शुक्रवार, 30 जुलाई 2021

आया चुनावी मौसम, छटपटाने लगे नगरसेवक

 

यह सच है कि राजनीति में कुछ भी निश्चित नहीं होता, लेकिन इरादे सच्चे हों तो राजनीति में करियर बनाकर आप देशवासियों की सेवा कर सकते हैं। राजनीति में आने के बाद बेहद जरूरी कामों में है एक है चुनाव लड़ना। प्राथमिक पाठशाला हैं निकाय चुनाव। यह सामान्य लोगों के लिए पहला पायदान होता है। इसके लिए सबसे पहले जनता से जुड़ना होता है। कोरोनाकाल में जनता से सीधे जुड़ने का मौका तो नहीं मिला, लेकिन डिजिटल प्लेटफार्म सहारा है। अगले साल फरवरी महीने में नागपुर महानगरपालिका के चुनाव होने जा रहे हैं।  नगरसेवक अभी से काफी सक्रिय हो गए हैं। सोशल मीडिया पर भूमिपूजन, उद्घाटन आदि कार्यक्रम के फोटो अपलोड़ किए जा रहे हैं। हालांकि, अचानक सक्रिय हुए नगरसेवकों से जनता भी सवाल कर रही है।  जवाब देना उनके लिए बहुत मश्किल भी हो रहा है। बहुत से नगरसेवकों को कड़वे अनुभव मिल रहे हैं। चूंकि बात करियर की है, इसलिए कड़वे बोल वे नहीं बोल सकते। महानगरपालिका के 151 नगरसेवक हैं। इनमें से लगभग 90 फीसदी से ज्यादा सोशल मीडिया पर सक्रिय हैं। जो नहीं हैं, उन्हें उनके चाहने वालों ने सक्रिय कर दिया है। कोरोनाकाल में अमूमन सभी काम ठप रहे। नगरसेवक चाहकर भी बहुत ज्यादा हाथ-पैर नहीं मार सके। इसलिए बेचैन हैं। अपनी उपस्थिति जनता तक दर्ज कराने की जुगत में लगे हुए हैं। फिलहाल नागपुर मनपा में भाजपा की सत्ता है। करार के अनुसार, ढाई साल के कार्यकाल के बाद महापौर संदीप जोशी ने पद छोड़ा और वरिष्ठ नेता दयाशंकर तिवारी महापौर पद पर काबिज हुए। संदीप जोशी के समय तुकाराम मुंढ़े जैसे तेजतर्रार मनपा आयुक्त से नगरसेवकों को पाला पड़ा। अब राधाकृष्णन, बी. आयुक्त हैं। नगरसेवकों की कुछ पूछ-परख तो बढ़ी है, लेकिन उतनी नहीं, जितनी उन्हें उम्मीद थी। इसलिए नगरसेवक छटपटा रहे हैं। वे जानते हैं कि अगले साल मैदान में उन्हें खुद के भरोसे उतरना है और गिनाने के लिए किए गए कामों की कोई लंबी फेहरिस्त नहीं है। जो भी है, वह पार्टी के उधार का चेहरा है और भाजपा का वास्ता देकर ही जीत का ख्वाब देखना है।

राज्य में नागपुर सहित 5 महानगरपालिकाओं के लिए 2022 में चुनाव होंगे। नागपुर महानगरपालिका का चुनाव वार्ड पद्धति से कराने की घोषणा राज्य सरकार कर चुकी है। वार्ड पद्धति से चुनाव की तैयारी के संबंध में आवश्यक प्रक्रिया शुरू भी कर दी गई थी, लेकिन कोरोना महामारी के कारण राज्य सरकार चुनाव तैयारी के संबंध में अधिक काम नहीं कर पाई। लिहाजा वार्ड पद्धति से चुनाव कराने को लेकर विपक्ष ही नहीं, महाविकास आघाड़ी के नेताओं मं। भी असमंजस की स्थिति बन रही है। 

देखा जाए तो नागपुर मनपा का पहला चुनाव एक वार्ड एक सदस्य पद्धति से हुआ था। वर्ष 2002 में प्रभाग पद्धति लागू कर 3 सदस्यों का प्रभाग बनाया गया। वर्ष 2007 में इसे रद्द कर फिर एक सदस्य पद्धति लागू की गई। इसके बाद वर्ष 2012 में दो सदस्यों का प्रभाग बनाया गया। वर्ष 2017 में इससे भी आगे जाकर एक प्रभाग में 4 वार्ड जोड़कर 4 सदस्यों का निर्वाचन किया गया। अब पुन: एक वार्ड एक सदस्य चुनाव पद्धति लागू कर दी गई है। नागपुर में प्रभाग पद्धति में 38 प्रभाग हैं। एक प्रभाग का 4 नगरसेवक प्रतिनिधित्व करते हैं। वार्ड पद्धति में 151 वार्ड रहेंगे।  18 से 20 हजार जनसंख्या पर एक वार्ड बनेगा।  जनंसख्या के आधार पर मनपा सीटों का आरक्षण तय किया जाएगा। इसमें अनुसूचित जाति, जनजाति, ओबीसी और महिलाओं के लिए सीटें आरक्षित रखी जाएंगी।

