सोमवार, 31 मई 2010

हर उत्पाद पर बिकती नारी

सनातन काल से मानव मन सौन्दर्य के प्रति आकर्षित होता रहा है। व्यक्तित्व को सजाने, संवारने, निखारने, तराशने के पीछे भी यही मनोवैज्ञानिक आसक्तिबोध क्रियाशील रहता है। परंतु आज सौंदर्य केवल सुन्दर देहयष्टि, आकर्षक अंग-प्रत्यंग, वेशभूषा और हेयर स्टाइल की परिधि में सिमट कर रह गया है। कभी सौंदर्य के जबरदस्त मानक रहे सात्विक आधार अब लुप्त प्राय: हो चले हैं और उनका स्थान ले लिया है बौद्धिक तत्परता और चुस्ती-फुर्ती का पयार्य स्मार्टनेस ने। आधुनिक शब्दावली में जो जितना फास्ट है उतना ही स्मार्ट है। व्यावसायिक बाजार में सौंदर्य भी एक उत्कृष्ट उत्पाद की तरह धड़ाधड़ बिक रहा है। अन्य उपयोगी वस्तुओं की तरह यहां भी प्रतियोगिता बहुत तगड़ी है और एक-दूसरे से आगे निकल जाने की होड़ भी उतनी ही जबरदस्त। सौंदर्य देहधर्म की अपनी सम्पूर्णता में तो लुभावना और मूल्यवान है ही, अलग-अलग टुकड़ों में भी कम महत्वशाली नहीं। यह सारा चमत्कार विज्ञापन के बाजार का है। तेल और शेंपू बनाने वाली कम्पनियां एक के पीछे मधुमक्खी की तरह भागती दिखाई देंगी तो क्रीम और लोशन बनाने वाली कंपनियाँ दूसरी के पीछे। वस्तुओं के साथ अंग-प्रत्यंग की कीमत लग रही है और स्त्री हो या पुरुष समय की नब्ज को बखूबी पहचानते हुए उसका भरपूर लाभ भी ले रहे हैं। विज्ञापन के इस दौर में धड़ाधड़ बिक रहा है यौवन और सौंदर्य। अप्सराओं की मोहकता, स्वप्निलता संजो लेने की प्रतिस्पर्द्धा में नारी ने उम्र की सारी खाइयाँ पाट दी हैं। चाची, मामी, ताई, भाभी जैसे संबोधन अब गाली से प्रतीत होने लगे हैं। रिश्तों ने वजूद खो दिया है। संबंध सूचक संबोधन जैसे व्यक्तित्व पर प्रौढ़ता चिपकाने लगे हैं। श्रृंगार तो युग-युग से नारी की सहज प्रवृत्ति रही है किन्तु आज वह बहुत अधिक आत्मकेन्द्रित हो गयी है। पहले सौन्दर्य के साथ शील शब्द प्राय: समानान्तर रूप से प्रयुक्त होता था, आज वह सौंदर्य की अवधारणा से ही लुप्त हो गया है। सारी परिभाषाओं और अवधारणाओं को ताक पर रख ऊंचे दामों बिक रहा है रूप और यौवन का सौंदर्य। कपड़ों की तरह देह को भी इंच टेप से नाप-तौल कर जांचा जा रहा है। विधाता की सर्वश्रेष्ठ और अनुभूति प्रवण रचना के मूल्यांकन का कैसा स्थूल और संवेदनशून्य तरीका है यह। व्यक्तित्व के स्वाभाविक पहलुओं पर आवरण और मुखौटे चढऩे लगे हैं और चिपकने लगी है होठों पर एक इंच मुस्कान। रूप का आकर्षण चिर यौवन की बलवती आकांक्षा ने बाकी सब सोख लिया है।

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