शुक्रवार, 30 जुलाई 2021

भागो मत, जागो….दहलीज के उस पार ‘दर्द’ बेशुमार

 

 

महाराष्ट्र की उपराजधानी नागपुर को संस्कारधानी के रूप में स्वीकार्यता बढ़ रही थी, लेकिन युवाओं के कारण इसमें ग्रहण लगता नजर आ रहा है। पश्चिमी देशों में प्रचलित भौंडापन यहां शगल बनता जा रहा है। फोन से लेकर लैपटॉप तक एक क्लिक पर उपलब्ध यौन सामग्री युवा मन में सेक्स का ओवरडोज उड़ेल रही हैं। नतीजा, मानसिक और शारीरिक विकृति तक पहुंच गया है। फिर ये नशाखोरी से लेकर यौन अपराध तक के रूप में सामने आ रहे हैं। परामर्श केन्द्रों में 14 से 16 की उम्र के युवाओं की काउंसलिंग के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं, जो सब कुछ भूल भविष्य को अनदेखा कर रहे हैं। हैरत यह है कि 70 प्रतिशत मामले ऐसे हैं, जिसमें हाईस्कूल व इंटर में पढ़ने वाले बच्चों से जुड़े हैं। विपरीत लिंगी सेक्स के प्रति आकर्षण उनकी जिंदगी में ग्रहण लगा रहा है। आंकड़े बताते हैं कि सिर्फ नागपुर जिले में लगभग साढ़े 3 साल में अपने-अपने घरों से कुल 317 लड़कियां घर से भाग निकलीं। इसमें सिर्फ पिछले डेढ़ साल में 133 लड़कियों ने घर-बार छोड़ दिया। यहां ध्यान रखने वाली बात यह कि ये वे मामले हैं, जो पुलिस तक पहुंचे हैं। इससे कहीं तिगुने-चौगुने मामले लड़कियों के घर से भागने के हो सकते हैं। चूंकि हमारे देश में अभी भी लड़कियों को घर की लाज के रूप में मान्यता दी गई है, इसलिए बहुत से लोग बदनामी की डर से पुलिस तक शिकायत लेकर नहीं पहुंचते हैं, इसलिए उनकी गिनती नहीं हो पाती। नागपुर की बदलती आबोहवा हैरान कर रही है, आपराधिक आंकड़े परेशान कर रहे हैं। आपनों के दिए जख्मों का दर्द बेइंतेहा है, दबाने से नासूर बन जाएगा। समय रहते पुलिस का साथ लें, भीतरघात थोड़ी देर के लिए ही विचलित करेगी…

समाज की धुरी नारी होती है, पूरी संस्कृति उसी नारी पर निर्भर है। नारी जितनी सुरक्षित, शिक्षित, श्रेष्ठ, धार्मिक और पवित्र है, धर्म का राज्य उतना ही सुरक्षित है। यही चिंता अर्जुन द्वारा श्रीकृष्ण से भी व्यक्त की गई थी कि युद्ध का सबसे बड़ा नुकसान होता है नारियों पर संकट और उनकी सुरक्षा के अभाव में उनका भ्रष्ट हो जाना। हज़ारों वर्षों से सनातन परम्परा से अपने परिवारों को जोड़े हुए हैं और श्रेष्ठ से श्रेष्ठ संतानों को जन्म दे रही हैं। समानता का अधिकार विपन्नता का पोषक हो चला है। एक ऐसी विपन्नता, जिसके चलते कई पीढ़ियां संभल नहीं पातीं।  

दरअसल इन घटनाओं की वजह बहुत ही साफ और सच्ची है। जो बच्चे ऐसी घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं, उन के आदर्श फिल्मी हीरो, हिंसक वीडियो गेम हैं। माता-पिता द्वारा बच्चों को ऐश-ओ-आराम के साथ महत्वाकांक्षी दुनिया की तस्वीरों के अलावा जिन्दगी के वास्तविक यथार्थ बताएं और दिखाए नहीं जा रहे हैं। संघर्ष करना नहीं सिखाया जा रहा। हां, सब कुछ हासिल करने का ख्वाब जरूर दिखाया जा रहा है। वह भी कोर्इ संघर्ष किए बिना। दरअसल, जो बच्चे संघर्षशील जीवन जीते हैं, उनकी संवेदनाएं मरती नहीं हैं। वे कठिन परिस्थितियों में भी निराश नहीं होते और हर विपरीत परिस्थिति से लडने के लिये तैयार रहते हैं। कुछ घटनाओं के पीछे शिक्षा और परीक्षा का दबाव है, तो कुछ के पीछे मात्र अभिभावकों और अध्यापकों की सामान्य सी डांट। 

