शनिवार, 11 दिसंबर 2010
नेता धूर्त, जनता मूर्ख
जिस देश के नेता धूर्त होते हैं, उस देश की जनता मूर्ख होती इन धूर्तों ने इन मूर्खों को सुधारने का कभी प्रयास नहीं किया और न करेंगे। इन मूर्खों में से ही कोई धूर्त और निकलेगा जो भोली भाली जनता पर राज करेगा। हम सब ने यह मान लिया है कि यह व्यवस्था ऐसी ही है और ऐसी ही रहेगी। आज भारत का आम आदमी स्वयं अपने को लाचार, कमजोर, बेचारा समझता है। वह अपने को दबा हुआ रखने का आदि हो गया है। हम अपने परिवार में खुश हंै, हम अपने बच्चों की प्रगति चाहते हैं और बच्चों की प्रगति में खुश हैं। हमारी सोचने की शक्ति ने बहुत सी बातों के साथ समझौता कर लिया है। लोक से दूर होता तंत्र :आज लोकतंत्र में लोक ही तंत्र से दूर हो गया है और जनता के राज में राज बनाने वाली जनता ही अपने राज से अनभिज्ञ है। जब आमजन का काम इन हुक्मरानों से पड़ता है तो यह आम आदमी किसी की सिफारिश भिड़ाने की जुगत लगाता है, किसी ऐसे व्यक्ति को ढूँढ़ता है जो नेताजी का खास हो जिसकी नेताजी के सामने चलती हो जिसकी नेताजी मानते हो और फिर वह नेताजी के सामने इस तरह से पेश आता है जैसे कोई गुनहगार अपने गुनाह की माफी मांग रहा हो और नेता इस आम आदमी के सामने 'हाँ देख लूंगाÓ की ऐसी वाणी निकालता है जैसे उसने कोई बहुत बड़ा उपकार कर दिया हो। आम जन से दूर होता यह नेता वह दिन भूल जाता है कि वह कैसे वोट मांगने इस आम आदमी के द्वार पर गया था और किस प्रकार एक याचक की तरह वोट की भीख मांगी थी और बेचारा आम आदमी अपने द्वार आए इस खास अतिथि की सेवा में लग गया था और अतिथि को भगवान का रूप समझ कर उसने इस भगवान को सिंहासन पर बैठा दिया था। नेताजी भूल जाते हैं कि यह वहीं आम आदमी है जिसने चुनाव के दौरान नेताजी को सिक्कों से, गुड़ से, केलों से और अपने खूने से तौला था और चाहे उस दिन इस आदमी ने खुद ने कोई कमाई न की हो परन्तु घर आए नेताजी को नोटों की माला पहनाई थी और आज जब चुनाव जीत कर नेताजी मंत्री बन गए या विधान सभा या संसद में चले गए तो अपने ही इस आदमी से इतने दूर हो गए कि यह आदमी सोचता है क्या मैंने माला पहना कर, सिक्कों से तौल कर कोई गलती तो नहीं कर दी। जनता से दूर होता यह राज जनता का राज नहीं रह गया है। आज राज कहने को तो आम आदमी का है लेकिन वास्तव में राज मंत्रियों का है, अफसरों का है।चांद दिखता है पर मिलता नहीं : : भारत के ये खास लोग जो संसद में बैठते हैं जो लालबत्तियों में घूमते है आखिर इनको किस बात का डर है कि आम जन से ही दूर भागते फिरते है। सुरक्षा के नाम पर इनके चारों और एक ऐसा घेरा बना दिया गया है कि इस घेरे ने इन तथाकथित जन प्रतिनिधियों को आम जन से दूर कर दिया है। और बाकी इनके आस पास इनके दरबारियों की ऐसी भीड़ जमा हो गई है जिन्होंने इनके दरबार में स्थान पाकर अपने आप को तो बड़ा बना लिया है लेकिन इन लोगों को आम आदमी की पहुँच से बहुत दूर कर दिया है। आम आदमी के लिए ये भारत के खास विशिष्ट लोग चॉंद हो गए हैं जिन्हें धरती के लोग देख तो सकते हैं लेकिन प्राप्त नहीं कर सकते।