सोमवार, 31 मई 2010
मौत के रनवे पर विदेशी पायलट
मैंगलोर विमान हादसे के एक दिन बाद ब्लैक बॉक्स बरामद कर लिया गया है। नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (डीजीसीए) की एक टीम ने विमान के मलबे से बॉक्स को बरामद किया। बॉक्स की बरामदगी के बाद अब यह साफ हो सकता है कि आखिर किस वजह से विमान हादसा हुआ। इसमें यह भी पता लग सकता कि लैंडिग के समय पायलट ने किसी के साथ कोई संपर्क करने की कोशिश की थी या नहीं। बताया गया है कि अमेरिकी परिवहन विशेषज्ञों की एक टीम बोइंग के अधिकारियों के साथ मिलकर मैंगलोर विमान हादसे की जांच करेगी। भारत सरकार ने हादसे के बाद अमेरिका के नेशनल ट्रांसपोर्टेशन सेफ्टी बोर्ड (एनटीएबी) से जांच में मदद करने के लिए एक टीम भेजने का अनुरोध किया था। लेकिन सवाल उठ रहा है कि क्या भारतीय कंपनियों ने अपनी उड़ानों की कमान विदेशी पायलटों को सौंप कर मुसाफिरों की जान जोखिम में डाली है? सरकार ऐसा नहीं मानती है, लेकिन विशेषज्ञ सवाल जरूर उठाते हैं। मैंगलोर में दुर्घटनाग्रस्त हुए एयर इंडिया एक्सप्रेस विमान की कमान ब्रिटिश मूल के सर्बियाई कैप्टन जेड ग्लूसिया के हाथों में थी। एसएस अहलूवालिया उनके को-पायलट थे। कहा जा रहा है कि 53 साल के ग्लूसिया के पास दस हजार घंटे विमान उड़ाने का अनुभव था और वह बाजपे हवाईअड्डा (जहां हादसा हुआ) पर पहले भी 16 बार विमान उतार चुके थे। अहलूवालिया के पास भी 3,650 घंटे का अनुभव बताया जा रहा है। ग्लूसिया के पास भले ही अनुभव की कमी नहीं हो, लेकिन भारतीय कंपनियों में विदेशी पायलटों की नियुक्ति पर अनुभव से इतर, दूसरे कारणों से भी सवाल उठते रहे हैं। पायलट एसोसिएशन के एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि विदेशी पायलटों को भारत में काम करते हुए संवाद करने में मुश्किल आती है। फिर वे यहां की भौगोलिक परिस्थितियों से भी अंजान होते हैं। अगर भरोसा करें तो एयर ट्रैफिक कंट्रोल से जुड़े एक सूत्र के मुताबिक कई बार विदेशी पायलट हमारे उच्चारण में अंतर के कारण हमारी बात नहीं समझ पाते हैं और निर्देशों का पालन करने से चूक जाते हैं। ध्यान देने वाली बात यह है कि भारत में पायलटों की भारी कमी के मद्देनजर बड़ी संख्या में विदेशी पायलट रखे गए। तमाम एयरलाइन कंपनियों में इनकी संख्या 560 है। एयर इंडिया के पास 250 विदेशी पायलट हैं। सस्ती विमान सेवा उपलब्ध कराने वाली इसकी सहयोगी कंपनी एयर इंडिया एक्सप्रेस ने भी 125 विदेशी पायलटों की नियुक्ति कर रखी है। सरकार ने भारतीय कंपनियों से विदेशी पायलटों को हटाने के लिए कह रखा है। इसकी समय सीमा भी 31 जुलाई, 2010 तय कर दी गई थी, लेकिन एयरलाइन कंपनियों की मांग पर इसे एक साल आगे बढ़ा दिया गया है। एयर इंडिया के पास और भी समस्याएं हैं, जो यात्रियों पर किसी न किसी रूप में भारी पड़ती हैं। इनमें पुराने पड़ते बेड़े के विमान, लो-कॉस्ट निजी कंपनियों की चुनौती, बढ़ता घाटा, 3.3 अरब रुपये का कर्ज, पायलटों को काम की तुलना में ज्यादा वेतन-सुविधा, पायलटों में अनुशासन की कमी (बीते अक्टूबर में एयर इंडिया का एक पायलट यात्रियों के सामने ही चालक दल के एक सदस्य से भिड़ गया था) आदि तो गिनाई ही जा सकती हैं। बहरहाल, खाक हुए अरमानों से कितने सीख ली जाती है, यह तो समय ही बताएगा, लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं कि बार-बार समीक्षा के बावजूद सुरक्षा हाशिए पर ही खड़ी नजर आती है। एक और समीक्षा की घड़ी सामने है।
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