मंगलवार, 4 मई 2010

नैतिकता दुहाई दे रही है

देश अजीबोगरीब मोड़ पर खड़ा है। नैतिकता दुहाई दे रही है। आवाम हैरान है कि कैसे-कैसे चरित्र हमारे लोकतंत्र को महिमामंडित कर रहे हैं। राजनीतिक गलियारा लाल गलियारे से भी ज्यादा अमर्यादित और हैवान हो गया है। चोरों, अपराधियों की फेहरिस्त तो पहले से ही लंबी है, अब व्याभिचारियों की भी बाढ़ से आ गई है। नेताओं के संस्कारों में भी परिवर्तन आता जा रहा है। आज का नेता स्वयं को देश के सेवक के रूप में स्थापित करने के बजाए स्वयं को दहशत फैलाने वाले एक नेता के रूप में स्थापित करने में अधिक दिलचस्पी रखता हुआ जान पड़ता है, क्योंकि वह दंभी हो चला है। उसे किसी की भी परवाह नहीं, देश की भी नहीं। एक और मंत्री की हैरतअंगेज दास्तां। हैवानियत की कहानी शर्मसार कर देने के लिए काफी है। बात हो रही है कर्नाटक के खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री हरतलु हलप्पा की। इन्होंने इस्तीफा दे दिया है। मित्र की पत्नी के साथ अश्लील हरकतें और बदसलूकी करने के आरोप में फंसने के बाद इन्हें मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा है। घटना चार महीने पहले की है । हरतलु हलप्पा अपने नजदीकी दोस्त के यहां रात के खाने पर गए थे। कर्नाटक के मीडिया में छपी खबरों के मुताबिक हलप्पा के मित्र की गिनती प्रमुख फाइनेंसरों में होती है। डिनर के बाद मंत्री ने अपने मित्र से कहा कि वह रात में उनके घर में ही ठहरना चाहते हैं। खबरों के मुताबिक मंत्री हलप्पा को उनके मित्र ने अपने घर के पहले तले पर बने बेडरूम में भेज दिया। आधी रात के वक्त हलप्पा के सीने में दर्द उठी और उसने चिल्लाना शुरू कर दिया। सभी लोग जाग गए। यहां तक तो ठीक थी। मगर दर्द तो एक बहना था। मंत्री ने फायनेंसर से बताया कि उन्हें ब्लड प्रेशर समेत कई अन्य बीमारियां हैं और दवाएं डाक बंगले में ठहरे उनके बॉडीगार्ड के पास है। मंत्री ने अपने धर्म का निर्वाह किया और दवाओं को लाने डाक बंगले पर जा पहुंचे। वहां उन्हें मंत्री का बॉडीगार्ड नहीं मिला। वापस लौटे और घर में जो दृश्य देखा उससे सन्न रह गए। उन्होंने देखा कि मंत्री आपत्तिजनक हालत में है और उनकी पत्नी रो रही हैं। पत्नी ने बताया कि मंत्री ने उनके साथ अभद्र व्यवहार किया। यह सुनकर फाइनेंसर ने मंत्री की जमकर धुनाई की। मंत्री वहां से अपनी जान बचाकर भागे। ऐसा लगता है कि आज भारतीय लोकतन्त्र की द्रौपदी को राजनीतिक दु:शासनों ने सरेआम नंगा करने की ठान ली है। आर्तनाद से इनका दिल नहीं पसीजता। हर चित्कार पर ये अट्ठाहास करने के आदी हो चले हैं। सामाजिक बहिष्कार के साथ हमेशा के लिए इन्हें अयोग्य करार देना ही उचित होगा।

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