शुक्रवार, 2 अक्तूबर 2020

मौत और बलात्कार के मैदान में ‘राज्य’ ही अभी झंडाबरदार, इसलिए खबरदार….

उत्तर प्रदेश के हाथरस में दलित युवती की गैंगेरप के बाद की गई हत्या  के मामले से राजनीतिक पारा बढ़ गया है। सभी अपने-अपने हिस्से की तलाश कर रहे हैं। वहीं कुछ लोगों के लिए यह महज खबरें हैं, जिन्हें आज पढ़कर कल भुला दिया जाता है, लेकिन बलात्कार के बाद जिंदा रहने वाली महिलाएं जीवन भर उस दर्द से बाहर नहीं आ पातीं। और जो मर गईं, उनकी राख का उपयोग राजनीतिक दल अपनी आकांक्षा की इमारतों को खड़ी करने में करते हैं। यहां हुईं दो मौतों का जिक्र समीचीन लगता है, जिसे परोसने में टीवी चैनल व्यस्त हैं। एक तरफ अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत, और दूसरी तरफ हाथरस की दर्दनाक घटना। इन दोनों घटनाओं में ‘बाहुबली’ वे दोनों राज्य की सरकारें नजर आ रही हैं, जिनका इनसे सीधा वास्ता है-महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश। सुशांत प्रकरण में मौजूदा महाराष्ट्र सरकार जिस तरह सीना ताने खड़ी है,  उसी तरह आदित्यनाथ योगी उत्तर प्रदेश में बड़े नेताओं को भी अपनी सरजमीं पर धोबीपाट पछाड़ रहे हैं। हार रही है, तो सिर्फ जनता। समझ में नहीं आता, औकात दिखाने की दिशा भूल की जा रही है अथवा पीड़ित को न्याय दिलाने की उत्कंठा या फिर ईमानदार जिद।

तो क्या समझा जाए कि जाति-पाति पर क्षेत्रीयता की राजनीति करने वालों ने रण-कौशल की विधा बदल दी है। केंद्र पर राज्य सरकारें भारी पड़ रही हैं, क्योंकि महाराष्ट्र में सुशांत प्रकरण की जांच कर रही देश की नामी 4 संस्थाएं गूंगी हो गईं हैं। इन्हें यह बताने के लिए कि आप जीवित हो, जंतर-मंतर पर प्रदर्शन कर रहे लोग प्रयास कर रहे हैं। परेशान कांग्रेसी भी हैं, क्योंकि एक प्रदेश में वे भी सत्ता में सहभागी है, तो दूसरे प्रदेश में पैर रख ही नहीं पा रहे हैं। जवाब पाने निकले थे बड़े नेता, तो जवाब ढूंढने पड़ रहे हैं, पर लगातार ताल ठोंक रहे दोनों ही राज्यों में कुर्सी खींचकर बैठने वाले। बहरहाल देखते हैं तमाशा, किसके तरकश में अभी कितने तीर हैं….   

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