बुधवार, 15 दिसंबर 2010
चमचों का अभिवादन
क्या समाज मैं बस दो क्लास होते हैं एक लीडर और एक चमचा? लीडर तो आज कल नजर नहीं आते, हाँ चमचे जरूर नजर आते हैं। कुछ लोग जो अपने आप को लीडर कहते हैं किसी न किसी रूप मैं वह भी चमचे ही हैं। भारत की हर राजनातिक पार्टी मैं तरक्की का एक ही मापदंड है चमचागिरी। हाँ तरक्की के साथ साथ कुछ धन भी भेंट करना होता है पर केवल धन तरक्की नहीं दिला सकता। सरकारी दफ्तरों मैं तो बिना चमचागिरी के आप साँस भी नहीं ले सकते। गैर-सरकारी दफ्तरों और कारखानों मैं भी चमचागिरी का बोलबाला हो रहा है। जनता के पैसे से छपे सरकारी विज्ञापनों मैं गैर-सरकारी लोगों के फोटो देखकर चमचागिरी की ताकत का पता लगता है। आज भारतीय समाज मैं ऊपर-से-नीचे, दांये-से-बाएं सब तरफ चमचागिरी का ही बोलबाला है। भारत का बिना लिखा राष्ट्रीय नारा है - चमचागिरी तेरा ही आसरा। जीवन में किसी न किसी की चमचागिरी किए बगैर काम नहीं चलता। वैसे तो व्यक्ति को एक ही समय में कई लोगों की, कई कारणों से एक साथ चमचागिरी करनी होती है मगर कोई बहुत सिद्धांतवादी किस्म का हो तो भी उसे एकाध की तो चमचागिरी करनी ही पड़ती है। हर अच्छा कर्मचारी जैसा भी उसका बॉस हो, उसकी चमचागिरी अवश्य करता है। वैसे मैंने ऐसे बॉस भी देखे हैं जो अपने मातहत की चमचागिरी करते हैं और अच्छा मातहत, बॉस को इसके अवसर भी खूब प्रदान करता है। जितनी भी हिस्ट्री मैंने पढ़ी है वह यही कहती है कि चमचागिरी का इतिहास अत्यंत पुराना है। ज्यादा दूर न जाएँ तो अपने राजा की तारीफ में तमाम दरबारी महाकवि, महाकाव्य लिखते रहे हैं और आज भी लालू प्रसाद यादव जैसे लोकतांत्रिक राजा की चमचागिरी करके राज्यसभा की सदस्यता पा लेने वाले मौजूद हैं इसलिए चमचागिरी के इतिहास सम्मत कर्म को करने से किसी व्यक्ति को घबराना नहीं चाहिए। जहाँ भी लाभ का मौका मिले, चमचागिरी करनी चाहिए क्योंकि जो अच्छी चमचागिरी कर सकता है, वही भविष्य में अच्छे चमचे प्राप्त करने का सच्चा अधिकारी भी होता है हालाँकि दुर्भाग्य से ऐसे उदाहरण भी कम नहीं हैं कि कुछ लोग चमचागिरी करके सिर्फ अपनी नौकरी ही बचा पाते हैं। वैसे श्रेष्ठ चमचागिरी वही कहलाती है जिसमें चमचा, जिसकी चमचागिरी कर रहा है, उसे भी यह चकमा दे सके कि वह सच्ची प्रशंसा कर रहा है। ऐसे चमचे बड़े जेनुइन ढंग से, चमचागिरी करते हैं और इतिहास गवाह है कि इस किस्म के चमचे ही ज्यादा सफल होते हैं वरना कुछ बेचारे बेहद भक्तिभाव से चमचागिरी करते हैं मगर चूँकि चमचागिरी करना उनका स्वाभाविक कर्म मान लिया जाता है इसलिए वे जीवन में कुछ हासिल नहीं कर पाते लेकिन ऐसे चमचे भी अपना स्वभाव छोड़ नहीं पाते और इस दुनिया में मनुष्यता कुछ अगर बची हुई है तो इसमें ऐसे चमचों का अधिक नहीं तो थोड़ा योगदान अवश्य है। मैं इस अवसर पर ऐसे चमचों का अभिवादन करता हूँ।
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