शुक्रवार, 27 अगस्त 2021

शर्म किसी को नहीं, सिर्फ देश शर्मसार है.....

लोकतंत्र बदनाम हुआ सियासत तेरे लिए

तो क्या मानसूत्र सत्र का धाराप्रवाह हंगामा विपक्ष का सचेत और सुनियोजित कृत्य था? क्या यह संसदीय व्यवस्था पर सीधा हमला ही था? जवाब ढूंढने या किसी निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले पार्श्व में जाना उचित होगा। दिन बुधवार, 11 अगस्त। समय शाम के 6 बजकर 15 मिनट। ऑल इंडिया तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के राज्यसभा सांसद डेरेक ओ ब्रायन का ट्वीट आता है, जिसमें वो राज्यसभा के अंदर के माहौल को बयान करते हैं-मोदी के ख़िलाफ़ क्या विपक्ष सचमुच एकजुट हो गया है? जब डेरेक ट्वीट कर रहे थे, उस समय राज्य सभा एक अप्रत्याशित हंगामे का गवाह बन रहा था। विपक्ष के सदस्य जमकर नारेबाज़ी कर रहे थे, काले झंडे दिखा रहे थे और कुछ सदय कागजों को फाड़ते हुए नज़र आ रहे थे। अनेक मूलभूत प्रश्न हैं, ‘राष्ट्र जीवन’ प्रश्न बेचैन है। क्या हमारे जनप्रतिनिधि संवैधानिक शपथ के प्रति निष्ठावान नहीं हैं? क्या वे संसदीय कार्यवाही को राष्ट्रहित का साधन नहीं मानते?  सत्ता और विपक्ष  दोनों ही जनादेश की कोख की ही उपज हैं। सत्ता पक्ष सरकार के माध्यम से नीति कार्यक्रम लागू करता है, तो विपक्ष उसकी निगरानी करता है। संसद चलाने और कार्यवाही को उत्पादक बनाने की जिम्मेदारी भी दोनों की है, लेकिन यहां हद हो गई। इसलिए राष्ट्र जीवन प्रश्न बेचैन है...जवाब कौन देगा,  जवाबदेही कौन लेगा...शायद कोई नहीं। अलबत्ता ठीकरा फोड़ने के लिए सभी अग्रिम पंक्ति में नजर आएंगे...धन्य है यह देश और धन्य इस देश के मतदाता, जो सब कुछ भूल जाने का आदी है और वोट मांगने आने वालों का किसी ‘अतिथि’ की तरह स्वागत करता है...शर्म किसी को नहीं, सिर्फ देश शर्मसार है.....

बना के क्यों बिगाड़ा...

कोरोना की दूसरी लहर से जब देश जूझ रहा था और व्यवस्थाएं चरमराती नजर आ रही थीं तब विपक्ष सरकार से बार-बार मांग कर रहा था कि संसद का विशेष सत्र बुलाया जाए, ताकि महामारी से निपटने के उपायों पर चर्चा की जा सके, लेकिन जब संसद के नियमित मानसून सत्र का आयोजन हुआ तो उसे विपक्षी दलों ने चलने नहीं दिया। लोकसभा में 22 प्रतिशत और ऊपरी सदन राज्यसभा में 28 प्रतिशत कामकाज ही हो पाया।

वैसे देखा जाये तो यह संसद का नियमित सत्र जरूर था, लेकिन इसके लिए तैयारियां विशेष रूप से की गई थीं। कोरोना प्रोटोकॉल का पालन कराते हुए सत्र का आयोजन किया गया था। समन्वय की बात करें तो, सत्र से पहले भारत-चीन तथा अन्य महत्वपूर्ण मुद्दों पर विपक्ष के बड़े नेताओं के साथ बैठकें कर केंद्र सरकार के वरिष्ठ मंत्रियों ने उन्हें यथास्थिति की जानकारी दी थी। लोकसभा अध्यक्ष, राज्यसभा के सभापति और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सर्वदलीय बैठकों में भी सभी दलों को यह आश्वासन मिला था कि उनकी बात सुनी जाएगी, लेकिन विपक्ष तो जैसे पहले से ही ठानकर बैठा था कि किसी कीमत पर संसद को काम नहीं करने दिया जाएगा। हालांकि इसी सत्र के दौरान दोनों सदनों में सरकार और विपक्ष के बीच दुर्लभ किस्म की एकजुता भी दिखी। ओबीसी सूची बनाने के राज्यों के अधिकार से जुड़े संविधान संशोधन विधेयक पर दोनों सदनों में पार्टियों का भेद समाप्त हो गया था, लेकिन राज्यसभा में सत्र के आखिरी दिन इसके ठीक बाद जब सरकार इंश्योरेंस बिल लेकर आई तो विपक्ष बौखला उठा। उसका कहना था कि यह बिल लाने की बात तो तय नहीं थी।

ए वतन तेरे लिए...

