बुधवार, 15 दिसंबर 2010
गंधारी की आंखों पर पट्टी
देश नित ने घोटालों से दो-चार हो रहा है। एक-दो नहीं अनगिनत। छोटे भी नहीं विशालकाय। लेकिन सरकार मूकदर्शक बनी है। उसने गंधारी की की तरह आंखों पर पट्टी बांध ली है। इसे धृतराष्ट्रवाद का नाम दें तो कोई अतिश्योक्ति नहीं। भारत की जनता महाभारतकालीन हस्तिनापुर की प्रजा की तरह हैरान है। प्रचलित लोक-मानदंडों के अनुसार, मौन होकर भ्रष्टाचार का खेल देखने वाला व्यक्ति भ्रष्टाचारी के समान ही दोषी कहा जाता है। इसलिए लोक का धन लुटता हुआ देखने वाले सोनिया और मनमोहन लोक-अपराधी हैं। इसके लिए जनता उनको कभी माफ नहीं करेगी।सारा देश जानता है कि कांग्रेस नेतृत्ववाली संप्रग सरकार में पत्ता भी कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के इशारे पर हिलता है, फिर भी वे चुप हैं। वे सरकार में कुछ नहीं होते हुए भी उसकी सब कुछ हैं। सत्ता की सारी शक्ति उनमें निहित है। सारे संघीय मंत्री, यहां तक कि प्रधानमंत्री भी, उनकी बातों का अक्षरश: पालन करते हैं। इसी कारण विपक्षी दलों के नेता उनको 'सुपर पीएमÓ कहते हैं और डॉ. मनमोहन सिंह को 'रबर स्टैंप पीएमÓ। यानी केंद्रीय मंत्रिपरिषद के नाम मात्र के प्रमुख डॉ. सिंह हैं, जबकि वास्तविक प्रमुख सोनिया। इसी कारण मंत्रिपरिषद के सदस्य मनमोहन की अपेक्षा सोनिया की बातों पर ज्यादा गौर फरमाते हैं। जब ए. राजा ने सरकार को ब्लैकमेल करना शुरू किया तो ऐसा नहीं है कि सोनिया इससे बे-खबर थीं। राजा ने मनमानी करने के लिए मनमोहन पर लगातार दबाव बनाया। मनमोहन ने राजपाट जाने के डर से उनकी बातें मान ली। फलत: वर्ष 2006-07 में 2जी स्पेक्ट्रम के आवंटन का मामला मंत्रिमंडल समूह के विषय से परे कर दिया गया। अब ए. राजा वास्तव में राजा बन गए थे। उन पर कोई बंदिश नहीं रह गई थी। वह 2जी स्पेक्ट्रम की बंदरबाँट करने के लिए स्वतंत्र हो गए थे। चूँकि, वह यूपीए सरकार की सहयोगी पार्टी के नेता थे, इसलिए उनकी स्वतंत्रता कुछ ज्यादा ही बढ़ गई थी। वह सरकार से भी मजबूत दिखने लगे थे। उनके क्रियाकलापों पर न तो ईमानदार कहे जाने वाले मनमोहन को चिंता थी और न ही सोनिया को। बेईमानी पर पर्दा डालना बेईमानी नहीं?:दिल्ली के सत्ता के गलियारे में डॉ. मनमोहन सिंह, ए. के. एंटनी और प्रणब मुखर्जी निजी जीवन में बेहद ईमानदार माने जाते हें। क्या खुद ईमानदार रहना ही काफी है? क्या दूसरों की बेईमानी पर पर्दा डालना बेईमानी नहीं है? दरअसल, सत्ता के वैभव में एक ऐसा आलोक होता है जिसके प्रचण्ड तेज में अनेक प्रतिभावान और ईमानदार व्यक्ति विलुप्त हो गए हैं। लगता है कि मनमोहन भी इसी के शिकार हो गए थे। हालांकि मनमोहन ने जब स्पेक्ट्रम का मामला मंत्रिमंडल समूह से परे रखने का फैसला किया, तो ऐसा नहीं था कि सोनिया को इसकी जानकारी नहीं थी। इस विषय पर मनमोहन ने अकेले निर्णय ले लिया होगा, यह बात भी आसानी से हजम होने वाली नहीं है। यानी भीष्म की तरह 'राजमाताÓ सोनिया भी पापाचार के दौरान मौन रहीं और सारा खेल-तमाशा देखती रहीं। फलत: राजा ने 1.76 लाख करोड़ रुपए का चूना लगा दिया, जो देश का सबसे बड़ा घोटाला सिद्ध हो रहा है। सर्वोच्च न्यायालय हर दिन सरकार के कान ऐंठ रहा है। पूर्व दूरसंचार मंत्री ए. राजा द्वारा प्रधानमंत्री की सलाह न मानने के तथ्य को सर्वोच्च रेखांकित कर रहा है। 