बुधवार, 3 नवंबर 2010

मोहे आई न जग से लाज

मुंबई के कोलाबा स्थित आदर्श हाउसिंग सोसायटी की परत-दर-परत पोल खुल रही है तो मुख्यमंत्री भी सरेआम नंगा होते जा रहे हैं। जी हां, महाराष्ट्र के वर्तमान मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण को एक और घोटाले ने अपने लपेटे में ले लिया है। इस घोटाले में भी चव्हाण पर नियम-कायदे को दरकिनार कर जमीन कौडिय़ों में बेचने के आरोप हैं। महाराष्ट्र के यवतमाल के डोंगरगांव की सैकड़ों एकड़ जमीन जिसकी कीमत 88 करोड़ 40 लाख रुपए है। इस जमीन के सीने में दफन है बेशकीमती कच्चा चूना, कोयला और डोलोमाइट जिसकी कीमत का अंदाजा लगाना मुश्किल है। इस जमीन को माइनिंग के लिए उन दो शख्स को चुना गया, जिनके पास न तो माइनिंग का कोई तजुर्बा था और न ही पैसा, लेकिन फिर भी उन्हें कौडिय़ों के भाव जमीन लीज पर दे दी गई। अगर बात की जाए सपनों के शहर मुंबई के मुंह पर ऐसी कालिख शायद ही कभी लगी हो। कोलाबा के पास जिस स्थान पर यह भवन सीना तान खड़ा हुआ है उसकी हकीकत इतनी गंदी है कि किसी भी स्वाभिमानी नागरिक का सिर शर्म से झुक जाएगा। काफी खबरें आ चुकी हैं। यहां तक कि लोगों को जबानी याद भी हो गई होगी। अब सवाल यह है कि इसे किसका भ्रष्टाचार कहें? जब सेना को सरकार ने अभी तक जमीन सौंपी ही नहीं थी तो भला सेना ने किस हैसियत से वहां हाउसिंग कालोनी बनाने का प्रस्ताव पेश कर दिया? राज्य सरकार ने भी जब जमीन सेना को देने के लिए सुरक्षित रखा था तो फिर सेना को देने की बजाय वहां हाउसिंह कालोनी के प्रस्ताव को स्वीकार कैसे कर लिया? क्या सेना के उच्चाधिकारियों, अफसरों और रक्षा मंत्री ने जमीन के इस टुकड़े के लिए भ्रष्टाचार किया? या फिर राज्य सरकार के अधिकारियों और नेताओं ने भ्रष्ट तरीके से अपने लिए प्राइम लोकेशन पर एक आशियाना तैयार कर लिया? पूरे घटनाक्रम पर नजर दौड़ाएंगे तो पायेंगे कि जमीन के इस टुकड़े पर बिल्डिंग खड़ी करने के लिए सेना और राज्य सरकार दोनों की ओर से भ्रष्टाचार किया गया। 2001 में जब सोसायटी बनाने के लिए आवेदन किया गया तबसे लेकर सोसायटी को मंजूरी मिलने तक जहां जहां से फाइल गुजरी उसके किसी न किसी न किसी रिश्तेदार, नातेदार का नाम बन रही बिल्डिंग में फ्लैट पाने के लिए जुड़ गया। इस बिल्डिंग को छह मंजिल से अधिक ऊंची उठने की परमीशन नहीं मिल सकती थी लेकिन यह बिल्डिंग 31 मंजिल तक उठती चली गयी। जैसे जैसे विभिन्न विभागों से मंजूरी मिल रही थी अफसर सोसायटी में सदस्यता ग्रहण करके अपनी चौथ वसूल रहे थे। मूल रूप से 40 फ्लैट की इस सोसायटी में जब भ्रष्ट अधिकारियों के लिए जगह कम पडऩे लगी तो एफएसआई बढ़ाने की जरूरत महसूस हुई। इसके लिए बेस्ट की एफएसआई को इस्तेमाल करके भवन में 95 फ्लैटों को मंजूरी मिल गयी। इसका पुरस्कार तत्कालीन बेस्ट जीएम उत्तम खोब्रागड़े की बेटी देवयानी का नाम बतौर सदस्य इस सोसायटी में जुड़ गया। इसके आगे जब कोआपरेटिव हाउसिंग सोसाटयी को मंजूरी के लिए तत्कालीन कलेक्टर प्रदीप व्यास के पास भेजा गया तो उनकी आईएएस पत्नी सीमा व्यास का नाम जुड़ गया। सोसायटी को शैक्षणिक संस्था से जोडऩे के लिए तत्कालीन शिक्षा निदेशक जेएम अभ्यंकर के पास फाइल पहुंची तो सोसायटी में बतौर सदस्य उनका भी नाम जुड़ गया। कोआपरेटिव हाउसिंग सोसायटी थी इसलिए तत्कालीन सहकारिता मंत्री बाबा साहेब कुपेकर के लिए भी इस सोसायटी में एक फ्लैट आरक्षित हो गया। सवाल यह है कि सेना और सरकार के उच्च अधिकारियों की मिलीभगत से मुंबई के इस प्राइम लोकेशन पर जगह पाने के िलए जो भ्रष्टाचार किया गया क्या केवल इसकी जांच करने मात्र से सेना और सरकार के अधिकारियों के पाप धुल जाते हैं? अगर ऐसा नहीं है तो फिर उन दोषियों के लिए क्या सजा निर्धारित की जाएगी जो इस भ्रष्टाचार में शामिल पाये जाएंगे?

