मंगलवार, 4 मई 2010

अज्ञात ठिकानों पर बिताती थी रातें

भारतीय विदेश सेवा की दूसरे दर्जे के अधिकारी माधुरी गुप्ता ने पाकिस्तान में रह कर भारत के खिलाफ पाकिस्तान के लिए जासूसी कर के जो शर्मनाक हरकत की है उसके लिए माफी मिलना संभव भी नहीं है और उचित भी नहीं है। लेकिन इस कथा की शुरूआत करते हैं झूठ बोलने के लिए कुख्यात दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल से। स्पेशल सेल से बयान आया है कि माधुरी गुप्ता को पूर्वी दिल्ली में मयूर विहार के उसके घर से गिरफ्तार किया गया। जबकि विदेश मंत्रालय, रॉ के अधिकारी और सारे सरकारी सूत्र सरेआम कह रहे हैं कि माधुरी गुप्ता के आचरण पर शक होने के कारण इस्लामाबाद में ही उसकी निगरानी की गई और जब शक यकीन में बदल गया तो उसे भूटान में होने वाले सार्क देशों के सम्मेलन की तैयारी के बहाने दिल्ली बुलाया गया और इंदिरा गांधी अंतरारष्ट्रीय हवाई अड्डे पर पकड़ लिया गया। इस झूठ के बारे में जब अधिकारियों से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि हवाई अड्डे से हिरासत में ले कर माधुरी गुप्ता को घर ले जाया गया था, तीन दिन तक पूछताछ चली थी और इसके बाद गिरफ्तारी दिखाई गई थी। चलिए स्पेशल का यह झूठ भी सामने आ गया कि बगैर थाना कचहरी के वह लोगों को बंद रख सकती है। बहुत सारे कश्मीरी दिल्ली में सेफ हाउसों में बंद है। मगर माधुरी गुप्ता ने जो किया वह अक्षम्य है। माधुरी गुप्ता 2006 और 2007 के बीच इंडियन काउंसिल ऑफ वल्र्ड अफेयर्स में सहायक निदेशक के तौर पर काम करती थी। दिल्ली में बाराखंभा रोड पर सप्रू हाउस में यह ऑफिस हैं। माधुरी गुप्ता ने उर्दू सीखी और बार बार आग्रह किया कि वह पाकिस्तान जाना चाहती है। उसने कहा कि वह पाकिस्तान जा कर देश की सेवा करेगी। अधिकारियों ने भरोसा किया और माधुरी गुप्ता को इस्लामाबाद में भारतीय उच्चायोग में द्वितीय सचिव के पद पर तैनात कर दिया। माधुरी गुप्ता ने सबको अपना परिचय प्रेस और सूचना विभाग में उर्दू अनुवादक के तौर पर दिया था। माधुरी गुप्ता अक्सर रातें अपने घर में नहीं बल्कि अज्ञात ठिकानों पर बिताती थी और यहीं से उस पर शक होना शुरू हुआ। उच्चायोग में तैनात रॉ के अधिकारियों ने माधुरी गुप्ता का पीछा किया और उसके फोन टेप करने शुरू किए। उसके पास दो मोबाइल थे और लैपटॉप से वह जो ई मेल भेजती या प्राप्त करती थी उनकी भी निगरानी की गई। किए पर अफसोस नहीं :पता चला कि भारतीय राजनयिक माधुरी गुप्ता आईएसआई के दो उन अधिकारियों के संपर्क में थी जो भारत विरोधी प्रकोष्ठ में काम करते थे। रॉ ने विदेश मंत्रालय को जो रिपोर्ट दी है उसके अनुसार माधुरी गुप्ता इन अधिकारियों के साथ रातें भी बिताती थी और भारत स्थित उसके खाते में पैसा भी जमा होता रहता था। अब इन खातों की जांच पड़ताल की जा रही है। अपने ही देश की खुफिया जानकारी आईएसआई को मुहैया कराने के आरोप में गिरफ्तार विदेश मंत्रालय की अधिकारी माधुरी गुप्ता को अपने किए पर जरा भी