव  पर अपनी हत्या की साजिश का आरोप लगाया था। इसके बाद सदन में बीजेपी ने मामले में जांच की मांग की थी। टीएस सिंह देव ने अब सदन में अपनी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। 

मंगलवार को सदन से बाहर जाने के पहले टीएस सिंह देव ने  कहा कि मैं केवल ये कहने के लिए खड़ा हुआ हूं कि मेरे विषय में सदन में शासन का स्पष्ट वक्तव्य नहीं आ जाता, तब तक मैं खुद को सदन की कार्यवाही में सम्मिलित होने के योग्य नहीं समझता हूं। इसके बाद टीएस सिंह देव अपने आवास के लिए निकल गए। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार टीएस सिंह देव आज दिल्ली निकल सकते हैं। वहां केंद्रीय नेताओं से उनकी मुलाकात संभव है।  सूत्रों के मुताबिक, छत्तीसगढ़ विधानसभा में विपक्ष के पूर्व नेता टीएस सिंह देव ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को बदलने के लिए पार्टी आलाकमान के साथ बैठक की मांग की हैं।

पंजाब और राजस्थान के अलावा छत्तीसगढ़ एकमात्र ऐसा राज्य है, जहां इस समय कांग्रेस का शासन है।  पंजाब मंे जहां सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह और नवजोत सिंह सिद्धू आमने-सामने हैं, वहीं राजस्थान में डिप्टी सीएम सचिन पायलट इस पार्टी से नाखुश हैं, जिसके कारण कई महीने पहले बगावत हुई थी।   हरियाणा खेमे में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कुमारी शैलजा को लेकर विधायकों के दो गुट बन गए हैं। अब छत्तीसगढ़ की रार से कांग्रेस परेशान है।   

दरअसल, कांग्रेस विधायक बृहस्पति सिंह ने स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंह देव पर आरोप लगाया था कि वह मेरी हत्या करवाकर सीएम बनना चाहते हैं। इसके बाद से प्रदेश की राजनीति में हड़कंप मच गया है। टीएस सिंह देव ने इन आरोपों पर कहा था कि वह भावनाओं में बह कर ऐसा कह गए होंगे। उसके बाद सोमवार को इसे लेकर प्रदेश प्रभारी पीएल पुनिया रायपुर में एक्टिव रहे और नेताओं से मिलते रहे। आरोप लगाने वाले विधायक भूपेश बघेल के समर्थक हैं। इस प्रकरण को लेकर कांग्रेस प्रभारी पीएल पुनिया ने सदन में जाकर सीएम भूपेश बघेल से मुलाकात की थी। पूरे मसले पर उनसे बात हुई थी। साथ ही टीएस सिंह देव और विधायक बृहस्पति सिंह से भी उनकी बात हुई थी। मुलाकात के बाद उन्होंने कहा था कि अब कोई विवाद नहीं है। सारे विवाद खत्म हो गए हैं।

लेकिन मंगलवार को टीएस सिंह देव ने खुद ही मोर्चा खोल दिया है। अब सीधे उन्हें शासन पर हमला कर दिया है। अब गेंद भूपेश सरकार के पाले में है कि वह क्या जवाब देती है। मगर सदन की कार्यवाही से बाहर निकलकर कांग्रेस की टेंशन बढ़ा दी है। याद रहे कि जब 2017 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस सत्ता में आई थी, तब 50-50 फॉर्मूले की खबरें आई थीं। सीएम बघेल ने 17 जून को 2.5 साल पूरे कर लिए हैं।

भीख मांगना जुर्म या जरूरत, सुप्रीम कोर्ट ने कहा-मजबूरी


भीख मांगना जुर्म है या जीवन की जरूरत, इसे लेकर बहस जारी है। हालांकि कतिपय मामलों में इसे सही करार नहीं दिया गया है। परेशानी बाल भिखारियों की बढ़ती तादाद है। ज़्यादातर बाल भिखारी व्यस्त चौराहों, बाज़ारों, धार्मिक स्थलों और रेलवे स्टेशन जैसी जगहों पर होते हैं। व्यस्त जगहों पर भीख मांगने से उन्हें ज़्यादा पैसे मिलने की संभावना बढ़ जाती है। कई ग़रीब परिवार मानते हैं कि उनके पास बच्चों को भीख मांगने में लगाने के अलावा और कोई चारा नहीं है।

