शुक्रवार, 4 फ़रवरी 2011

धृतराष्ट्र अभी जिंदा हैं

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह आज दुहाई देते फिर रहे हैं कि भ्रष्टाचार के कारण भारत की छवि को नुकसान पहुंचा है। मगर, राजा पर आरोपों की बौछारें होती रहीं और बिना रीढ़ के समझे जाने वाले देश के प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह इतना साहस नहीं जुटा सके कि वे राजा से तत्काल त्यागपत्र मांगकर उन्हें सीखचों के पीछे भेज सकें। यक्ष प्रश्न तो यह है कि अगर एक सौ छियत्तर लाख करोड़ रूपए का नंगा नाच नाचा गया तो वह पैसा गया कहां? राडिया मामले में अनेक मंत्रियों की गर्दन नपना अभी बाकी है। यही आलम कामन वेल्थ गेम्स का रहा। प्रधानमंत्री डॉ. सिंह और कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी की आंखों के सामने जनता के गाढ़े पसीने की कमाई को हवा में उड़ा दिया गया, और ये दोनों चुपचाप ही बैठकर जनता के पैसे पर डलते डाके को देखते रहे। अनेक आरोप तो सोनिया गांधी के इटली वाले परिवार पर भी लगे हैं। राजा की गिरफ्तारी भारतीय लोकतंत्र के नस - नस में समाये भ्रष्टाचार की अमर बेल को को उखाड़ फेंकने का काम नहीं कर सकती, इस पूरे मामले में ईमानदार कार्रवाई तभी मानी जाएगी, जब उनको भी सजा मिले जिन्होंने इस महाघोटाले को अंजाम देने के लिए राजा की ताजपोशी का मार्ग प्रशस्त किया था। इस पूरे घोटाले ने एक बात और साबित कर ही दी है कि देश में बिना मीडिया के सहयोग के किसी भी बड़े घोटाले को सरंजाम दिया जाना संभव नहीं है, ये बात दीगर है कि बेहद कमजोर आत्मबल वाली सरकार और पैसा कमाने के लिए नंगई पर उतर चुके कार्पोरेट अखबारों और चैनलों के लिए मीडिया के इन चौधरियों के खिलाफ हल्ला बोलना बेहद कठिन है। पर क्या आगे यह संभव है? शायद हां।
नौकरशाहों ने पल्ला झाड़ा ---------
22, 000 हजार करोड़ का अनुमानित घाटा नौकरशाह अपना पिंड छुड़ाने में लग गए हैं। पूर्व टेलीकॉम सचिव सिद्धार्थ बेहुरा ने खुलासा किया कि 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन में मंत्री के आदेश का पालन किया गया। बेहुरा ने बताया है कि वे लोग पूर्व केंद्रीय दूरसंचार मंत्री ए. राजा के आदेश का पालन करते थे। दूसरी तरफ ए. राजा के वकील ने चौंकाने वाला खुलासा किया है। उनके मुताबिक राजा और उनके दो सहयोगी ही नहीं बल्कि कई अन्य भी इस घोटाले में शामिल हैं। इस बीच, केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के विशेष न्यायाधीश ओ.