इस तंत्र के हम ही कसूरवार :अब अगर हम इसके कारणों में जाए तो कईं बाते सामने आती है। समस्या यह है कि जहाँ एमएलए एमपी मंत्री बनने के बाद नेता अपने को खास समझने लगता है वहीं भारत की जनता की मानसिकता ने उसे ऐसा गुलाम बना रखा है कि वह आज भी सामंतशाही की अपनी समझ से छुटकारा नहीं पा पाई है। आज इस देश का आम नागरिक नेता मंत्री एमएलए एमपी को इतना बड़ा समझता है जैसे कोई भगवान का अवतार हो गया हो। वह अपने छोटे से छोटे से कार्यक्रम से लेकर बड़े से बड़े कार्यक्रम में नेताजी को बुलाकर अपने को भाग्यवान समझता है और अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा बढी हुई मानता है। आम आदमी ने आज यह मान लिया है कि साहब ये तो बड़े आदमी है। यह आम आदमी यह भूल गया है कि इस खास को खास आदमी आम आदमी ने ही बनाया है और अगर यह न चाहे तो यह खास आज भी आम बन जाए। आम आदमी यह भूल गया है कि राज जनता का है और इस तंत्र का निर्माण भारत की जनता ने ही किया है। इस देश की जनता की इसी समझ का फायदा इस देश के नेता उठा रहे हैं। इस देश का नेता जानता है कि भारत की जनता इतनी महान् है कि वह पाँच साल में सारे दु:ख भूल जाएगी और वह फिर से जाकर इस जनता को मूर्ख बना देगा। दूसरों की उम्मीदों के हमदम :हमारे यहां अपनी दिलचस्पियों के साथ वयस्क होने की इजाजत नहीं है। हम दूसरों की उम्मीदों के हमदम होते हैं और हमारी ख्वाहिशों का कोई मददगार नहीं होता। हम हिंदी पढ़ते-पढ़ते विज्ञान पढऩे लगते हैं। पत्रकारिता करते करते पीआर करने लगते हैं और आंदोलन करते करते संसद खोजने लगते हैं। पिछले कुछ दिनों से भारत के लोकतंत्र की सबसे बड़ी पंचायत में जो कुछ हो रहा है, वो सीधे -सीधे इस देश की भोली-भाली जनता से छल है । आम जनता के कल्याण और विकास का दावा और वादा करके सत्ता सुन्दरी का सुख भोगने वाले हमारे जन प्रतिनिधि ऐसे होंगे ये हमने कभी सोचा भी ना था। देश की संसद के दोनों सदनों में इस सत्र की एक दिन की कार्यवाहीभी नहीं हो सकी है । घोटालों और नियुक्तियों को लेकर चल रहा विवाद ,देश की संसद में जनहित पर होने वाले सार्थक संवाद पर भारी पड़ रहा है। आदर्श सोसाइटी से जान छूटी तो अब राजा और थामस इस देश की एक अरब से अधिक आबादी से ज्यादा महत्वपूर्ण हो गए है ।लोक मजबूर और तंत्र मजबूत :देश की सर्वोच्च लोकतान्त्रिक संस्था का प्रति दिन संचालन बहुत महंगा है ,इस संचालन में लगभग साढ़े सात करोड़ प्रतिदिन खर्च होतें है ं। इस भारी राशि के अतिरिक्त सांसदों का दिल्ली आना-जाना, रहना-खाना,वेतन भत्ते, हमारे भाग्य-विधाता इन जनप्रतिनिधियों की सुरक्षा के व्यय, लोकसभा -राज्यसभा के लिए पूर्व से मुद्रित सामग्री, टेलीफोन और इन्टरनेट आदि सब खर्चे हम सब से वसूले गए