2-जी स्पेक्ट्रम घपले पर सर्वोच्च न्यायलय में याची डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी द्रविड़ मुनेत्र कषगम और कांग्रेस को संचालित करने वाले परिवारों द्वारा घपले का लाभ उठाने का आरोप लगाते हैं लेकिन वे प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह को सरकार का एकमेव ईमानदार व्यक्ति करार देते हैं। डॉ. स्वामी शक व्यक्त करते हैं कि स्पेक्ट्रम घपले का लाभ लेने वाले करुणानिधि परिवार के लोग ए. राजा की हत्या करवा सकते हैं। अब तो यह केंद्रीय जांच ब्यूरो ही बता सकता है कि उसे पूर्व दूरसंचार मंत्री ए. राजा और उनके सहयोगियों के यहां छापों के दौरान क्या मिला और वह कितना महत्वपूर्ण है, लेकिन देर-बहुत देर से की गई इस कार्रवाई ने इस धारणा पर मुहर लगा दी कि सीबीआई एक कठपुतली जांच एजेंसी है और वह अपने विवेक से काम नहीं करती। घोटाले के आरोपों से घिरा कोई महामूर्ख ही ऐसा होगा जो खुद को परेशानी में डालने वाले दस्तावेज अपने पास संभाल कर रखेगा। क्या सीबीआई यह कहना चाहती है कि राजा और उनके सहयोगी उसके छापों का इंतजार कर रहे थे? सीबीआई को इस पर शर्मिंदा होना चाहिए कि उसने संदिग्ध घोटालेबाजों और उनके सहयोगियों के यहां इस मामले में रिपोर्ट दर्ज होने के 13 माह बाद छापे डालने की जरूरत समझी। क्या 13 माह इस पर विचार-विमर्श करने में लग गए कि आगे क्या किया जाना चाहिए या फिर उसे कुछ करने की इजाजत ही नहीं मिली? इस पर भी गौर करें कि सीबीआइ को तब भी होश नहीं आया जब खुद सुप्रीम कोर्ट ने करीब 10 दिन पहले उससे यह पूछा था कि आखिर राजा से कोई पूछताछ क्यों नहीं हुई? अभी राजा के यहां केवल छापे ही पड़े हैं। कोई नहीं जानता कि सीबीआइ उनसे पूछताछ कब करेगी? आश्चर्य नहीं कि यह पूछताछ हो ही न, क्योंकि इसके लिए उसे केंद्र सरकार की हरी झंडी चाहिए होगी। और कोई देश होता तो शायद अब तक राजा को गिरफ्तार कर लिया जाता, लेकिन फिलहाल ऐसा कुछ होने के आसार नजर नहीं आ रहे हैं। न केवल द्रमुक राजा का बचाव करने में लगी हुई है, बल्कि केंद्र सरकार के अनेक नेता भी यह साबित करने में लगे हुए हैं कि उन्होंने कुछ गलत नहीं किया है। संचार घोटाले की कहानी भयानक होती जा रही है। पहले कहा गया था कि इसमें निवेश और इसकी कमाई की तलाश दस देशों में की जानी है मगर राजा और उसके सहयोगियों के यहां जो दस्तावेज और जानकारियां मिली हैं उनसे रातों रात यह सूची 22 देशों की हो गई है। सीबीआई के अधिकारी एक साथ इतने देशों में पड़ताल करने के लिए कम पड़ रहे हैं। अभी यही एक परेशानी नहीं है। आजाद भारत के इस सबसे बड़े घोटाले में देश के कई सबसे बड़े नाम जुड़े हुए हैं। नीरा राडिया के साथ उसके ग्राहकों की जो बातचीत टेप की गई है उनमें अदालत के फैसले बदलवाने से ले कर रिश्वत खिलाने तक के बहुत सारे