पी. सैनी ने कहा कि आरोपियों के खिलाफ अभियोग है कि उन्होंने स्पेक्ट्रम लाइसेंस जारी करने के दौरान नियमों और प्रक्रियाओं का उल्लंघन किया, जिसकी वजह से सरकार को 22 हजार करोड़ रूपये का अनुमानित घाटा हुआ। उन्होंने कहा कि तीनों आरोपियों के खिलाफ गंभीर मामले हैं। जनता पार्टी के अध्यक्ष सुब्रह्मण्यम स्वामी ने 2जी आवंटन मसले पर याचिका दाखिल कर राजा को आरोपी बनाया था जिसे अब 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला कहा जाता है। इस मसले पर सर्वोच्च न्यायालय में अगली सुनवाई अगले सप्ताह होगी। सर्वोच्च न्यायालय स्वयं इस मामले की जांच की निगरानी कर रहा है, जिसकी जांच कई एजेंसियां कर रही हैं. इस मामले में न्यायालय ने सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय से 10 फरवरी तक अपनी रिपोर्ट दाखिल करने को कहा है। हो न जाए कहीं भ्रष्टाचार के खिलाफ भारत में भी बगावत - अस्सी के दशक के उपरांत भारत गणराज्य में भ्रष्टाचार की जड़ें तेजी से पनपना आरंभ हुईं थीं। तीस सालों में भ्रष्टाचार का यह बट वृक्ष इतना घना हो चुका है कि इसकी छांव में नौकरशाह, जनसेवक और मीडिया के सरपरस्त सुकून की सांसे ले रहे हैं, किन्तु आम जनता की सांसे इस पेड़ के नीचे सूरज की रोशनी न पहुंच पाने के कारण मचे दलदल में अवरूद्ध हुए बिना नहीं हैं। भारत गणराज्य के अब तक के सबसे बड़े घोटाले अर्थात 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले के मुख्य आरोपी अदिमुत्थू राजा को केंद्रीय जांच ब्यूरो ने तेरह महीने की लंबी मशक्कत और खोज के बाद गिरफ्तार कर लिया। राजा के खिलाफ सीबीआई ने 21अक्टूबर 2009 को 2जी मामले में जांच के लिए मामला दर्ज किया था। इसके बाद सहयोगी दलों के दबाव के चलते कांग्रेस नीत केंद्र सरकार ने इस मामले की फाईल को लटका कर रखा। विपक्ष ने जब संसद नहीं चलने दी तब कांग्रेस को होश आया और बजट सत्र में फजीहत से बचने के लिए सरकार ने सीबीआई को इशारा किया और तब जाकर कहीं राजा को सीखचों के पीछे ले जाया जा सका। तब से अब तक -टेलीकाम सहित सारे के सारे घपले घोटालों को इतिहास की पाठ्यपुस्तक के अध्याय के तौर पर ही समझा जाए। द्रविड़ मुन्नेत्र कषगम (द्रमुक) कोटे के मंत्री दयानिधि मारन के त्यागपत्र के उपरांत 16 मई 2007 आदिमत्थू राजा को वन एवं पर्यावरण से हटाकर संचार मंत्री बना दिया गया। 25 अक्टूबर 2007 को केंद्र ने मोबाईल सेवाओं के लिए 2जी स्पेक्ट्रम की नीलामी की संभावनाओं को सिरे से खारिज कर दिया। इसके उपरांत 15 नवंबर 2008 को तत्कालीन केंद्रीय सतर्कता आयुक्त प्रत्युष सिन्हा ने अपनी आरंभिक रिपोर्ट में इसमें अनेक खामियों का हवाला देतेह हुए दूरसंचार अधिकारियों के खिलाफ कार्यवाही करने की अनुशंसा की थी। जब घोटाला हुआ तब केंद्र की सरकार चिर निंद्रा में लीन थी। इसके बाद बरास्ता नीरा राडिया यह घोटाला प्रकाश में आया। 21 अक्टूबर 2009 को सीबीआई ने टूजी स्पेक्ट्रम मामले में जांच के लिए मामला दर्ज कर लिया। इसके अगले ही दिन 22 अक्टूबर को सीबीआई ने दूरसंचार महकमे के कार्यालयों पर छापामारी की। इसके एक साल बाद 17 अक्टूबर 2010 को नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक ने दूरसंचार विभाग को अनेक नीतियों के उल्लंघन का दोषी पाया। नवंबर 2010 में विपक्ष ने एकजुट होकर दूरसंचार मंत्री ए.