सोमवार, 20 दिसंबर 2010

दिग्विजय को शर्म नहीं आती?

एक जमाने में दिग्विजय सिंह की चमक धमक और हंसी को देख कर ईष्र्या होती थी लेकिन अब जितने खिसियाने तरीके से वे हंसने का अभिनय कर रहे हैं उससे निराशा भी होती है और शर्म भी आती है। पिछले एक डेढ़ साल में लगभग पागलपन से भरे उनके बयानों, जिनमें आखिरी हेमंत करकरे के फोन के बारे में फैलाई गई अफवाह हैं, को देखा जाए तो दिग्विजय सिंह पहेली बने नजर आते हैं। इस पहेली का अगर राजनैतिक इतिहास समझे तो बहुत कुछ सामने आता हैं और वंश का इतिहास तो सारी परते खोल कर रख देता है। 22 दिसंबर, 1998 को झाबुआ के नवापाड़ा में जब एक नन के साथ बलात्कार हुआ था तब भी दिग्विजय सिंह ने हिन्दुओं और हिन्दू संगठनों पर ही आरोप मढ़ दिए थे। लेकिन बाद में बलात्कार के कई आरोपी मतान्तरित ईसाई ही पाए गए थे। विपक्ष सहित कई पार्टियों की मांग और राज्यपाल द्वारा सीबीआई जांच के लिए पत्र लिखने के बाद भी मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने पूरे मामले से मुंह मोड़ लिया था। वे सिर्फ घटना का राजनैतिक लाभ उठाना चाहते थे। दिग्विजय सिंह ने झाबुआ नन बलात्कार कांड के एक आरोपी को कांग्रेस का टिकट भी दिया था। अपने मुख्यमंत्री के कार्यकाल में जब उन पर सोम डिस्लरी से घूस लेने का आरोप लगा और वे विपक्ष के आक्रामक तेवरों से घिर गए तो अचानक तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की प्रशंसा करने लगे। वे अचानक ही राजग की शिक्षा नीति के प्रशंसक बन गए। ज्योतिष को विज्ञान मान लिया। लेकिन जब-जब उनको मौका हाथ लगा हिन्दुत्व पर आक्रमण करने से कभी नहीं चूके। महाराष्ट्र एटीएस के मुखिया हेमंत करकरे की आतंकी हत्या को लेकर दिए गए बयान पर दिग्गी बुरी तरह घिर गए हैं। अपनी किरकिरी होते देख कांग्रेस ने भी उनके बयान से पल्ला झाड़ लिया है। लेकिन विपक्ष कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और गृहमंत्री चिदंबरम से दिग्विजय के बयान पर उनकी प्रतिक्रया पूछ रहा है। कांग्रेस में अलग-थलग पड़े दिग्विजय सिंह को उत्तर प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और सांसद जगदंबिका पाल के बयान से एक और झटका लगेगा। दिग्गी जिस प्रदेश के प्रभारी हैं उसी प्रदेश के कांग्रेसी नेता अब उनके खिलाफ हो गए हैं। जाहिर है दिग्विजय की ओछी राजनीति से कांगेस का धर्मरिपेक्षता का राग भी कमजोर पड़ता दिख रहा है। कांग्रेसी सांसद जगदंबिका पाल ने एक कार्यक्रम में कहा कि दिग्विजय सिंह का बयान गैर जरूरी था। मुम्बई हादसे के बाद गृहमंत्री ने इस मुद्दे पर पाकिस्तान के खिलाफ जिस तरह का माहौल बनाया, उस पर ऐसे बयान से प्रतिकूल असर पड़ेगा। दरअसल अपने बड़बोलेपन से वे कई बार पूरी पार्टी को संकट में डाल चुके हैं। हो सकता है दिग्विजय सिंह का बयान स्वयं को पार्टी में स्थापित करने या अपना कद बढ़ाने के लिए हो। यह भी संभव है कि वे अपने बयानों से पार्टी का भला करना चाहते हों। लेकिन उनके बयानों से हर बार पार्टी को नुकसान ही होता रहा है। ऐसे में पार्टी के भीतर भी वे आलोचना और निन्दा के पात्र बनते हैं। अंतत: उनके स्वयं का नुकसान भी होता है। लेकिन दिग्विजय सिंह है कि अपनी करनी से बाज नहीं आते। मध्यप्रदेश की राजनीति में 'बुआजीÓ के नाम से चर्चित और वर्तमान विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष रही जमुना देवी ने वर्ष 19995 में कांग्रेस के वर्तमान महासचिव और तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के बारे में टिप्पणी की थी, '' मैं आजकल मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के तंदूर में जल रही हूं।