बुधवार, 21 जुलाई 2021

‘राजनीति’ के अपराधीकरण पर सुप्रीम कोर्ट लाल


 

सुप्रीम कोर्ट की तल्ख टिप्प्णी राजनीतिक गलियारों को शर्मसार करने के लिए काफी है। राजनीति को अपराधीकरण से मुक्त कराने से संबंधित मामले पर सुनवाई के दौरान अदालत ने यहां तक कह दिया कि अभी तक कुछ नहीं किया गया है और आगे भी कुछ नहीं होगा और हम भी अपने हाथ खड़े कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी बिहार विधानसभा चुनावों के दौरान 13 फरवरी, 2020 के उसके निर्देशों का अनुपालन करने के लिए कई राजनीतिक दलों के खिलाफ अवमानना कार्रवाई के अनुरोध वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान की। 

न्यायमूर्ति आर एफ नरीमन की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा था कि राजनीतिक दलों को अपने चयनित उम्मीदवारों के आपराधिक पृष्ठभूमि को उनके चयन के 48 घंटे के भीतर या नामांकन दाखिल करने की पहली तारीख से कम से कम दो सप्ताह पहले, जो भी पहले हो, प्रकाशित करना होगा। चुनाव आयोग की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने शीर्ष अदालत के निर्देशों का पालन करने की बारीकियों के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने कहा कि बिहार विधानसभा चुनावों में, पहले चरण के लिए नामांकन पत्र दाखिल करना 1 अक्टूबर, 2020 से शुरू हुआ और राजनीतिक दलों ने ज्यादातर अपने उम्मीदवारों के नामों को बहुत देर से अंतिम रूप दिया। इससे उम्मीदवारों द्वारा नामांकन आखिरी दिनों में दाखिल किया गया और इसीलिए शीर्ष अदालत के निर्देशों का पालन नहीं किया गया। उन्होंने आंकड़ों का भी जिक्र किया और कहा कि हाल ही में हुए बिहार विधानसभा चुनावों में 10 राजनीतिक दलों ने आपराधिक पृष्ठभूमि वाले 469 उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था।

पीठ ने राजनीति के अपराधीकरण पर अपने निर्देशों का पालन करने पर नाराजगी व्यक्त की। पीठ में न्यायमूर्ति बी आर गवई भी शामिल थे। पीठ ने कहा कि अभी तक कुछ नहीं किया गया है और आगे भी कुछ नहीं होगा और हम भी अपने हाथ खड़े कर रहे हैं। पीठ ने कहा कि हम इस मामले को सात न्यायाधीशों की पीठ को सौंपने के सुझाव पर विचार कर रहे हैं। चुनाव आयोग की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने सुझाव दिया कि राजनीतिक दलों पर भारी जुर्माना लगाया जाए और नागरिकों को उनके चुनावी अधिकारों के बारे में जागरूक करने के लिए चुनाव आयोग के लिए कोष बनाया जाए।

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