बुधवार, 15 दिसंबर 2010

आतंकियों की नए सिरे से पैरवी

मुंबई आतंकी हमले में शहीद एटीएस प्रमुख हेमंत करकरे को लेकर कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह के बयान पर भाजपा का आक्रामक होना लाजिमी है। भाजपा ने कांग्रेस पर सौहाद्र्र बिगाडऩे की साजिश में शामिल होने का आरोप लगाते हुए दिग्विजय के कारनामों की जांच कराने की मांग की है। सवाल उठता है कि मुंबई हमले की जांच में अर्से बाद ऐसे बयानों के पीछे की असली मंशा क्या है? चाहे बांग्लादेशी घुसपैठियों का सवाल हो या बाटला कांड में शहीद मोहनलाल की शहादत पर शक, प्रधानमंत्री द्वारा देश के संसाधनों पर मुस्लिमों का पहला हक होने वाला बयान हो या आजमगढ़ के आतंकवाद के आरोपियों का बचाव करने की कोशिश। आजादी के बाद पहली बार हो रहा है कि कांग्रेस आतंकवाद को भगवा रंग व धर्म से जोड़ रही है, जबकि चिल्ला-चिल्ला कर सारा देश कहता रहा है कि आतंकवाद का कोई धर्म या जाति नहीं होती। फिर इस रणनीति के पीछे क्या आशय हो सकता है? निशिचत तौर पर बेढ़ब बयान देने को लेकर खासे कुख्यात हो चुके कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने हेमंत करकरे को लेकर जो नितांत अविश्वसनीय बयान दिया , उससे यह साबित हो गया कि वह अपने राजनीतिक विरोधियों को नीचा दिखाने और खुद को चर्चा में लाने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। यह हास्यास्पद है कि दिग्विजय सिंह को दो वर्ष बाद यह याद आ रहा है कि हेमंत करकरे ने अपनी शहादत के कुछ घंटे पहले फोन पर उनसे कहा था कि उन्हें हिंदू उग्रपंथियों से खतरा है। आखिर खुद को करकरे का करीबी बताने वाले दिग्विजय सिंह ने इस बारे में अभी तक मौन क्यों साधे रखा? जिम्मेदार नेता न सही, एक नागरिक होने के नाते क्या उनका यह दायित्व नहीं बनता था कि वह इस बारे में महाराष्ट्र पुलिस को सूचित करते? उन्होंने अपने गैर जिम्मेदाराना बयान से उन अब्दुल रहमान अंतुले को भी पीछे छोड़ दिया जिन्होंने करकरे की शहादत पर सवाल उठाकर केंद्र सरकार को शर्मिदा किया था। कांग्रेस ने अंतुले से तो निजात पा ली, लेकिन शायद वह अभी यह समझने के लिए तैयार नहीं कि दिग्विजय सिंह उसका, उसकी सरकार और देश के सामाजिक माहौल का कितना अहित कर रहे हैं? यह पर्याप्त नहीं कि कांग्रेस ने उनके बयान से पल्ला झाड़ लिया। यदि कांग्रेस नेतृत्व को उस क्षति का तनिक भी अनुमान है जो दिग्विजय सिंह ने अपने मनगढं़त बयान से की है तो उसे उनके खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए। वह जिस तरह रह-रहकर गैर जिम्मेदाराना और उकसावे वाले बयान देते रहते हैं उससे तो यही लगता है कि वह ऐसा किसी रणनीति के तहत करते हैं और कांग्रेस को उनकी यह रणनीति रास आ रही है। चूंकि खुद हेमंत करकरे की पत्नी ने दिग्विजय सिंह के बयान को देश को गुमराह करने वाला करार देते हुए इससे इनकार किया कि उनके पति और कांग्रेसी नेता के बीच ऐसी कोई बातचीत हुई थी इसलिए इस पर कोई संदेह नहीं रह जाता कि उन्होंने खुद के अथवा अपने दल के किसी बड़े संकीर्ण स्वार्थ को पूरा करने के लिए एक हवाई बयान दे डाला। आश्चर्य नहीं कि उनका इरादा घोटालों से घिरी कांग्रेस और केंद्र सरकार की ओर से जनता का ध्यान भंग करना हो। यह भी हो सकता है कि वह संदिग्ध आतंकियों की नए सिरे से पैरवी करना चाहते हों और इसके लिए उन्हें यह जरूरी जान पड़ा हो कि पहले हिंदू संगठनों को लांछित किया जाए। आखिर यह एक तथ्य है कि वह संदिग्ध आतंकियों और उनके समर्थकों को क्लीनचिट देने का काम करते रहे हैं। कम से कम कांग्रेस को तो यह समझ आना ही चाहिए कि दिग्विजय सिंह संजरपुर के जिन आतंकियों को गले लगा रहे थे उन्हें ही वाराणसी में बम विस्फोट के लिए जिम्मेदार माना जा रहा है। यह ठीक है कि हमारे नेता वोट बैंक की राजनीति करते हैं, लेकिन क्या अब उन्हें इस राजनीति के तहत इसकी भी छूट दे दी गई है कि वे झूठ बोलकर देश को गुमराह करें और संदिग्ध आतंकियों का मनोबल बढ़ाएं? यह वह सवाल है जिसका जवाब कांग्रेस को देना चाहिए, क्योंकि वही है जो दिग्विजय सिंह पर लगाम लगाने के बजाय उन्हें संरक्षण दे रही है।

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