सबूत मिले हैं और इन महाबली ग्राहकों से पूछताछ की जानी है। सर्वोच्च न्यायालय ने इसकी सहमति दे दी है। अब इस दृश्य की कल्पना करिए कि मुकेश अंबानी अंदर स्टूल पर बैठ कर अधिकारियों से घिरे और सवालों के जवाब देते नजर आ रहे हैं। रतन टाटा बाहर बैंच पर दो हवलदारों के बीच बैठे हुए हैं। वीडियोकॉन के वेणु धूत को पुलिस की एक गाड़ी ले कर आ रही है। ए. राजा रिकॉर्ड के आधार पर याद करने की कोशिश कर रहे हैं कि कितना पैसा आया था और कितना गया था। इसमें यह भी जोड़ लीजिए कि बरखा दत्त और वीर सांघवी भी एक कमरे में बंद हैं और प्रभु चावला के आने का इंतजार किया जा रहा है ताकि पूछताछ शुरू हो सके। नीरा राडिया नकली पासपोर्ट पर फरार हो चुकी हैं। राजा के सहयोगी आईएएस अधिकारी और भूतपूर्व संचार सचिव जमानत की अर्जियों के साथ अदालतों में बैठे हैं। जो तलाशियां ली गई हैं और जो बरामदगी हुई हैं उसमें पूरा हिसाब नहीं मिल रहा है। एक लाख सत्तर हजार करोड़ रुपए का हिसाब कंप्यूटर भी ठीक से नहीं रख सकता। विश्लेषण के लिए टैक्स विशेषज्ञों को बुलाया गया है। बहुत सारे डॉक्टरों की जरूरत पड़ी है क्योंकि पूछताछ के दौरान कई महान लोग बेहोश होने लगे हैं। यह किसी फिल्म की पटकथा नहीं हैं बल्कि सीबीआई ने जो भावी दृश्य की फाइल बनाई है उसके कुछ पन्ने हैं। सीबीआई ने सरकार से कहा है कि यह मामूली मामला नहीं है, इसके लिए कई मोर्चो पर कई लोगों की एक साथ जरूरत पड़ेगी और पूछताछ तथा खोजबीन में बाधा नहीं पड़े इसलिए मौके पर डॉक्टरों और वकीलों की व्यवस्था भी करनी पड़ेगी। रतन टाटा और नीरा राडिया की सबसे ज्यादा घनिष्ठता थी इसलिए ये लोग सबसे विकट तौर पर फंसे हुए हैं। फिलहाल सीबीआई को नीरा राडिया पर तीन सौ करोड़ डॉलर की विदेशी मुद्रा हवाला के जरिए मंगाने का शक है और अगर यह शक सही निकला और अदालत में साबित हो गया तो नीरा को दस साल तिहाड़ जेल में काटने पड़ सकते है। वहां वे अपने मोबाइल फोन को सबसे ज्यादा मिस करेंगी। बरखा दत्त, वीर सांघवी और प्रभु चावला में जेल में रहने का अनुभव सिर्फ चावला को है और वह भी आपातकाल के दौरान कुछ महीने वे जेल में रहे थे और फिर माफी मांग कर बाहर निकल आए थे। यहां तो जीते जागते देशद्रोह के सबूत हैं, उनसे बचना आसान नहीं हैं और कोई माफी काम नहीं आएगी। 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला अब दूरसंचार कंपनियों के बीच आपसी लड़ाई में तब्दील होता दिख रहा है। स्पेक्ट्रम आवंटन में पक्षपात से शुरू हुआ यह घोटाला मोबाइल टेलीफोनी की दो प्रौद्योगिकियों-सीडीएमए और जीएसएम पर मोबाइल सेवा देने वाली कंपनियों को फायदे-नुकसान पर तू-तू-मैं-मैं से जुड़ गया है। राज्यसभा सांसद एवं उद्योगपति राजीव चंद्रशेखर और टाटा समूह के प्रमुख रतन टाटा के बीच शुरू हुए आरोप-प्रत्यारोप से साफ है कि मामला अब 2जी स्पेक्ट्रम के आगे निकल गया है। रतन टाटा ने गुरुवार को राजीव चंद्रशेखर के उन आरोपों को सिरे से नकार दिया कि समूह की कंपनी टाटा टेलीसर्विसेज को हुए स्पेक्ट्रम आवंटन में नियमों की अनदेखी हुई और कंपनी को