अफसोस नहीं है। उसे पता था कि वह गलत काम कर रही है और एक दिन गिरफ्तार हो जाएगी। जांच अधिकारियों के सवालों के बेबाकी से जवाब देते हुए माधुरी ने कहा कि उसे उम्मीद थी कि भारतीय खुफिया विभाग जल्द ही उस तक पहुंच जाएगा, मगर उसेपहुंचने में दो साल लग गए। पकड़े जाने पर उसने भारतीय खुफिया विभाग के काम करने के तरीके पर भी सवाल उठाए। दिल्ली पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि बृहस्पतिवार को माधुरी को भारत बुलाया गया था। इसके बाद उसे नार्थ ब्लॉक स्थित मंत्रालय में बुलाया गया। यहां मंत्रालय और आईबी अफसरों ने उससे पूछताछ की। बाद में उसे दिल्ली पुलिस के हवाले कर दिया गया। पूछताछ करने वाले एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी के अनुसार माधुरी ने सभी सवालों के जवाब बिना लाग-लपेट के दिए। ऐसा नहीं लगा कि उसके मन में कोई भय या पश्चाताप है। एक अन्य अफसर का कहना है कि जिस तरह माधुरी सवालों का जवाब दे रही थी, उससे उसके दिमागी संतुलन पर शक होता है। हो सकता है, उसका स्वभाव ही ऐसा हो। पुलिस अधिकारी इस मामले में रॉ व मंत्रालय के अधिकारियों से भी पूछताछ की संभावना जता रहे हैं। शर्मा के साथ अंतरंग संबंध :दिल्ली में माधुरी गुप्ता के जानने वालों का कहना है कि वह असल में भारतीय सूचना सेवा से भारतीय विदेश सेवा में आई थी और रॉ के इस्लामाबाद में ही मौजूद एक अधिकारी आर के शर्मा के साथ उसके संदिग्ध होने की हद तक अंतरंग संबंध थे। ये शर्मा जी भी अब शक के दायरे में हैं और हो सकता है कि पूछताछ के लिए उन्हें भी हिरासत में लिया जाए। माधुरी गुप्ता को जब अदालत में पेश करने के बाद जेल भेजा गया तो उसकी ख्याति पहले ही वहां पहुंच चुकी थी। कैदियों ने उस पर हमला बोल दिया। जेल अधिकारियों ने पिटती हुई माधुरी को जल्दी से एक हाई सिक्योरिटी वार्ड में भेज दिया। माधुरी गुप्ता का दिल्ली के मयूर विहार में जो घर है वहां से भी बहुत कीमती चीजें बरामद हुई हैं। तीन कमरों में तीन एयर कंडीशनर लगे हुए हैं, पूरे घर में कीमती कालीन बिछे हुए हैं, दो कमरों में प्लाज्मा टीवी हैं और कई सिम कार्ड माधुरी के पर्स और घर की दराजों से निकले हैं। इनमें से कुछ सिम कार्ड तो सिंगापुर और दुबई के हैं। दिल्ली में जब उसे पकड़ा गया तो उसके पास दो मोबाइल मिले और उनमें से एक में पाकिस्तान की एक मोबाइल कंपनी का सिम कार्ड था। यह कार्ड उसे सरकारी तौर पर उच्चायोग की तरफ से दिया गया था और इसका इस्तेमाल उसे सिर्फ उर्दू अखबारों के पत्रकारों से संपर्क करने के लिए था। अपनी धुन में ही रहती रही माधुरी : माधुरी गुप्ता सिर्फ अपने लिए ही जीती रही है। अंतर्मुखी स्वभाव की माधुरी न तो किसी से अपना सुख-दुख बांटती है और न ही दूसरों के सुख-दुख में शामिल होती है। आलम यह है कि दिल्ली के विकासपुरी के जिस पुश्तैनी मकान में माधुरी के जीवन का बड़ा हिस्सा गुजरा है, उसके अगल-बगल में रहने वाले पड़ोसी तक माधुरी के बारे में ज्यादा नहीं