मामूली बातों पर गंभीर फैसले ले लेने वाली इस युवा पीढ़ी को न तो अपनी जान की परवाह है और न ही उन के इस कदम से परिवार पर पड़ने वाले असर की उन्हें कोर्इ चिंता है। आंकड़े बताते हैं कि नागपुर जिले में वर्ष 2018 में 102 लड़कियां कतिपय मामले में घर से भाग निकलीं। पुलिस ने 97 को खोज निकाला और उन्हें परिजनों के सुपुर्द कर दिया, जबकि 5 लड़कियां खुद घर लौट आईं। इसी प्रकार 2019 में 126 लड़कियां घर से भाग निकलीं। पुलिस ने इनमें से 112 को ढूंढ निकाला और 14 खुद लौट आईं। वर्ष 2020 में 89 लड़कियां भागीं, तो पुलिस ने 78 को ढूंढ निकाला और 2 अपने आप वापस आ गईं। 2021 में जून माह के अंत तक 44 लड़कियां परिजनों को छोड़कर भागीं, जिनमें से 28 को पुलिस ने खोज निकाला। यह बात अच्छी रही कि इनमें से 16 खुद लौट आईं। लौटने वाली लड़कियों में यह अभी तक का सबसे बड़ा आंकड़ा है। 

जानकार मानते हैं कि सोशल साइट्स पर पोर्न साइट्स के प्रति बढ़ते आकर्षण से भी कच्ची उम्र के युवा भटक रहे है। अधिकतर युवा ऐसे हैं, जो  शिक्षा के अभाव में गलत कामों में लिप्त हो रहे हैं। उन्मुक्त पूंजीवाद और व्यक्तिवाद की देन परिवारों के टूटने का कारण बनती जा रही है। शहरों के साथ ही कस्बों में भी असंख्य लड़के-लड़कियों की भीड़ बढ़ती जा रही है, जो अपनों के ही बीच पराए हो जाते हैं। जिन मां-बाप ने वृद्धावस्था का सहारा मानकर लाड़-प्यार और शिक्षित करने में अपने जीवन की खुशियों की बलि चढ़ाकर शिक्षित-दीक्षित किया, खुली छूट दी और सोचा कि उनके बच्चे मर्यादाओं-परंपराओं का निर्वाह करते हुए घर, परिवार, समाज और देश को उन्नत बनाने में सफल होंगे, परंतु सब-कुछ विपरीत हो रहा है।

बड़े बड़े कॉम्प्लेक्स के बेसमेंट इत्यादि में नशे के अड्डे संचालित हो रहे हैं। फिल्मी स्टाइल में रंगीन लाइट, डीजे की धुन पर थिरकती युवा पीढ़ी। अय्याशी के पहले पायदान पर पैर रखने का मतलब ऊपर चढ़ना नहीं, खाई में गिरना ही है। न जाने क्यों पुलिस और आला अधिकारी इन सारी चीजों को नजरअंदाज कर रहे हैं। अभिभावकों से अपील है कि वो अपने बच्चों पर कड़ी नजर रखें, मासूम बच्चों को इनमें संलिप्त होने से बचाएं। हर बार प्रशासन पर ही सारा ठीकरा न फोड़े। कुछ उन अभिभावकों की भी गलती है जो बच्चों को आवश्यकता से अधिक पैसे देते है, और उन पैसों के खर्च का ब्योरा नहीं लेते है। किशोरों की संगति एवं उनके कार्यो पर नजर रखें, उनसे मित्र जैसा व्यवहार रखें, तर्कों के साथ उनके भावनाओं को आहत किए बगैर उनकी समस्याओं का निवारण करें। उपाय काउंसलिंग भी है। ऐसे युवाओं को काउंसलर्स अपने विश्वास में लेकर उनसे ऐसा होने के कारण के बारे में पता लगाते हैं और सही रास्ते पर लाने का प्रयास करते हैं। साथ दें, पीढियों को बचाने की भारी जिम्मेदारी आपके ही ऊपर है। 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें