दिल्ली एम्स के डायरेक्टर रणदीप गुलेरिया ने हाल ही में कहा था कि स्कूलों को खोलने के प्लान पर अब विचार करना चाहिए। उनके अनुसार, बच्चों की पढ़ाई-लिखाई के लिए ही नहीं, बल्कि उनके सर्वांगीण विकास के लिए ये बेहद ज़रूरी है। यहां गुलेरिया की बातों को उद्धृत करने का कारण तीसरी लहर की आशंकाएं हैं, क्योंकि तीसरी लहर में बच्चों के प्रभावित की आशंका जताई गई है। केंद्र और राज्य सरकारों की ओर से विभिन्न उपाय योजनाओं पर जोर दिया जा रहा है। नागपुर में भी तैयारी पुरजोर है, लेकिन इसकी जमीनी हकीकत कुछ और है। पूर्व विभागीय आयुक्त संजीव कुमार ने जिले के बाल रोग विशेषज्ञों की एक टास्क फोर्स तैयार की थी। इसमें डॉ. उदय बोधनकर, डॉ. सतीश देवपुजारी, डॉ. विनिता जैन आदि डॉक्टर शामिल हैं। इन्हें रिपोर्ट तैयार करने को कहा गया था। टास्क फोर्स ने अपनी रिपोर्ट में सभी बड़े अस्पतालों में बेड आरक्षित करने से लेकर उपकरणों तक की विस्तृत जानकारी दी थी। इसमें ग्रामीण में पीएचसी स्तर पर चाइल्ड कोविड केयर सेंटर बनाने का सुझाव भी दिया गया था, जिसे सरकार ने नकार दिया। इसके बाद टास्क फोर्स की एक भी बैठक नहीं हुई। टास्क फोर्स को बच्चों में होने वाले प्रभाव और दवाइयों और स्टॉक की भी रिपोर्ट तैयार करनी थी। बचाव और तैयारी के भी दिशा निर्देश जारी होने थे, लेकिन पिछले दो माह से अधिक समय हो गया, कोई बैठक नहीं हो पाई। कोरोना के तीसरी लहर को रोकने के प्रशासनिक दावों की पोल खोलती रिपोर्ट।
नागपुर जिले में दूसरी लहर का प्रकोप अब लगभग खत्म हो गया है, पर विशेषज्ञों ने तीसरी लहर के संकेत दिए हैं। इसमें बच्चों के अधिक प्रभावित होने की आशंका है। पूर्व विभागीय आयुक्त संजीव कुमार ने आशंकाओं को देखते हुए कमेटी बनाई थी, जिसमें बाल रोग विशेषज्ञ शामिल थे। कमेटी ने पहली रिपोर्ट सौंपी, लेकिन कुछ दिन बाद ही विभागीय आयुक्त का मुंबई ट्रांसफर हो गया। इसलिए कमेटी की कोई बैठक नहीं हो पाई। नई विभागीय आयुक्त के सामने चुनौती अहम है। टास्क फोर्स की रिपोर्ट पर मंथन के बाद चौतरफा उपाय योजनाओं को लागू करा है, क्योंकि आशंकाओं के दिन करीब आते जा रहे हैं।
जुलाई महीने की शुरुआत में प्रिंसिपल साइंटिफिक एडवाइजर के. विजय राघवन ने कोरोना की तीसरी लहर को 'ना टाले जाने योग्य' कहा था। हालांकि उनके मुताबिक यह कब आएगी,इसकी भविष्यवाणी नहीं की जा सकती है। विजय राघवन ने उसके 2 दिन बाद एक चेतावनी देते हुए कहा कि 'मजबूत उपायों' के माध्यम से तीसरी लहर से बचा जा सकता है।
27 जून को केंद्रीय कोविड-19 वर्किंग ग्रुप के चीफ डॉ. एन.के अरोड़ा ने बताया कि कोरोना की तीसरी लहर इस साल दिसंबर तक आ सकती है। उन्होंने यह दावा के आईसीएमआर की एक स्टडी के आधार पर किया था। उनके अनुसार कोविड के नए वैरिएंट, डेल्टा प्लस को तीसरी लहर से अभी नहीं जोड़ा जा सकता। वहीं एसबीआई ने रिसर्च रिपोर्ट में कहा है कि कोविड-19 की तीसरी लहर अगस्त तक आएगी और सितंबर महीने में यह अपने पीक पर होगी। 'कोविड-19 : द रेस टू फिनिशिंग लाइन' नामक इस रिपोर्ट में दावा किया गया कि तीसरी लहर में दूसरी लहर की अपेक्षा मरने वालों की संख्या कम रहेगी।
