सोमवार, 20 दिसंबर 2010
सलीब पर लटका पति
आवश्यकता आविष्कार की जननी है, कहावत को साकार करते हुए जननियों और विस्तृत रूप से पति का आविष्कार किया गया। यानि वह प्राणी जो अपने आप शिकार होने के लिये तत्पर हो और धारावाहिक रुप से प्रतिदिन जीवनपर्यन्त बिना किसी प्रतिरोध के सफल शिकार होता रहे। पति बनने के बाद पुरुषों को लगा कि वे ठगे गये , पर बेचारे, पति शब्द के मोह से मुक्त होने का साहस नहीं कर पा रहे थे। जैसे शोषित शोषक के बिना अधूरा है , समाजवाद पूंजीवाद के बिना अधूरा है तथा शिकार शिकारी के बिना अधूरा है वैसा ही कुछ पति भी पत्नी के बिना अधूरा है। यूं भी गृहस्थी के कलेवर में पति की भूमिका पूंछ की ही है। पूंछ जंतु का संतुलन साधने का साधन है तथा यहां बेचारा पति भी गृहस्थी का संतुलन साधने के लिये इधर उधर होता रहता है। पूंछ की ही भांति पति भी भिन्न भिन्न् आकार प्रकार व रंग के पाये जाते हैं। कुछ लोमड़ी की पूंछ से झब्बेदार , कुछ चूहे की पूंछ से पतले , कुछ खरगोश की पूंछ से रेशमी नाजुक तो कुछ छिपकली की पूंछ जैसे पुष्ट पर गिलगिले। जैसे जंतु जगत में पूंछ सामाजिक हैसियत का प्रतीक है , पति भी किटी पार्टियों में एक प्रतीक मात्र बन कर रह गया है। पति का ( पत्नी विहीन ) स्वतंत्र अस्तित्व छिपकली की कटी दुम से अधिक महत्व नहीं रखता। जरा देर दिशाहीन , संभ्रमित सा छटपटाता है और फिर निष्प्राण , निस्तेज हो जाता है। पति व पत्नी द्वंद समास का आभास देते हैं। जैसे हार-जीत , रात-दिन , काला-गोरा आदि। इन सभी में गौण पक्ष पहले प्रकट होता है व गुरु पक्ष बाद में। पति-पत्नी भी अपनी प्रकृति के अनुसार विपरीत ही पाये जाते हैं। पति को यदि हरा रंग पसंद है तो पत्नी को लाल। पति को चाय पसंद है तो पत्नी को कॉफी। अंतत: पति समर्पण कर देता है , ले भागवान , जैसी तेरी मर्जी ... । तत्समय वह ईसा की सलीब पर लटकी मुद्रा सा प्रतीत होता है। दोनों हाथ फैले हुए , आंखों में स्थायी खालीपन व चेहरे पर दार्शनिकों जैसी लाचारी। जबकि पति-पत्नी के बीच नियमित संवाद होना बहुत जरूरी है। यदि दोनों में निरंतर विचारों का आदान-प्रदान होता रहे तो विवाह की नाजुक डोर और भी मजबूत हो सकती है। कभी-कभी होता यह है कि गलतफहमी के कारण दोनों बोलचाल बंद कर देते हैं और बात स्पष्ट होने पर दोनों को अपनी गलती का एहसास होता है लेकिन तब तक रिश्तों में कडवाहट तो आ ही चुकी होती है। बेहतर यही होगा कि आप अपने जीवनसाथी की बात पूरी तरह सुनने के बाद ही कोई जवाब दें। एक दूसरे के सहभागी बनें। शादी के शुरू के दिनों में खासतौर पर यह एहसास दिलाना बहुत जरूरी होता है कि आप एक दूसरे की इज्जत करते हैं। सकारात्मक पहलुओं पर अधिक ध्यान दें। ऐसा करने से उनके नकारात्मक पहलुओं पर ध्यान जाएगा ही नहीं बल्कि हो सकता है कि प्रोत्साहन मिलने पर वह स्वयं को बदल ही लें।
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