बारी से पहले आवंटन हुआ। टाटा टेलीसर्विसेज सीडीएमए आधारित मोबाइल सेवा प्रदान करती है। टाटा ने कहा कि 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन की प्रक्रिया ने दूरसंचार क्षेत्र में जीएसएम आपरेटरों के वर्चस्व को तोड़ा है। उन्होंने कहा कि कि यदि इस मामले की जांच होनी है तो वह 2001 से ही होनी चाहिए। टाटा ने कहा है कि चंद्रशेखर के आरोप राजनीति से प्रेरित हैं और उनका मकसद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को असहज करना है। राजीव चंद्रशेखर मोबाइल आपरेटरों के संगठन सेलुलर ऑपरेटर एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सीओएआई) के अध्यक्ष रह चुके हैं। जीएसएम आपरेटरों के इस संगठन में भारती, वोडाफोन, आइडिया और एयरसेल अन्य ताकतवर सदस्य हैं। इसी संगठन ने सीडीएमए प्रौद्योगिकी पर मोबाइल सेवा देने वाली कंपनियों को जीएसएम स्पेक्ट्रम आवंटित करने के सरकार के फैसले का विरोध किया था। सीडीएमए प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल टाटा टेलीसर्विसेज और रिलायंस कम्युनिकेशन कर रहे हैं। हालांकि टाटा का बयान आने के बाद चंद्रशेखर ने कहा कि रतन टाटा उनके द्वारा उठाए गए मुद्दों को भटका रहे हैं।बीपीएल टेलीकॉम नाम की मोबाइल कंपनी चला चुके राज्यसभा सांसद राजीव चंद्रशेखर ने दो दिन पहले ही अपने एक खुले पत्र में रतन टाटा पर आरोप लगाया था कि टाटा टेलीसर्विसेज को नियम तोड़कर स्पेक्ट्रम आवंटित किया गया। इसकी वजह से सरकार को 19074.80 करोड़ रुपये का नुकसान उठाना पड़ा। टाटा का कहना है कि चंद्रशेखर ने उन जीएसएम ऑपरेटरों का जिक्र क्यों नहीं किया जिनके पास अतिरिक्त स्पेक्ट्रम है और वो भी मुफ्त का? केंद्र सरकार ने जानबूझकर सीबीआई को नख-शिख-दंत विहीन बना रखा है ताकि उसका मनमाना राजनीतिक इस्तेमाल किया जा सके। वैसे तो केंद्रीय सतर्कता आयोग को यह जिम्मेदारी दी गई है कि वह सीबीआई पर निगाह रखे, लेकिन वह खुद भी अक्षम है और अब तो इस आयोग का मुखिया उन पीजे थॉमस को बना दिया गया है जो एक मामले में खुद ही अभियुक्त हैं। इसके अतिरिक्त यह भी किसी से छिपा नहीं कि जब वह दूरसंचार सचिव थे तो राजा की जी हुजूरी करने में लगे हुए थे। बेहतर होगा कि सुप्रीम कोर्ट सीबीआई को केंद्र सरकार के शिकंजे से मुक्त कर वास्तव में स्वायत्ता संस्था बनाने की पहल करे। यदि ऐसा नहीं होता तो यह शीर्ष जांच एजेंसी और अधिक बदनाम ही होगी। कार्पोरेट घरानों ,बिचौलियों और दलालों ने मीडिया के नामचीन घोड़ों के साथ हमबिस्तरी की और सारे बिरादरी के मुंह पर कालिख पोत दिया। 2 जी स्पेक्ट्रम मामले में बरखा दत्त ,वीर संघवी और प्रभु चावला का नाम सामने आने से ये तो साबित हो गया कि हिंदुस्तान में पत्रकारों की एक बड़ी जमात कारपोरेट हाथों में या तो बिक चुकी है या फिर खुद को बेचने के लिए खड़ी है,मगर आश्चर्य ये है कि इस खुलासे के बावजूद भी बेशर्मी कम नहीं हुई। राजदीप जब प्रेस कल्ब में पत्रकारों को नैतिकता की शिक्षा दे रहे थे तब भी वो बेशर्मी नजर आ रही थी। एनडीटीवी ने जब बरखा दत्त के खिलाफ लिखने वाली ओपन पत्रिका को मुकदमे में घेरने की धमकी दी तब भी वो बेशर्मी नजर आ रही थी और अब भी नजर आ रही है जब इतना कुछ होने के बावजूद अखबार और टीवी चैनल बाजार में नंगा खड़ा होकर बोली लगा रहे हैं, नि:संदेह ये शर्म से मुंह छुपाने के वक्त है अगर शर्म से मुंह नहीं छुपा सकते तो अपने गालों पर अपने ही हाथों से थप्पड़ मार लें। 