जानते। सी-7, न्यू कृष्णा पार्क, विकासपुरी स्थित जिस 400 गज के मकान में माधुरी बचपन से रहती आई है, आज सुनसान पड़ा है। माधुरी के माता- पिता का देहांत हो चुका है। हालांकि आज भी घर के बाहर लगे नेमप्लेट पर माधुरी के पिता एसबी गुप्ता का ही नाम दर्ज है। माधुरी का इकलौता भाई पेशे से इंजीनियर है और अमेरिका में रहता है। लिहाजा, माधुरी इस घर में अकेले ही रह रही थी। माधुरी कई-कई महीनों बाद इस मकान में आती और दो-चार दिन घर में रहकर लौट जाती थी। वह पड़ोसियों से कोई मतलब नहीं रखती थी। माधुरी के बारे में पूछने पर उसके पड़ोस में रहने वाले गुप्ता परिवार के सदस्य कहते हैं जो किसी से मतलब ही नहीं रखती, उसके बारे में हम क्या बता सकते हैं? हमें उसके बारे में कुछ नहीं पता बताया जाता है कि माधुरी का बचपन यहीं बीता है, उसने अपनी शिक्षा भी दिल्ली से ही पूरी की है। दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक की शिक्षा लेने के बाद उसका चयन भारतीय विदेश सेवा के लिए हो गया था। दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल से जुड़े सूत्रों के मुताबिक माधुरी घर में अकेले ही रहती थी। वह यहां कभी-कभार आती और कुछ दिन रहकर चली जाती थी। वह गाड़ी भी खुद ही ड्राइव करती थी। घर की देखभाल के लिए एक चौकीदार था, लेकिन अब वह भी जा चुका है। भारत की जासूसी के लिए अलग ई-मेल : माधुरी गुप्ता ने पूछताछ में कई अहम खुलासे कर सबको चौंका दिया है। उसने एक ईमेल का पूरा कच्चा चि_ा खोल दिया है। पता चला है कि आईएसआई के एक नहीं बल्कि चार चार गॉडफादर इस गद्दार को मोहरे की तरह इस्तेमाल कर रहे थे। माधुरी गुप्ता एक ईमेल का इस्तेमाल किया करती थी। ये ईमेल है द्वड्डस्रह्यद्वद्बद्यद्गह्यञ्चद्दद्वड्डद्बद्य.ष्शद्वपूछताछ की जा रही है कि आखिर इस नाम का ये ई-मेल क्यों बनाया गया। पता चला है कि इसी ईमेल के जरिए माधुरी आईएसआई के जासूसों को भारत से जुड़ी जानकारियां भेजा करती थी। माना जा रहा है कि ये ईमेल माधुरी के लिए आईएसआई एजेंट राणा ने ही बनाया था। कोशिश की जा रही है वो सब कुछ खंगालने की जो इस ईमेल से भेजा गया। शक की सुइयां क्या सिर्फ माधुरी गुप्ता पर ही है या फिर कुछ और भी लोग घेरे में हैं। खबरें आ रही हैं कि दरअसल माधुरी तो धोखे में पकड़ में आ गईं लेकिन जांच एजेंसियों को शक इस्लामाबाद में भारतीय दूतावास के एक दूसरे चेहरे पर था। इस चेहरे की कई दिनों से निगरानी की जा रही थी। उस निगरानी के दौरान ही कुछ ऐसा हुआ कि शक माधुरी पर चला गया। शक की वजह माधुरी गुप्ता का इस्लामाबाद के जिन्ना सुपरमार्केट में अक्सर जाना बना। माधुरी इस बाजार में जाती और उसके एक खास रेस्तरां में ही बैठती। बताया जा रहा है कि जांच एजेंसियों ने खुफिया कैमरे से माधुरी की रिकॉर्डिंग करनी शुरू कर दी। जगह थी सुपरमार्केट का कैफे ईफ्फी बताया जा रहा है कि इसी रेस्तरां में वो आईएसआई के हैंडलर्स यानि अपने गॉडफादर से मिलती थी। सूत्रों के मुताबिक माधुरी