कर से लिए जाते और और इन सब पर खर्च किये जाते है ं और ये सब कर हम आम जनता की मेहनत की कमाई पर लिए जाते है ,ना कि किसी राडिया या राजा की अवैध कमाई से। इस सब के बाद भी भारत का आम आदमी असहाय होकर यह सब देख और सहन कर रहा है क्योकि इस लोकतंत्र में लोक मजबूर और तंत्र मजबूत है। परिस्थितियों से ऐसा लग रहा है कि कही सदन सुचारू चले इसके लिए भी सुप्रीम कोर्ट में याचना न करनी पड़े। अपने चुनाव घोषणापत्र और सभाओं में जनहित की कसमें खाने वाले देश के बड़े-बड़े राजनीतिक दल ऐसा कर रहे है और उनके प्रमुख राज नेता भी मूक दर्शक बने हुए हैं। अब तो ऐसा लगता है कि इस पर भी संविधान संशोधन हो कि देश कि सदन सुचारू चले नहीं तो नेता उसका दंड भुगतें तब शायद ये राज नेता होश में आये । स्कूली बच्चे से भी बदतर आचरण : अब समय बदल गया, भ्रष्टाचारी अफसरशाही ने राजनेताओं को पंगु बना दिया है। नेता अब धन के लालच में अपनी गरिमा और दायित्व दोनों ही भूल चुके है। आज के लोकतंत्र में क्या कोई गरीब और इमानदार क्या चुनाव लड़ सकता है? निश्चित ही नहीं। फिर कैसे तस्वीर बदले इस ओर विशेष ध्यान देने की आवश्कता है एवं इस दिशा में आज से ही कुछ सार्थक पहल करनी होगी, क्योंकि इस विषय पर पर्याप्त विलम्ब हो चुका है। जिसकी परिणिति हम सदन में देखा रहें जहाँ सदस्य स्कूली बच्चे से भी बदतर आचरण प्रदर्शित कर रहे है। नहीं मिटती गरीबी, मिट जाता है गरीब :गरीबी मिटाने के जुमले तो राजनीतिक दलों द्वारा चुनाव में खूब उछाले जाते हैं परन्तु गरीब मिट जाता है गरीबी नही मिटती। गरीबों के नाम पर यहां सत्ता प्राप्त की जाती है परन्तु हीरों के हार, नोटों के हार, गले की शोभा बनते हैं। युवराज भी हमदर्दी के नाम पर गरीबों के घरौदें में दर्शन देने जाते हैं वहां अपने रूतबे का प्रदर्शन कर गरीबों को भयभीत कर आते हैं। अब जब यह बात बिल्कुल आइने की तरह साफ हो चुकी है कि हमारे देश का रूपया स्विस बैकों में जमा है उससे अधिक काला धन और अकूत सम्पत्ति अपने देश में होने से इनकार नहीं किया जा सकता। चाहे वह धन गलत नामों से बैंकों में हो या बेनामी सम्पतियों में लगा हो अथवा जमीन में ही गड़ा क्यों न पड़ा हो है जरूर। वह धन देश में लाने के लिये आगे आना चाहिए। देश को गरीबी, भुखमरी, अपंगता के अभिशाप से बचाना चाहिए। न दो वक्त की रोटी, न तन पर लंगोटी : दो वक्त की रोटी तन ढकने को लंगोटी भी जिन बदनसीबों के पास न हो, डेंगू, स्वाइन फ्लू, जापानी इन्सेफलाइटिस जैसी महामारी पर हर वर्ष कहर बरसाना उसके कारण सैंकड़ों की तादाद में बच्चों के मौत के मुख में समा जाना आम बात है। महंगे आपरेशन के अभाव में विकलांग हमेशा विकलांग जीवन जीने को मजबूर है। धनाभाव का संकट है उससे अधिक पैदा किया गया है, किया जा रहा है। इसके गुनाहगार कौन है भारत एक लोकतांत्रिक देश है यहां के कानून में किसी को किसी का हक हड़पने, दूसरे को नरकीय जीवन जीने को मजबूर करने वालों के लिए कठोर सजा का प्रावधान है। यह भी देखना जरूरी है कि अब तक कितने ऐसे भ्रष्टों को चिन्हित किया गया है उन्हें सजा मिल चुकी है। 