2 जी स्पेक्ट्रम के खुलासे में अब तक जो कुछ भी प्रतिक्रिया स्वरुप हो रहा है वो एक दो पत्रिकाओं को छोड़कर सिर्फ वेब मीडिया में ही नजर आ रहा है, लेकिन हिन्दुस्तानी पत्रकारिता के इसे काले अध्याय में अब तक बहुत से पन्ने खोले ही नहीं गए हैं। हर डर का अपना चरित्र होता है ,पर शायद अब समय आ गया है कि सारे भय को त्यागकर ठगों चोरों और दलालों के खिलाफ हल्ला बोल दिया जाए। राजा ने अपनी ताजपोशी के लिए मीडिया के जिन अय्यारों का इस्तेमाल किया उनके चेहरे पर से पर्दा हटाना सिर्फ जरूरी ही नहीं धर्म भी है। स्पेक्ट्रम घपले से संबंधित कुछ टेलीफोन वार्ताओं के सार्वजनिक होते ही हंगाम खड़ा हुआ। इन टेपों की जो स्क्रिप्ट जारी हुई है उनमें वीर संघवी (हिंदुस्तान टाइम्स के संपादकीय सलाहकार) और एनडीटीवी की समूह संपादक बरखा दत्त की भूमिका संदिग्ध नजर आती हैं। अगर हम नीरा राडिया से हुई बातचीत के टेपों को सुने तो पता चलता है कि नीरा ने पिछले 7 जुलाई 2009 को राजदीप सरदेसाई से बात की थी। वो प्राकृतिक गैस के दामों को लेकर मुकेश अम्बानी का दाहिना हाँथ कहे जाने वाला मनोज मोदी के साथ राजदीप से मिलना चाहती थी, लेकिन राजदीप ने उससे कहा कि वो ज्वाइंट मैनेजिंग डायरेक्टर समीर मनचंदा से मिल लें। यहाँ सवाल उठता है कि राजदीप ,मनोज और समीर की क्यूँ मुलाकात कराना चाहते थे ,और सबसे बड़ा सवाल ये उठता है कि गैस के दामों पर चर्चाएँ टीवी चैनल के न्यज बुलेटिन्स में होनी चाहिए कि मुकेश अम्बानी के कारखास नीरा राडिया के साथ, राजदीप को जवाब देना चाहिये ये कैसी नैतिकता ,कैसा आदर्श था। नीरा राडिया ने चार कंपनियां बनाई हैं और इनमें वैष्णवी कंसलटेंट प्राइवेट लिमिटेड सबसे पुरानी है। इसके अलावा रिश्ते बेचने की नोएसिस कंसलटिंग विटकॉम और न्यूकॉम कंसलटिंग भी दलाली का अच्छा खासा कारोबार कर रही है। ये पहली बार पता चला कि पिछले साल 21 अक्टूबर को सीबीआई ने नीरा राडिया के खिलाफ भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत मुकदमा दर्ज किया है। उनकी कंपनी नोएसिस पर आपराधिक साजिश रचने का इल्जाम हैं। इस जांच की जानकारी 16 नवंबर 2009 को सीबीआई की भ्रष्टाचार निरोधक शाखा के डीआईजी विनीत अग्रवाल ने आयकर महानिदेशालय में सतर्कता अधिकारी मीराब जैन को भेज दी थी। चार दिन बाद 20 नवंबर को इसका जवाब भी आ गया और चि_ी में साफ लिखा है कि नीरा राडिया के टेलीफोन को आयकर विभाग के आदेश पर निगरानी में डाल दिया गया। नीरा राडिया जो चारों कंपनियां चलाती है उन सभी के फोन टेप हुए। पता चला कि अपने कॉरपोरेट ग्राहकों के लिए नीरा राडिया ने संचार मंत्री ए राजा से कह कर कई बड़े और महंगे सौदे अपने ग्राहकों