मंगलवार, 28 दिसंबर 2010
सोना पाने सोना छोड़ें
जीवन में कुछ अच्छा प्राप्त करने के लिए आवश्यक है कि आप अपनी आरामदायक स्थिति से बाहर आएं। एक विद्यार्थी को परीक्षा में अच्छा नम्बर लाने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती है जबकि एक व्यवसायी अपने प्रतिद्वंदी को मात देने के लिए कई रातें जगता है या फिर एक खिलाड़ी को ओलंपिक की ऐसी प्रतियोगिता में जो एक मिनट भी नहीं जाएगी, पदक जीतने के लिए सालों पसीना बहाना पड़ता है। कम शब्दों में कहें तो कोई भी महत्वपूर्ण चीज आरामदायक स्थिति में रहकर प्राप्त नहीं की जा सकती है। यदि आप कभी हार न मानने वाला दृष्टिकोण अपना लेते हैं तो सफलता की उस शिखर पर काबिज होंगे जिसके बारे में आपने सोचा भी न था। मगर किसी भी ऊंचाई पर पहुंचने से पूर्व आप यह निर्धारित करें कि आपको कहां पहुंचना है। जब तक आप ये नहीं जानते कि आपको कहां जाना है, क्या करना है आप कैसे करेंगे। जब तक आपके पास कुछ करने को नहीं होगा, तब तक आप प्रेरित कैसे होंगे? प्रोत्साहन एवं इच्छा के बगैर आप जो भी प्राप्त करना चाहते हैं, आप नहीं कर पाएंगे। प्रोत्साहन की कमी का कारण आपके अंदर इच्छा एवं इस विश्वास की कमी है कि आप ऐसा कर सकते हैं। कमजोर इच्छा का प्रतिफल भी कमजोर ही होना है। प्रोत्साहन तो निष्ठा, दृढ़ विशस, प्रेरणा एवं इच्छा का मिश्रण है जो किसी भी काम को पूरा करने के लिए आवश्यक है। इस आधुनिक, युग में ऐसा देखा जाता है कि भागमभाग एवं काम के दबाव का पहला शिकार कसरत होती है जो स्वस्थ रहने के लिए जरूरी है। वास्तव में ऐसा नहीं होना चाहिए। यदि आप जीवन में अपनी छाप छोडऩा चाहते हैं तो स्वस्थ रहना होगा ताकि आप सफलता के लिए बारम्बार प्रयास कर सकें। किसी भी ऐसे डर को पैदा न होने दे जो आपको रोकती है कि ये सही समय नहीं है। हर क्षण सही एवं शुभ है। बस इसकी आवश्यकता है कि एक बार उद्देश्य बनाकर मैदान में कूदा जाये। यदि आप प्रयास ही नहीं करेंगे तो सफलता की उम्मीद कैसे कर सकते हैं। इसके लिए आपको उचित समय पर उचित रवैया एवं व्यवहार विकसित करना होगा। हमें अपने दिमाग को इस भांति प्रशिक्षित करना चाहिए कि वह हर उस चीज को बाहर करे जो हमारे लिए आवश्यक नहीं है। हमारा लक्ष्य हमारे दिमाग में स्वत: होना चाहिए। यदि आप ऐसा करते हैं तो लक्ष्य प्राप्ति से आपको कोई रोक नहीं सकता है।
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