राजा को हटाने की मांग कर डाली। चारों ओर से दबाव में आई केंद्र सरकार को मजबूरन 14 नवंबर को राजा का त्यागपत्र मांगना ही पड़ा। 15 नवंबर को संचार मंत्रालय का कार्यभार कपिल सिब्बल को सौंप दिया गया। मुंह क्यों नहीं छिपाते - जब कामन वेल्थ गेम्स आयोजन समिति के अध्यक्ष सुरेश कलमाड़ी पर आरोप लगे तो उन्होंने सरकार को हड़काया कि हमाम में वे अकेले नंगे नहीं हैं। फिर क्या था, कलमाड़ी पर शिकंजा ढीला कर दिया गया। आदर्श हाउसिंग सोसायटी में नाम आने के बाद भी विलासराव देशमुख और सुशील कुमार शिंदे को सोनिया गांधी ने ए रैंक दिया है, जो आश्चर्यजनक है। सरकार में मंत्रियों के बड़बोलेपन का आलम यह रहा कि संचार मंत्रालय का भार संभालते ही मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल ने तो सरकार के अब तक निष्पक्ष रहे आडीटर कैग की विश्वसनीयता पर ही प्रश्न चिन्ह लगा डाले। देशवासी सकते में थे, कि आखिर हो क्या रहा है? क्या सरकारी तंत्र में खोट है या सरकार चलाने वाले नुमाईंदों की नजरों में? अंतत: राजा की गिरफ्तारी ने दूध का दूध पानी का पानी कर दिया। अब सिब्बल मुंह छुपाते घूम रहे हैं।अब जबकि राजा सीखचों के पीछे हैं तब केंद्र सरकार के नुमाईंदों पर जनता के धन के अपराधिक दुरूपयोग का मामला चलना चाहिए, क्योंकि सरकार के अडियल रवैए के चलते ही संसद का शीतकालीन सत्र बह गया और देश के गरीबों के खून पसीने के लाखों करोड़ों रूपए उसमें डूब गए। सरकार के नुमाईंदों का तो शायद कुछ न गया हो, उनकी जेबें पहले से अधिक भारी हो गई हों, पर इसका सीधा सीधा बोझ तो आम जनता पर ही पडऩे वाला है। शर्म मगर आती नहीं - इसके पहले आजाद भारत में अनेक मंत्रियों को सीखचों के पीछे भेजा जा चुका है। 1991 से 1996 तक संचार मंत्री रहे सुखराम इसकी जद में आ चुके हैं। पूर्व में 16 अगस्त 1996 में तत्कालीन केंद्रीय संचार मंत्री सुखराम के दिल्ली स्थित आवास पर सीबीआई ने छापा मारकर उनके पास से पौने तीन करोड़ रूपए नकद बरामद किए थे। इनके हिमाचल स्थित आवास से सवा करोड़ रूपए भी मिले थे। इन्हें 18 सितम्बर 1996 को गिरफ्तार किया गया था। तांसी जमीन घोटाले में तमिलनाडू की मुख्यमंत्री रह चुकी जयललिता को अक्टूबर 2000 में चेन्नई की एक अदालत ने सजा सुनाई थी। इसके अलावा अरूणाचल प्रदेश के सीएम रहे गेगांप अपांग को एक हजार करोड़ रूपए के पीडीएस घोटाले में गिरफ्तार किया गया था। झारखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा पर चार हजार करोड़ रूपयों के घोटाले का आरोप है। इन्हें सितम्बर 2009 में गिरफ्तार किया गया था, वे आज भी जेल में ही हैं। कोयला मंत्री रहे शिबू सोरेन को अपने ही सचिव के अपहरण और हत्या की साजिश रचने के आरोप में दोषी ठहराया था। सोरेन पर आरोप था कि उन्होंने अपने सचिव शशिनाथ झा के साथ यह सब किया था। अदालत के फैसले के बाद सोरेन को गिरफ्तार कर लिया