मंगलवार, 4 मई 2010
चरण चुंबन ही चमचों की श्रद्धा
जमाना हमेशा से ही चमचों का गुलाम रहा है। चमचे सर्वकार्यसिद्धि मंत्र में विशेषज्ञ होते हैं। सबसे पहले वे लोगों की बीच पैठ बनाते हैं और उनके अंतर्मन को झांक लेते हैं। कहीं पे निगाहें, कहीं पे निशाना इनका मूल मंत्र होता है। इनका लक्ष्य हमेशा ही छुपा हुआ है। दिल थाम कर ये समय का इंतजार करते हैं। कमजोरियों का फायदा उठाना कोई इनसे सीखे। धंधा बड़े जोरों पर चल रहा है। ये पहले भी थे, आज भी हैं, आगे भी रहेंगे। रंग बदलते है, रुप बदलते हैं, बदलते रहेंगे। इनके कद्रदान इन्हें हमेशा प्रश्रय देते रहेंगे। और ये ऐसे ही फलते फूलते रहेंगे। आज के चमचों की खासियत यह है कि समाज में अपना बरतन ये स्वयं ढूंढ़ते हैं, और ये उस बरतन के लिए कितने उपयोगी हो सकते हैं, ये भी स्वयं ही बताते हैं। जैसे ही इन्हें अपनी पसंद का बरतन मिलता है, ये उसकी पैंदी से जोंक की तरह चिपक जाते हैं। ये चमचे ऐसा बरतन ढूंढ़ते हैं, जिसमें इनकी पांचों उंगलियां घी में रहें और मुंह दूध मलाई में। चरण चुबंन में इनकी बहुत श्रद्धा है। समाज का कोई कोना इनसे बचा नहीं है। चमचे वो 'कैक्टसÓ हैं, जो कहीं भी फल-फूल जाते हैं, पर अपने आसपास के फूलों की खुशबू निचोड़कर उन्हें रंग और गंधहीन बना देते हैं। कर्म से इन्हें कोई मतलब नहीं होता। इनकी निगाह तो बस निशाना बींधने पर ही रहती है। काम कैसे होना है, किस तरह होना है, से इन्हें कोई मतलब नहीं, काम होना चाहिए उसके लिए कोई भी हद इनके लिए बहुत मामूली होती है। कर्म नहीं, धर्म नहीं और कोई ईमान नहीं मूलमंत्र है एक 'या चमचागिरी तेरा ही आसराÓ। चमड़ी इतना मोटी कि किसी बात काअसर तक नहीं होता, पर ये पूरा असरदार होते हैं। संस्थान के मालिक को बेवकूफ बनाने में इन्हें महारत हासिल होती है। मालिक धृतराष्ट्र को ये संजय बन दूर की सुझाते रहते हैं। जब तक मालि को पता चलता है कि साम्राज्य खतरे में है, ये धीरे से टसक लेते हैं। इनका सबसे बड़ा गुण अपने कुनबे को बनाए रखना होता है। मालिक इन्हें पहचान ले तो ही भलाई वर्ना...।
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