मंगलवार, 28 दिसंबर 2010

मूल मुद्दे से भटकाव

किसी घोटाले का पर्दाफाश करना तो आसान है, पर दोषी शख्स को सजा दिलाना मुश्किल है। खास तौर से लोकतांत्रिक भारत में। घोटाले के लिए जिम्मेदार कौन है, यह समझना बेहद जरूरी है। चूंकि हम इस मूल मुद्दे को भूल गए हैं, इससे दोषी शख्स आसानी से बच रहे हैं। गौरतलब है कि सूचनाओं की भरमार से मूल मुद्दा लुप्त होता जा रहा है। बहस मूल मुद्दे से भटक रही है। जरूरी है कि स्थितियों को सरल बनाते हुए हम मूल विषय पर ही ध्यान केंद्रित करें। घोटाला यह है कि नीतियों को बदल कर कुछ कंपनियों को लाभ पहुंचाया गया। इसके बदले में मंत्री और नौकरशाह भी लाभान्वित हुए हैं। 2जी स्पेक्ट्रम मामले में टेलीकॉम मंत्री ए.राजा ने कुछ कंपनियों को लाभ पहुंचाने के लिए लाइसेंस देने की प्रक्रिया ही पूरी तरह से बदल दी। ऐसा नौकरशाहों की मिलीभगत से ही संभव हो सकता है। यह घोटाला सिर्फ लॉबिंग करने वालों और पत्रकारों की बातचीत या रतन टाटा की निजता की समस्या भर नहीं है। ये तो इस घोटाले से जुड़ी साइड स्टोरी हैं, प्रमुख दोषी तो अब भी आजाद घूम रहे हैं। उन्हें सजा दिलाने की जिम्मेदारी आखिर किसकी है। विपक्ष ने अपने विवेक से संसद की कार्यवाही को चलने नहीं दी, कारण था सरकार त्राहि-माम करेगी और देश के सामने उसे बेनकाब किया जाएगा। मगर भाजपा नेता व संसद की लोकलेखा समिति के अध्यक्ष मुरली मनोहर जोशी ने विपक्ष की जेपीसी की मांग की हवा निकाल कर रख दी है। सोमवार को बतौर पीएसी अध्यक्ष विधिवत संवाददाता सम्मेलन में उन्होंने उन तर्कों को ध्वस्त कर दिया जो विपक्ष, खासतौर पर भाजपा, के नेताओं ने जेपीसी के पक्ष में दिए थे। जोशी के इन बयानों से भाजपा नेताओं के माथे पर बल पड़ गया है। इससे देशभर में जेपीसी की मांग के लिए रैलियां करने की राजग की मुहिम पर असर पडऩा भी लाजिमी है। स्पेक्ट्रम घोटाले पर पीएसी की नौवीं बैठक के बाद मीडिया से मुखातिब जोशी ने सबसे पहले विपक्ष के इस तर्क को धराशायी कर दिया कि पीएसी केवल सीएजी की रिपोर्ट की छानबीन करती है। जोशी के अनुसार, सीएजी पीएसी का सहायक जरूर है और उसे एक विशेषज्ञ के तौर पर जानकारी देता है मगर पीएसी का दायरा इससे कहीं ज्यादा बड़ा है। और तो और जोशी ने 2-जी स्पेक्ट्रम घोटाले की राशि पर भी प्रश्नचिन्ह लगा दिया। यहां यह जानना जरूरी है कि जेपीसी आखिर क्या है और यह क्या अधिकार देती अथवा रखती है। दरअसल, संसद के कार्यों में विविधता तो है, साथ ही उसके पास काम की अधिकता भी रहती है। चूंकि उसके पास समय बहुत सीमित होता है, इसलिए उसके समक्ष प्रस्तुत सभी विधायी या अन्य मामलों पर गहन विचार नहीं हो सकता है। अत: इसका बहुत-सा कार्य समितियों द्वारा किया जाता है। संसद के दोनों सदनों की समितियों की संरचना कुछ अपवादों को छोड़कर एक जैसी होती है। इन समितियों में नियुक्ति, कार्यकाल, कार्य एवं कार्य संचालन की प्रक्रिया कुल मिलाकर करीब एक जैसी ही है और यह संविधान के अनुच्छेद 118 (1) के अंतर्गत दोनों सदनों द्वारा निर्मित नियमों के तहत ही काम करती है। जेपीसी के पास घोटाले में शामिल कंपनियों को समन जारी करने का भी अधिकार रहता है। सरल शब्दों में कहें तो इस तरह संसद में प्रत्येक पार्टी को प्रश्न दागने का अधिकार होगा, मानो सभी सरकार में हों। बहरहाल, बात आगे बढ़ गई है। 2जी स्पेक्ट्रम मामले पर जेपीसी जांच की माँग पर अड़ी भाजपा की ओर से घोषणा की गई है कि वो 2जी स्पेक्ट्रम मामले की संयुक्त संसदीय जांच समिति (जेपीसी) से जाँच के मुद्दे पर गतिरोध समाप्त करने के लिए आयोजित सर्वदलीय बैठक में हिस्सा लेगी। लोक सभा अध्यक्ष मीरा कुमार की ओर से 2जी स्पेक्ट्रम मामले पर 30 दिसंबर को सर्वदलीय बैठक आयोजित करने की योजना है। लूट के इस बड़े झूठ की गांठें और उलझती जा रही हैं और लगता है कि मांग और पूर्ति के बीच कहीं किसी और सिद्धांत की ही पुष्टि न हो जाए।

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