आईएसआई ने सिर्फ राणा से ही नहीं बल्कि आईएसआई के 4 एजेंट्स से संपर्क साध लिया था इनमें से दो के नाम हैं मुदस्सिर राणा और जमशेद। माधुरी के मुताबिक राणा से उसकी मुलाकात पाकिस्तान के एक पत्रकार ने करवाई। सूत्रों के मुताबिक माधुरी ने दूतावास के बाहर भी कुछ मौकों पर राणा से मुलाकात की। सबूतों की तलाश जोर पकड़ रही है। जांच एजेंसियों ने माधुरी गुप्ता के इस्लामाबाद के घर से कई चीजें बरामद की। 2 मोबाइल फोन, एक कंप्यूटर और कुछ कागजात। कंप्युटर के हार्ड डिस्क की फॉरेंसिक जांच होनी है। माधुरी गुप्ता के बैंक खाते भी खंगाले जा रहे हैं, बेनामी बैंक अकाउंट का भी पता लगाया जा रहा है लेकिन जांच में एक और अहम जानकारी हाथ लगी है। ये हैं 2 इंटरनेशनल सिम कार्ड। सूत्रों के मुताबिक ये दोनों नंबर पाकिस्तान के दो पत्रकारों के हैं। इनके चेहरे साफ हुए तो मुमकिन है देश की इस गद्दार के गॉडफादर का चेहरा भी साफ हो जाए। क्योंकि पाकिस्तान के ये पत्रकार ही माधुरी को आईएसआई के करीब लाए। माधुरी गुप्ता की राणा से मुलाकात करवाई दो पाकिस्तानी पत्रकारों ने। राणा ने बना दिया गद्दार : राणा से उसकी पहली मुलाकात 2008 के मई-जून में इस्लामाबाद में ही हुई थी। एक पत्रकार के घर पर जहां राणा भी खुद पत्रकार के भेस में माधुरी से मिला था। राणा के बहकावे में आई माधुरी जल्द ही अपने ही विभाग की गुप्त सूचनाएं लीक करने लगी। पुलिस पूछताछ में पता चला है कि माधुरी और राणा में करीब 2-3 महीने में मुलाकात होती थी। राणा से मिलने के लिए कई बार माधुरी ने उच्चायोग से बाहर जाने के लिए विशेष अनुमति भी लिया था। अनुमति लेकर जब वो बाहर निकलती थी तब राणा बाहर ही गाड़ी लेकर उसका इंतजार किया करता था। इसके अलावा उनकी बातचीत ईमेल के माध्यम से होती थी। जांच से मिली खबर के मुताबिक माधुरी गुप्ता हो सकता है कि पाकिस्तान आने से पहले ही आईएसआई से संपर्क में हो। जांच एजेंसीज को शक है कि माधुरी गुप्ता को बगदाद के बाद क्वालालंपुर पोस्टिंग के दौरान ही आईएसआई ने अपने फंदे में लिया। इसके बाद इस्लामाबाद पोस्टिंग के लिए ही उसे साल 2007 में दिल्ली में उर्दू कोर्स कराया गया और फिर पाकिस्तान पोस्टिंग के लिए दबाव बनाया गया। लेकिन एक सवाल बेहद अहम है और भारतीय विदेश विभाग और जांच एजेंसी को परेशान करने वाला है। सवाल है कि आखिर कैसे माधुरी गुप्ता की पोस्टिंग इस्लामाबाद मिशन में हुई क्योंकि बिना शादीशुदा लोगों को इस्लामाबाद मिशन नहीं मिलता, हालांकि ये कानून नहीं लेकिन कानून से कम भी नहीं। जाहिर है ये सवाल बेहद अहम है और विदेश मंत्रालय के लिए परेशानी का सबब भी। सैन्य अड्डों की रेकी तो नहीं : माधुरी गुप्ता के राजौरी दौरे पर खुफिया एजेंसियों की नजर है। 29 मार्च से पहली अप्रैल तक माधुरी सुंदरबनी आकर डॉक्टर खेमराज और उनकी पत्नी चंपा शर्मा के साथ रही। इस दौरान उसके साथ डॉ.प्रेमलता भी थी। डा.