विपक्ष के तेवर को सरकार भांप चुकी थी, लेकिन पूरी तरह नहीं। फिर भी राज्यसभा में कलुषित बुधवार यानी 11 अगस्त को सुरक्षाकर्मियों की अभूतपूर्व तैनाती की गई थी। इसके बावजूद सदन में विपक्षी सदस्यों ने आसन के समक्ष आकर नारेबाजी की और कागज फाड़कर उछाले। कुछ सदस्य आसन की ओर बढ़ने का प्रयास करते हुए सुरक्षाकर्मियों से उलझे भी। केंद्रीय मंत्रियों ने विपक्षी नेताओं पर मार्शलों के साथ धक्का-मुक्की करने का आरोप लगाया। सरकार की तरफ से आठ केंद्रीय मंत्री विपक्ष के आरोप का जवाब देने के लिए सामने आए। इनमें पीयूष गोयल, धर्मेंद्र प्रधान, भूपेंद्र यादव, मुख्तार अब्बास नकवी, अनुराग ठाकुर, प्रह्लाद जोशी, अर्जुन मेघवाल और वी. मुरलीधरन शामिल थे। इन्होंने संयुक्त प्रेस वार्ता में जवाब दिया। कहा कि मानसून सत्र के दौरान संसद में जो हुआ, उसके लिए विपक्ष को देश से माफी मांगनी चाहिए, क्योंकि मानसून सत्र में विपक्ष का एकमात्र एजेंडा सड़क से लेकर संसद तक अराजकता पैदा करना था।  

झांकी हिंदुस्तान की… 

जवाब में विपक्ष के 11 मुख्य राजनीतिक दलों ने सरकार पर संसद में चर्चा कराने की मांग नहीं मानने का आरोप लगाया और दावा किया कि राज्यसभा में कुछ महिला सदस्यों समेत कई सांसदों से धक्का-मुक्की ऐसे लोगों ने की, जो संसद की सुरक्षा का हिस्सा नहीं थे। विपक्षी दलों के नेताओं ने एक संयुक्त बयान में सरकार के ‘अधिनायकवादी रुख’ और ‘अलोकतांत्रिक कदमों’ की निंदा की और कहा कि राज्यसभा जो कुछ हुआ वह हैरान करने वाला तथा सदन की गरिमा और सदस्यों का अपमान है। उन्होंने सरकार पर चर्चा कराने की मांग नहीं मानने का आरोप लगाया और कहा कि वह पेगासस मामले पर चर्चा करने से भाग रही है। संयुक्त बयान पर राज्यसभा के नेता प्रतिपक्ष मल्लिाकर्जुन खड़गे, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के प्रमुख शरद पवार, द्रमुक के टीआर बालू समेत 11 दलों के नेताओं के हस्ताक्षर हैं।

पासे सभी पलट गए…

सरकार कह रही है कि विपक्षी सदस्यों ने मार्शलों के साथ मारपीट की, वहीं विपक्ष का आरोप है कि बाहरी लोगों को मार्शल की ड्रेस पहनाकर सदन में भेजा गया और उनसे विपक्षी सांसदों को पिटवाया गया। इस तरह के आरोप सदन में सत्ता पक्ष और विपक्ष ने कभी एक-दूसरे पर नहीं लगाए थे। सचाई स्पष्ट करने के लिए राज्यसभा सचिवालय की ओर से आखिरी घंटे की कार्यवाही का मिनट-दर मिनट ब्योरा विडियो के रूप में पेश किया गया, लेकिन उससे भी बात नहीं बनी। सवाल यह कि आखिर ऐसी नौबत आखिर क्यों और कैसे आ गई कि सदन में मार्शल बुलाने पड़े? निश्चित रूप से विपक्ष को देखना चाहिए कि उसका विरोध कब और कैसे हदों को पार करने लगा। मतलब यह भी नहीं कि इस मामले में सत्ता पक्ष पूरी तरह पाक-साफ है। लोकतंत्र जिद से नहीं चलता। विपक्ष को मना लेने की क्षमता का प्रदर्शन करने में सरकार निश्चित रूप से चूकी है।  

