भीख मांगना जुर्म है या जीवन की जरूरत, इसे लेकर बहस जारी है। हालांकि कतिपय मामलों में इसे सही करार नहीं दिया गया है। परेशानी बाल भिखारियों की बढ़ती तादाद है। ज़्यादातर बाल भिखारी व्यस्त चौराहों, बाज़ारों, धार्मिक स्थलों और रेलवे स्टेशन जैसी जगहों पर होते हैं। व्यस्त जगहों पर भीख मांगने से उन्हें ज़्यादा पैसे मिलने की संभावना बढ़ जाती है। कई ग़रीब परिवार मानते हैं कि उनके पास बच्चों को भीख मांगने में लगाने के अलावा और कोई चारा नहीं है।
पुलिस और सामाजिक कार्यकर्ताओं का मानना है कि हर साल हज़ारों बच्चों को घर से अगवा कर लिया जाता है और उन्हें भीख मांगने पर मजबूर किया जाता है। इन बच्चों को भूखा रहने पर मजबूर किया जाता है, ताकि वो कमज़ोर दिखें और उन्हें सहानुभूति मिल सके। बाल अधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि 'भीख माफ़िया' बच्चों को विकलांग बना देता है, क्योंकि विकलांग बच्चों को ज़्यादा भीख मिलती है। सामाजिक कार्यकर्ताओं के मुताबिक इनमें से कई बच्चे नशीली दवाओं के आदी बन जाते हैं और यौन शोषण के भी शिकार होते हैं। इन बच्चों की सुरक्षा और इनकी हालत में सुधार के लिए केंद्र सरकार ने कोई क़ानून नहीं बनाया है।
55 साल पुराने एक क़ानून के मुताबिक दिल्ली सहित भारत के कई शहरों में भीख मांगना ग़ैर क़ानूनी है और पुलिस ऐसे किसी व्यक्ति को गिरफ़्तार कर सकती है जो भीख मांगता पाया जाए। सामाजिक कार्यकर्ताओं के मुताबिक पुलिस इस क़ानून का इस्तेमाल अकसर ग़रीबों और ख़ास तौर पर बाल भिखारियों के ख़िलाफ़ करती है।
अब सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि भीख मांगना सामाजिक और आर्थिक समस्या है और रोजगार और शिक्षा के अभाव में कुछ लोग अपनी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए भीख मांगने पर मजबूर हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह अभिजात्य नजरिया नहीं अपनाएगी कि सड़कों पर भीख मांगने वाले नहीं होने चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली बेंच ने मंगलवार कहा कि कई लोगों के पास शिक्षा का अभाव है। साथ ही उनके पास रोजगार नहीं है। उन्हें जीवन यापन के लिए बुनियादी जरूरत पूरी करनी होती है और इसी कारण वह भीख मांगने पर मजबूर होते हैं। ये व्यापक मुद्दा है और सरकार के सामाजिक वेलफेयर स्कीम का मसला है। सुप्रीम कोर्ट ये नहीं कह सकता कि ऐसे लोगों को नजर से दूर कर दिया जाना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा है कि कि वह मामले में सहयोग करें और सुनवाई दो हफ्ते के लिए टाल दी है। सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि कोविड के तीसरे वेव की आशंका के मद्देनजर यह मामला अहम है। भीख मांगने वालों का पुनर्वास और वेक्सीनेशन जरूरी है, क्योंकि ये गंभीर खतरा हैं।
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