रविवार, 31 अक्तूबर 2010

सवा अरब स्वर्गवासी

अतिथि देवो भव: हमारा मूल मंत्र है। इसे हर जगह पोते हुए देखा जा सकता है। आप बेशक आएं। धरती के इस स्वर्ग से रू-ब-रू हों। यहां सवा अरब स्वर्गवासी हैं। रहमों-करम पर ही जिंदा रहने की आदत डाल दी गई है। कहने पर सिर हिलता है, कहने पर जबान चलती है, कोड़ा देख कुलांचे याद आ जाती है। रोबोट आज आपकी देने होगी, हमारी व्यवस्था ने तो सदियों पहले से लोगों को गुलाम रोबोट बना रखा है। विविधता से भरे इस देश का दर्शन- एक बानगी। अगर दीवालों पर पान-पीक के धब्बे मिले तो इन्हें हमारी सांस्कृतिक परंपरा समझिये जो आपको दफ्तरों, इमारतों (खासकर सरकारी) और यत्र-तत्र-सर्वत्र नजर आएंगे। ये धब्बे दीवालों पर कला के अच्छे नमूने पेश करते हैं। इनकी फोटो ले जाइये शायद कोई आर्ट गैलरी इन्हें खरीद ले। जहां तक खड़ें होकर खूले में पेशाब करने का सवाल है ये तो हमारी समृद्ध विरासत का प्रतीक है क्योंकि जनाब खुली हवा में ऐसा करने से जो सुख मिलता है वो बंद शौचालयों/मूत्रालयों में कहां। अब देखिये ना बिन्देश्वरी पाठक जी ने सुलभ शौचालय तो बनाए पर वो उनके प्रयोग का पैसा मांगते है। अब आप ही बताएं की जब सड़क पर मुफ्त करने की आजादी है तो पैसा क्यों देना। रही बात कुत्तों की सो जनाब हम अपने कुत्तों का बहुत आदर करते हैं पर सरकारी कुत्तों यानि बुल-डॉग और जर्मन शेपर्ड आदि से डरते हैं। वैसे भी इन कुत्तों का कमाल आप देख ही रहे हैं क्योंकि ये रोटी की जगह हजार-हजार के करंसी नोट खाते हैं। सीधी-सी बात है सरकारी नेता और बाबू की नजर में ही कॉमन-मैन गली के कुत्ते से ज्यादा कुछ नहीं है। हमारे पूर्वजों ने हमेशा कुश घास बिछा कर जमीन पर सोने का सबक सिखाया है। परदेसी हैं और सुरक्षा की गारंटी लेना चाहते हैं तो अब क्या बताएं। चिंता की कोई बात नहीं है, यहां पर कोई परिंदा भी पर नहीं मार सकता। हमारी पुलिस होती तो सौ का नोट देख कर ही आतंकवादी को घूसने देती पर अब सेना के लोग इस काम में जुटे हैं और वे काफी हद तक ईमानदार हैं। धमाके होने के बाद इन्हें ही तो कमान संभालनी पड़ती हैं। बचेंगे तो आपकी हिफाजत के लिए सरकार इन्हें झोंक देगी। इसलिए बेहिचक कदम बढ़ाएं, स्वर्गवासी स्वागत के लिए तैयार हैं।

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