के हक में बदलवाए। सिर्फ चार महीने में हजारों करोड़ के सौदे हो गए। नीरा राडिया ने नए टेलीफोन ऑपरेटरों को सिखाया कि विदेशी निवेश कैसे छिपाया जा सकता है। नीरा राडिया के ए राजा के साथ संदिग्ध होने की हद तक अंतरंग संबंध है। राजा और राडिया सीधे मोबाइल पर प्रेमालाप करते है। सीबीआई के अधिकारियों के अनुसार जब मनमोहन सिंह अपना दूसरा मंत्रिमंडल बना रहे थे तो गुप्तचर रिपोर्ट दी गई थी कि ए. राजा के बहुत सारे आर्थिक स्वार्थ हैं इसलिए उन्हें कोई जिम्मेदार विभाग नहीं दिया जाए। मगर राजनैतिक मजबूरियों और नीरा राडिया के ताकतवर कॉरपोरेट ग्राहकों की मदद से आखिरकार राजा संचार मंत्री बन ही गए। सबूत सामने है। कैबिनेट के शपथ ग्रहण से ग्यारह दिन पहले नीरा राडिया के फोन टेप दस्तावेजों के अनुसार कॉरपोरेट लॉबी की पहल पर नीरा राजा को संचार मंत्री बनवाने में लगी हुई थी। कई बड़े पत्रकारों के नाम भी (हिन्दुस्तान टाइम्स के पूर्व सम्पादक वीर संघवी, एनडीटीवी की प्रबंध सम्पादक बरखा दत्त का नाम नीरा राडिया के साथ और उसके लाबिंग में तथाकथित मदद को लेकर चर्चा में है , और भी सुनामधन्य खबरनवीसों के नाम हैं ) इन दस्तावेजों में है। टाटा इंडिकॉम तो चलाता ही है और नई मोबाइल कंपनी एयरसेल में मैक्सिस कम्युनिकेशन और अपोलो के जरिए टाटा ही मालिक है। रतन टाटा वोल्टास के जरिए करुणानिधि के पत्नी के चार्टर्ड अकाउंटेंट के संपर्क में भी थी। एयरटेल के सुनील मित्तल लगातार कोशिश कर रहे थे कि राजा नहीं, दयानिधि मारन दोबारा संचार मंत्री बने। इस काम के लिए भी मित्तल ने राडिया से संपर्क किया। आयकर विभाग के गुप्त दस्तावेज बताते है कि स्वान टेलीकॉम, एयरसेल, यूनीटेक वायरलैस और डाटा कॉम को लाइसेंस और स्पेक्ट्रम के लाभ भी मिले। राडिया ने अपनी सभी कंपनियों में रिटायर्ड अफसरों को रखा हुआ हैं और वे बहुत काम आते है। कहा जाता है कि झारखंड के मुख्यमंत्री मधु कोडा टाटा समूह से एक सौ अस्सी करोड़ रुपए मांग रहे थे मगर राडिया ने राज्यपाल के जरिए मुफ्त में काम करवा दिया। जाहिर है कि यह सेवा नि:शुल्क नहीं हुई होगी। नीरा राडिया की कंपनिया टाटा के अलावा यूनीटेक, रिलायंस, स्टार समूह जैसे बड़े ब्रांड के लिए जनसंपर्क यानी दलाली कर रही है। इस दलाली में भी खूब खेल हो रहे हैं। स्वान को पंद्रह सौ सैतीस करोड़ रुपए में लाइसेंस मिला और कुछ ही दिन बाद इसका सिर्फ चौवालीस प्रतिशत हिस्सा संयुक्त अरब अमीरात के ईटीसैलेट को बयालीस सौ करोड़ में बेच दिया। यूनीटेक वायरलैस को स्पेक्ट्र लाइसेंस सोलह सौ इकसठ करोड़ में मिला और उन्होंने नार्वे की टेलनोर को साठ प्रतिशत शेयर इकसठ सौ बीस करोड़ रुपए में बेच दिया। ईमानदारी की कसम खाने वाले टाटा टेली सर्विसेज ने भी सिर्फ छब्बीस फीसदी शेयर जापान के डोकोमो को तेरह हजार दो सौ तीस करोड़ रुपए में बेचे। स्वान कंपनी ने तो और भी कमाल किया। चार महीने पहले चेन्नई की जेनेक्स एग्जिम वेंचर को तीन सौ अस्सी करोड़ रुपए के शेयर एक लाख रुपए में दे दिए। घपला साफ दिख रहा है। लेकिन इस घपले को पकडऩे वाले सीबीआई