भले ही 'तीसरी लहर कब आएगी' इस पर आम सहमति न हो, लेकिन अधिकतर एक्सपर्ट का मानना है कि तीसरी लहर आनी ही है। ऐसे में जरूरत है अत्यधिक सतर्कता की, लेकिन हो रहा है ठीक इसके उल्टा। बंदिशों के साथ बाजार खुल चुके हैं। बंदिशें पूरी तरह हटाने की मांग तेज हो चली है। प्रदेश की उद्धव सरकार भी सहमति की मुद्रा में दिख रही है, मगर क्या यह कदम सही होगा। जवाब नहीं में ही होगा, क्योंकि भीड़ इसकी इजाजत नहीं देती। लापरवाही भी ऐसा करने से मना कर रही है।
विश्वास नहीं, तो सीताबर्डी के गुलजार बाजार को देख लीजिए। इतवारी में भी कुछ कम रौनक नहीं। त्योहारों का मौसम आ चुका है। रही-सही कसर फुटपाथ पर लगने वाली दुकानें पूरा करने के लिए आतुर हैं। रेलवे स्टेशन पर जाकर देख लीजिए, आपको कहीं कोरोना प्रोटोकाल नजर नहीं आएगा। बस स्टैंड का भ्रमण कर लीजिए, कहीं कोई सोशल डिस्टेंसिंग नहीं दिखेगी। बाजारों में घूम लीजिए मास्क की अनिवार्यता का भ्रम दूर हो जाएगा। पूरी तरह हम कोरोना की तीसरी लहर के लिए माकूल व्यवस्था को बनाने में लगे हैं।
कोविड-19 की दूसरी लहर ने स्वास्थ्य क्षेत्र को घुटनों के बल ला खड़ा कर दिया था। आवश्यक दवाइयों की किल्लत से कालाबाज़ारी में भारी इज़ाफ़ा हुआ। स्वास्थ्य से जुड़ा बुनियादी ढांचा अपर्याप्त और नाकाफ़ी साबित हुआ। चारों ओर संसाधनों का कुप्रबंधन देखने को मिला। इतना ही नहीं, अब तो डॉक्टरों, नर्सों और स्वास्थ्य सेवा से जुड़े तमाम लोगों में थकावट साफ़ दिखने लगी है। पारंपरिक तौर पर संकट के समय लोगों को मानवीय स्पर्श और सामाजिकता के ज़रिए नियमित रूप से जो मरहम पट्टी या सहानुभूतिपूर्ण माहौल मिला करता था, वो इस महामारी के दौर में पूरी तरह से नदारद रहा। भौतिक रूप से होने वाले संवादों के अचानक बंद हो जाने से मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी सेवाओं और इन समस्याओं से उबरने वाले तंत्र तक पहुंच पाना और कठिन होता जा रहा है। ऊपर से घरेलू हिंसा, यौन उत्पीड़न, घरेलू कार्यों और देखभाल करने से जुड़ी ज़िम्मेदारियों के बढ़ जाने, बच्चों के पालन-पोषण और वित्तीय मोर्चे पर असुरक्षा की भावनाओं में चिंताजनक बढ़ोतरी ने तनाव और अवसाद को कई गुणा बढ़ा दिया है। डिजिटल जुड़ाव युवाओं को बुरी तरह से प्रभावित कर रहा है। ऐसे में आसन नहीं होगा तीसरी लहर से लड़ना। एक बार पूरी ताकत के साथ उठ खड़े होने की जरूरत है। टास्क फोर्स की यूं अनदेखी भारी पड़ सकती है। इसलिए जल्द से जल्द एक्शन मोड में आना बेहद जरूरी है।
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