बुधवार, 15 दिसंबर 2010

विवशता से बदलते अर्थ

भारत में किसी संवैधानिक संस्था द्वारा ही मंजूरी मिलने के बाद टेलीफोन टेप किया जा सकता है। इसके अलावा किसी अन्य तरीके से की गई टैपिंग गैर कानूनी है। केंद्र या राज्य सरकार को भारतीय टेलीग्राफ एक्ट 1885 के नियम 419 और 419 ए फोन रिकॉर्ड करने और मॉनीटर करने का कानूनी अधिकार है। संविधान में एक रिव्यू कमिटी का भी प्रावधान है जो फोन रिकॉर्ड किए जाने के आदेश की निगरानी करेगी। फोन टैपिंग कोर्ट के आदेश के आधार पर ही की जा सकती है। फोन टैपिंग के आदेश के लिए जरूरी है कि यह किसी ऐसी बड़ी घटना को रोकने के लिए हो जो देश के खिलाफ हो या फिर राष्ट्रविरोधी/आतंकवादी गतिविधियों की खुफिया रिपोर्ट तैयार करने के लिए फोन टैपिंग का कानूनी प्रावधान है। इस प्रावधानों को बताने के पीछे मंशा यह है कि उद्योग जगत की परेशानियों को बारीकी से समझा जा सके। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का कहना है कि राष्ट्रहित में फोन टैपिंग जरूरी है लेकिन इसमें सावधानी बरतनी चाहिए। मालूम हो कि कॉरपोरेट घराने की लॉबिंग करने वाली नीरा राडिया के साथ नेताओं, व्यवसायियों और पत्रकारों की बातचीत के टेप मीडिया में लीक होने के बाद कई बड़े चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं। दरअसल 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले में जांच के दायरे में फंसी कॉरपोरेट लॉबिस्ट नीरा राडिया पर सरकार को देश विरोधी गतिविधियों में शामिल होने और विदेशी खुफिया एजेंसियों के लिए जासूसी करने का शक था। यही वजह है कि सरकार ने उसके फोन टेप किए। सरकार ने इसका खुलासा सुप्रीम कोर्ट में दायर अपने हलफनामे में किया। सरकार ने ये बात टाटा समूह के अध्यक्ष रतन टाटा की उस याचिका के जवाब में कही थी, जिसमें रतन टाटा ने नीरा राडिया से हुई बातचीत के उस को अंश को मीडिया में प्रकाशित होने पर रोक लगाने की मांग की थी। मालूम हो कि नीरा राडिया और रतन टाटा बहुत बड़ी आफत में फंस गए हैं। नीरा राडिया पर तो खैर देशद्रोह का मामला बनाने की तैयारी की ही जा रही है मगर रतन टाटा की दिक्कत उनके कारोबारी झमेले कम और बुढ़ापे का प्यार ज्यादा है। नीरा और रतन टाटा के बीच कई बातचीत तो इतनी निर्लज्ज है कि आयकर अधिकारियों ने भी उन्हें अपने काम का न पा कर नष्ट करने की सिफारिश की है। कहने की जरूरत नहीं हैं कि नष्ट करने के पहले इन टेपों की कई प्रतियां बन गई है। आयकर विभाग की जांच शाखा ने कहा है कि कॉरपोरेट लॉबीस्ट नीरा राडिया और उद्योगपति रतन टाटा व अन्य के बीच की बातचीत के टेप उसने लीक नहीं किए हैं। हालांकि उसने चुप्पी बनाए रखी है कि बातचीत के टेप क्या सीबीआई जैसी दूसरी एजेंसियों ने लीक किए। रतन टाटा की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी नोटिस के जवाब में आयकर विभाग के अतिरिक्त निदेशक सुशील कुमार के अनुसार, रिकॉर्ड बातचीत कभी मीडिया में नहीं आई है। जवाब में यह भी बताया गया है कि एक शिकायत पर कार्रवाई करते हुए यह बातचीत टेप की गई थी जिसमें राडिया को विदेशी एजेंट बताया गया था। उस पर राष्ट्रद्रोही गतिविधियों में लिप्त होने का आरोप लगाया गया था। शिकायत में कहा गया कि राडिया ने नौ साल में 300 करोड़ रुपए का व्यवसाय खड़ा कर दिया है। इसके बाद शुरू की गई जांच में गृह मंत्रालय की अनुमति से राडिया की 14 फोन लाइनें 180 दिन तक टेप की गई। जवाब के मुताबिक आयकर महानिदेशक ने इंटेलीजेंस ब्यूरो को चि_ी लिखकर बताया था कि बातचीत के कुछ अंश बहुत संवेदनशील हैं। टाटा समूह के प्रमुख रतन टाटा ने टेप लीक होने की जांच की मांग करते हुए शीर्ष कोर्ट में याचिका लगाई है। उन्होंने टेप में उनकी और राडिया की बातचीत के प्रकाशन पर रोक लगाने की भी मांग की है। मगर इनसे परे सच कहा जाए तो आज नेता, नौकरशाह, पुलिस, न्यायधीश, बाबू, चपरासी सभी भ्रष्टाचार के पंक पयोधि में आकंठ डूबे हुए हैं। जिसको जहाँ मौका मिल रहा है वह वहीं बहती गंगा में हाथ धो रहा है। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो आज वही ईमानदार है जिसको भ्रष्टाचार करने का अवसर नहीं मिल पा रहा है। भ्रष्टाचार का रोग हमारे देश के हर प्रांत, हर शहर में परत दर परत पैवस्त हो चुका है। आज कॉरपोरेट जगत सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार में लिप्त है। स्थिति इतनी अनियंत्रित हो चुकी है कि सरकार पर भी ये घराने हावी हैं। कॉरपोरेट घरानों के सामने सरकार लगभग विवश दिख रही है। दूसरे शब्दों में कहें तो फिर से देश में ईस्ट इंडिया कंपनी जैसी स्थिति बरकरार हो गई है। अब यहाँ भी दक्षिण अमेरिकी देशों की तरह चंद कंपनियाँ शासन चला रही हैं। इस माहौल में नीरा राडिया जैसे दलाल और मनी मैटर्स जैसे सिंडिकेटरों की खूब चांदी है।

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