गया था। बीसवीं सदी में स्वयंभू प्रबंधन गुरू बनकर उभरे लालू प्रसाद यादव ने तो कमाल ही कर दिया था। चारा घोटाले के प्रमुख आरोपी लालू यादव को 30 जुलाई 1997 को 134 दिनों के लिए,28 अक्टूबर 1998 को 73 दिनों के लिए, फिर पांच अप्रैल 2000 को 11 दिनों के लिए जेल भेजा गया था। इन पर आय से अधिक संपत्ति का मामला है। बावजूद इसके ये सारे नेता आज भी अपनी कालर ऊंची करके सरकार में शामिल होने लालायित हैं। कहने को तो देश की जांच एजेंसियां भ्रष्टाचारियों, कालाबाजारियों पर कड़ी कार्रवाई का दिखावा करती हैं। याद नहीं पड़ता कि सुखराम के अलावा किसी अन्य का प्रकरण परवान चढ़ पाया हो। एक दूसरे की पूंछ अपने पैंरों तले दबाकर रखने वाले सियासी दलों के नेताओं द्वारा जनता को इस तरह की कार्रवाईयों के जरिए भरमाया जाता है। केंद्र सरकार इस बात को समझ नहीं पा रही है कि भ्रष्टाचार से आम जनता भरी बैठी है। रियाया चाह रही है कि भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कड़े से कड़े कदम उठाए जाएं। अगर केंद्र या राज्यों की सरकारों ने भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कड़े कदम नहीं उठाए तो भरी हुई जनता सड़कों पर उतर सकती है, और तब उपजने वाली स्थिति इतनी बेकाबू होगी जिससे निपटना किसी के बूते की बात नहीं होगी। सारी हदें पार करने वाले - अगर गहराई से देखा जाए तो राजा भ्रष्टाचार के इस ब्रेन गेम में सिर्फ और सिर्फ एक मोहरा थे, वो मोहरा जिसने अंधाधुंध पैसे कमाने के लालच में दिमाग का इस्तेमाल करना बंद कर दिया था ,वो मोहरा जिसका इस्तेमाल देश के उद्योगपतियों, मीडिया और कार्पोरेट जगत के दलालों ने अपनी झोली भरने के लिए किया और जब मामले खुला तो पहले गर्दन भी राजा की पकड़ी गयी। मगर बरखा दत्त और बीर संघवी जैसे पत्रकारों एवं टेलीकाम कंपनियों के उन मालिकानों से अभी तक पूछताछ किये जाने को लेकर कोई चर्चा भी नहीं हो रही जिन्होंने राजा को संचार मंत्री बनाने के लिए सारी हदें पार कर दी। अपनी करतूतों को ,अपने काम का हिस्सा बताने वाली बेशर्म बरखा दत्त के लिए राजा की गिरफ्तारी क्या एक सामान्य खबर की तरह ही होगी ?क्या उनकी आँखों में आधी रात के वो मंजर फिर से कौंधे होंगे जब वो नीरा से राजा की ताजपोशी के लिए निश्चिंत रहने की बात कह रही थी। क्या वीर संघवी को अपने लिखे वो शब्द याद आये होंगे जब उन्होंने नीरा से कहा था कि जैसा तुमने कहा मैंने वैसा ही लिखा था न? शायद नहीं। इसकी वजह भी है बरखा दत्त और वीर संघवी समेत इस घोटाले कि प्रस्तावना लिखने वाले मीडिया कर्मी और कार्पोरेट जगत के मठाधीश ये जानते थे कि इस लड़ाई में राजा अकेले भले पड़ जाए लेकिन वो अकेले नहीं पड़ेंगे क्यूंकि उनके पीछे उस बड़े समूह की ताकत जुडी है जो देश में राजनेताओं और राजनैतिक दलों का भविष्य बनाने - बिगाडऩे का मुगालता पाल रखे हैं। राजा मंत्री थे पद के दुरुपयोग का मामला