सोमवार, 31 मई 2010
मन के जीते जीत
मनुष्य का भाग्य उसके अपने हाथों में ही होता है। हाथ की रेखाओं से भाग्य नहीं बदलता है। उन्हीं हाथों से मेहनत करने से भाग्य बदलता है। जो व्यक्ति ज्योतिषियों के सामने अथवा हस्तरेखा विशेषज्ञों के सामने जाकर अपने भविष्य या अपनी भाग्य रेखाओं के बारे में अत्यंत दीनता पूर्वक पूछता है और कोई पुरुषार्थ नहीं करता, दूसरे के आसरे जीता है, वह कभी भाग्यवान नहीं बन सकता है। हाथ में प्रबल रेखाएं हों भी तो वे काम नहीं आतीं। भाग्यशाली वही है, जो अपने मन, वचन और काया से उद्यम करता है। जो शरीर से मेहनत नहीं करता है, परंतु मन और मस्तिष्क से मेहनत करता है, वह भी कामयाब होता है, क्योंकि मन में ही विश्व के समस्त श्रेष्ठ कार्यों की नींव रखी जाती है। यदि किसी कार्य का शुभारंभ मन से हो, तो समझो कि आधा कार्य संपन्न हो गया। किसी भी कार्य को विभिन्न विघ्न-बाधाओं के बावजूद पूर्ण करना हो तो उसके लिए मनोबल का होना अत्यंत आवश्यक है। कहते हैं, मन के जीते जीत। जो मन से हार जाते हैं, वही लोग कमजोर होकर बैठ जाते हैं। जो मन से मजबूत हैं, वे कठिन परिस्थितियों में भी पुरुषार्थ से नहीं डरते, वे ही अध्यात्म के सच्चे मार्ग पर अग्रसर होते हैं और उस परमेश्वर को प्राप्त कर लेते हैं। वे ब्रह्मापद को प्राप्त करते हैं। पुरुषार्थ के बिना व्यक्ति चलता-फिरता शव है। जो पुरुषार्थ करता है, उसके शरीर में शिव का निवास होता है। शिव अर्थात मंगलमय आत्मा निवास करती है। जो वचन से मेहनत करते हैं, पढ़ाते हैं, उपदेश देते हैं, लोगों का मार्गदर्शन करते हैं, वे भी पुरुषार्थ करते हैं। मन के साथ ही वचन का प्रयोग होता है। मनोबल के साथ वचन बल का महत्व दोगुना हो जाता है। अब कुछ ऐसे लोग हैं, जो शरीर से मेहनत करते हैं, सड़कों पर पत्थर तोड़ते हैं, सड़कें बनाते हैं, भवन निर्माण करते हैं, मंदिर निर्माण करते हैं, यहां तक कि पत्थर को तराश कर भगवान की मूर्ति का निर्माण करते हैं। इसलिए ये लोग भी कामयाब होते हैं। जो पुरुषार्थहीन होते हैं, जो अपने मन, वचन, काया का सदुपयोग नहीं करते हैं, वे लोग दीन-हीन होकर के, दरिद्र हो करके, अपने शरीर की संपत्ति का मूल्य न समझ के भीख मांगते हैं।
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