बुधवार, 15 दिसंबर 2010
झूठ न बोलाए लूट
सीबीआई के 80 अधिकारियों के एक दल ने बुधवार तड़के ही राजा और अन्य अधिकारियों के आवासों पर छापे की कार्रवाई शुरू कर दी। द्रमुक सांसद राजा को 14 नवंबर को दूरसंचार मंत्री के पद से इस्तीफा देना पड़ा था। क्योंकि 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन मामले में सरकारी खजाने को 1.76 लाख करोड़ के नुकसान को पहुंचाने के लिए कैग की रिपोर्ट में राजा को आरोपित किया गया था। राजा पर यह भी आरोप है कि उन्होंने ऐसी कंपनियों के पक्ष में नियमों में हेरफेर किया, जो स्पेक्ट्रम लाइसेंस पाने के लिए योग्यता नहीं रखती थी। बहरहाल, 2जी घोटाले की जांच में पूर्व संचार मंत्री ए राजा के खिलाफ क्या होगा यह तो वक्त बतायेगा, लेकिन हकीकत यह है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई करने वाला सरकारी तंत्र बड़ा लाचार है। देश की सबसे हाई प्रोफाइल जांच एजेंसी सीबीआई के पास भ्रष्ट राजनेताओं के खिलाफ अभियानों में सफलताओं का जबर्दस्त टोटा है। पूर्व संचार मंत्री सुखराम को छोड़ यह जांच एजेंसी किसी राजनेता को सजा के कठघरे तक नहीं पहुंचा सकी है। झारखंड मुक्ति मोर्चा के सांसदों की खरीद, चारा घोटाला, हवाला कांड, ताज कॉरिडोर घोटाला, लालू प्रसाद और जयललिता के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति से लेकर छत्तीसगढ़ में विधायकों की खरीद-फरोख्त तक सीबीआई ने बड़े राजनेताओं के खिलाफ अनेक मामले दर्ज किए, लेकिन नतीजा सिफर निकला। ए. राजा ने जो पैसे की लूट की, वो पैसा कहीं और भी गया होगा। वो ऐसी जगह गया होगा जहां से सत्ता संचालित होती है। जब स्पैक्ट्रम अलाट हुआ तभी से कांग्रेस और खासकर इसका नेतृत्व इस खेल में आकंठ शामिल है। तभी कांग्रेस की अगुवाई वाली सरकार ने कथित रूप से 6000 लोगों के कॉल रिकार्ड किए जिसमें से कुछ अभी लीक किए गए हैं। ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि कांग्रेस आलाकमान जानता था कि इतना बड़ा राज एक न एक दिन जरूर प्रकाश में आएगा। उस वक्त कांग्रेसी आस्था के मंदिर को बचाने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाएगा। भले ही इसमें अपनों की ही बलि क्यों न लेनी पड़े। वाकई सत्ता कितनी क्रूर होती है, यह मामला इसका उदाहरण भर है! गोलपोस्ट शिफ्ट करने की इस कांग्रेसी साजिश में भले ही डीएमके जैसे भरोसेमंद साथी और कुछेक 'स्वामीभक्त लेकिन अदना सेÓ पत्रकारों की बलि ही क्यों न देनी पड़े, इससे कांग्रेस को कोई फर्क नहीं पड़ता। कांग्रेस के तमाम सिपहसलार और योजनाकार इस खेल में जुटे हुए हैं कि इस आग की लपटों को आलाकमान के महल तक न आने दिया जाए। अगर वो लपटें आलाकमान तक पहुंची तो स्पेक्ट्रम घोटाला, कांग्रेस के लिए बोफोर्स से भी ज्यादा खतरनाक हो सकता है। पार्टी जानती है अगर एक बार जनता में यह बात फैल गई तो इसमें आस्था का यह मंदिर दूषित हो जाएगा। मुमकिन है कि इसी वजह से सरकार जेपीसी की मांग स्वीकार नहीं कर रही। कांग्रेस जेपीसी की मांग पर संसद में जारी गतिरोध को लोकतंत्र की बुनियादी परंपरा से जोड़ कर विपक्ष को कठघरे में खड़ा करने में जुटी है। लेकिन आज कांग्रेस सत्ता में है। इसलिए लोकतांत्रिक परंपराओं की रक्षा करने की जिम्मेदारी कांग्रेस पर ज्यादा है। आज कांग्रेस जीपीसी की जांच से इनकार करके लोकतांत्रिक परंपराओं को तोडऩे का काम कर रही है। दुनिया के इतिहास में अब तक की सबसे बड़ी लूट पर लीपापोती की इस सरकारी साजिश से जाहिर होता है कि उसे डर है कि कहीं इसमें कांग्रेस आलाकमान का नाम न सामने आ जाए। नीरा राडिया और दूसरे औद्योगिक घराने तो बहाने हैं, खेल तो कुछ और ही है। सुब्रमण्यम स्वामी को भले ही लोग खुराफाती मानें लेकिन मौजूदा हालात में वो अपनी जगह जायज लगते हैं। जब सुब्रमण्यम स्वामी कहते हैं कि ए राजा की सुरक्षा बढ़ाई जानी चाहिए, तो वो एक आशंका की तरफ इशारा कर रहे होते हैं। आखिर सत्ता जब दांव पर लगी हो तो यह स्थिति पैदा करने में क्या फर्क पड़ता है जब कहा जाने लगे कि ए राजा कभी इस महान भारत के टेलिकॉम मंत्री हुआ करते थे!
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