उन पर ठोंक दिया गया ,निस्संदेह कांग्रेस इस एक कदम पर अपना सीना चौड़ा कर के कह सकेगी कि लीजिये हमने अपने ही मंत्री के खिलाफ कार्यवाही कर दिया, लेकिन हमने क्या किया ? चौंका देने वाला गठजोड़ -टेलीकाम घोटाले में मीडिया, महाजनों और माननीयों के गठजोड़ का जो चौंका देने वाला सच सामने आया था उसका आदि और अंत यहीं नहीं होता ,संचार मंत्रालय आज ही नहीं लम्बे समय से आर्थिक अपराध का केंद्र बना रहा है ,लेकिन ऐसे छोटे बड़े घोटालों की फेहरिस्त काफी लम्बी है जो अभी तक सामने नहीं आये हैं और अगर आये भी हैं तो उनमे मीडिया की भूमिका के बारे में सोचा भी नहीं जाता ,लेकिन अब हमें अपनी आँखों पर बंधी पट्टी खोलनी होगी ,मीडिया भी मीडिया के जेरे-गौर होनी चाहिए, राजा की गिरफ्तारी इस बात का प्रतीक है कि चाहते न चाहते हुए भी राजनीति में गलतियों की कोई माफ़ी नहीं होती ,सजा छोटी हो या बड़ी मिलती जरुर है। ठीक यही सिद्धांत पत्रकारिता पर भी लागू होता है ,हम लाख कोशिश करके भी अपने दागदार दामन को साफ नहीं कर सकते। वो बरखा जो एक व्यक्ति द्वारा बरखा दत्त डाट काम नामक वेबसाईट का रजिस्ट्रेशन कराने पर उसे अदालत में खिंच लेती है ,वही बरखा किसी गाँव कस्बे के आम पत्रकार के द्वारा गरियाये जाने पर भी होंठ सिले रखने को मजबूर है, वो वीर संघवी जिन्हें सुनना भी युवाओं के लिए फख्र की बात होती थी उनका जिक्र छिड़ते ही आवाज आती है -मारो दलाल है सा.......। स्पेक्ट्रम घोटालों के आरोपियों के खिलाफ कार्यवाही देश में भ्रष्टाचार के उन्मूलन की प्रक्रिया का हिस्सा तभी बन सकती है ,जब हम उनको भी कानून के दरवाजे पर ला खड़ा करें जिनकी वजह से राजा जैसा धूर्त सिंहासन पर जा बैठा ,जनता के मन में गुस्सा जितना राजा के खिलाफ है उससे ज्यादा इन कार्पोरेट पत्रकारों के खिलाफ, ये सच हमें जान लेना चाहिए।सबक लोने की जरूरत-इसमें कोई दो राय नहीं कि मनमोहन सिंह के आर्थिक उदारीकरण ने गरीबों की कमर तोड़ दी है। हालात मिस्र से कम नहीं। आम आदमी को दो टाइम खाने के लिए नहीं है। लेकिन 1 लाख 76 हजार करोड़ रुपये कुछ लोग ही खा गए। शासन को मिस्र के विद्रोह से सबक लेना चाहिए। देश के नेताओं, अधिकारियों को तुरंत जनता के हितों में कदम उठाना चाहिए। महंगाई और बेरोजगारी के कारण अगर भूखमरी बढ़ी तो आने वाले दिनों में भारत में भी वही होगा जो मिस्र और टयूनिशिया में हुआ। लोगों की भूख की चिंता नेताओं को नहीं, राजनीतिक दलों को नहीं। सिर्फ अपनी राजनीति और कुर्सी की चिंता है। तो फिर यह भी स्थिति आएगी कि सिंहासन खाली करो, जनता आती है। महंगाई ने लोगों के हालत खराब कर रखी है। लोकतंत्र नाम की कोई चीज नहीं रह गई है। अभी भी सम्हलने का मौका है। दो बड़ी मोबाइल कंपनियों की तबाही तय- महीनों से सुलग रहे 2 जी स्पेक्ट्रम विवाद में आज पहली बार दो कंपनियों के नाम का खुलासा हुआ। केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के