गुरुवार, 13 जनवरी 2011

देश मांगे जवाब, कहां है हिंदुस्तान

भ्रष्टाचार के मामले में विपक्ष की घेरेबंदी से बाहर निकलने के लिए सरकार लगातार हाथ-पैर मार रही है। दूसरी तरफ विपक्ष की कोशिश लगातार जारी है कि सरकार को चारों खाने चित्त कर दिया जाए। इस राजनीतिक रस्साकशी में कुछ गड़े मुर्दे भी उखाड़े जा रहे हैं। इस खेल में सीबीआई की भूमिका को भी नहीं नकारा जा सकता। स्थिति कमोबेश यहां तक तो साफ हो गई है कि आम जनता की सुध छोड़ सत्ता खुद लिए चिंतित हो गई है। उसका साथ देने वे सारे तंत्र खड़े हैं, जिन्हें परोक्ष अथवा प्रत्यक्ष रूप से फायदे दिख रहे हैं। लिहाजा हर कायदा ताक पर है। इसमें कोई दो राय नहीं कि भ्रष्टाचार से लडऩे वाले मोर्चे पर हम बेहद कमजोर होते जा रहे हैं। ऊपर से राजनेताओं, व्यपारियों और नौकरशाहों का एक ऐसा गठजोड़ बनता जा रहा है जिसका एक मात्र मकसद ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमाना हो गया है। जनसेवा के नाम से जानी जाने वाली राजनीति अब एक कारोबार का रुप लेती जा रही है जो आम आदमी के हित्त में नहीं है। राजनीति और नौकरशाही के स्तर पर बढ़ते भ्रष्टाचार से आम आदमी को जहां उसका वाजिब अधिकार नही मिल पा रहा वही देश की साख पर बट्टा भी लग रहा है। भ्रष्टाचार हमारी रगों में समा गया है और हम उसे निकाल नही पा रहे हैं। भ्रष्टाचार पर व्यापक बहस की जरूरत है कि आर्थिक अपराध करने वाला आखिर क्यों असानी से छूट जाता है? क्यों इसे संगीन अपराध नहीं बनाया जाता? सारा देश देख रहा है कि इतने बड़े बड़े घोटले बाहर आ रहे हैं और सरकार जेसीपी नहीं बनाने पर ही अड़ी हुई है। देश कब तक यह सब बर्दाश्त करता रहे? लंबे अर्से बाद कांग्रेस के खिलाफ पूरा विपक्ष एकजुट खड़ा दिख रहा है और बोफोर्स मामला भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई को और मजबूत कर सकता है।देश की राजनीतिक स्थिति बहुत ही गड़बड़ है। 2010 में अपने देश में भ्रष्टाचार के सारे रिकार्ड तोड़े गए हैं। देश की राजनीति में तिकड़मबाजों और जुगाड़बाजों का बोलबाला चारों तरफ बढ़ चुका है। करोड़ों रुपये के घोटाले हुएहैं। महंगाई डायन अब शेयर बाजारों को भी नेस्तानाबूद करने पर उतारू हो गई है। केंद्र सरकार महंगाई पर अंकुश लगाने में लाचार दिख रही है। सरकार का एक वर्ग भी यह मान रहा है कि महंगाई रोकने के लिए सरकार के स्तर पर बहुत कुछ नहीं हो सकता है। बुधवार को गृहमंत्री पी. चिदंबरम ने कुछ ऐसे ही बयान दिए थे। ऐसे में इस बात की पूरी संभावना है कि आगामी 25 जनवरी को वार्षिक मौद्रिक नीति की मध्य-तिमाही समीक्षा में रिजर्व बैंक महंगाई पर नियंत्रण करने के लिए अपनी नीतिगत दरों में बढ़ोतरी करेगा। महंगाई पर वार करने के लिए उठाए जाने वाले इस हथियार से विकास दर के पहिए में बाधा पड़ सकती है। निवेशक इसी चिंता में बिकवाली करने में जुटे हुए हैं। गिरावट की एक वजह यह भी है कि इस समय बाजार से विदेशी संस्थागत निवेशक (एफआइआई) गायब हैं। बीते साल इन्होंने घरेलू बाजार में जमकर पूंजी झोंकी। बोफोर्स मामले में नये खुलासे के बाद भारतीय जनता पार्टी ने आक्रामक तेवर अपना लिये है ं। 