शुक्रवार, 27 अगस्त 2021

नंबर 1 परमबीर

  ‘हम तो डूबेंगे सनम, तुझको भी ले डूबेंगे’….

    लगता है परमबीर ने यही ठानी थी



खाकी वर्दी पर इतने न मिटने वाले दाग लगे हैं, जिसे हटना नामुमकिन नहीं, तो आसान भी नहीं  

अभिनेता सुशांत सिंह प्रकरण, ड्रग से संबंधित मामले और फिर उसके बाद एंटीलिया ...। स्कॉटलैंड यार्ड पुलिस की बराबरी करने वाली मुंबई पुलिस इन दिनों फजीहत के दौर से गुजर रही है। खाकी वर्दी पर इतने न मिटने वाले दाग लगे हैं, जिसे हटना नामुमकिन नहीं, तो आसान भी नहीं।  सचिन वझे की गिरफ्तारी के बाद लगा था कि मुंबई पुलिस बहुत कुछ संभल गई है, लेकिन सबसे बड़ा धक्का लगा, जब तब के बॉस मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह ने लेटर बम फोड़ा। तब किसी को जरा सा भी इल्म नहीं था कि आगे की कहानी इतनी कलंकित होगी। 

100 करोड़ रुपये का कलेक्शन का ‘लेटर बम’ :

परमबीर सिंह ने पत्र में महाराष्ट्र के गृह मंत्री अनिल देशमुख पर आरोप लगाया कि देशमुख ने सचिन वाजे से हर महीने 100 करोड़ रुपये का कलेक्शन करने को कहा था। परमबीर सिंह ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को  लिखे पत्र में मुंबई पुलिस की सोशल सर्विस ब्रांच के एसीपी संजय पाटील के साथ अपने कुछ वॉट्सएप चैट्स और एसएमएस को सबूत के तौर मुख्यमंत्री को भेजा और कहा कि अनिल देशमुख ने सोशल सर्विस ब्रांच को भी कलेक्शन का यह काम सौंपा था। जो बात अब तक ऑफ रिकॉर्ड थी, परमबीर सिंह के आरोपों के बाद ऑन रिकॉर्ड हो गई कि देश भर में पुलिस की कमाई किस तरह होती है और पुलिस की कमाई से सरकार की कमाई किस तरह होती है।

अदालत ने इशारों में सब कुछ कह दिया :

1988 बैच के आईपीएस अफसर परमबीर सिंह 1990 के दशक के 'एनकाउंटर स्पेशलिस्टों' में शुमार रहे हैं। मुंबई के बचे अंडरवर्ल्ड को खत्म करने का बीड़ा उठाने वाले इस दिलेर अफसर की साफगोई उन्हीं पर भारी पड़ने लगी। ऊपर से बॉम्बे हाईकोर्ट ने यह टिप्पणी कर परमबीर सिंह की मुसीबतें और बढ़ा दीं कि कोई भी प्रशासन प्रमुख यह कहकर बेगुनाही का दावा नहीं कर सकता कि केवल कार्यपालिका के आदेशों का पालन कर रहा था। प्रशासन का मुखिया भी उतना ही जिम्मेदार होता है। हो सकता है, मंत्री ने सचिन वझे को बहाल करने को कहा हो, लेकिन क्या प्रमुख और शीर्ष पद पर बैठा व्यक्ति अपने कर्तव्यों का पालन किए बिना आदेशों का पालन कर सकता है? अदालत की यह टिप्पणी यूं तो सीधे-सीधे परमबीर के लिए थी, पर पूरा पुलिस महकमा दायरे में आ गया। 

खुल गई नंबर-वन की पोल :

