बुधवार, 15 दिसंबर 2010
असमानता का काहिल दर्द
स्त्री और पुरूष के बीच की असमानता, मर्द की तुलना में उसकी गौण स्थिति उसके उदार रूप-संरचना, स्वभाव, व्यवहार को विकृत कर देती है। वह सभी भूमिकाओं को निभाते हुए अपने प्रति सबसे ज्यादा गैरजिम्मेदार होती है। अनेक प्रकार की भिन्नताओं तथा बहुलताओं के बावजूद वे पितृसत्ताक समाज में पीडि़त, शोषित की एकजुट सहभावना से जुड़ी होती हैं। परम्परागत महिला पुरुष के सामने न केवल अभिनय करने बल्कि झूठ बोलने, आडंबर करने के लिए बाध्य होती है। यही कारण है कि वह अपने ही समान अन्य औरतों से सहभाव महसूस करती है। किंतु इस सहभाव की भी अपनी दिक्कत है जो आदर्श मित्रता के लिए बाधक है। पहली यह कि स्त्री का व्यक्तित्वहीन होना। व्यक्तित्व के अभाव में वे स्वयं को परे रखकर अपने संबंधों का चुनाव और निर्माण करती हैं। व्यक्तित्व एवं वैयक्तिकता का नकार उनमें आपसी समानता तथा सहभाव के बावजूद शत्रुता का सृजन करता है। स्त्रियों में मुश्किल से सह-भाव सच्ची मित्रता में बदलता है। वे पुरूषों से अधिक संलग्नता अनुभव करती हैं। वे सामूहिक रूप से पुरूष-जगत का सामना करती हैं। प्रत्येक स्त्री उस विश्व की कीमत अपनी निजी मान्यता के आधार पर ऑंकना चाहती है। स्त्रियों के संबंध उनके व्यक्तित्व पर आधारित नहीं होते। वे साधारणत: एक-सा ही अनुभव करतीं हैं और इसी कारण शत्रुता के भाव का जन्म होता है। स्त्रियाँ एक-दूसरे को सहजता से समझ लेती हैं इसलिए वे आपस में समानता का अनुभव तो करती हैं, पर इसी कारण वे एक-दूसरे के विरुद्ध भी हो जाती हैं।Ó आवश्यक है कि स्त्री स्त्रीत्व की मान्य पराधीनता से मुक्त हो। उसकी शिक्षा-दीक्षा उसे आत्मनिर्भर, व्यक्तित्व सम्पन्न बनाए ताकि वह निजी अस्मिता एवं स्वतंत्रता के महत्व को समझ सके। वह सालों साथ रहकर भी परिवार और सदस्यों से मित्रवत नहीं हो पाती। विवाह के पश्चात की स्थितियाँ कहीं ज्यादा भयानक और निर्मम हो जातीं हैं। अपनी माँ, बहनों के बाद पति की माँ, बहन, भाभी का लगातार साथ व साहचर्य भी उसे घनिष्ठ मित्रता बोध से वंचित रखता है। औरत निज की अवहेलना पर बनाए संबंधों का खामियाजा वह उम्र भर भुगतती है। उसे स्वयं से प्यार करना सीखना होगा। खुद से द्वेषरत स्त्री किसी से प्रेम नहीं कर पाती। मित्रता नहीं कर पाती। उदासी, खिन्नता से घिरी वह निरन्तर असुरक्षित महसूस करती है। इसलिए उसे खुद की इयत्ता-चेतना से संपन्न होना होगा ताकि वह अपनी शक्ति, नि:स्वार्थ प्रेम की क्षमता को पहचान सके।
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