के मिलाप जैन का तबादला हो चुका है और आयकर विभाग अब कह रहा है कि उसने कभी नीरा राडिया का फोन टेप करने के आदेश दिए ही नहीं थे। नीरा राडिया के ग्र्राहकों में पीसीएस हैं, टाटा स्टील है, टाटा मोटर्स है, टाटा टेली सर्विसेज है, इंडियन होटल्स है, ट्रेंट इंटरनेशनल है, टाइटन है, सन माइक्रो सिस्टम है, आईटीसी है, जीएमआर है, स्टार है, सीमंस है, कोटक महिंद्रा है, चैनल वी है, ईबे है, अरेवा पावर्स है, रेमंड्स है और भारतीय उद्योग महासंघ भी है। आप समझ सकते हैं कि नीरा जी कितनी प्रतिभाशाली हैं। नीरा की कंपनियों की बोर्ड में मध्य प्रदेश काडर के आईएएस अफसर और टेलीकॉम रेगुलेटरी अथॉरटी के अध्यक्ष रहे प्रदीप बैजल हैं, बड़े सचिव पदों पर रहे सीएम वासुदेव हैं जो महाराष्ट्र के मुख्य सचिव थे, एस के नरुल्ला हैं जिन्हें और बड़ा दलाल माना जाता है और सीईओ के पद पर राजीव मोहन है जो दुर्भाग्य से नीरा वाडिया से पहले जेल जाएंगे। भलेमानुष(?) प्रधानमंत्री की बेचारगी साफ दिखाई देती है, वहीं द पायोनियर और दक्षिण के इक्का-दुक्का अखबारों को छोड़कर इस पूरे घटनाक्रम में राष्ट्रीय मीडिया(?) की अनदेखी और चुप्पी बहुत रहस्यमयी है। यहाँ तक कि पायोनियर और द हिन्दू अखबारों ने सीबीआई अधिकारियों की आपसी आधिकारिक चिठ्ठी-पत्री को सार्वजनिक क्यों नहीं किया यह भी आश्चर्य की बात है। गत कुछ माह से द पायोनियर ने इस पूरे घोटाले की परत-दर-परत खोलकर रखी है तथा करुणानिधि, प्रधानमंत्री तथा ए. राजा को लगातार परेशान रखा है। पिछले कुछ महीनों से दूरसंचार मंत्री ए राजा सतत खबरों में बने हुए हैं, हालांकि जितना बने होना चाहिये उतने तो फिर भी नहीं बने हैं, क्योंकि जिस प्रकार लालूप्रसाद के चारा घोटाले अथवा बंगारू लक्ष्मण रिश्वत वाले मामले में मीडिया ने आसमान सिर पर उठा लिया था, वैसा कुछ राजा के मामले में अब तक तो दिखाई नहीं दिया है। जबकि राजा के घोटाले को देखकर तो लालूप्रसाद यादव बेहद शर्मिन्दा हो जायेंगे, और उस दिन को लानत भेजेंगे जब उन्होंने दूरसंचार की जगह रेलवे मंत्रालय चुना होगा। साथ ही शशि थरूर भी उस दिन को कोस रहे होंगे जब उन्होंने खामख्वाह ट्विटर पर ललित मोदी से पंगा लिया और उनकी छुट्टी हो गई। संभव है कि तमाम घपलों की तरह यह घपला भी समय के साथ भुला दिया जाए। 1980 के दशक में बोफोर्स घपले पर देशव्यापी हंगामा खड़ा हुआ। बोफोर्स घपले की जांच के लिए संयुक्त संसदीय समिति बनी। सीबीआई ने भी इस मामले की जांच के लिए इंटरपोल तक से दशकों समन्वय किया। दशकों की जांच के बाद क्या हासिल हुआ? बस, वही ढाक के तीन पात। क्वात्रोची कथित कमीशन के जब्त खाते का धन भी '10 जनपथÓ के कारिंदे हंसराज भारद्वाज की मेहरबानी से पार करने में कामयाब हो गया। स्पेक्ट्रम घपलों पर बहस के बीच संसद चलाने के लिए हरसंभव प्रयास के बावजूद विफल होने वाले वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने चुनौती दी और कहा कि भाजपा को भ्रष्टाचार का आरोप लगाने का नैतिक अधिकार ही नहीं है।
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