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले को लेकर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और बोफोर्स दलाली पर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को कटघरे में खड़ा करने की पूरी तैयारी की गई है। जिस तरह से आयकर पंचाट ने बोफोर्स तोप सौदे में गांधी परिवार के करीबी ओतावियो क्वात्रोच्चि के भी दलाली लिये जाने की पुष्टि की है उसके बाद कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी एक बार फिर विपक्ष के निशाने पर आ गई हैं और खुद कांग्रेस के लिये बचाव कर पाना मुश्किल हो रहा है। घोटालों को लेकर गर्म हुए राजनीतिक माहौल के बाद पहली बार भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक हो रही है। भाजपा और समूचा विपक्ष 2जी स्पेक्ट्रम को लेकर संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के गठन की मांग पर अड़ा है। पार्टी को लगता है कि केंद्र सरकार पर हमले तेज करने का यह एक बेहतरीन मौका है। बोफोर्स को लेकर नए खुलासे के बाद पार्टी इस बैठक में सरकार को घेरने के लिए नए सिरे से रणनीति बना सकती है। देश के सबसे बड़े विपक्षी दल ने भ्रष्टाचार के खिलाफ सभाएं करने की योजना बनाई है ताकि संसद के बजट सत्र तक इस मुद्दे को जीवित रखा जा सके। भाजपा ने हाल के दिनों में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर भी हमले तेज किए हैं। भाजपा के वरिष्ठ नेता जसवंत सिंह को अन्य विपक्षी दलों और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन में शामिल घटकों के साथ रिश्ते मजबूत करने की जिम्मेदारी सौंपे जाने के बाद पार्टी कार्यकारिणी की यह पहली बैठक है। पार्टी तमिलनाडु में आल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कडग़म, असम में असम गण परिषद, हरियाणा में इंडियन नेशनल लोकदल और आंध्र प्रदेश में तेलुगु देशम पार्टी व तेलंगाना राष्ट्र समिति के साथ रिश्ते फिर से सुधारने की कोशिश में है। पहले ये दल राजग के घटक हुआ करते थे। पिछले दिनों बिहार विधानसभा चुनाव में भाजपा- जदयू गठबंधन को मिली बड़ी जीत से भी भाजपा के हौसले बुलंद हैं। अब वह लोकसभा चुनाव से पहले राजग को और मजबूत बनाने के प्रयास में है। पार्टी अध्यक्ष नितिन गडकरी ने भी अपना एक साल पूरा कर लिया है , उनके तेवर और ज्यादा कड़े लग रहे हैं। भाजपा के तेवर दूर संचार मंत्री कपिल सिब्बल के नए तर्को के बाद और तीखे हो गए हैं। राज्यसभा में विपक्ष के नेता अरुण जेटली ने सरकार को चेतावनी देते हुए कहा कि ए. राजा और सरकार को पाक-साफ करार देकर कांग्रेस नेता बोफोर्स की गलती दोहराने जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि सीएजी के खुलासे और सिब्बल के आंकड़े के बाद तो जेपीसी जांच और जरूरी हो जाती है। नए साल में सरकार पर चौतरफा उठ रहे सवालों से उत्साहित भाजपा के नेता रणनीति बनाने गुवाहाटी में जुटे हैं। आतंकवाद के मामले पर असीमानंद के खुलासे से उन्हें थोड़ा झटका जरूर लगा है पर वह इसके कारण भ्रष्टाचार के मुद्दे की धार को कमजोर नहीं होने देना चाहते। सरकार की तरफ सिब्बल ने मोर्चा संभाला तो उनका जवाब जेटली ने दिया। उन्होंने दो टूक कहा कि उन्हें पहले ही आशंका थी कि संप्रग सरकार सच्चाई सामने लाने की बजाय पूरे मामले को रफा-दफा करने की कोशिश करेगी। बोफोर्स मामले में 23 साल उसने यही किया। सिब्बल ने विकृत आंकड़े पेश कर यह साबित करने की कोशिश की है कि ए. राजा ने नुकसान नहीं, बल्कि लाभ कराया है। यह आंखों में धूल झोंकने जैसा है। जेटली ने कहा कि अगर ऐसा था तो इस्तीफा क्यूं लिया? सीबीआई और पीएसी की जांच का क्या मतलब है? जेटली ने कहा कि 2007 में जब दूर संचार नियामक (ट्राई) ने बाजार दर पर आवंटन देना तय किया था तो 2008 में वर्ष 2001 की दर पर आवंटन कैसे किया गया। वर्ष 2008 में यह दर 9500 करोड़ रुपये थी, जबकि आवंटन 1651 करोड़ रुपये पर किया गया। सीएजी ने चार अलग- अलग तरीके से नुकसान का आकलन किया है। उसने 3जी के भी इसी आधार पर आवंटन किए जाने पर 1.76 लाख करोड़ रुपये के नुकसान की बात कही है। उन्होंने सिब्बल के तर्को पर सवाल खड़े करते हुए कहा कि उन्होंने सीबीआई, पीएसी और जेपीसी का दायित्व निभाते हुए जिस तरह खुद ही सरकार को पाक-साफ करार दे दिया वह हास्यास्पद है। इसके पहले असीमानंद के आतंकवादी घटना में शामिल होने की स्वीकारोक्ति व संघ के नेताओं पर उंगली उठाने के खुलासे पर टिप्पणी करते हुए भाजपा ने इसे मोड़ दे दिया। पार्टी ने कहा कि आतंकवाद को भगवा रंग देने की साजिश हो रही है। मुख्य प्रवक्ता रविशंकर प्रसाद ने कहा कि जांच होनी चाहिए, लेकिन यह ध्यान रखा जाए कि वह पूर्वाग्रह से ग्रसित न हो। उन्होंने कहा कि जो दोषी है उस पर कार्रवाई होनी चाहिए। साथ ही उन्होंने इस तरह की खबरों को लीक किए जाने पर भी चिंता जताई। राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक से पहले प्रदेश अध्यक्षों व प्रभारियों के साथ पार्टी कार्यक्रमों की समीक्षा करते हुए नितिन गडकरी ने स्पष्ट किया कि बहुत काम करने होंगे। कार्यक्रम अंत्योदय का हो या आजीवन सहयोगी बनाने का, इसे कम कर नहीं आंकना चाहिए। बताते हैं कि गडकरी ने राज्यों को स्पष्ट संकेत दिया कि उनके आपसी मतभेद कुछ भी हों, केंद्रीय नेतृत्व को परिणाम चाहिए। असम में हो रही बैठक का औचित्य स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा कि भाजपा की पहुंच से यह क्षेत्र छूटा हुआ है। लिहाजा संभावनाएं भी काफी हैं। दूसरी तरफ 2-जी स्पेक्ट्रम घोटाले की जांच जेपीसी से कराने को छोड़ कर कांग्रेस तमाम ऐसे उपायों पर विचार कर रही है, जिससे लगे कि वह भ्रष्टाचार से लडऩे को लेकर गंभीर है। अध्यादेश के जरिए प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे में लाने का प्रस्ताव इनमें से एक है। इसके जरिए विपक्ष और जनता को यह संदेश दिया जा सकता है कि सरकार प्रधानमंत्री को जांच की आंच से बचाना नहीं चाहती। जेपीसी की मांग न मानने की वजह से सरकार पर यह आरोप लग रहा है कि वह पीएम को बचाने के लिए ही इससे कतरा रही है। लेकिन मंत्रिमंडल में लोकपाल विधेयक को लेकर आम राय नहीं है। कुछ मंत्री नहीं चाहते कि सरकार फिलहाल इस तरह का कोई जोखिम उठाए। वैसे लोकपाल विधेयक को अगर धारदार नहीं बनाया गया, तो इसे लागू करने का कोई अर्थ नहीं रह जाएगा। वर्तमान में राज्यों में लोकायुक्तों का क्या हाल हुआ है, यह हम देख रहे हैं। कार्यपालिका और विधायिका ने इस संस्था को खिलवाड़ बना दिया है। इसलिए अगर नख-दंत विहीन लोकपाल ले भी आया जाए तो इससे क्या मकसद पूरा होगा? सरकार तात्कालिक रूप से इसका श्रेय तो ले लेगी, मगर भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई अधूरी ही रह जाएगी? भ्रष्टाचार से लडऩे के लिए गठित ज्यादातर संस्थाएं यहां केवल सजावटी बनकर रह गई हैं। इन्हें स्वतंत्र और शक्तिशाली बनने ही नहीं दिया गया। कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका के संबंधों का ताना-बाना कुछ इस तरह से बुना गया है कि वे एक-दूसरे पर नजर रख सकें और एक-दूसरे को निरंकुश होने से रोकें। इस संतुलन के गड़बड़ाने से ही सारी समस्याएं पैदा हुई हैं। आज तीनों अंग अपनी श्रेष्ठता कायम करने और अपने लिए विशेषाधिकार की मांग कर रहे हैं। आखिर क्यों प्रधानमंत्री और मुख्य न्यायाधीश किसी भी मूल्यांकन या समीक्षा से परे हों? कांग्रेस पार्टी की राजनीति में सारी ताकत राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाने के अभियान में झोंकी जा रही है। समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता के बुनियादी सिद्धांत पता नहीं कहां दफन हो गए हैं। आलाकमान कल्चर हावी है और सुप्रीम नेता से असहमत होने का रिवाज ही खत्म हो गया है। राजनीतिक जागरूकता के बुनियादी ढांचे में कहीं कुछ भी निवेश नहीं हो रहा है। ठोस बातों की कहीं भी कोई बात नहीं हो रही है। पार्टी के बड़े नेता चापलूसी के सारे रिकार्ड तोड़ रहे हैं और आजादी के बुनियादी सिद्धातों की कोई परवाह न करते हुए अमरीकी पूंजीवाद के कारिंदे के रूप में देश की छवि बन रही है। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ हुई पार्टी की कोर ग्रुप की बैठक में तेलंगाना और महंगाई पार्टी के एजेंडे में ऊपर थे। कांग्रेस को तेलंगाना की चिंता तो है, लेकिन छोटे राज्य के पक्ष में आगे बढऩे पर इसी साल दो चुनाव वाले राज्यों में ही संकट खड़ा हो सकता है। पश्चिम बंगाल में गोरखालैंड तो असम में बोडोलैंड को लेकर भी भावनाएं उफान मारने की आशंका है। इसके अलावा महाराष्ट्र से विदर्भ को अलग करने की मांग भी बहुत पुरानी है। उत्तर प्रदेश को तीन हिस्सों-पूर्वाचल, हरित प्रदेश और बुंदेलखंड में बांटने की पैरवी भी लगातार होती रही है। इस बात पर सहमति बनी है कि कांग्रेस अपनी तरफ से पत्ते बिल्कुल नहीं खोलेगी। तेलंगाना विरोधी या समर्थक कांग्रेस नेताओं को भी संयम रखने के लिए कहा जाएगा। चूंकि, पार्टी आंध्र में नुकसान तय मान रही है, लिहाजा उसकी कोशिश वहां हिंसा रोक कर दूसरे राज्यों में छोटे प्रदेशों की मांग रोकना प्राथमिकता पर होगी। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा कि प्रशासनिक प्रक्रिया में और अधिक पारदर्शिता तथा निगरानी सुनिश्चित करने के लिए चरणबद्ध तरीके से बदलाव लाने के प्रयास जारी हैं। उन्होंने कहा कि इस दिशा में हमने ईमानदारी से काम करने का विचार किया है।ÓÓ सिंह की यह टिप्पणियां इसलिए महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि सरकार की 2 जी स्पेक्ट्रम आवंटन, राष्ट्रमंडल खेल सहित विभिन्न घोटालों को लेकर आलोचना हो रही है। जनमानस भय और दु:ख से भौचक्का हो रहा है क्योंकि देश का नेतृत्व भ्रष्ट सिद्ध हो गया है। कार्यपालिका, न्यायपालिका और खबरपालिका सभी में भ्रष्ट व्यवहार की दुर्गन्ध जनमानस तक पहुंच रही है। यह तो वह कहानियां हैं जो खुल गई, परन्तु इनके खुलने से मन में एक और डर उत्पन्न होता है कि जो खुला नहीं वह कितना विराट और भयंकर होगा? देश की अर्थव्यवस्था में जो धन संचालित है उससे कहीं अधिक धन काले धन्धों में लगा है और उससे भी कहीं अधिक धन भारतीय नागरिकों के नाम से विदेशी बैंकों में जमा है। कुछ विदेशी बैंकों ने जब इस बात के संकेत दिये कि वह अपने यहां भारतीयों के खातों का विवरण देने को तैयार है तो हमारी सरकार मौन रही। कारण स्पष्ट है, अपने पांव पर कुल्हाड़ी मारने वाला शेखचिल्ली कहलाता है। आमजन में विशेषकर आने वाली पीढ़ी में ऐसे संस्कार बन रहे हैं मानो की अनैतिक और भ्रष्ट व्यवहार ही शिष्टाचार है। ऐसा लगने लगा है कि दो नंबर की कमाई करना मान्य है और उसके लिए प्रयास करना वांछित सामाजिक व्यवहार है। नैतिकता का आधार खिसकता हुआ दिख रहा है। आम व्यक्ति स्तब्ध है और नहीं जानता है कि उसे क्या सोचना चाहिए और क्या करना चाहिए। आर्थिक और नैतिक धारणाओं के आधार पर वर्तमान भारतीय समाज को तीन हिस्सों में विभाजित किया जा सकता है। पहला वर्ग सत्ता के गलियारों में स्थित कमरों में बैठने वाला और गलियारों में घूमने वाला है। इसमें अधिकतर राजनेता, प्रशासनिक अधिकारी, बड़े-छोटे व्यापारी व उद्योगपति हैं जिनको दलालों का वर्ग संचालित करता है। दलालों के लिए भी अंग्रेजी के एक प्रतिष्ठित शब्द का प्रयोग हो रहा है-'लॉबिस्टÓ। यह पूरा का पूरा वर्ग मन, वचन और कर्म से भ्रष्ट है। देश को लूटना अपना अधिकार ही नहीं कर्तव्य और धर्म भी मानता है। इनकी मानसिकता उन लुटेरे मुगलों की और ब्रिटिश अधिकारियों की है जिन्होंने उस देश को कंगाल बना दिया, जिस देश की दूध-दही की नदियां बहने वाली व्याख्या की जाती थी। इनके मन में कभी भी अपने कार्य के प्रति शक या पश्चाताप की गुंजाईश नहीं है। ए. राजा, अशोक चव्हाण व राडिया उनके प्रतिनिधि हैं। समाज का दूसरा वर्ग वह है जो ईमानदारी और शिष्टाचार का लबादा ओढ़ कर बैठा है। वह पहले वर्ग के भ्रष्टाचारी लोगों के साथ उठता-बैठता है। कदम मिलाकर चलता है और हम प्याला होता है, परंतु अपनी छवि भ्रष्ट न होने की चेष्ठाएं बनाये रखता है। यह वर्ग भ्रष्ट नहीं है ऐसा विश्वास जनमानस के मन में रहता है। परन्तु यह भ्रष्ट है या नहीं यह शक के दायरे में है। उनके नाक के नीचे भ्रष्टाचार हो रहा है और जिस टोली के वह नेता हैं उस टोली के ही कार्यकर्ता हर किस्म का अपराध कर रहे हैं परन्तु अपने अधीन हो रहे भ्रष्टाचार से वह अपने आपको अलग रखते हैं और कभी-कभी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से भ्रष्टाचार को संरक्षण भी देते हैं। किसी भी भावी जांच के पक्ष में वह नहीं होते और यदि जांच हो भी तो उसे प्रभावित करके भ्रष्टाचारियों को अपने लबादे के अंदर लपेट कर बचा के ले जाते हैं। वर्तमान में प्रशासन के शीर्ष नेता और संगठन के शीर्ष नेता दोनों ही भ्रष्ट प्रणाली के सर्वेसर्वा हैं। निष्क्रिय हैं और मौन हैं। सज्जन व्यक्तित्व का आडंबर भी करते हैं। यह वर्ग छोटा है परन्तु देश और राष्ट्र के लिए सबसे अधिक घातक है। भ्रष्टाचारी, देशद्रोही की तो पहचान है परन्तु जो भेडिय़े बकरी का रूप धारण किए हैं उनसे बचना होगा। समाज का तीसरा वर्ग आम जनता का है। जो नीयत और व्यवहार से देशप्रेमी है, ईमानदार है परन्तु अपने कर्तव्य की पहचान उसे नहीं है। इनमें से एक वर्ग ऐसा है जो मौका मिलते ही पहले या दूसरे वर्ग अर्थात भ्रष्टाचारियों या छद्म शिष्टाचारियों के साथ मिल जाता है। इनकी देशभक्ति के संस्कार दुर्बल हैं और समाज के प्रति समर्पण क्षीण है। परन्तु यदि उचित वातावरण मिले तो यह लोग भी शिष्टाचारी और ईमानदार हो जाते हैं। जैसा अवसर या वातावरण मिलता है उसी में यह ढल जाते हैं।

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