गुरुवार, 29 अप्रैल 2010

मनुष्य मनुष्य के लिए भेडिय़ा क्यों

यह जीवन भी कितना अजीब है। आदमी पैदा होता है.... जीवन भर कितने प्रपंचों में लिप्त रहता है। दु:ख-सुख, ईष्या, जलन, द्वंद्व, बडा-छोटा, ऊँच-नीच और हर प्रकार के षडयंत्रों में डुबा हुआ है परन्तु उसे चैन और सन्तुष्टि नसीब नहीं। हर आदमी जानता है कि एक दिन उसे इस दुनिया से जाना है, फिर भी वो उलझनों से मुक्त नहीं हो पाता। वो हर पल अहंकार में जीता है, हर पल अपने को बड़ा व दूसरे को छोटा साबित करने की कोशिशों में लगा रहता है। मनुष्य मनुष्य के लिए भेडिय़ा क्यों बन गया है ? एक जीवन का अंत कितना सहज है। इस दुनिया में कोई अस्तित्व नहीं..... जब हम जीवन को इतना समझते हैं तो क्यों नहीं एसी जीवन बितार्ई जाए, जिस में सुख चैन प्राप्त हो, हृदय संतुष्ट हो। इतिहास गवाह है कि जब जब इंसानों ने नियम बनाया तो कहीं केवल एक देश का ध्यान रखा गया, नतीजा देशों के बीच भयंकर जंग हुई , तो कहीं जात एवं समुदाय का ध्यान रखा गया, नतीजा जातिवाद के भयंकर परिणाम सामने आए और लोगों को विभिन्न जातियों में बांट दिया गया, तो कहीं आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त करने के लिए जंगलों और गुफाओं में जाकर कठोर परिश्रम को श्रेष्ठ और अच्छा समझा गया। परन्तु इन सब का अंजाम असफल जीवन मिला। यदि आज भी सर्व मनुष्य ईश्वर के आज्ञा तथा नियम का पालन करें और सब एक हो जाएं क्यों कि ईश्वर की नजर में सारे मनुष्य एक सामान है। किसी को भी जाति, वंश, सुन्दरता, देश के आधार पर महानता प्राप्त नहीं हो सकती,बल्कि अपने कर्तव्य , ज्ञान और ईश्वर के आज्ञा के पालन के आधार पर महानता प्राप्त होगी। हर व्यक्ति अपने जीवन का यह लक्ष्य रखे कि वह प्रसन्नता एवं नेमतों का भरपूर आनन्द लेगा।

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