सोमवार, 20 दिसंबर 2010
40 लाख की पत्थरबाजी
कश्मीर घाटी में आए दिन होने वाले प्रदर्शनों के दौरान पुलिस व सुरक्षाबलों पर पथराव को गुस्से के इजहार के तौर पर लिया जाता रहा है लेकिन वास्तव में वह घाटी के बेरोजगार युवकों के लिए बड़ा और चोखा धंधा है। आतंकी संगठन हिजबुल मुजाहिदीन व लश्कर-ए-तैयबा इस गंदे धंधे को विस्तार देने के लिए हर साल लाखों रुपये खर्च करते हैं। बेरोजगार युवकों के लिए यह धंधा रोजी-रोटी का एक बेहतर जरिया बना हुआ है। यह कड़वा सच सामने आ चुका है। कश्मीर घाटी में पत्थरबाजी के लिए पत्थरबाज लड़कों को 40 लाख रकम दिए गए थे। यह खुलासा गिरफ्तार हुर्रियत नेता मसारत आलम ने पूछताछ में किया। आलम ने यह भी बताया है कि अलगाववादी नेता सैयद अली शाह गिलानी ने भी उसे धन दिए थे। लिहाजा पुलिस उन उन रास्तों का पता करने की कोशिश कर रही है, जिनके जरिए गिलानी के पास धन आया और फिर उन्हें मसारत आलम जैसे विरोध प्रदर्शन भड़काने वालों में बांटा गया। वाकया पिछले वर्ष गर्मी का है। घाटी पूरी तरह से हिंसा की आग में झुलस रहा थी। इसका कारण धन का भारी प्रवाह था। मसारत ने पुलिस को बताया कि उसने घाटी में विरोध प्रदर्शन के लिए 40 लाख रूपये खर्च किए थे। उस हिंसक विरोध प्रदर्शन में सुरक्षा बलों के साथ संघर्ष में 110 से अधिक व्यक्ति मारे गए थे। यह मात्र पहली घटना नहीं। कश्मीर जो धरती का स्वर्ग कहा जाता है, आतंकी गतिविधियों के कारण नरक में तब्दील हो गया है। आज कश्मीर समस्या का जो स्वरूप हमें दिखाई दे रहा है उसके अनेक ऐतिहासिक कारण हैं जिनकी चर्चा समय समय पर होती रहती है परंतु सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि आज भी कश्मीर हमारे समक्ष इतिहास के अनसुलझे प्रश्न की तरह मुँह फैलाये खड़ा है। कश्मीर समस्या निश्चित रूप से देश की स्वतंत्रता के बाद देश के नेतृत्व की उस मानसिकता का परिचायक ही है कि देश का नेतृत्त्व किस प्रकार उन शक्तियों के हाथ में चला गया जो न तो भारत को एक सांस्कृतिक और न ही आध्यात्मिक ईकाई मानते थे। वे तो भारत को एक भूखण्ड तक ही मानते थे जिसका सौदा विदेशी दबाव में या अपनी सुविधा के अनुसार किया जा सकता है। कश्मीर के सम्बन्ध में एक बडी भूल यही होती है कि हम इसे भारत का अभिन्न अंग मानते हुए भी इसे एक राजनीतिक ईकाई भर मान कर संतुष्ट हो जाते हैं। इसी पक्ष के अभाव के चलते इस समस्या को पूरी तरह राजनीतिक सन्दर्भ में देखा जाता है और भारत का एक वर्ग कहीं न कहीं जाने अनजाने इस सम्बन्ध में हीन भावना से ग्रस्त होता जा रहा है कि कश्मीर में स्वायत्तता या फिर स्वतंत्रता की माँग पर विचार किया जा सकता है। पिछले दो दशकों के घटनाक्रम के बाद इस विषय में किसी को सन्देह रह ही नहीं जाना चाहिये कि कश्मीर में अलगाववादी चाहते क्या हैं? सैयद अली शाह गिलानी पिछले अनेक दशकों से घोषित करते आये हैं कि कश्मीर का विषय जिहाद से जुड़ा है। कश्मीर समस्या का तीसरा आयाम भी है जिसे हमें ध्यान में रखना होगा- यह विषय पूरी तरह वैश्विक जिहादी अन्दोलन से भी जुड़ा है। खाड़ी के देशों में तेल के धन ने अचानक समस्त विश्वमें जिहादी राजनीतिक मह्त्वाकाँक्षा का नया दौर आरम्भ कर दिया और मध्य पूर्व सहित पश्चिम एशिया में 1980 के दशक से राज्य प्रायोजित आतंकवाद का जो दौर आरम्भ हुआ है वह अभी तक जारी है। पत्थर बरस रहे हैं। अपनों के हाथों में पत्थर अपनों को ही लहूलुहान कर रहे हैं। खाड़ी के तेल के धन से वहाबी विचारधारा और फिर सलाफी विचारधारा ने जो जड़ें समस्त विश्व के मुस्लिम देशों और गैर मुस्लिम देशों मुस्लिम जनमानस में बनाई हैं उसका परिणाम आज हमारे समक्ष है।
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