शुक्रवार, 1 अप्रैल 2011

अखंड एहसानों के इजहार का त्योहार

इसे आप अप्रैल फूल का मज़ाक कतई न समझें। तो ध्यान से सुनिए- यह त्योहार उस महान शैतान के प्रति आदमजात के अखंड एहसानों के इजहार का त्योहार है, जिस दिन उसने स्वर्ग के इकलौते आदमी और औरत को वर्जित सेव खिलाने का धार्मिक कार्य किया था। वह एक अप्रैल का ऐतिहासिक दिन था। जब सेव का मज़ा चखने के जुर्म में इस जोड़े को तड़ीपार के गौरवपूर्ण अपमान से सम्मानित करके ईश्वर ने दुनिया में धकेल दिया था। न शैतान सेव खिलाता न दुनिया बसती। मनुष्य जाति को बेवकूफ बनाने के धारावाहिक सीरियल का ये सबसे पहला एपीसोड था। आज भी धारावाहिकों के जरिए आदमी को बेवकूफ बनाने का ललित लाघव पूरी शान से जारी है। सारी दुनिया उस शैतान की एहसानमंद है जिसके एक ज़रा से मजाक ने सदियों से वीरान पड़ी दुनिया बसा दी। ज़रा सोचिए अगर ये दुनिया नहीं बसती तो आज के प्रॉपर्टी डीलरों की मौलिक प्रजाति तो अप्रकाशित ही रह जाती। इसीलिए शैतान और शैतानी को जितने पवित्र मन से यह लोग सम्मानित करते हैं, दुनिया में और कोई नहीं करता। ये दुनिया एक शैतान की शैतानी का दिलचस्प कारनामा है। जहां चोर है, सिपाही है। मुहब्बत है, लड़ाई है। बजट है, मंहगाई है। इश्क है, रुसवाई है। नेता है, झंडे हैं। मंदिर हैं, पंडे हैं। तिजोरी है, माल है। ये सब अप्रैल फूल का कमाल है। दुनिया वो भी इतनी हसीन और नमकीन कि देवता भी स्वर्ग से एलटीए लेकर धरती पर पिकनिक मनाने की जुगत भिड़ाते हैं। और अपनी लीलाओं से मानवों को अप्रैल फूल बनाते हैं, कभी-कभी खु़द भी बन जाते हैं। विद्वानों का तो यहां तक मानना है कि देवता इस धरती पर आते ही लोगों को अप्रैल फूल बनाने के लिए हैं, क्योंकि स्वर्ग में इसका दस्तूर है ही नहीं। यह तो पृथ्वीवासियों की ही सांस्कृतिक लग्जरी है। जो शैतान के सेव की सेवा से आदम जात को हासिल हुई है। देवता इसे मनाने के लिए अलग-अलग डिजायन के बहुरूपिया रूप धरते हैं। वामन का रूप धर के तीन पगों में तीन लोकों को नापकर राजा बली को बली का बकरा मिस्टर विष्णु ने पहली अप्रैल को ही बनाया था। अप्रैल फूल बनाने का चस्का फिर तो इन महाशयजी को ऐसा लगा कि अगले साल मोहनीरूप धर के भस्मासुर नाम के किसी शरीफ माफिया का बैंड बजा आए। तो किसी साल शेर और आदमी का टू-इन-वन मेकअप करके हरिण्यकश्यपु नामक अभूतपूर्व डॉन को भूतपूर्व बना आए। अप्रैल फूल की विष्णुजी की इस सनसनाती मस्ती को देखकर अपने जी स्पेक्ट्रमवाले राजा नहीं, सचमुच के स्वर्ग के, सच्चीमुच्ची के राजा इंद्र का भी मन ललचा उठा। इंद्रासन छोड़कर, सारे बंधन तोड़कर पहुंच गए मुर्गा बनकर गौतम ऋषि के आश्रम पर। ऐसी कुंकड़ूं-कूं करी कि भरी रात में ही अपने अंडर गारमेंट्स लिए बाबा गौतम पहुंच गए नदी पर नहाने। वहां आदमी-ना-आदमी की जात। समझ गए कि किसी ने अप्रैल फूल बना दिया है। मुंह फुलाए घर पहुंचे तो अपने डमी-डुप्लीकेट को बेडरूम से खिसकते पाया। अप्रैल फूल बनने की खुंदक शाप देकर वाइफ पर उतारी। शिला बन गई बेचारी। जब दैत्यों को भनक लगी कि स्वर्ग से आकर देवता अप्रैल फूल- अप्रैल फूल खेल रहे हैं तो उन्होंने भी देवताओं को अप्रैल फूल बनाने की ठान ली। सोने का हिरण बनकर, अपने पीछे दौड़ाकर जहां मारीचि ने श्रीयुत रामचंद्र रघुवंशीजी को अप्रैल फूल बना दिया, वहीं रावण ने साधु का वेश धारण कर सीताजी को लक्ष्मण-रेखा लंघवाकर हस्बैंड-वाइफ दोनों को अप्रैल फूल बना डाला। ये त्योहार है ही ऐसा। देवता और दैत्य सब एक-दूसरे से मज़ाक कर लेते हैं। फर्श ऐसा लगे जैसे पानी का सरोवर। महाभारत काल में ऐसे ही स्पेशल डिजायन के महल में दुर्योधन को बुलाकर द्रौपदी ने उसे अप्रैल फूल बनाया था। मगर दुर्योधन हाई-ब्ल्ड-प्रेशर का मरीज था। मज़ाक में भी खुंदक खा गया। और उसने अगले साल चीर हरण के सांस्कृतिक कार्यक्रम के जरिए द्रौपदी को अप्रैल फूल बनाने की रोमांचक प्रतिज्ञा कर डाली। मगर द्रौपदी के बाल सखा मथुरावासी श्रीकृष्ण यादवजी को भनक लग गई। ऐन टाइम पर साड़ी का ओवर टाइम उत्पादन कर के उन्होंने कौरवों की पूरी फेमिली को ही अप्रैल फूल बना दिया। मज़ाक को मजाक की तरह ही लेना चाहिए। अब हमारे नेताओं को ही लीजिए। पूरे पांच साल तक जनता को अप्रैल फूल बनाते हैं। कभी मूड में आकर कहते हैं कि हम भ्रष्टाचार मिटा देंगे। जनता तारीफ करती है। कि नेताजी का क्या गजब का सेंस ऑफ ह्यूमर है। फिर नेताजी भ्रष्टाचार, घोटाले में फंस जाते हैं। जनता हंसती है- अब नेताजी कुछ दिन सीबीआई-सीबीआई खेलेंगे। हाईकमान ने तो क्लीनचिट देने के बाद ही घोटाला करवाया है, नेताजी से। सब अप्रैल फूल का मामला है। इसका अंदाज ही निराला है। पूरा जी स्पैक्ट्रमवाला है। कसम, कॉमनवेल्थ गेम की। हम सब भारतवासी खेल के नाम पर भी खेल कर जाने वाले खिलाड़ियों के खेल को भी खेल भावना से ही लेते हैं। अप्रैल फूल त्योहार की अपनी अलग कूटभाषा है। जिसने बना दिया वो सिकंदर जो बन गया वो तमाशा है। अप्रैल फूल, मूर्ख बनाने का मुबारक जलसा, जो भारत से ही दुनिया के दूसरे देशों में एक्सपोर्ट हुआ है। हमारे आगे टिकने की किसमें दम है। न्यूजीलैंड, इंग्लैंड, आस्ट्रेलिया और दक्षिण अफ्रीका में दोपहर के १२ बजे तक ही अप्रैल फूल का मजाक चलता है। फ्रांस, अमेरिका, आयरलैंड, इटली, दक्षिण कोरिया, जापान, रूस, कनाडा और जर्मनी में यह पूरे दिन चलता है। मगर हमारे देश में यह मज़ाक जीवन पर्यंत चलता है। अप्रैल फूल के मजाक को याद करके हम भारतवासी मरणोपरांत भी हंसते रहते हैं। और जबतक ज़िंदा रहते हैं नमक और मिर्च को बांहों में बांहें डाले अपने ही जख्म के रेंप पर डांस करता देखकर बिलबिलाकर उनके साथ भरतनाट्यम करते हुए अप्रैल फूल –जैसे प्राचीन पर्व की आन-बान-शान को हम ही बरकरार रखते हैं। अप्रैल फूल त्योहार का कच्चा माल हम भारतीय ही हैं। अप्रैल फूल मनाने का ग्लोबल कॉपीराइट भारतीयों के ही पास है। क्योंकि सबसे पहले अप्रैल फूल बननेवाले इस दुनिया में ही नहीं जन्नत में भी हम भारतीय ही थे। शैतान के सेव के सनातन सेवक। वसुधैव कुटुंबकम.. सारी दुनिया हमारी ही फेमली है। और अप्रैल फूल हमारा ही फेमिली फेस्टिवल है।