प्रेमलता के बारे में शर्मा दंपति का कहना है की माधुरी से पहली बार मुलाकात उसी ने कराई थी। उन दिनों वह डॉ चंपा के साथ दिल्ली मेडिकल कालेज में एमबीबीएस कर रही थी। जांच एजेंसियों ने प्राथमिक जांच में पाया कि माधुरी के डॉ.खेमराज और उनकी पत्नी चंपा शर्मा के साथ संबंध तीन दशक से भी ज्यादा पुराने हैं। 1979 में लेडी हार्डिंग मेडिकल कालेज दिल्ली में शर्मा दंपति की माधुरी से पहली मुलाकात हुई थी। इसके बाद अगली मुलाकात 1985 में रामबन में हुई। खुफिया एजेंसियां सकते में हैं कि आखिर वे कौन से कारण हैं, जिनके चलते 25 साल बाद अचानक माधुरी को डॉक्टर दंपति की याद आई। दिलचस्प तथ्य यह भी है कि बाघा बॉर्डर होते हुए माधुरी इसलामाबाद से खुद ही कार ड्राइव करते हुए आई थी। एजेंसियां यह भी छानबीन कर रही हैं कि महिला अधिकारी बगैर ड्राइवर के इसलामाबाद से सुदंरबनी तक अकेले क्यों आई? माधुरी के पास वीडियो कैमरा भी था। खास बात है कि अमृतसर से लेकर सुंदरबनी तक आर्मी के छह प्रमुख शिविर भी पड़ते हैं। क्या महिला अधिकारी ने इनकी तस्वीरें ली हैं। पठानकोट में मामून कैंट, सांबा आर्मी डिवीजन, कालूचक्क सैन्य शिविर, टाइगर डिवीजन, अखनूर आर्मी मुख्यालय और सुंदरबनी आर्मी ब्रिगेड की तस्वीरें लेने का संदेह है। जांच एजेंसियों को संदेह है कि महिला अधिकारी कोई कंसाइनमेंट लेकर भी आई हुई हो सकती है। मुमकिन है कि इसी वजह से उसने अकेले इतना लंबा सफर तय किया हो। 31 मार्च को माधुरी डॉ. खेमराज की कार लेकर जम्मू गई थी। जांच एजेंसियां उन लोगों का पता लगा रही हैं, जिनसे माधुरी ने जम्मू में मुलाकात की। इस्लाम से प्यार :माधुरी गुप्ता ने जेएनयू से मध्यकालीन भारतीय इतिहास की पढाई की। मध्यकालीन भारत में एमफिल करने के दौरान ही उसे इस्लाम से इस कदर प्यार हो गया कि वह इस्लाम की कई बातें मानने लगी थी। माधुरी ने अपने जीवन का शुरूआती दौर लखनऊ में जाफरी परिवार के साथ गुजारा था जहां उसे इस्लामी मूल्य पसंद आते थे। डॉक्टर दंपति की सफाई : हालांकि इस डॉक्टर दंपति ने ये सफाई दी है कि पिछले महीने माधुरी गुप्ता उनसे मिलने आई थी। माधुरी अपनी कार से 29 मार्च को उनके घर आई थी और दो दिनों तक थी। माधुरी गुप्ता उनके एक पारिवारिक दोस्त की खास दोस्त है। उनका माधुरी गुप्ता से सीधा कोई संपर्क नहीं है। जितने दिन भी माधुरी गुप्ता उनके घर पर रही उसने किसी से मुलाकात नहीं की। डॉक्टर पति ने बताया कि 32 साल की सरकारी नौकरी के बाद मैंने रिटायरमेंट ले ली है और मैं अपना नर्सिंग होम चला रहा हूं। मेरी पत्नी की दोस्त हैं डॉक्टर प्रेमलता। दोनों इक_ी पढ़ी हैं। प्रेमलता की प्री-नर्सरी दोस्त रही है माधुरी गुप्ता। मेडिकल के दौरान भी बीच-बीच में माधुरी गुप्ता डॉक्टर प्रेमलता से मिलने आती थी। फिर मेरी पत्नी ने जम्मू में पोस्टिंग ले ली और फिर मुलाकात नहीं हो पाई। आज से 25 साल पहले एक बार प्रेमलता हमारा पता लेकर गई थी। पिछले महीने प्रेमलता का फोन आया था कि कई साल हो गये मिले हुए और माधुरी गुप्ता भी कह रही है कि उसकी 2-3 दिन की छुट्टी है तो वो घूमने आना चाहती हैं। प्रेमलता और माधुरी गुप्ता अलग-अलग आये थे। माधुरी गुप्ता अपनी कार से आई थी। माधुरी गुप्ता 29 मार्च को दो दिन के लिये रुकी थी जबकि प्रेमलता एक दिन ज्यादा रुकी थी। 