गुरुवार, 8 मई 2014

दम तोड़ती हड्डियों को संजीवनी

-ग्रामीण स्वास्थ्य शिक्षा अभियान में क्रांतिकारी पहल
-उपराजधानी के डॉ. संजीव चौधरी ने आस्टियोपोरोसिस के प्रति चेताया 
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नागपुर.
चटखती हड्डियों की वैश्विक गुहार से देश की ह्रदयस्थली में हुक उठी है। बिना किसी कारण हड्डियां जवाब दे रही हैं। 21वीं सदी के लिए अभिशाप बन रहे आस्टियोपोरोसिस नामक बीमारी को पनपते ही समाप्त करने के संकल्प के साथ गुरुवार को वैश्विक आगाज किया गया। नागपुर के एक होटल में आयोजित कार्यक्रम के दौरान तकनीकी माध्यम से इसका प्रात्यक्षिक किया गया।
बैशाखी भी काम नहीं आएगा
वर्षों के अध्ययन एवं शोध के बाद उपराजधानी के जाने-माने अस्थिरोग विशेषज्ञ डॉ.संजीव चौधरी ने आस्टियोपोरोसिस नामक साइलेंट किलर रूपी बीमारी को मात देने के लिए साथ देने का अह्वान किया है। डॉ. चौधरी ने बताया कि विभिन्न देशों ने अपने यहां इसकी रोकथाम के लिए उपाय किए हैं। भारत जैसे देश में जनजागरुकता और संबंधित शिक्षा ही सर्वसुलभ माध्यम है और हमारे अभियान का मकसद भी उन्हीं विचारों को झंकृत करना है। वैसे तो बहुत देर हो चुकी है। आज भी अगर नहीं चेत पाए तो कलांतर में अपना ही भार उठाने से अपनी ही हड्डियां इनकार कर देंगी और फिर बैशाखियों का सहारा भी काम नहीं आएगा।
चेत जाएं
डॉ.चौधरी ने इस वैश्विक खतरे के प्रति आगाह करते हुए बताया कि हड्डियों की क्षणभंगुरता धीरे-धीरे अपना काम करती है। महिलाएं विशेष रूप से इसका शिकार बन रही हैं। भारतीय उपमहाद्वीप के साथ विडंबना यह जुट गई है कि  अस्थियों को भरपूर ताकत यहां नहीं मिल पा रही। उम्र के लगभग संधिकाल में जब महावारी समाप्ति पर होती है, आस्टियोपोरोसिस सीधे मगर धीरे आक्रमण करता है और साल-दो-साल में यह पूरी तरह जकड़ लेता है। जागरुकता के अभाव में देश की एक तिहाई आधी आबादी स्थायी विकलांगता की ओर है। डॉ. चौधरी का मानना है कि मौजूदा हालात में लगभग 20 फीसदी महिलाएं इस बीमारी से मौत की गाल में समा रही हैं। मात्र 10 फीसदी वे खुशनसीब महिलाएं हैं, जो सामान्य हो पाती हैं। अन्यथा, 70 फीसदी महिलाएं अपंगता की हालत में आ जाती हैं। वे पल-पल मरतीं हैं।
हिटको एक  क्रांतिकारी पहल
डॉ. संजीव चौधरी ने आस्टियोपोरोसिस को मात देने के लिए हिटको (हेल्थ एजुकेशन एंड टेली कंस्लटेशन ऑन ऑस्टियोपोरोसिस) तंत्र ईजाद किया है। हिटको सम्मिलत रूप से वह क्रांतिकारी पहल है, जिसमें अंग्रिम पंक्ति में खुद हम ही हैं। विशेषज्ञ चिकित्सकों के अलावा अनेक स्वयंसेवी संगठन एवं प्रबुद्ध नागरिक इस पहल में साथ खड़े हो रहे हैं।
सॉफ्टवेयर कंसलटेंट डॉ. प्रसेनजीत भोयर, शब्बीर पठान, उर्मिला शेंडे, गिरीश धोटे, नीरज चावळा, नरेश चावळा, वेदांत चावळा, सोनू वैद्य सहित अन्य लोगों ने तीन महीने के अथक प्रयासों से इस मिशन को सफल बनाया है। सुधीरराव खंडार के नेतृत्व में शिशिर खंडार, राहुल मोहोड़, प्रदीप खंडार, सुदाम बाजमघाटे, संजय गउलकर एवं श्री बैगड़े ने कार्यक्रम स्थल का प्रबंधन किया।
 सफल प्रयोग
नागपुर से लगभग 50 किलोमीटर दूर मध्यप्रदेश के छिदवाड़ा जिले के सौंसर तहसील स्थि तायगांव खैरी गांव के लोगों से डॉ. संजीव चौधरी नागपुर स्थित अपने अस्पताल से ही मुखातिब हुए। लगभग 400-500 महिलाओं ने अपनी समस्याओं का निदान पाया। उत्साही लगभग 50 महिलाओं ने कैमरे के सामने आकर अपने सवाल पूछे। डॉ. चौधरी ने उनसे सीधा संवाद किया। श्री चौधरी ने बताया कि साल के अंदर च्ििहन्त लगभग 100 गांवों की पीडि़त महिलाओं से हम सीधे संवाद करेंगे और उनकी समस्याओं को हल करने की कोशिश करेंगे।
 क्या है आस्टियोपोरोसिस
उम्र के साथ-साथ हड्डियों का कमजोर होना सामान्य बात है। मगर जब यही हड्डियां इतनी कमजोर हो जाएं कि आसानी से टूटने की कगार पर पहुंच जाएं तो उस स्थिति को ऑस्टियोपोरोसिस कहते हैं। ऑस्टियोपरोसिस में हार्मोनल बदलाव से हड्डी का घनत्व और द्रव्यमान प्रभावित हो जाता है और फिर हड्डियों में फ्रैक्चर और जोड़ों के दर्द का खतरा बढ़ जाता है।  डब्ल्यूएचओ के अनुसार महिलाओं में हीप फ्रैक्चर (कुल्हे की हड्डी का टूटना) की आशंका, स्तन कैंसर, यूटेराइन कैंसर व ओवरियन कैंसर के बराबर है।    बीएमडी जांच   
डब्ल्यूएचओ के अनुसार ऑस्टियोपोरोसिस के टेस्ट के लिए बोन मिनरल डेंसिटी(बीएमडी) की जांच होनी चाहिए। बीएमडी टेस्ट हड्डियों के टूटने की आशंकाओं का पता लगा सकती है। ऑस्टियोपोरोसिस के उपचार का शरीर पर प्रभाव का भी पता लगा सकती है। हड्डियों के फ्रैक्चर से पहले ऑस्टियोपोरोसिस का पता लगाया जा सकता है।