हावी न हो ओबामा प्रभाव

अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा अयोध्या के उत्सवी माहौल में भारत आ रहे हैं। यह वह समय है जब भारत आसुरी शक्तियों पर विजय की खुशी में दीवाली मना रहा है। ओबामा ने भी घोषणा की है कि वह मुंबई में स्थानीय बच्चों के साथ दीवाली मनाएंगे। मगर जानकारों की मानें तो भारत दौरे के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की भारत के रक्षा सौदों पर भी नजर होगी। छह विदेशी कंपनियां भारत को 126 बहुउद्देशीय लड़ाकू विमान बेचने के लिए स्पर्धा कर रही हैं। यह पूरा समझौता करीब 11 अरब डालर का हो सकता है। इन लड़ाकू विमानों के लिए भारत की चयन प्रक्रिया आगे बढ़ रही है और इसमें दो अमेरिकी कंपनियां सक्रिय हैं। चीन को चाहे शत्रु मानें या मित्र, सत्य यह है कि आज भारत का सबसे अधिक आर्थिक व्यापार चीन के साथ है, अमेरिका के साथ नहीं। भारत को सबसे ज्यादा खतरा भी चीन से है। ऐसी स्थिति में देखा जाना चाहिए कि क्या चीन के साथ किसी संघर्ष की स्थिति में अमेरिका भारत का साथ देगा? ओबामा अमेरिका में भारतीय नौजवानों की नौकरियों तथा अमेरिकी संस्थाओं तथा उद्योग द्वारा भारत से आउटसोर्सिंग की भी तीव्र आलोचना करते रहे हैं। उन्हें बताना होगा कि भारत के युवा अपनी मेहनत और कौशल के बल पर अमेरिका में स्थान बनाते हैं और उनका अमेरिका अर्थव्यवस्था में गहरा योगदान रहा है। हमें कृपा नहीं, बराबरी के व्यवहार की अपेक्षा है। यह ध्यान में रखना होगा कि अमेरिका शक्तिशाली के सामने ही झुकता है। वह चीन के बढ़ते प्रभाव से भले ही प्रतिस्पर्धा करते हुए अपना भू-राजनीतिक वर्चस्व विस्तृत करने की कोशिश करे, लेकिन असलियत यह है कि चीन को अमेरिकी बाजार उपलब्ध कराकर उसे आर्थिक महाशक्ति बनाने में अमेरिकी मदद का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। ओबामा प्रशासन चीन के मानवाधिकार उल्लंघन के तमाम उदाहरण नजरअंदाज करते हुए बीजिंग के एकतंत्रवादी शासकों के सामने झुका हुआ दोस्ती को आतुर दिखता है, उधर भारत के बारे में वह हमसे लाभ प्राप्त करने की स्थिति में ही ध्यान केंद्रित किए हुए है। फिर भी आशा की जानी चाहिए कि विश्व में दो महान लोकतंत्र मिलकर वर्तमान आसुरी शक्तियों के विरुद्ध अभियान छेड़ सकेंगे। ओबामा की भारत यात्रा को इस रूप में नहीं देखा जाना चाहिए कि अमेरिका भारत को क्या देगा? भारत को अपनी लड़ाई अपनी भुजाओं से लडऩे की तैयार रखनी होगी। वैसे भी अमेरिका ने कभी पाकिस्तान प्रायोजित आतंक के मामले में भारत को अपेक्षित सहायता नहीं दी है। गृह सचिव जीके पिल्लई की हेडली के बारे में टिप्पणी से जाहिर है कि अमेरिका ने हेडली के सुराग भारत को समय पर नहीं दिए थे। भारत को अमेरिका के सामने स्पष्ट करना होगा कि अगर आतंकवाद की लड़ाई जीतनी है तो ओबामा को भारत का सहयोग लेना ही होगा। अगर अमेरिका एकतरफा ढंग से केवल अमेरिकी हितों के सीमित दायरे में अलकायदा और तालिबानों के विरुद्ध लड़ाई जारी रखेगा तो वह कभी सफल नहीं हो पाएगा, क्योंकि दुनिया में आतंकवाद से सर्वाधिक पीडि़त देश भारत है, अमेरिका नहीं और भारतीय संदर्भ में आतंकवाद पर चोट किए बिना दुनिया में आतंकवाद को निर्णायक तौर पर समाप्त नहीं किया जा सकता। ओबामा की भारत यात्रा से पहले गिलानी जैसे देशद्रोही तत्वों की सक्रियता और गृहमंत्री द्वारा श्रीनगर में उन मध्यस्थों को ले जाना जो अलगाववादियों के तुष्टीकरण में जुटे हैं, निश्चित रूप से ओबामा प्रभाव कहा जा सकता है। भारत-पाकिस्तान वार्ता में अमेरिका दबाव काफी चर्चा का विषय रहा है। डेमोक्रेट प्रशासन कश्मीर मामले में अलगाववादियों के प्रति नरम रुख अपनाते हुए मुस्लिम देशों में अपनी छवि बेहतर बनाने का प्रयास कर सकता। इस संदर्भ में भारत को स्पष्ट रूप से ओबामा को बताना होगा कि कश्मीर भारत का आंतरिक मामला है और न केवल वह इस विषय में किसी बाहरी दखल को मंजूर नहीं करेगा, बल्कि भारतीय संसद द्वारा 22 फरवरी 1994 को पारित किए गए उस सर्वसम्मत प्रस्ताव को अमल में लाने का प्रयास करेगा, जिसमें पाकिस्तानी कब्जे में स्थित गुलाम कश्मीर और गिलगित आदि क्षेत्र वापस लेने का संकल्प व्यक्त किया गया है। ::::::::::::::::::::::::::::::::::