शनिवार, 17 अगस्त 2013

गोरा बनाने का काला धंधा

एक कालेज छात्र को गोरा बनने के चक्कर में तीन हजार रु. से चूना लग गया। क्रीम का स्कीन पर कोई असर नहीं होता देख छात्र ने संबंधित प्रोडक्ट कंपनी को लौटा दिए। हालांकि वादे के मुताबिक कंपनी ने अभी तक छात्र को रकम नहीं लौटाई।
हुआ यूं कि सेंट्रल एवेन्यू गीतांजलि निवासी इमरान हाशमी (काल्पनिक नाम) ने खबरिया चैनल पर एक इश्तेहार देखा, जिसमें तीन हजार रु का क्रीम पैकेज लेने पर काला व्यक्ति भी गोरा बनने के वादे किए गए।  इमरान ने दिसंबर के आखिरी सप्ताह इंदौर की इस कंपनी को क्रीम के लिए आर्डर दिया। कंपनी का डिलीवरी आफिस हिंगणा रोड पर है। कंपनी ने सारा पैकेज कुरियर से इमरान को भेजा। इन चीजों के बदले में इमरान ने तीन हजार रु. का भुगतान किया। इमरान शांतिनगर के एक कालेज में अंतिम वर्ष का छात्र है।  15 दिन बाद भी जब क्रीम ने असर नहीं किया तो इमरान ने कंपनी से संपर्क किया। कंपनी ने और कुछ दिन क्रीम रगडऩे की सलाह दी। फिर भी चेहरा गोरा नहीं हुआ। कंपनी को कुरियर से क्रीम व पाउडर वापस भेज दिए गए। अब इमरान पिछले दस दिनों से कंपनी से पैसे वापस करने की गुजारिश कर रहा है। कंपनी द्वारा दिए गए नंबरों पर वह लगातार संपर्क कर रहा है, लेकिन उसे कोई प्रतिसाद नहीं मिल रहा।
 कम्पीटिशन के इस दौर में गोरी, खूबसूरत और जवां दिखने की चाहत ने कई किस्म के उत्पादों का बढ़ावा दिया है। बिना ये जाने कि ऐसे उत्पादों में  पारे के अलावा स्टेरॉयड, हाइड्रोक्युनॉन और दूसरे खतरनाक रसायन भी मौजूद होते हैं, धड़ल्ले से इसका इस्तेमाल जारी है।  किडनी स्पेशलिस्ट के मुताबिक, गोरेपन की क्रीम में पारा मेन ऑब्जेक्ट के रूप में मौजूद होता है और जब लोग इसे स्किन पर लगाते हैं, तो इसका कुछ हिस्सा शरीर से होते हुए ब्लड में मिल जाता है। चूंकि, पारा और दूसरी जहरीली चीजों को शरीर से निकालने का काम किडनी करती है, लिहाजा  पारे को निकालते-निकालते किडनी कमजोर हो जाती है। स्किन स्पेशलिस्ट के मुताबिक  इनसे कई परेशानियां हो सकती हैं। मसलन, स्किन पर पपड़ी पडऩा, उसमें जलन होना आधि। खुजली और मुंहासे आम बात हैं। ऐसी उत्पाद दवाओं की श्रेणी में आते हैं, लिहाजा, बाजार में उतारने से पहले इन पर शोध होना चाहिए।  डॉक्टरों के मुताबिक इन प्रोडक्ट्स पर ध्यान देने की बजाय लोगों को अपने खान-पान पर ध्यान देना चाहिए। डॉक्टरों के मुताबिक स्किन की रिंकल्स को फेस लिफ्ट के जरिए छिपाया या मिटाया जा सकता है, लेकिन, जब चेहरे पर झुर्रियों की बहुत बारीक लाइनें हों या मुंहासे के दाग हों, तो उसे केमिकल फेस पीलिंग या लेजर से मिटाया जा सकता है। लेजर और फेस पीलिंग साथ-साथ या अलग-अलग की जा सकती है। अधिकतर साबुन में लगभग एक से तीन फीसदी मर्करी आयोडाइड होता है, जबकि क्रीम में एक से 10 फीसदी तक मर्करी अमोनियम होता है। इसलिए साबुन, क्रीम या दूसरे कॉस्मेटिक प्रोडक्ट्स के इस्तेमाल से पहले इनके पैकेट पर मर्करी की मात्रा की जांच करनी चाहिए।
::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::

घर से शुरू हो आजादी

बस एक दिन शेष है। हमें स्वतंत्र हुए 66 साल हो जाएंगे। अनेक कार्यक्रमों का आयोजन होगा। भ्रष्टाचार, अराजकता, बेरोजगारी, भूखमरी आदि-आदि को लेकर नारे गुंजायमान होंगे। पर खेद की बात है कि इतने वर्ष व्यतीत हो जाने पर भी हम अपने सपने को साकार नहीं कर पाए हैं। वंदे मातरम् स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस के सही मायने शब्दों तक सीमित हैं। व्यथा शब्दों के पार है। मुक्कमल आजादी अभी नहीं मिली है। देहरी के भीतर आधी आबादी सिसक रही है तो बाहर निकलने के बावजूद युवा-धार कुंद है। असमंजस की दीवार को पार कर पाने की सामथ्र्य विरलों में है। युवा दिग्भ्रमित हैं। पश्चिमी चकाचौंध अपनी ही अस्मिता को पहचानने से इनकार कर रही है। शार्टकट पर भरोसा जायज नहीं। वह भी तब जब, देश आर्थिक, सांस्कृतिक और सामाजिक विरोधाभासों के बीच सांसे ले रहा हो। हमारा कर्तव्य है कि देश के उत्थान के लिए ईमानदारी का परिचय दें। नागरिक कर्मठता का पाठ सीखें और चरित्र-बल को ऊंचा बनाएं। फिरंगी मानसिकता से हम मुक्त नहीं हो सके हैं। स्वतंत्रता और समानता दूर-दूर तक दिखाई नहीं देती। आखिर यह कैसी आजादी है? क्या आम आदमी को भय और भूख से मुक्ति मिली है? क्या आम आदमी को उसके जीवन की गारंटी दी जा सकी है? क्या नारी की अस्मिता सुरक्षित है? क्या व्यक्ति अपनी बात निर्भीकता से रखने के लिए स्वतंत्र है?  विडंबना यह है कि हम आजादी के पर्व पर इन तथ्यों पर जरा भी चिंतन नहीं करते। यह ऐतिहासिक दिवस भारतीय आत्मा का सबसे बड़ा पर्व है। यह महान पर्व हमारे राष्ट्रीय जीवन के पुनर्जन्म की सूचना देता है। गुलामी सारी तकलीफों का सबब है। गंभीर चिंतन की आवश्यकता है।  स्वाधीनता बचानी है तो घर की देहरी से शुरुआत होनी चाहिए। इस बदले बयार की हलचल हर ओर हो। आइए, सत्य और ईमानदार संकल्प लें। हम राष्ट्र के ऋणी हैं और राष्ट्र आर्तनाद कर रहा है ठोस पहल के लिए।