 पुलिस और सामाजिक कार्यकर्ताओं का मानना है कि हर साल हज़ारों बच्चों को घर से अगवा कर लिया जाता है और उन्हें भीख मांगने पर मजबूर किया जाता है। इन बच्चों को भूखा रहने पर मजबूर किया जाता है, ताकि वो कमज़ोर दिखें और उन्हें सहानुभूति मिल सके। बाल अधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि 'भीख माफ़िया' बच्चों को विकलांग बना देता है, क्योंकि विकलांग बच्चों को ज़्यादा भीख मिलती है। सामाजिक कार्यकर्ताओं के मुताबिक इनमें से कई बच्चे नशीली दवाओं के आदी बन जाते हैं और यौन शोषण के भी शिकार होते हैं। इन बच्चों की सुरक्षा और इनकी हालत में सुधार के लिए केंद्र सरकार ने कोई क़ानून नहीं बनाया है।  

55 साल पुराने एक क़ानून के मुताबिक दिल्ली सहित भारत के कई शहरों में भीख मांगना ग़ैर क़ानूनी है और पुलिस ऐसे किसी व्यक्ति को गिरफ़्तार कर सकती है जो भीख मांगता पाया जाए। सामाजिक कार्यकर्ताओं के मुताबिक पुलिस इस क़ानून का इस्तेमाल अकसर ग़रीबों और ख़ास तौर पर बाल भिखारियों के ख़िलाफ़ करती है।

अब सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि भीख मांगना सामाजिक और आर्थिक समस्या है और रोजगार और शिक्षा के अभाव में कुछ लोग अपनी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए भीख मांगने पर मजबूर हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह अभिजात्य नजरिया नहीं अपनाएगी कि सड़कों पर भीख मांगने वाले नहीं होने चाहिए।  

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली बेंच ने मंगलवार कहा कि कई लोगों के पास शिक्षा का अभाव है। साथ ही उनके पास रोजगार नहीं है। उन्हें जीवन यापन के लिए बुनियादी जरूरत पूरी करनी होती है और इसी कारण वह भीख मांगने पर मजबूर होते हैं।  ये व्यापक मुद्दा है और सरकार के सामाजिक वेलफेयर स्कीम का मसला है। सुप्रीम कोर्ट ये नहीं कह सकता कि ऐसे लोगों को नजर से दूर कर दिया जाना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा है कि कि वह मामले में सहयोग करें और सुनवाई दो हफ्ते के लिए टाल दी है। सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि कोविड के तीसरे वेव की आशंका के मद्देनजर यह मामला अहम है। भीख मांगने वालों का पुनर्वास और वेक्सीनेशन जरूरी है, क्योंकि ये गंभीर खतरा हैं।

संजय की दूरदृष्टि… कहा-देश का नेतृत्व कर सकते हैं उद्धव ठाकरे

 

मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के 61वें जन्मदिन पर शिवसेना नेता संजय राऊत ने बड़ा बयान देकर चौंका दिया है। उन्होंने कहा कि हर कोई सोचता है कि उनके परिवार का मुखिया मुख्यमंत्री है, यही उनके नेतृत्व की सफलता है। यह नेतृत्व लंबे समय तक चलेगा और मुझे लगता है कि देश को भी भविष्य में इस नेतृत्व से उम्मीदें हैं। मैं एक बार फिर यह रेखांकित करना चाहूंगा कि देश को उद्धव ठाकरे जैसे उदारवादी, मजबूत राष्ट्रवादी, हिंदू समर्थक नेतृत्व की जरूरत है। अगर वह भविष्य में नेतृत्व करने में सक्षम हैं और वह ऐसा करेंगे। मैं इस बारे में निश्चिन्त हूं। सांसद संजय राउत ने कहा, मैं आज ये शुभकामनाएं दे रहा हूं।

संजय राउत के बाद एक और शिवसेना सांसद राहुल शेवाले ने भी उद्धव ठाकरे को भविष्य में प्रधानमंत्री बनने की शुभकामनाएं दी हैं। एक अखबार में लिखे गए लेख में राहुल शेवाले ने यह इच्छा जाहिर की है। राहुल शेवाले के मुताबिक महाराष्ट्र की जनता सपने को साकार करने का समय जल्द ही आने वाला है। राहुल शेवाले ने कहा कि महाराष्ट्र में कोरोना संकट से निपटने में बड़े ही बेहतरीन और प्रभावी ढंग से काम किया है। महाराष्ट्र मॉडल को देश के कई राज्यों ने अपनाया है। हालांकि केंद्र सरकार ने कोरोना काल में लापरवाही बरती है। उन्होंने कहा कि उद्धव ठाकरे को पता है कि अचूक निशाना कब और कहां लगाना है।