व्यापारी बिमल अग्रवाल ने तभी एक और खुलासा किया कि वझे ने जिस नंबर-वन का नाम लिया था, वह कोई और नहीं बल्कि परमबीर सिंह थे। अब इस नंबर-वन की कहानी समझने की जरूरत है। बाकायदा अपने स्टेटमेंट में बिमल ने कहा कि बार, रेस्टोरेंट और बुकी के बाद परमबीर का अगला निशाना बीएमसी के कांट्रेक्टर थे। बिमल के अनुसार, वझे को यह पता चला था कि मुंबई महानगर पालिका में कई सारे सिविल ठेकेदार के खिलाफ शिकायत हुई है और मैं बीएमसी में कॉन्ट्रैक्ट लेता हूं। लिहाजा,  उसने मुझे 12 फरवरी को सीआईयू के ऑफिस में बुलाया और इस बारे में पूछा और कहा कि स्वस्तिक कंस्ट्रक्शन के प्रीतेश गोदानी और संजय हिरणी के खिलाफ जो अल्लारखा नाम के शख़्स ने शिकायत की है, क्या इस बारे में मुझे जानकारी है। मैंने वझे से कहा कि बीएमसी ठेकेदारों से मेरा क्या संबंध?  तब कंधे पर हाथ रखकर कहा कि बिमल मेरा एक नंबर है न, उसका ध्यान सब तरफ होता है।  मैंने वझे से पूछा कि यह नंबर-वन कौन है, तो उसने कहा कि “अरे सीपी को बता दिया है के ये बीएमसी ठेकेदार वाला इंफ़ॉरमेशन बिमल ने दिया है और वो अपना आदमी है और बीएमसी ठेकेदार का काम हुआ तो वो मुझे एक नंबर मतलब सीपी से मिलवाएगा। वझे ने कहा कि परमबीर सिंह के कहने पर ही वह ऐसा कर रहा है। इसके बाद यह भी साफ हो गया कि सचिन वझे मुंबई पुलिस में सिर्फ परमबीर सिंह को रिपोर्ट करते थे। नंबर-वन के चेहरे से आखिरकार नकाब उठ चुका था। महाराष्ट्र सरकार और मुंबई पुलिस की तरफ से परमबीर सिंह के खिलाफ कई जांच बैठा दी गईं है।

आप तो ऐसे न थे जनाब : 

सवाल यह कि परमबीर सिंह जैसे दिलेर अफसर को आखिर क्यों ऐसा बनना पड़ा। कहा जाता है कि परमबीर एक ऐसे निडर अफसर रहे, जो  सहयोगियों के लिए हमेशा मददगार साबित हुए। राजनीतिक दबाव खुद झेले, पर अपनी टीम पर आंच नहीं आने दी।  जब सिंह मुंबई के डिप्टी पुलिस कमिश्नर रहे, तब 1990 के दशक के आखिर तक मुंबई में दाऊद इब्राहिम, अरुण गवली और छोटा राजन जैसे डॉन के गैंग्स काफी सक्रिय रहे थे। गवली और राजन के गैंग के पीछे सिंह तब तक पड़े रहे, जब तक ये डॉन सलाखों के पीछे नहीं पहुंच गए। दाऊद के भाई इकबाल कासकर की गिरफ्तारी भी सिंह की बड़ी उपलब्धि रही थी।   

हालांकि दामन पूरी तरह बेदाग नहीं रहा : 

चंडीगढ़ में 1962 को जन्मे सिंह ने पंजाब यूनिवर्सिटी से समाजशास्त्र में एमए टॉप किया था। इसके बाद वो पुलिस सेवा में आए। महाराष्ट्र आईपीएस क्रिकेट टीम के कप्तान भी रहे थे। 32 साल के पुलिस करियर में सिंह ने कई अहम भूमिकाएं निभाईं। इनमें एंटी करप्शन ब्यूरो और नक्सलवाद के खिलाफ लड़ाई भी शामिल रही। लेकिन इन तमाम उपलब्धियों के बीच सिंह का दामन पूरी तरह बेदाग नहीं रहा। वर्ष 2018 में एलगार परिषद की जांच के मामले में जब नामी वकीलों और एक्टिविस्टों की गिरफ्तारी हो चुकी थी और केस कोर्ट में था, तब सिंह ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके कई सबूत मीडिया के सामने रख दिए थे।  इस पर बॉम्बे हाईकोर्ट ने सख्त ऐतराज़ जताते हुए उन्हें खासी फटकार लगाई थी।

न दौलत की कमी, न शोहरत की : 

परमबीर सिंह के पास दौलत की कमी नहीं। शोहरत भी बड़ी थी। उनकी हरियाणा में कृषि की जमीन है। अभी इसकी वैल्यू 22 लाख रुपए की है। यह जमीन पूरी तरह से इनके नाम पर ही है। इससे सालाना 51 हजार की आय होती है। 2003 में इन्होंने मुंबई के जुहू इलाके में 48.75 लाख रुपए में फ्लैट खरीदा था। इस समय इसकी वैल्यू 4.64 करोड़ रुपए है। यह भी इन्हीं के नाम से है। इससे सालाना आय 24.95 लाख रुपए आती है। जुहू में ही एक और प्रापर्टी है। हालांकि इसकी कीमत इन्होंने नहीं बताई है। परमबीर सिंह की मासिक सैलरी 2.24 लाख रुपए है। इसी तरह नई मुंबई में 3.60 करोड़ रुपए का फ्लैट 2005 में खरीदा है। हालांकि इसकी इस समय की वैल्यू उन्होंने 2.24 करोड़ रुपए बताई है। यह उनके और उनकी पत्नी सविता सिंह के नाम है। इससे उनकी सालाना आय 9.60 लाख रुपए होती है। चंडीगढ़ में इनका घर है, जिसकी कीमत 4 करोड़ रुपए है। यह उनके और दो भाइयों के नाम पर है। यह उनके पिता होशियार सिंह के नाम पर था। हरियाणा के ही फरीदाबाद में इनकी जमीन है। इसकी अभी की कीमत 14 लाख रुपए है। यह परमबीर सिंह के ही नाम पर है। इसे उन्होंने 2019 में खरीदा है।

