बुधवार, 15 दिसंबर 2010

चले तो गाड़ी, नहीं तो ठेलागाड़ी

हम भारत के लोग भी कमाल हैं। एक समय इंदिरा जी के महान सपूत (?) संजय गांधी ने मारुति कार बनाई थी। 'हम दो, हमारे दोÓ और 'छोटा परिवार, सुखी परिवारÓ के नारे पर आधारित इस कार ने भारत में सड़क यातायात की संस्कृति ही बदल दी। वे भी क्या दिन थे; जहां देखो, वहां मारुति। शादी में मारुति लेना-देना प्रतिष्ठा का प्रतीक बन गया था। कई युवक तो इस शर्त पर ही शादी करते थे कि दुल्हन मारुति में लाएंगे। लड़की पुरानी चल जाएगी; पर मारुति नई ही होनी चाहिए। मारुति की बात ही निराली थी। मध्य वर्ग के कार खरीदने के अरमान उसी ने पूरे किये। उसमें बैठने वाला खुद को खुदा से कम नहीं समझता था। मारुति न हुई, धरती से छह इंच ऊपर चलने वाला युद्धिष्ठिर का रथ हो गया। उन दिनों चुनाव में रिक्शा से वोटर ढोये जाते थे। हमारे शहर में एक प्रत्याशी ने इसके लिए मारुति लगा दी, तो वही जीत गया। पिछली सदी को इस नाते 'मारुति सदीÓ कह सकते हैं। मारुति ने ही एम्बेसेडर और फिएट जैसी स्थापित कारों की छुट्टी की। पर फिर समय बदला और दिल्ली में सरकार भी। छोटी गाडिय़ों के लाइसेंस पर से संजय गांधी और मारुति का एकाधिकार हटा, तो कई उद्योगपति मैदान में आ गये। धीरे-धीरे बड़ी की बजाय छोटी कारों का ही चलन हो गया। लेकिन पिछले दिनों रतन टाटा उससे भी छोटी नैनो कार ले आये। छोटी ही नहीं, सस्ती भी। यद्यपि सामने से देखें, तो लगता है मानो विजेन्द्र सिंह ने अपने गोल्डन मुक्के से उसकी नाक चपटी कर दी हो। फिर भी गाड़ी तो है ही; और दुनिया में 'चलती को ही गाड़ीÓ कहा जाता है। जैसे संजय गांधी को मारुति से प्यार था, सुनते हैं वैसा ही प्यार राहुल बाबा को नैनो से है। उन्होंने तय कर लिया है कि वे इस युग को नैनो युग बना कर रहेंगे। अब युग बदलना तो उनके बस में नहीं है; पर वे 125 साल बूढ़ी कांग्रेस को 'नैनो कांग्रेसÓ बनाने पर जरूर तुले हैं। इस शुभ कार्य में उनकी आदरणीय मम्मी और 'खडाऊं प्रधानमंत्रीÓ भी पूरा सहयोग दे रहे हैं। कांग्रेस इन दिनों हरियाणा, राजस्थान, आंध्र, दिल्ली और महाराष्ट्र में जीवित अवस्था में पाई जाती है। महाराष्ट्र में उसकी सांसे शरद पवार की घड़ी की टिक-टिक पर टिकी हैं, तो हरियाणा में वह खिलाडिय़ों के कंधे पर लदी है। राजस्थान में सरकार लडख़ड़ा रही है, तो आंध्र में कई 'रेड्डीमेडÓ ईंटों के खिसकने से पुरानी दीवार की तरह भरभरा रही है। दिल्ली में सरकार मुख्यमंत्री की है या राज्यपाल की, यह शीला दीक्षित को ही नहीं पता। कांग्रेस न हुई, पटरी वाले ढाबे की दाल, चावल, रोटी और सब्जी वाली 'सादी थालीÓ हो गयी, जिसमें दिल लुभाने के लिए मिर्च और प्याज की तरह गोवा और पूर्वोत्तर के कुछ राज्य भी हैं।

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