ÓÓ इन्हीं बुआजी ने एक बार कहा था - मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह अपने सलाहकार और वामपंथी विचारधारा के समर्थक संगठनों को विशेष महत्व दे रहे हैं, जिससे नक्सली गतिविधियां फल-फूल रही हैं। राघोगढ़ ने हमेशा ही अंग्रेजों का साथ दिया। राजा अजीत सिंह के दरम्यान राघोगढ़ के ब्रिटिश राज के ही अधीन रहा। 1904 में राघोगढ़ सिंधिया राज के अधीन हो गया। राघोगढ़ के तब के राजा सिंधिया को नजराना दिया करते थे। राघोगढ़ के राजा बहादुर सिंह भारतीय राजाओं में अंग्रेजों के सबसे वफादार थे। इनकी इच्छा थी कि वे प्रथम विश्व युद्ध में अंग्रेजों की तरफ से लड़ते हुए मारे जाएंं। अंग्रेजों की इस वफादारी के लिए राघोगढ़ राजघराने को वायसराय का धन्यवाद भी मिला। इतिहास के पन्नों में इस बात का उल्लेख है कि राघोगढ़ सामंत ने अपने क्षेत्र अंग्रेजों के खिलाफ भारतीयों की हर आवाज को दबाया। 1857 के गदर के दौरान भी यह राजघराना भारतीयों की बजाए अंग्रेजों के ही साथ था। दिग्विजय सिंह को यह अवसर मिला था कि वे राघोगढ़ पर लगने वाले आरोपों का जवाब देते, लेकिन उन्होंने न तो अपने 10 वर्षों के अपने शासन में और न ही अब ऐसा कोई प्रयास किया। बजाए इसके वे लगातार ऐसे बयान दे रहे हैं, जिससे आतंवादियों और उनके पोषक शक्तियों को ही मदद मिल रही है। मामला चाहे बटला हाउस का हो या आजमगढ़ जाकर आतंकियों के परिजनों से मुलाकात का, हर बार दिग्विजय सिंह पर आतंकियों की मदद करने का आरोप लगा। मध्यप्रदेश भाजपा ने दिग्विजय सिंह और खंूखार अपराधियों के गठजोर को केन्द्र में रखकर एक पुस्तिका प्रकाशित की थी। 'एक संदिग्ध मुख्यमंत्रीÓ नाम से प्रकाशित इस पुस्तिका में मालवा क्षेत्र के खूंखार अपराधी खान बन्धुओं और दिग्विजय के संबंधों को उजागर किया गया था। मध्यप्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती ने भोपाल में पत्रकारों से बात करते हुए कहा- दिग्विजय सिंह सिर्फ दया के पात्र हैं। वर्ष 2003 में वे मध्यप्रदेश से बेदखल कर दिए गए थे। इस बेदखली में संघ को दोषी मानते हैं। बकौल सुश्री भारती दिग्विजय सिंह को लगता है कि मध्यप्रदेश से कांग्रेस और उनको बेदखल करने में संघ की ही भूमिका थी। इसीलिए वे हर बात में संघ का नाम घसीटते हैं। दिग्विजय सिंह ने हमेशा ही संघ को कटघरे में खड़े करने की कोशिश की है। हिन्दू आतंकवाद का नारा उछालने और संघ को आतंकी संगठन सिद्ध करने के लिए उन्होंने हर संभव कोशिश की। हालांकि दिग्विजय सिंह का दामन स्वयं ही दागदार है। दिग्विजय सिंह का ताजा बयान यही बयां करता है कि उन्होंने देशभक्ति का कोई सबक नहीं सीखा है, बल्कि इसके उलट वे अंग्रेजों से लेकर आतंकियों और देश विरोधियों के समर्थक के तौर पर उभरे हैं। अब यह सच भी उजागर होने लगा है कि उन्हीं के राज में सिमी, नक्सली गतिविधियां, बांग्लादेशी घुसपैठ और आतंकी गतिविधियों को बढ़ावा मिला, बल्कि अरुंधति राय जैसी देश विरोधी बुद्धिजीवियों को भी शह मिला। इतिहास के पन्नों में यह दर्ज है कि दिग्विजय सिंह के पुरखे अंग्रेजों के प्रति वफादार रहे। अब अखबारों में यह दर्ज हो रहा है कि दिग्विजय सिंह ने आर. आर. खान से लेकर अजमल कसाब तक की रहनुमाई राजनीति कैसे की। इन सब से कांग्रेस और दिग्विजय की धर्मनिरपेक्ष छवि को कितना बल मिला या उनके वोट बैंक में कितना इजाफा हुआ यह तो नहीं मालूम, लेकिन तब प्रदेश का और अब पूरे देश का नुकसान जरूर हो रहा है।

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