फिर भी सोने की भूख : 

इतना सब होते हुए भी  आरोप है कि परमबीर सिंह अमीरों को छोड़ देने के लिए पुलिस अधिकारियों पर दबाव डालते थे और दिवाली के गिफ्ट के रूप में सोने की बिस्किट की मांग किया करते थे।  इससे पहले भी पुलिस निरीक्षक अनूप डांगे ने परमबीर सिंह का संबंध अंडरवर्ल्ड से होने का आरोप लगा कर खलबली मचा दी थी। परमबीर सिंह 17 मार्च 2015 से 31 जुलाई 2018 तक ठाणे के पुलिस आयुक्त के तौर पर कार्यरत थे। पुलिस इंस्पेक्टर भीमराज उर्फ भीमराव घाडगे  ने यह आरोप लगाकर सनसनी पैदा कर दी थी कि  जब वे कल्याण के बाजार पेठ पुलिस थाने में पुलिस इंस्पेक्टर के तौर पर कार्यरत थे, तब परमबीर सिंह ने अनेक पैसे वाले अपराधियों को छोड़ देने का दबाव डाला था और जब इन्होंने परमबीर सिंह के इस निर्देश को मानने से इनकार किया तो परमबीर सिंह ने इन्हें कई तरह के झूठे केस में फंसाने का काम किया।  डीजीपी को लिखे अपने पत्र में भीमराज ने इन तमाम शिकायतों का जिक्र किया था। यह भी शिकायत की है कि परमबीर सिंह दिवाली के गिफ्ट के तौर पर प्रत्येक जोन के डीसीपी से 40 तोले सोने की बिस्किट, सहायक पुलिस आयुक्तों में से प्रत्येक से 20 से 30 तोले सोने की बिस्किट और वरिष्ठ पुलिस निरीक्षक से 30 से 40 तोले सोने की बिस्किट ली है। आरोप यह भी है कि सिंह ने अपनी पत्नी सौ. सविता के नाम से खेतान एंड कंपनी नाम का ऑफिस मुंबई के लोअर परेल की इंडिया बुल नाम की पॉश बिल्डिंग की छठी मंजिल पर शुरू किया था, जो इंडिया बुल की डायरेक्टर में से एक हैं और इंडिया बुल कंपनी में उन्होंने 5000 करोड़ रुपए का निवेश भी किया है।

विवादों ने नहीं छोड़ा पीछा :  

मुंबई पुलिस का जिक्र होता है तो परमबीर सिंह का नाम जरूर आता है। परमबीर सिंह विवादों में खूब रहे। चाहे वो अजित पवार को एरिगेशन स्कैम से बचाए जाने के आरोप हों, या फिर साध्वी प्रज्ञा को कस्टडी में टॉर्चर करने से लेकर 26/11 के दौरान लापरवाही बरतने तक के आरोप। 26 नवंबर 2008 की वो स्याह तारीख को भला कौन भुला सकता है। जब लश्कर ए तैयबा के 10 आतंकियों ने मुंबई को बम और गोलियों की आवाजों से दहला दिया था। इस आतंकी हमले में 160 से ज्यादा लोगों ने अपनी जान गंवाई और 300 से ज्यादा लोग घायल हुए।  26/11 आतंकी हमलों के दौरान कथित रूप से कर्तव्य की लापरवाही के आरोप में परमबीर सिंह समेत तीन अन्य अतिरिक्त पुलिस कमिश्नरों के खिलाफ याचिका दायर की गई थी।  जुलाई 2018 में, रिबेरो ने ‘मुंबई पुलिस आयुक्त के पद के लिए लड़ रहे दो पुलिस’ पर एक लेख लिखा था। परमबीर सिंह का नाम लिए बिना, रिबेरो ने ‘अच्छे पुलिस-बुरे पुलिस’ वाले सादृश्य को तैयार किया था, जहां परमबीर सिंह को ‘बुरा पुलिस’ कहा गया। उसी को अपराध मानते हुए, सिंह ने रिबेरो से माफी मांगने के लिए कहा था। इतना ही नहीं, उन्होंने उन पर मुकदमा चलाने की भी धमकी दी थी।  साफ है कि परमबीर सिंह समय के साथ बदलते चले गए और वहां तक जा गिरे, जहां से उठना आसान नहीं। ‘हम तो डूबेंगे सनम, तुझको भी ले डूबेंगे’….लगता है परमबीर ने यही ठानी थी।  

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