बुधवार, 15 दिसंबर 2010

शिव ने हलाहल उगला

एक सूबे के मुख्यमंत्री ने आवाज बुलंद की है। आलोचनाओं से परे होकर मध्यप्रदेश ने हुंकार भरी है। हो सकता है शिव को कहींफिर से इस हलाहल को पीने की जहमत न उठानी पड़े, क्योंकि मंथन की इजाजत वर्तमान तंत्र नहीं देता। बहरहाल, एक यक्ष प्रश्न तो उन्होंने खड़ा कर ही दिया। शिवराज सिंह चौहान ने एक सार्वजनिक कार्यक्रम में दो टूक कहा कि देश के ऊपरी सदन को खत्म कर दिया जाना चाहिए। इल्जामात वही उपरोक्त। शिवराज सिंह के इस बयान की भले ही कुछ लोग आलोचना करें लेकिन शिवराज सिंह चौहान ने बहुत सटीक बात कही है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने विधायक निधि को भंग करके ऐसा ही साहसिक और ऐतिहासिक काम किया है। दोहराने की जरूरत नहीं कि भ्रष्टाचार अपने देश के सामाजिक ताने बाने में किस तरह तरह से घुस चुका है। घूस में की गयी चोरी को बाकायदा कमाई कहा जाता है। अंग्रेजों के दौर में संस्था का रूप हासिल करने वाली संस्कृति को आज़ादी के बाद नौकरशाही ने घूस की संस्कृति में बदल दिया। आजादी के संघर्ष में शामिल नेताओं के जाने के बाद जो नेता राजनीति में आये उनके लिए घूस एक मौलिक अधिकार की शक्ल ले चुका था। नेता जब घूसखोर होगा तो अफसरों और सरकारी कर्मचारियों को घूसजीवी बनने से रोक पाना नामुमकिन है। घूस में मिली रकम के बल पर लोग ऐशो आराम की जिंदगी बसर करते हैं और कहीं चूँ नहीं होती। अब तक भ्रष्टाचार वही माना जाता रहा है जो पकड़ लिया जाय और मुकदमा कायम हो जाए। आम तौर पर इन मुकदमों में अभियुक्त बच ही निकलता है। भ्रष्टाचार के कारणों की जांच नहीं की जाती, लेकिन अब हालात बदल रहे हैं। सूबों से आवाजें आनी शुरु हो गई हैं। भोपाल में चुनाव सुधारों के लिए एक बैठक आयोजित की गई थी। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने इस मंच से बहुत बुनियादी बात कही। उन्होंने कहा कि संसद का जो ऊपरी सदन है, वह भ्रष्टाचार के लिए आजकल बहुत बड़ी खाद का काम करने लगा है। देखा गया है कि राज्य सभा में अब वे सारे लोग पंहुच रहे हैं जो पैसा देकर टिकट लेते हैं और विधायकों को पैसा देकर उनकी वोट खरीदते हैं। शराब के व्यापारी ,सत्ता के दलाल , अन्य बे-ईमानी का काम करने वाले लोग राज्य सभा में पंहुच रहे हैं और ऐलानियाँ ऐसा काम कर रहे हैं जो किसी भी कीमत पर सही नहीं है। आम आदमी के विरोध में जो भी नीतियाँ बन रही हैं, यह लोग उसे समर्थन दे रहे हैं, लिहाजा राज्य सभा को ही खत्म कर देना चाहिए। जाहिर है कि यह विचार मौलिक परिवर्तन की बात करता है और भ्रष्टाचार के प्रमुख कारणों को दबा देने की ताकत रखता है। इस बात में दो राय नहीं कि भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए राजनीतिक पहल के जरूरत है और निहित स्वार्थ वाले उसका पूरी तरह से विरोध करेगें। लेकिन अगर भ्रष्टाचार पर सही तरीके से हमला किया गया तो देश के विकास को बहुत बड़ी शक्ति मिल जाएगी। देश को उसी का इंतजार भी है, क्योंकि दुनिया के सबसे बड़े लोकत्रांतिक देश भारत को भ्रष्टाचार का घुन लग चुका है। ये घुन दिल्ली की संसद में बैठ कर देश के लिए कानून बनाने वाले सांसदों से होते हुए देश की सबसे छोटी लोकत्रांतिक इकाई ग्राम पंचायत यानि की मिनी संसद तक पहुच चुका है। सांसदों के सारे बुरे गुण प्रधानों ने अपना लिए है। वहां करोड़ों-अरबों का खेल होता है यहाँ लाखों-करोड़ों का हो रहा है। तरीका वही, सलीका वही और भ्रष्टाचार का हौसला भी वही। संसद हो या मिनी संसद दोनों में चुने जाने के हथकंडे भी वही और तरीका सलीका भी वही- शराब, कबाब, शबाब, नोटों की बरसात और वोटो की खरीददारी। सांसद हो या प्रधान दोनों चुनाव आयोग की निर्धारित चुनावी खर्च की सीमा से कई गुना खर्च करते है ंऔर उसे वापस पाने के लिए भ्रष्टाचार की गंगा में गोते लगाते हैं। सांसद निधि बेचता है, संसद में सवाल पूछने के पैसे लेता है, एनजीओ बनाकर करोड़ों बटोरता है तो प्रधान यानि मिनी संसद का मिनी सांसद मिड डे मील चुराता है, नरेगा में घपला करता है, ग्रामीणों को इंदिरा आवास दिलाने में कमीशन खाता है और गाँव की विकास योजनाओं के पैसे को बिना किसी पाचन चूर्ण के पूरा पचाता है। और जो जनता के टैक्स से रोजी रोटी पाते हैं वो जनता के नौकर इन सब पर निगाह रखते हैं। भूखे भेडिय़े की तरह अपना शिकार पचाने के बाद इनके शिकार में से हिस्सा नोंच कर डकार तक नहीं लेते। वहां सीबीआई है, लोकायुक्त है, सतकर्ता आयोग है, संसद की तमाम पैसा उगाहू निगरानी समिति है यहाँ ग्राम सचिव है, खंड विकास अधिकारी है, जिला विकास अधिकारी है, जिला प्रबन्धक है, आर्थिक अपराध शाखा है, घपलों और घोटालों के उजागर मामलो में जाँच के नाम पर सिर्फ हिस्सा बटोरने वाली कई अधिकृत और गैर अधिकृत समितियां और संगठन हैं। दोनों शपथ लेते हैं देश के सविधान की- मैं सच्चे मन से लोकतान्त्रिक गणराज्य भारत के सविधान की रक्षा करते हुए ऐसा कोई कृत्य नहीं करूंगा को सविधान का उल्लंघन करता हो या राष्ट्र की एकता अखंडता नष्ट करता हो। करते क्या है दोनों- एक दिल्ली में बैठ कर संविधान की धज्जियां उड़ाता है तो दूसरा गाँव में बैठ कर दिल्लीवाले का अनुसरण करता है। बोलता है पहले दिल्ली साफ करो।

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