2 दिन में उनसे कोई मिलने भी नहीं आया और हमें भी ऐसा कुछ नजर नहीं आया। मेरे बेटी-बेटा पढ़ाई कर रहे हैं। माधुरी आजतक मेरे बच्चों तक से नहीं मिली। हमारे परिवार को बेवजह इसमें खींचा जा रहा है। अदा ऐसी जो हर किसी को भा जाए :एजेंसियों की मानें तो पाकिस्तान में ही माधुरी गुप्ता अपनी दुनिया बनाने में लगी थी। उसकी एक और बात चौंकाती है-'मैं बहुत थक गई हूं। जब आप भारत में होते हैं तो आराम करने का वक्त ही नहीं मिलता। पाकिस्तान आकर ऐसा लगता है कि मैं घर आ गई हूं।' एजेंसियों की मानें तो माधुरी गुप्ता बहुत आसानी से किसी को भी अपना दोस्त बना लेती थी। बातों में वो किसी से भी कम नहीं थी। कपड़ा हो, हेयर स्टाइल हो या फिर पाकिस्तानी मीडिया। वो हर बारे में सभी से खुलकर बात करती। माधुरी को जानने वालों का कहना है कि वो हमेशा सलीकेदार कपड़ों में रहती। माधुरी गुप्ता को तेज रफ्तार में गाडिय़ां चलाने का बहुत शौक था। वो पाकिस्तान के दोस्तों को अपने तेज रफ्तार ड्राइविंग के किस्से सुनाया करती। लेकिन उसकी ये बातें उस हालात से थोड़ी अलग हैं जिसका अनुभव भारतीय राजनीयिक अक्सर करते हैं। पाकिस्तान में भारतीय राजनयिकों की पोस्टिंग को काफी मुश्किल माना जाता है। हर वक्त आप आईएसआई की निगाह में रहते हैं। बाजार भी जाना हो तो बख्तरबंद गाडिय़ों में जाइए। घर से निकलना हो तो भी पहरे में। आप समझ सकते हैं ऐसे हालात में माधुरी गुप्ता अगर पाकिस्तान को अपना घर समझ रही थी तो क्यों। उसकी बातों से साफ है कि पाकिस्तान में उसे बेरोकटोक कही भी जाने की आजादी क्यों मिल गई थी। गद्दारी का ये पहला मामला नहीं :जासूसी की दुनिया ही ऐसी होती है कि खुद आपका जासूस भी आपसे दगा कर सकता है। दुनिया भर में भारत के लिए जासूसी करने वाले रिसर्च एंड एनालिसिस विंग यानी रॉ के अफसर भी कई बार पलट जाते हैं। उन्हें भारत के लिए जासूसी करने भेजा जाता है लेकिन वो भारत की ही जानकारी दूसरे देश को देने लगते हैं। नॉर्थ ब्लॉक, देश की सबसे इमारतों में से एक यहीं से चलता है देश का वित्त मंत्रालय। बजट हो या फिर तमाम वित्तीय फैसले यहीं पर लिए जाते हैं। जरा सोचिए, इन मजबूत दीवारों में छिपी फाइल की एक फोटो कॉपी दूसरी जगह पर पहुंच जाए तो क्या-क्या हो सकता है। हैरानी की बात नहीं लेकिन ऐसा हो चुका है। 17 जनवरी 1985 को कुमार नारायण नाम के एक शख्स को गिरफ्तार किया गया। वो वित्त विभाग का पूर्व अफसर था और नौकरी छोडऩे के बाद उसने मरीन इंजन बनाने वाली एक कंपनी ज्वाइन कर ली थी। कहा जाता है कि वित्ता मंत्रालय में अहम फैसलों से जुड़ी फाइलों की फोटो कॉपी कराकर वो हर जानकारी अपने कंट्रोलर तक पहुंचा देता था। इस मामले का खुलासा होने के बाद वित्ता विभाग के कई अफसरों की गिरफ्तारी हुई। पिछले