सिंगूर और नंदीग्राम का ‘रिश्ता’ 13 साल बाद अहम मोड़ पर है। नंदीग्राम में टाटा कंपनी को प्लांट स्थापित करने के लिए किसानों की जमीन के जबरन अधिग्रहण का विरोध कर ही ममता बनर्जी की सत्ता में ताजपोशी हुई थी। अब तृणमूल कांग्रेस उसी ग्रुप के साथ निवेश के लिए बातचीत के रास्ते तैयार कर रही है। उसका कहना है कि टाटा के साथ हमारी कभी भी दुश्मनी नहीं रही और ही हमने कभी उनके खिलाफ लड़ाई लड़ी। वे इस देश के ही नहीं बल्कि विदेश के भी सबसे बड़े और सम्मानित बिजनेस घरानों में शुमार हैं।
नंदीग्राम और सिंगुर आंदोलन पश्चिम बंगाल की राजनीति में अहम स्थान रखते हैं। जब टाटा ने अपनी छोटी कारों को घर-घर पहुंचाने का संकल्प लिया, तो इसके आड़े ममता बनर्जी आ गईं। सुवेंदु अधिकारी को आगे कर उन्होंने जोरदार आंदोलन का आगाज किया। अब अधिकारी जब विपक्षी दल बीजेपी में शामिल हो चुके हैं, तो ममता टाटा का वेलकम कर रही हैं।
उस समय विपक्ष में रहीं ममता बनर्जी ने इस जमीन में से 347 एकड़ को जबर्दस्ती अधिग्रहित किए जाने आरोप लगाया और इसे वापस करने के लिए भूख हड़ताल पर बैठ गईं। यह आंदोलन बढ़ता ही गया। टीएमसी और लेफ्ट सरकार के बीच कई दौर की बातचीत के बाद भी मामला सुलझ नहीं सका था। इस वजह से टाटा ने 2008 में सिंगूर से प्लांट की योजना को हटाकर गुजरात के साणंद में शिफ्ट कर लिया। बाद में 2016 में किसानों की जमीन वापस लौटा दी गई थी। अब वहां ममता वाली टीएमसी की सरकार है।
पश्चिम बंगाल के इंडस्ट्री और आईटी मंत्री पार्थ चटर्जी ने कहा, 'अभी हमारी सरकार की प्राथमिकता रोजगार का सृजन है। ममता सरकार जल्द से जल्द किसी भी इंडस्ट्रियल हाउस की तरफ से दो बड़े मैनुफैक्चरिंग यूनिट्स लगाना चाहती हैं। रोजगार मुहैया कराने की क्षमता के आधार पर कंपनियों को प्रोत्साहन दिया जाएगा।'
चटर्जी ने कहा कि बंगाल में आने और निवेश करने के लिए टाटा ग्रुप का हमेशा से स्वागत है। टाटा के साथ हमारी कभी भी दुश्मनी नहीं रही। न ही हमने कभी उनके खिलाफ लड़ाई लड़ी। वे इस देश के ही नहीं, बल्कि विदेश के भी सबसे बड़े और सम्मानित बिजनेस घरानों में शुमार हैं।
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