63 वर्ष हो गये देश आजाद हुआ लेकिन भ्रष्टाचार, भूखमरी, बीमारी, गरीबी, से आजादी मिलना अभी बाकी है। भ्रष्टाचार की वजह से देश कंगाल है, 83 करोड़ लोगों से मूलभूत सुविधाओं से दूर हैं। लूट लिया मिल के इन घोटालों ने : स्विस बैंक एसोसियसन ने लाखों, करोड़ जमा होने की बात कबूली है अन्य बैकों में भी अरबों जमा हैं ये सब जनता का लूटा हआ पैसा है। 66 हजार अरब रूपये तो स्विस बैंकों में जमा है आजादी के बाद से 2008 तक अवैध तरीके से देश से बाहर भेजी गयी रकम स्विस बैंक एसोसिएसन तथा भगवान भला करे उस अमेरिका की ग्लोबल फाइनेशियल इंटीग्रिटी संस्था का जिसके अनुमान के अनुसार अभी भी 1 लाख 65 हजार करोड़ काले धन के रूप में देश से बाहर जा रहा है। 1990 के बाद चर्चित घोटाले बोफोर्स 1990, पशुपालन 1990, हवाला 1993, हर्षद मेहता 1995, दूसंचार घोटाला 1996, चारा घोटाला 1996, केतन पारिख घोटाला 2001, बराक मिसाईल स्कैन्डल डील 2001, तहलका स्कैन्डल 2001, ताज कोरिडोर 2002-03, तेलगी स्टाप घोटाला 2003, तेल के बदले अनाज घोटाला 2005, कैश फार वोटस स्कैन्डल नरसिम्हा राव सरकार, मधुकोड़ा द्वारा काले धन को सफेद करने में 4 हजार करोड़ रू0 का घोटाला, आदर्श सोसाइटी घोटाला 2010, कामनवेल्थ गेम्स 2010, 2-जी स्पेक्ट्रम घोटाला 2010, एल आई सी हाउसिंग लोन घोटाला 2010 आदि-आदि। दर्द उभारें तो आंसू भी कम पड़ जाएंगे। वैसे भी इन पथराई आंखों में अब रखा ही क्या है? बलात्कार : तन से भी, मन से भीभ्रष्टाचार की मार, महंगाई से मचा हाहाकार, करोड़ों की संख्या में नौजवान बेराजगार, देश की राजधानी दिल्ली (सबसे सुरक्षित क्षेत्र) में प्रतिदिन बहन बेटियों के साथ बलात्कार, राष्ट्र विरोधियों को (हुर्रियत) देश विरोधी भाषण देने का कही भी अधिकार, यह कैसा लोकतंत्र यह कैसी सरकार। जिस देश का 280 लाख करोड़ रूपया स्विस बैंकों में काले धन के रूप में जमा है। वह गरीब देश हो ही नहीं सकता। यह काला धन भारत का है, भारतवासियों का है इसमें कोई शक नहीं है। काला धन कि लोगों का है, कैसे हमें योजनाबद्ध तरीके से अभी भी लूटा जा रहा है, कौन-कौन व्यक्ति संस्था, व्यवस्था इसकी गुनहगार है उन सबका पता लगाना ही चाहिए। काले कारनामे करने वाले, उनको सरक्षण देने वाले कौन हैं, उन पर अभी तक कार्यवाही क्यों नहीं की गयी। सरकार बनाई जाती है, कानून बनाये जाते हैं अपराधों की रोकथाम के लिये कानून का पालन नहीं किया गया अथवा करने नहीं?
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सही लीखा है ।हमारे देश के 100 % लोग बहोत मुर्ख और पिछडे दिमाग़ वाले लोग है। सब लोग जनसँख्या और गँदकी बढाने मेँ लगे रहते हैँ ।
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