संजय राउत के बयान के बाद राजनीतिक प्रतिक्रिया भी सामने आने लगी है। उद्धव ठाकरे के देश का नेतृत्व करने की क्षमता पर एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने कहा, 'मुझे खुशी है. कोई भी व्यक्ति महाराष्ट्र से, देश का नेतृत्व करेगा तो यह खुशी की बात हैं।' शरद पवार ने उद्धव ठाकरे के कामकाज पर भी संतोष जताते हुए महाराष्ट्र में विपक्ष बीजेपी पर कहा, 'कुछ लोग कह रहे हैं कि वो वेटिंग पर हैं। लोग अपने बारे में सोच रहे हैं, पहले बाढ़ प्रभावित लोगों की मदद करना ज़रूरी है।’

महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री और विधानसभा में विपक्ष के नेता देवेंद्र फडणवीस ने उद्धव ठाकरे को जन्मदिन की शुभकामनाएं दी हैं। साथ ही अपने शुभकामना संदेश में उद्धव ठाकरे के बेहतर स्वास्थ्य की कामना की है। बता दें कि मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने राज्य में कोरोना  पृष्ठभूमि और राज्य के स्थिति को देखते हुए जन्मदिन नहीं मनाने का फैसला किया है

सदन में शोर…मोदी ने कहा-जनता के सामने विपक्ष की पोल खोलें

संसद के मॉनसून सत्र का पांच दिन बीत चुका है, लेकिन विभिन्न मुद्दों पर विपक्ष का शोर-शराबा थमने का नाम नहीं ले रहा है। विपक्ष के अड़ियल रवैये से सरकार के हांथ-पांव फूलने लगे हैं, क्योंकि विधेयकों को पास करवाने का उसे कोई रास्ता ही नहीं सूझ रहा है। यही कारण है कि सत्र के छठे दिन सत्ताधारी बीजेपी ने नई रणनीति पर मंथन के लिए संसदीय दल की बैठक बुलाई। इस बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी जैसे दिग्गजों ने हिस्सा लिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सिपहसालारों को नया मंत्र दिया। पीएम ने कहा कि विपक्ष न बातचीत के टेबल पर आ रहा है और न ही सदन ही चलने देता है। यह बात जनता को जाननी चाहिए। आप सब जनता के सामने विपक्ष को बेनकाब करें।

मोदी के निर्देशों का लोकसभा में बीजेपी सांसदों पर असर आज साफ-साफ दिखा जब कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने हंगामा कर रहे विपक्षी नेताओं से कहा कि उनकी हरकतों को जनता देख रही है। जनता का वास्ता देते हुए उन्होंने कहा किआज की कार्यसूची में गांव और किसान से संबंधित 15 से अधिक प्रश्न चर्चा के लिए हैं। विपक्षी सदस्य अगर किसानों के बारे में थोड़ा सा भी दर्द रखते हैं, थोड़ी सी वफादारी रखते हैं, तो उन्हें शांति बनाकर अपने स्थान पर रहना चाहिए। इन प्रश्नों के माध्यम से अपना विषय रखना चाहिए। सरकार का जवाब सुनना चाहिए। इस प्रकार का हो हल्ला जो हो रहा है, इससे सदन की गरिमा भी नष्ट हो रही है। जनता का भी नुकसान हो रहा है।  

स्पीकर ओम बिरला भी यह कहते हुए सुने गए, 'माननीय सदस्यगण सदन में नारेबाजी के लिए कॉम्पिटिशन मत करो। जनता की समस्याओं में बोलने के लिए कॉम्पिटिशन करो। आप नारेबाजी में कॉम्पिटिशन कर रहे हैं। जनता देख रही है। आप जनता की समस्याओं और अभाव के समर्थन में कॉम्पिटिशन करो।'

सरकार का कहना है कि वो हर मुद्दे पर बातचीत को तैयार है, बशर्ते विपक्ष संसदीय नियमों और प्रक्रियाओं का पालन करे। केंद्रीय अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री और राज्यसभा में बीजेपी के उप नेता मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा, 'हमने विपक्षी नेताओं से बातचती की थी और कहा था कि हम उनके हर मुद्दे पर बातचीत को तैयार हैं। उम्मीद है कि विपक्ष नोटिस देकर उसपर सभापति और अध्यक्ष को विचार करने देगा कि किस नियम के तहत, कब चर्चा करवानी है।'