साल जिस न्यूक्लियर सबमरीन अरिहंत ने देश के लोगों का माथा गर्व से ऊंचा कर दिया। वो भी जासूसी से जाल में फंसने से बाल-बाल बची। भारत ने 18 साल तक पूरे खुफिया तरीके से अरिहंत प्रोजेक्ट पर काम किया। लेकिन सुब्बा राव नाम का एक नेवल साइंटिस्ट इस पूरी मेहनत को बर्बाद कर सकता था। उसने इस प्रोजेक्ट की जानकारी पश्चिमी देशों को बेचने की कोशिश की थी। सुब्बा राव की समय रहते गिरफ्तारी के चलते ही दुनिया 18 साल तक इस बात से अनजान रही कि भारत न्यूक्लियर सबमरीन पर काम कर रहा है। इसके अलावा भी भारत में कई बार देसी या विदेशी जासूसों को लेकर हड़कंप मच चुका है। भारतीय स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन यानि इसरो तो जासूसों के रडार में सबसे ऊपर रहा है। आखिर दुश्मन हो या दोस्त इसरो हर दूसरे देश के लिए चुनौती है। देश को ना जाने कितनी सैटेलाइट और लॉचिंग सिस्टम का तोहफा इसरो ने दिया है। लेकिन मालदीव की दो लड़कियों की खूबसूरती के फेर में इसरो के कई अहम प्रोजेक्ट लीक होते-होते बचे। अपनी खूबसूरती के दम पर इन्होंने इसरो के कई वैज्ञानिक पुलिस और यहां तक की सेना के अफसरों तक को साध लिया था। ये दोनों औरतें आईएसआई के लिए जासूसी कर रही थीं। भारत के गद्दारों में सबसे बड़ा नाम है रविंदर सिंह का। भारतीय खुफिया एजेंसी के लिए काम करने वाले रविंदर सिंह को एजेंसी से जुड़े अहम दस्तावेज की फोटो खींचते हुए कैमरे पर देखा गया था। जब तक रॉ अपने ही अफसर पर हाथ डाल पाती वो 14 मई 2004 को गायब हो गया। रविंद्र सिंह रॉ में ज्वाइट सेकेट्री स्तर का अफसर था। माना जाता है कि रविंदर सिंह ने रॉ से जुड़ी तमाम जानकारियां अपने अमेरिकी कंट्रोलर तक पहुंचाई थी। कानून की नजर में इस वक्त रविंदर सिंह भगोड़ा है। रविंदर की तरह की कुछ और अफसर जासूसी के फेर में पड़ चुके हैं। मई 2008 में बीजिंग में तैनात रॉ के अफसर मनमोहन शर्मा पर जासूसी का आरोप लगा। कहा गया कि चीनी लड़की के प्यार में पड़कर शर्मा ने तमाम खुफिया जानकारी उगल दी। अक्टूबर 2007 में भी रॉ के एक और अफसर रवि नायर को हाँगकाँग से वापस बुला लिया गया। रवि नायर पर भी चीन की लड़की के प्यार में खुफिया जानकारी चीन को देने का आरोप लगा। वैसे लड़कियों के फेर में जासूसी को मजबूर करने का भारत से जुड़ा सबसे पुराना केस है जवाहरलाल नेहरू के वक्त का। तब देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू मॉस्को की यात्रा पर थे और रूसी खुफिया एजेंसी केजीबी ने उनके साथ गए एक अफसर को ही फंसा लिया था। लड़की के साथ खींची गई फोटो दिखाकर उसे ब्लैकमेल किया जाने लगा तो उसने ये बात खुद नेहरू से उगल दी। जवाहरलाल नेहरू के पास तब विदेश मंत्रालय का भी जिम्मा था। उन्होंने तब ये बात हंसकर उड़ा दी थी। लेकिन बदलते वक्त के साथ जासूसी इतना खतरनाक खेल हो गया है। जिसमें देश की अहम योजनाओं की बर्बादी से लेकर मौत तक सब कुछ है।

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