यह तो रही प्रशासनिक तैयारी, लेकिन जमीनी लड़ाई भी तेज हो चुकी है। सोशल मीडिया पर नगरसेवकों की सक्रियता देखते ही बन रही है। धड़ाधड़ पोस्ट डाले जा रहे हैं। सबकी अपनी-अपनी टीम है। इस टीम में ज्यादातर युवा हैं। बेहद सफाई से वे अपनेनेताकी तस्वीर को चमका रहे हैं। चुनाव करीब होता जा रहा है, इसलिए स्पीड भी तेज है। अब तक नहीं दिखाई देने वाले चेहरे भी अक्सर सामने आने लगे हैं। सोशल मीडिया विश्लेषकों  की मानें तो  अभी कुछ विकास कार्यों पर ब्रेक लगा हुआ है। सभागृह में मंजूर 75 ऑक्सीजन जोन, 75 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र बनाने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। विकास बंद होने के कारण अब वे परिसर का मुआयना, भूमिपूजन आदि के फोटो सोशल मीडिया पर शेयर किए जा रहे हैं। लेकिन सोशल मीडिया पर हाईटेक प्रचार करते समय मतदाताओं के प्रश्नों के समाधानकारक उत्तर देना भी आवश्यक है। अन्यथा नगरसेवकों के राजनीतिक भविष्य पर विपरीत परिणाम होने की आशंका रहती है, क्योंकि मोहभंग घटना नहीं, प्रक्रिया है। होते होते होता है। ऐसा नहीं होता कि सुबह सो कर उठे और बीती रात की किसी घटना की वजह से मोहभंग हो गया। समाज अलग ही मिट्टी का बना है। राजनीतिक दल ये बात अच्छी तरह समझते हैं। सांप्रदायिक सद्भाव तब भी मुद्दा था और आज भी है, लेकिन महंगाई और गरीबी उसमें जुड़ गई हैं। कोरोना किसी के लिए बहाना बना है, तो किसी के लिए अवसर।

मनपा के अधिकतर नगरसेवक इस कोरोना को कोस भी रहे हैं और पकड़े हुए भी हैं। कोई दूसरी लहर के समय संकट में साथ देने की दुहाई दे रहा है, तो कोई कहते सुना जा रहा है कि कोरोना ने सब काम रोक दिए हैं, वर्ना हम तो काम के थे। अब बाजी जनता के हाथ में है, कि वह किसे कितना नंबर दने के मूड में है।

प्रदेश स्तर पर देखा जाए तो अजीबोगरीब समीकरण बने हुए हैं। शिवसेना की सरकार में राष्ट्रवादी और कांग्रेस शामिल हैं, पर निकाय चुनाव में अलग ताल ठोंकने पर आमादा हैं। वैसे देखा जाए तो शिवसेना-भाजपा की युति काफी वर्षों तक लोगों के जेहन पर छाई रही। 1989 से दोनों साथ-साथ रहे, इसलिए दिमाग से इन्हें जुदा करना आसान नहीं रहा। इस युति के शिल्पकार बालासाहब ठाकरे एवं प्रमोद महाजन थे। आज ये दोनों नेता नहीं हैं। तब और आज की राजनीतिक स्थिति में भी जमीन-आसमान का अंतर गया है।   बालासाहब ठाकरे के निधन के बाद महाराष्ट्र में राजनीतिक समीकरण तेजी से बदलने लगे।  

अपने बलबूते लड़ने के जिस तरह कुछ लाभ होते हैं, उसी तरह कुछ हानियां भी होती हैं। लाभ यह कि मतदाताओं में अपनी ताकत कितनी है, इसका सही अनुमान आता है। अन्यथा युति की जीत में अपना हिस्सा कितना है और मित्र दल का कितना है, इस बारे में भ्रम उत्पन्न होता है। मार्केटिंग की भाषा में इसेप्वाइंट ऑफ परचेसकहते हैं। जब ग्राहक दुकान में वस्तु खरीदी के लिए जाता है तब उसके मन पर प्रभाव डालने का माध्यम यहीप्वाइंट ऑफ परचेसहोता है। इसी माध्यम का भाजपा ने प्रभावी रूप से इस्तेमाल किया, पिछली बार अनेक नगरनिगमों में अभूतपूर्व सफलता हासिल की।  अब असली परीक्षा की तैयारी है, और नंबर देने की जनता की बारी है।

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