अफगानिस्तान में तालिबान का आतंक बढ़ता ही जा रहा है। एक बड़े भूभाग पर उसका कब्जा हो चुका है। अहम बॉर्डर पोस्ट्स भी तालिबान के कब्जे में हैं। एक तरह से तालिबान ने अफगानिस्तान सरकार को आर्थिक रूप से पंगु बना दिया है। अगले हफ्ते अफगान सेना के प्रमुख जनरल वली मोहम्मद अहमदजई भारत आ रहे हैं। वह अपने समकक्ष जनरल एमएम नरवणे और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल से मिलेंगे। इन मुलाकातों में तालिबान से निपटने की कोई तरकीब जनरल वली को बताई जा सकती है।
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल के पास पाकिस्तान में काम करने का लंबा अनुभव है और वह तालिबान की डायनॉमिक्स को भी अच्छे से समझते हैं। जनरल वली से मुलाकात में डोभाल उन्हें तालिबान से निपटने का मंत्र दे सकते हैं। इसी साल जनवरी में डोभाल जब अफगानिस्तान गए थे, तो उन्होंने आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई की बात की थी। अफगानिस्तान में आतंकियों का दबदबा बढ़ना भारत की सुरक्षा के लिए खतरा है।
इसलिए भारत और अफगानिस्तान के बीच होने वाली बातचीत में दोनों देशों के बीच सैन्य सहयोग बढ़ाने पर चर्चा होगी। दोनों देशों के शीर्ष रक्षा अधिकारियों की मुलाकात तालिबान के बढ़ते प्रभाव के बीच काफी अहम है। खासतौर से तब जब कई रिपोर्ट्स में यह बात आ चुकी है कि पाकिस्तान भी तालिबान की मदद कर रहा है। महीनों पहले तय हुई यह मुलाकात ऐसे वक्त में हो रही है, जब अफगानी सेना कई जिलों पर नियंत्रण वापस पाने के लिए जूझ रही है। अमेरिका अगले महीने के आखिर तक अपने सेना मिशन को हटाने की तैयारी में है। नाटो की सेना भी हट रही है।
अफगानिस्तान मिलिट्री को ट्रेन करने में भारत की अहम भूमिका है। पुणे स्थित नेशनल डिफेंस एकेडमी में करीब 300 अफगानी कैडेट्स की ट्रेनिंग चल रही है। जनरल वली वहां जाकर कुछ कैडेट्स से मुलाकात कर सकते हैं। घायल अफगान सैनिकों का इलाज भी भारत के कई अस्पतालों में चल रहा है। यही नहीं, भारत ने पिछले कुछ सालों में अफगानिस्तान के भीतर 3 बिलियन डॉलर से ज्यादा का निवेश किया है।
यह भी गौरतलब है कि यह दौरा ऐसे वक्त में हो रहा है जब अफगानिस्तान और पाकिस्तान के रिश्तों में तल्खी बढ़ रही है। पिछले दिनों पाकिस्तान में अफगानी राजदूत की बेटी के अपहरण ने इस तल्खी को और बढ़ाया ही है।
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