सोमवार, 20 दिसंबर 2010

लघुता का बोझ जरूरी

भगवान अपने प्रिय भक्त को संकट में देखकर रह नहीं पाते। वह उसके उद्धार के लिये नाना प्रकार के उपक्रम कर उसे विषय-भोग से मुक्त कर देते हैं। जिस पर उनकी कृपा होती है वह जीव अमर हो जाता है। अहंकार, भक्ति में सबसे बड़ा बाधक है। जीव के अहंकार का कारण चाहे वस्तु हो या व्यक्ति, भगवान उसे नष्ट कर देते हैं। इन्द्र को भी अहंकार हुआ। बृजवासियोंद्वारा पूजा नहीं किये जाने से नाराज इन्द्र ने अति वृष्टि की। इन्द्र का अहंकार नष्ट करने के लिए भगवान ने गोवर्धनउठाकर बृज के लोगों की रक्षा की। इन्द्र को अपनी लघुता का बोध हुआ और वह भगवान के चरणों में गिर पडा। श्रीकृष्ण के चरणों में गिरने वाले संसार का राजा बनते हैं। अति महत्वाकांक्षा व अहंकार दोनों ही जीव के लिए घातक है। धर्म कहता है कि मनुष्य को अपने सामथ्र्य के अनुसार भगवान की सेवा में जुटना चाहिए। सभी मनुष्यों में पांच तरह के प्राण होते हैं। इनमें प्राण, व्यान,उदान, समान और अपान शामिल है। रास भी पांचवें अध्याय में आता है। यह अध्याय भागवत का प्राण कहा जाता है। श्रीराधारानी कृष्ण की योग माया हैं। जिन गोपियों के संग भगवान ने रास किया वह सभी कृष्णगतप्राण हैं। गोपियां उनकी रस भावित मति हैं। गोपियों का सब कुछ अपने प्रियतम प्यारे कान्हाके चरणों में समर्पित था। भगवान के चरणों में सब कुछ समर्पित करने वाली गोपियां उनकी परम अन्तरंग लीला का अभिन्न अंग हैं। रास ही भगवान का रस है। वेद और श्रुतिइसका प्रमाण हैं। जब कोई रचनाकार किसी ग्रन्थ की रचना करता है तो उसका स्वभाव उसमें निहित होता है। लेकिन वेद भगवान की सांस हैं। स्वामी जी ने कहा कि 19 प्रकार की गोपियों का वर्णन सुना जाता है। इतने ही प्रकार के गोपी गीत भी गाये जाते हैं। इन गीतों से प्रसन्न होकर परम ब्रह्मापरमात्मा ने गोपियों को दर्शन दिया।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें