बुधवार, 5 मई 2010
जय हो रक्तपिपासु जोंक महाराज की
अजगर करे ना चाकरी, पंछी करे ना काम। दास मलूका कह गए सबके दाता राम।राम सबके दाता हैं - अजगर के भी, पंछी के भी और आज के हालात में अधिकारियों के भी। वह पराए माल पर ही मस्त रह सकता है। पराया माल खाए बिना उसके पेट में मरोड़ शुरू हो जाती है। जिस पतल में वह खाता है, उसमें छेद करना वह बेहतर जानता है। रहमदिल तो वह हो ही नहीं सकता। वह जब चाहे जहाँ चाहे जिस समय खड़े-खड़े देश को बेच सकता है। इस पर तीर-तुक्के चलाने की जरूरत नहीं। भला वह नहीं खाएगा तो क्या किसी मन्दिर में बैठकर शंख बजाएगा? अपना खाकर वह जिन्दा नहीं रह सकता! निहायत परजीवी है वह। गाल बजाना और लोगों की बजाते रहना कोई उससे सीखे। वह बेसिर -पैर की बात करता है, बेसिर-पैर के काम करता है। लोग जब उसकी करतूतों से दु:खी होकर कपड़े फाडऩे, बाल नोंचने को मजबूर होने लगते हैं, उस समय वह वातानुकूलित कक्ष में बैठकर मेज पर पैर रखकर आराम करता है। संवेदना से उसका कोई लेना-देना नहीं होता है। अगर वह द्रवित हो जाएगा तो ग्लेशियर की तरह पिघलकर विलीन हो जाएगा। उसके द्वारा खरीदी बुलेट्प्रुफ जैकेट से अगर गोली भी पार हो जाए तो उसकी सेहत पर असर नहीं पड़ता क्योंकि जिसको मरना है, वह तो तो मरेगा ही, चाहे दुश्मन की गोली से मरे चाहे डॉक्टर द्वारा दी गई दवाई की नकली गोली से। जनता पर उसका उसी तरह का अधिकार होता है, जिस तरह गरीब की जोरू पर सभी पड़ोसियों का अधिकार होता है। अधीनस्थ कर्मचारी उसे यूज एण्ड थ्रो से ज्यादा अहमियत नहीं रखते। भला वह अधिकारी ही किस काम का जो दूसरों के सिर-दर्द का ताज खुद पहनकर घूमता फिरे। सच्चा अधिकारी तो वह है जो सिर-दर्द को मन्दिर के प्रसाद की तरह सब मातहतों में बाँटता रहता है। माकूल अधिकारी वही है, जिसमें दृष्टि का अभाव हो। अधिकारी अगर हर बात को तुरन्त समझने की मशक्कत करेगा, तो सक्रिय होना पड़ेगा। सक्रियता से अफसरशाही पर बट्टा लगता है। हर काम को पेचीदा बनाकर इतना उलझा दो कि कोई माई का लाल उसे सुलझाने की हिमाकत न करे, जो कोशिश करे वह भी उसी में फँसा रह जाए। फँसे हुए लोग ही अधिकारी के पास आते हैं। जो फँसते नहीं वे अधिकारी के दिल में बसते नहीं। बड़े बाबू को कोई सलाम क्यों करेगा? छोटे बाबू तो बेचारे वैसे ही कम पाते हैं। इनके पेट पर लाठी मारना भला कहाँ का न्याय है? भूखे लोगों के चेहरे की आभा महीने भर में खत्म हो जाती है। अपना पैसा खाने से चेहरे की सारी रौनक चली जाती है। सो जय हो परजीवी की। जय हो रक्तपिपासु जोंक महाराज की। जय हो आपको पालने की हिम्मतवालों की। राम-राम जपना, पराया माल अपना। खाए जाओ, खाए जाओ।
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