याद करो कुर्बानी…

भारत स्वाधीनता के अमृत महोत्सव की उमंग में है। सब कुछ तो है भारत के पास। अपने संविधान की सत्ता, अनेक संवैधानिक संस्थाएं, प्रतिष्ठित न्यायपालिका, जिम्मेदार कार्यपालिका और उसे जवाबदेह बनाए रखने वाली विधायिका। विधायिका में केंद्रीय स्तर पर संसद व राज्यों में विधानमंडल हैं। संसद के पास कानून बनाने व संविधान में संशोधन करने की भी शक्ति है, लेकिन हाल के कुछ वर्षों से संसद ने निराश किया है। अध्यक्ष/सभापति का आसन आदरणीय होता है। संसदीय नियमों के अनुसार अध्यक्ष/सभापति के ‘विनिश्चय’ पर आपत्ति नहीं की जा सकती, लेकिन ताजे विवाद में विपक्ष ने इस मर्यादा का उल्लंघन किया। पीठ पर भी आरोप लगाए गए। संसदीय इतिहास में संभवत: पहली बार मार्शल के साथ दुर्व्यवहार हुआ। प्रक्रिया नियमावली तार-तार हो गई। 

जरा आंख में भर लो पानी…

राज्य सभा के अध्यक्ष वेंकैया नायडू का कहना था कि मॉनसून सत्र जिस तरह बाधित होता रहा और इस दौरान विपक्ष का जो आचरण रहा, उसको लेकर वो इतने दु:खी हैं कि रात भर सो भी नहीं पाए। नायडू भावुक भी हुए। लोक सभा अध्यक्ष ओम बिरला का कहना था कि वो इस बात से आहत हैं कि जनसरोकार के मुद्दों को लेकर सदन में चर्चा नहीं हो पाई और सदन ठीक से नहीं चल सका।  राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के नेता शरद पवार का कहना था कि 55 सालों से वो संसद के सदस्य हैं, लेकिन उन्होंने संसद में इस तरह के दृश्य कभी नहीं देखे, तो कांग्रेस पार्टी के मुख्य सचेतक जयराम रमेश का कहना था ये सब कुछ सरकार ने ‘जनरल इंश्योरेंस बिल' को ज़बरदस्ती पारित करवाने के लिए किया था। विपक्ष इस बिल को संसद की सेलेक्ट कमेटी के पास भिजवाने की मांग कर रहा था।

हम लाए हैं तूफान से कश्ती निकाल के… 

संविधान शिल्पी बाबासाहब डॉ. भीमराव आंबेडकर ने संविधान सभा में संसदीय प्रणाली को उचित बताते हुए कहा था कि ‘भारत में पहले भी लोकतंत्र था, लेकिन भारत से यह लोकतांत्रिक व्यवस्था मिट गई। संसद जैसी संस्थाओं को ही तहस-नहस किया जा रहा है। देश आहत और असहाय है। सदन की शक्ति में राष्ट्र की शक्ति अंतर्निहित है। सभा महाभारत काल में भी थी। उसमें एक खंड का नाम ही ‘सभा पर्व’ है। सभा की शक्ति घटी। विमर्श घटा। तब महाभारत हो गया। नि:संदेह महाभारत ही तो था।

नहीं भूलता ‘वह दिन’

भारत के तत्कालीन गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे तेलंगाना के मुद्दे पर राज्य पुर्नगठन विधेयक पेश करने के लिए उठे, लोकसभा में हंगामा शुरू हो गया। सांसद शिवगोपाल राजगोपाल ने हल्ला मचाना शुरू कर दिया। वह स्पीकर के माइक का तार नोचने लगे। इतने से भी उन्हें सकून नहीं मिला तो उन्होंने पेपर स्प्रे (नाक और आंखों में जलन मचाने वाला काली मिर्च का स्प्रे) छिड़कना शुरू कर दिया। संसद के बाहर अंगरक्षकों के साथ चलने वाले माननीय सांसद अपने साथी मान्यवर की हरकत से बच नहीं पाए। खांसी और छींकों के साथ कुछ सांसद आंखें मसलने लगे। कुछ सांसदों को तो एंबुलेंस में अस्पताल भेजा गया। कइयों को संसद में ही प्राथमिक उपचार दिया गया। हंगामे के बाद संसद को कुछ देर के लिए स्थगित कर दिया गया। इसके बाद जब फिर कार्रवाई शुरू हुई तो टीडीपी के वेणुगोपाल ने चाकू लहराते हुए हंगामा शुरू कर दिया। 

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