मगर, इसी बीच, पेगासस जासूसी कांड और अंदोलनरत किसानों के मुद्दे पर खार खाए बैठे विपक्ष को असम-मिजोरम सीमा विवाद में सोमवार को हुई हिंसक झड़प का एक और मुद्दा हाथ लग गया है। असम के कांग्रेसी नेता और लोकसभा में पार्टी संसदीय दल के उपनेता गौरव गोगोई ने कार्यस्थगन प्रस्ताव दिया है। उन्होंने असम-मिजोरम मुद्दे पर चर्चा के लिए स्थगन प्रस्ताव देने के साथ ही केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को चिट्ठी लिखकर हिंसा की जांच करवाने की मांगी की है।

झारखंड सरकार को खंड-खंड करने का "पाखंड" आया सामने

झारखंड की हेमंत सरकार को गिराने की साजिश राजनीतिक बिसात की सधी चाल है या शातिर दिमाग की उपज, इससे पर्दा उठना बाकी है। लेकिन प्रकरण में तीन लोगों की गिरफ्तारी के बाद रोज नये, नये पत्ते खुल रहे हैं। पकड़े गये लोगों में फल-सब्जी बेचने वाला, दिहाड़ी मजदूर और किराना दुकान चलाने वाले का नाम आने और महज दो लाख रुपये की बरामदगी के बाद पुलिस कार्रवाई पर सवाल उठ रहा था। मगर स्वीकारोक्ति बयान और आरोप-प्रत्यारोप के सिलसिले के बीच नई नई बातें आ रही हैं।

कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी आरपीएन सिंह ने इस मसले पर प्रदेश नेतृत्व से जानकारी मांगी है, जल्द ही रांची आकर वे इस मसले पर विमर्श करने वाले हैं।  28 जुलाई को कांग्रेस विधायक दल की बैठक होने वाली है, उसमें हंगामा के आसार हैं।  पूरे प्रकरण में झारखंड पुलिस भी सवालों के घेरे में है। सरकार गिराने की साजिश, आरोपियों पर राजद्रोह का मुकदमा, तीन की गिरफ्तारी, दूसरे राज्यों से कनेक्शन के बावजूद राज्य के गृह सचिव, पुलिस महानिदेशक या इसी तरह के किसी बड़े पुलिस अधिकारी ने पक्ष तक नहीं रखा। पुलिस रेड में हवाई टिकट, राशि, स्वीकारोक्ति बयान में डील में शामिल दूसरे राज्य के नेताओं के नाम, होटल, गाड़ी का मॉडल तक स्पष्ट लिखा गया है, मगर झारखण्ड के कौन-कौन विधायक साथ थे इसका खुलासा पुलिस नहीं कर रही है।    

बता दें कि सरकार गिराने की साजिश के सिलसिले में रांची के होटल ली लेक में 22 जुलाई को रेड कर दो लाख रुपये, चार सूटकेस, हवाई जहाज के टिकट, कई मोबाइल फोन जब्त किए गए थे। आरोप है कि महाराष्ट्र के कुछ नेताओं के इशारे पर इन लोगों ने विधायकों की खरीद के लिए जाल बुना और तीन विधायकों को दिल्ली ले गये थे। पकड़े गये लोगों ने पुलिस को बताया है कि तीनों विधायक उनके साथ दिल्ली गये थे, वहां होटल विवांता में ठहरे थे।  अमित सिंह ने  पुलिस को बताया है कि पुलिस रेड के एक दिन पहले 21 जुलाई को रांची के एक रेस्टूरेंट में जयकुमार बेलखड़े (महाराष्ट्र के पूर्व मंत्री चंद्रशेखर राव बावनकुल के भांजा ) ने फोन पर बुलाया था, उनके साथ अभिषेक दुबे और एक अन्य व्यक्ति भी था। इसे बाद एक विधायक से मिलने उसी शाम हजारीबाग सर्किट हाउस पहुंचा।  

 छानबीन के लिए गठित विशेष टीम की अलग-अलग टोली दिल्ली, महाराष्ट्र जाकर कनेक्शन खंगालने में जुटी है। जांच टीम मुंबई, दिल्ली एयरपोर्ट, होटलों के सीसीटीवी फुटेज के साथ, झारखंड के कुछ ठिकानों से साक्ष्य जुटाने मंं लगी है। संबद्ध लोगों के मोबाइल लोकेशन भी जुटाये जा रहे हैं। जल्द ही सरकार को अस्थिर करने की साशिज से कुछ और परतें हटेंगी।

