बुधवार, 22 दिसंबर 2010
धीरे-धीरे महंगाई की मार
प्याज की आसमान पर पहुंची कीमत को थोड़ा नीचे लाने के लिए सरकार सक्रिय हो गई है। इसका असर भी दिख रहा है। इसके बाद सरकार डीजल और रसोई गैस के दाम बढ़ाने की तैयारी में है। इस पर अंतिम फैसला होना था, लेकिन इसे एक सप्ताह के लिए टाल दिया गया है। बीते सप्ताह ही पेट्रोल की कीमत में करीब 3 रुपये प्रति लीटर की भारी बढ़ोतरी हुई है। अब डीजल के दाम में दो रुपये प्रति लीटर बढ़ोतरी की तैयारी है। डीजल की कीमतों में बढ़ोतरी का सीधा असर माल ढुलाई और अंतत: तमाम चीजों की महंगाई पर पड़ता है। लेकिन जनता को एक झटके में करारी चोट देने के बजाय सरकार धीरे-धीरे महंगाई की मार देना चाहती है। इसीलिए सरकार ने 80 रुपये प्रति किलो तक पहुंच चुके प्याज की कीमत थोड़ी नीचे लाने की कोशिश की है। इस मामले में प्रधानमंत्री के दखल देते ही थोक बाजार में प्याज के दाम 30 फीसदी तक कम हो गए। जल्द ही खुदरा बाजार में इसका असर दिखने की उम्मीद है। अब यह तो साफ हो गया है कि प्याज हमारे खाने में जितनी महत्वपूर्ण जगह रखता है, इसका उतना ही महत्व राजनीति में भी है। सरकार प्याज के दामों को लेकर बहुत संवेदनशील रहती है, क्योंकि एकाध चुनाव में प्याज ने सरकार को चुनाव हरवा दिया है। इस वक्त भी प्याज के दामों में अचानक उछाल से सरकार चौकन्नी हो गई है। रातोंरात प्याज के दाम दुगने-तिगुने हो गए और जनता में हाहाकार मच गया। सरकार अब हरकत में आई है और उसने दाम घटाने की कवायद शुरू कर दी है। कांग्रेस के महासचिव राहुल गांधी ने कह दिया है कि महंगाई पर जल्द ही काबू पाया जाएगा और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह इस समस्या का हल निकालेंगे। मान लेने में कोई हर्ज नहीं। तब तक मानते रहते, आज मानने में कोताही क्यों? ईमानदार इंतजार बेसब्री को कम करता है। तमिलनाडु के कांग्रेसी सदस्यों से मुलाकात के दौरान उन्होंने कहा कि हम सुनिश्चित करेंगे कि दाम कम हों। इसे प्रधानमंत्री पर छोड़ दीजिए। एक कार्यकर्ता ने कहा कि लोग प्याज के आसमान छूते दामों सहित महंगाई से चिंतित हैं और लोग कांग्रेसी नेताओं से पूछ रहे हैं कि इस समस्या पर नियंत्रण के लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं। दरअसल, प्याज के दाम अचानक बढऩे की वजह यह बताई जाती है कि प्याज उपजाने वाले महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, गुजरात आदि के इलाकों में बेमौसम की बारिश से प्याज की फसल कम हुई है। इसके बाद मंडियों में प्याज की सप्लाई घटकर आधी रह गई और दाम आसमान छूने लगे। सरकार ने इसके बाद प्याज के निर्यात पर रोक लगाई और नैफेड से सस्ते दामों पर प्याज बेचने की घोषणा की। प्याज के दामों में हर दो-तीन साल बाद इस तरह का उछाल देखने को मिलता है लेकिन चीनी ही की तरह हमारी सरकार प्याज के दामों में इस असाधारण उछाल का कोई स्थायी उपाय नहीं कर पाई। एक बुनियादी समस्या यह है कि हमारी कृषि नीति का जोर गेहूं-चावल पर इस कदर है कि अन्य खाद्य वस्तुओं की उसमें उपेक्षा होती है। इस उपेक्षा का एक नतीजा दालों के दामों में अभी-अभी देखने में आया है, जबकि दालों के दाम सौ रुपये किलो तक पहुंच गए। दालें भी भारतीय भोजन का उतना ही अभिन्न अंग हैं, जितना गेहूं-चावल। दुनिया के ज्यादातर हिस्सों में प्रोटीन का मुख्य स्नोत मांस होता है, जबकि भारत में जो लोग मांसाहारी हैं, वे भी नियमित रूप से दालें खाते हैं, मांस उतना नियमित रूप से नहीं खाते। वही स्थिति प्याज की है। प्याज काफी वक्त से भारतीय भोजन का अनिवार्य हिस्सा बन गया है। किसी वक्त प्याज की खपत उतनी नहीं थी, इसलिए प्याज गरीबों का भोजन माना जाता था, अब गरीब-अमीर तकरीबन सभी के खाने में प्याज अनिवार्य है। ऐसे में प्याज के उत्पादन और वितरण के बेहतर इंतजाम किए जाने चाहिए। प्याज के साथ सुविधा यह है कि यह जल्दी खराब नहीं होता इसके सही भंडारण से इसकी सप्लाई और दामों को नियंत्रित किया जा सकता है। अब जो दाम बढ़े हैं या पहले भी जब बढ़े थे, तब प्याज के उत्पादन में गिरावट जितना बड़ा कारण था, उससे बड़ा कारण था जमाखोरी और कालाबाजारी। अगर सप्लाई घटी है, तो इसका अर्थ यह है कि कम उत्पादन को देखते हुए जमाखोरों ने प्याज की सप्लाई कम की है, ताकि दाम बढ़ाकर ज्यादा मुनाफा कमाया जा सके। सरकार इस स्थिति के लिए पहले ही सजग हो सकती थी, जब बारिश की वजह से फसल खराब होने का अंदेशा हुआ था। इसी तरह प्याज के निर्यात पर पाबंदी पहले ही लग जानी थी, प्याज के दामों के अस्सी-सौ रुपये प्रति किलोग्राम होने का इंतजार नहीं करना था। एक बार बढ़ जाने पर दाम घटाना मुश्किल होता है। अगर हम उपभोक्ता तक प्याज पहुंचाने का बेहतर तंत्र बना सके, तो ज्यादा फसल होने पर किसान को कम दाम नहीं मिलेंगे, न कभी प्याज सेब से ज्यादा महंगे होंगे। यह वक्त है, जब हम गेहूं-चावल के अलावा भी खाद्य वस्तुओं पर ध्यान दें, क्योंकि आर्थिक तरक्की के साथ-साथ ऐसी खाद्य वस्तुओं की खपत भी बढ़ती जाएगी, वरना हम हर बार आग लगने पर कुआं खोदते पाए जाएंगे।
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