रविवार, 6 जून 2010
सरकार सोई नहीं है
सरकार सोई या बीमार नहीं है, वो जाग रही है। उसने तो सत्ता, नोट और बाहुबल केत्रिफला चूर्ण से अपना हाजमा सुधार रखा है। वो पचा लेती है तिल-तिल कर मर रहे भूखे लोगों का दर्द। वो देखती है बिल्कुल करीब से महंगाई के इस दौर में गरीब का आटा गिला होते।आंकड़े एकत्र करती है औरसंसद में पेश करती है कि आज कितने किसानों ने खुद्कुशी की। वो अनुसन्धान में रत है कि आखिर बेरोजगारी से कितने परिवार तबाह होते हैं या कितने युवा काम की तलाश में उसके किसी मोर्चे में,किसी आन्दोलन मेंचन्द पैसों के लिये मर भी सकते हैं। वो अध्ययन करती हैकि ऐसे कौन से मुद्दे हो सकते हैं जो प्रजा के मर्म परप्रहार कर नाजुक भावनाओं को तहस-नहस कर सके। वो परखती है कि महंगाई के बावज़ूद आम आदमी कैसे जिन्दा रह लेता है? वो अपने साथ अपने परिजनों को भी मुफ्त हवाई यात्रा करा कर देश में फैली अस्थिरता के दर्शन कराती है। सच में सरकार सोई नहीं है। उसे चिंता है देश की। सोई तो प्रजा है जिसे कुछ भान भी नहीं कि देश चलता कैसे है? धन स्वीस बैकों में पहुंचता कैसे है? कैसे नेता बनते ही धनवान बना जा सकता है?और कैसे आदमी को उल्लू बनाया जाता है? उसने बड़ी लगन से वैज्ञानिक अविष्कार किया है कि हवा के ज्यादा दबाव में कैसे विकल्पहीनता पैदा की जा सकती है? सचमुच राजनीति का त्रिफला बहुत फलता है। जनता अर्धचेतन में है। गहरी नींद में होती तो उठाया जा सकता था। मगर वह मूर्छित है। सब देख रही है, लेकिन कुछ करने की इच्छा मात्र भी शेष नहीं।
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