 इस बीच, राकांपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता तथा प्रदेश के अल्पसंख्यक विकास मंत्री नवाब मलिक ने झारझंड की जेएमएम-कांग्रेस सरकार गिराने को लेकर महाराष्ट्र के पूर्व मंत्री तथा प्रदेश भाजपा के महासचिव चंद्रशेखर बावनकुले और भाजपा के कई नेताओं पर षड्यंत्र करने का गंभीर आरोप लगाए हैं। मलिक ने कहा कि सरकार गिराने के मामले की जांच के लिए झारझंड पुलिस की एसआईटी टीम मुंबई आने वाली है। महाराष्ट्र सरकार और यहां की पुलिस झारझंड की एसआईटी के जांच कार्य में पूरी तरह से सहयोग करेगी।

 मलिक ने कहा कि झारझंड सरकार गिराने की साजिश में महाराष्ट्र कनेक्शन सामने आ रहा है। मलिक ने कहा कि झारझंड पुलिस ने पत्रकार अभिषेक दूबे को गिरफ्तार किया है। दूबे ने पुलिस जांच में कई अहम खुलासे किए हैं। मलिक ने कहा कि बावनकुले के भांजे और कारोबारी जय कुमार बेलखड़े के जरिए झारखंड के   कांग्रेस विधायक अमित कुमार यादव, कांग्रेस विधायक इरफान अंसारी और निर्दलीय विधायक उमाशंकर अकेला को दिल्ली बुलाया गया था। दिल्ली के एक पांच सितारा होटल में बावनकुले ने महाराष्ट्र भाजपा के दो विधायकों के साथ झारखंड के इन तीनों विधायकों से मुलाकात की थी। उस बैठक में झारखंड के तीनों विधायकों को पैसे देने की बातचीत हुई।  

मलिक ने कहा कि  झारखंड के सत्ताधारी विधायकों को मंत्री पद और 50 करोड़ रुपए देने का प्रलोभन दिया जा रहा है, जबकि प्रदेश भाजपा के मुख्य प्रवक्ता केशव उपाध्ये ने कहा कि मलिक के आरोपों में कोई तथ्य नहीं है। मुझे लगता है कि बेबुनियाद बातों पर टिप्पणी करने की जरूरत नहीं है। 

सरकार गिराने की साजिश के आरोपों पर भाजपा नेता बावनकुले ने कहा कि मेरी झारखंड सरकार गिराने की औकात नहीं है।  किसी ने मुझे बदनाम करने की साजिश की है।  मुझे नहीं मालूम कि आरोपियों ने मेरा नाम क्यों लिया है लेकिन यह बात पक्की है कि मैंने झारखंड नहीं देखा है। इस मामले में पुलिस अपनी जांच करेगी।

झारखंड विधायक खरीद प्रकरण में चर्चा में आए जयकुमार बेलखेड़े का संपर्क जाल देश भर में फैला है। खास बात यह है कि पूर्व मंत्री चंद्रशेखर बावनकुले व पूर्व नगराध्यक्ष चरणसिंह ठाकुर से भी उसके नजदीकी संबंध रहे हैं।  वह मूलत: वर्धा जिले के कारंजा लाड का निवासी है, लेकिन काफी समय से काटोल क्षेत्र में सक्रिय है। वह भारतीय सेना में रहा है। काटोल में एक सैनिक स्कूल का संचालन भी कर रहा है।  

चरणसिंह ठाकुर भी बावनकुले के बयान को दोहराते हुए कह रहे हैं कि उन्होंने झारखंड नहीं देखा है। ठाकुर ने कहा है कि पारडसिंगा मंदिर परिसर विकास की योजना के संबंध में वे 15 जुलाई को दिल्ली गए थे। 16 जुलाई को ही नागपुर लौट आए थे। झारखंड के किसी विधायक से मुलाकात नहीं की।

वैसे  स्थानीय स्तर पर देखा जाए तो बोर्ड निगम, आयोग और बीस सूत्री समितियों में स्थान को लेकर सरकार पर दबाव बनाने वाली कांग्रेस खुद के बचाव की मुद्रा में आ गई है। निर्दलीय विधायक अमित यादव के साथ प्रदेश कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष डॉ. इरफान अंसारी और कांग्रेस विधायक उमाशंकर अकेला का नाम आने के बाद कांग्रेस सफाई की मुद्रा में है।  कांग्रेस विधायक नमन विकसल कोंगाड़ी ने यह कहकर आग में घी डालने का काम किया है कि  उन्हें पूर्व में ही मंत्री बनाने और बहुत बड़ी राशि का ऑफर मिला था। इससे असंतुष्ट चल रहे कांग्रेस के दूसरे विधायक भी शक के दायरे में आ गये हैं।