सरकारी वकील ने यूनिनॉर (पुराना नाम यूनिटेक वायरलेस) और एतिसालात डीबी के नाम लिए और कहा कि ए राजा के संचार मंत्री रहते समय नए यूएएसएल लाइसेंस देने में इन कंपनियों को तरजीह दी गई थी। आरोप है कि राजा ने उन्हें दूसरी कंपनियों को हिस्सेदारी बेचते समय जबरदस्त मुनाफा कमाने का मौका दिया था। विशेष सरकारी वकील अखिलेश ने अदालत से कहा, स्पेक्ट्रम का आवंटन करते वक्त बेवजह पक्षपात किया गया। इन कंपनियों को फायदा पहुंचाया गया और स्पेक्ट्रम तथा लाइसेंस बेहद कम कीमत पर दिए गए। नॉर्वे की कंपनी टेलीनॉर की यूनिनॉर में 67.25 फीसदी हिस्सेदारी है और कंपनी पहले ही 6,135 करा़ेड रुपये का निवेश कर लगभग 1.85 करोड़ ग्राहक बटोर चुकी है। एतिसालात ने भी एतिसालात-डीबी में 45 फीसदी हिस्सेदारी लगभग 90 करा़ेड डॉलर में हासिल की है। लेकिन उसके पास बमुश्किल एक लाख ग्राहक हैं। यूनिनॉर ने इस मसले पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया और एतिसालात के अधिकारियों से संपर्क नहीं हो सका। दोनों कंपनियों को विपक्षी दल पहले भी निशाना बना चुके हैं। उनका कहना था कि रियल्टी समूह यूनिटेक और डीबी रियल्टी ने भारी भरकम कीमत पर विदेशी साझेदारों को हिस्सेदारी बेचकर चोखा मुनाफा कमाया है क्योंकि राजा ने कीमती स्पेक्ट्रम उन्हें कौडिय़ों के भाव बेच दिया था। उन्हें स्पेक्ट्रम उसी भाव पर मिला था, जिस भाव पर उसे 2001 में कंपनियों ने खरीदा था। इसके बाद नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने भी उन्हें आड़े हाथों लिया। कैग की रिपोर्ट में कहा गया कि यूनिनॉर और एतिसालात उन कंपनियों में शामिल हैं, जो अधिकृत शेयर पूंजी के आधार पर आवंटन के योग्य नहीं थीं और उन्होंने कई तथ्यों के साथ छेड़छाड ़की, जिसके बावजूद उन्हें यूएएसएल दे दिया गया। कैग ने कहा कि यूनिटेक समूह से संबंधित 6 नई कंपनियों ने 20 लाइसेंस हासिल करने के लिए 24 सितंबर 2007को आवेदन किए थे। उन्होंने आवेदन पत्र के साथ योग्यता के संबंध में दस्तावेज भी दाखिल किए गए थे। लेकिन पंजीकरण संबंधी विवाद के कारण बाद में इन कंपनियों ने नए नाम के साथ मई 2008 में पंजीकरण कराया। कैग के मुताबिक इस तरह कंपनियां सितंबर 2007 को दूरसंचार क्षेत्र में कारोबार के लिए पात्र ही नहीं थीं। इस बीच पूर्व वित्त सचिव और रिजर्व बैंक के वर्तमान गवर्नर डी सुब्बाराव 2जी स्पेक्ट्रम पर लोक लेखा समिति के सामने आज पेश हुए। उनके जाने के बाद समिति के अध्यक्ष मुरली मनोहर जोशी ने कहा कि इस मामले में प्रधानमंत्री को भी बुलाया जा सकता है। उन्होंने यह भी बताया कि दूरसंचार विभाग के कुछ पूर्व निर्णयों पर वित्त मंत्रालय अपनी राय दे चुका है। उसी के सिलसिले में सुब्बाराव से बातचीत की गई। जोशी ने कहा कि कैग की रिपोर्ट पर आपत्ति जताने वाली यूनिनॉर और एतिसालात-डीबी को भी जरूरत पडऩे पर तलब किया जा सकता है।