गुरुवार, 13 जनवरी 2011
नफरत और कट्टरवाद का शैतान समंदर किनारे
केरल की हरियाली और बेशुमार खूबसूरत तटों की वजह से उसे गॉड्स ओन कंट्री का खिताब दिया गया है लेकिन अब यहां की तस्वीर बदल रही है समंदर के किनारे इस खूबसूरत सूबे में नफरत और कट्टरवाद का शैतान पहुंच चुका है। भगवान के इस देश में नारा गूंज रहा है-नया कारवां, नया हिंदुस्तान। ये नारा है केरल के धार्मिक ढांचे को तोडऩे में जुटी ताकत पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया यानी पीएफआई का। दलितों और कमजोरों के हक की लड़ाई के लिए बना संगठन पीएफआई आज जेहाद की वकालत कर रहा है। अपने सबसे बड़े विरोधी आरएसएस की तर्ज पर उसका अपना काडर है, अपना झंडा और अपना लिबास भी। पीएफआई ने अपनी मौजूदगी का ताजा अहसास कराया कोट्टायम में एक प्रोफेसर का हाथ कलम करके। 4 जुलाई 2010 की सुबह, कोट्टायम जिले का मुवात्ताुपूझा इलाका। न्यूमैन कॉलेज के प्रोफेसर टीजे जोसेफ की कार पर 8 लोगों ने चाकुओं, तलवारों, कुल्हाडिय़ों और देसी बमों से हमला किया और प्रोफेसर का दायां हाथ काटकर पड़ोस के एक घर में फेंक दिया। प्रोफेसर पर आरोप था इम्तिहान के सवाल के जरिए पैगंबर साहब की शान में गुस्ताखी। जोसेफ ने बताया कि उन्होंने ये सवाल एक इन्टर्नल इम्तिहान के लिए डाला था। किसी ने ये पर्चा बाहर लीक कर दिया और ये मुद्दा बन गया। मेरे सवाल को गलत तरीके से पेश किया गया जिसके लिए मुझे बहुत अफसोस है। ये कुछ कट्टरपंथी लोग थे जिन्होंने मुझ पर हमला किया। इतनी नफरत कैसे पनपी उस राज्य में जहां पहली चुनी हुई कम्युनिस्ट सरकार बनी थी और जहां कम्युनिस्टों और कांग्रेस का शासन है। पूरा देश चौंक गया। जाहिर है, कुछ ऐसा चल रहा था जिसकी खबर बाकी मुल्क को नहीं थी। राज्य के डीजीपी जैकब पन्नूस कहते हैं कि मुझे लगता है कि कुछ नौजवान जो कुछ संगठनों से जुड़े हुए हैं, उनको गलत राह दिखाई गई है। दरअसल क्या हुआ है कि कुछ गलत राह चलने वाले नौजवान कुछ आतंकवादी संगठनों से मिल गए हैं। मल्लू लोग पूरे देश में फैले हुए हैं और ऐसे कुछ लोग वो केरल में आतंकी तहरीक शुरू कर रहे हैं। यानी पुलिस को भी पता है कि केरल में आतंकवाद पसर रहा है। कभी हमले करके, तो कभी जबरन शादियां कराकर तो कभी धर्म परिवर्तन के जरिए। प्रोफेसर जोसेफ पर हमले की जांच में सामने आया इस्लामिक संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया का नाम जिसके खिलाफ पहले ही केरल, कर्नाटक और तमिलनाडु में सांप्रदायिक दंगों और लव जेहाद के चार केस दर्ज थे। वहां कैमरे पर पहली बार पीएफआई ने कबूला कि प्रोफेसर पर हमला उसी के लोगों ने किया था। प्रो के कोये ने बताया कि हमने 4 लोगों को अपनी पार्टी से सस्पेंड किया है इस मामले को लेकर लेकिन बाकी लोगों के बारे में हम नहीं जानते हैं कि वो लोग भी हमारी पार्टी से जुड़े हैं। ये सिर्फ पुलिस का कहना है अभी तक उनकी पहचान नहीं की गई है। इसका मतलब पीएफआई ही इस हमले की जड़ में था। सवाल ये कि आखिर 91 फीसदी साक्षरता वाले इस सूबे में पीएफआई जैसा संगठन वजूद में कैसे आया। हमने इतिहास खंगाला तो पता चला कि 2006 में जब पीएफआई की नींव पड़ी तो इसका मकसद था दलितों और अल्पसंख्यकों की आवाज बनना लेकिन जैसे-जैसे खाड़ी देशों से पैसे की आमदरफ्त बढ़ी पीएफआई के मकसद बदलने लगे। 2009 में देश को एक नया लफ्ज मिला- लव जेहाद जिसने पूरे केरल में दहशत पैदा कर दी। आरोप था कि पीएफआई गैरमुस्लिम लड़कियों को फांसकर उनसे मुस्लिम नौजवानों की शादियां करा रहा है। इसके एवज में मुस्लिम नौजवानों को लाखों रुपए दिए जा रहे हैं। कोर्ट पहुंची लड़कियों ने भी इस बात पर मुहर लगाई। लड़कियों की शिकायत पर केरल हाईकोर्ट ने रिपोर्ट तलब की मगर पुलिस इसे साबित नहीं कर सकी। डीजीपी जैकब पन्नूस कहते हैं कि अगर ये एक ग्रुप के तौर पर हो रहा हो, तो हम इसके खिलाफ जरूर कार्रवाई करते लेकिन एक-दो केस ये साबित नहीं करते हैं एक इंसान किसी के साथ भी प्यार कर सकता है। दोनों समुदायों के लोगों में लव जेहाद को लेकर आरोप-प्रत्यारोप जारी हैं। लव जेहाद को लोग भूले भी नहीं थे कि प्रोफेसर पर जानलेवा हमले के बाद पुलिस को पीएफआई सदस्यों से कुछ ऐसी चीजें मिलीं जो आतंकियों से उनके ताल्लुकात पर रोशनी डालती हैं इनमें थे-अलकायदा के प्रचार वीडियो, विस्फोटक और हथियार, जाली सिमकार्ड और आईडेंटिटी कार्ड्स मगर पीएफआई खुद को पाकदामन बताता रहा। जेहाद की फसल उगाने की कोशिश कर रही पीएफआई की हमदर्द पीपुल्स डेमोक्रेेटिक पार्टी भी उतनी ही दागदार है। इसके मुखिया अब्दुल नासिर मदनी पर 2008 के बैंगलोर ब्लास्ट, केरल में सांप्रदायिक दंगे और अनवर शैरी मदरसे के जरिए कट्टरवाद फैलाने के केस चल रहे हैं। कोयंबटूर ब्लास्ट केस में सबूतों के अभाव में वो छूट गया था। हाल ही में एक मदरसे में बंगलोर धमाकों के मुख्य आरोपी नजीर से मुलाकात ने उसे फिर जेल की सलाखों के पीछे पहुंचा दिया। अब्दुल नासिर मदनी कहता है कि नौ साल जेल में रहने के बाद मैं बदल गया हूं। असल में खुफिया सूचनाओं के बावजूद पीडीपी और पीएफआई पर नरम रुख सरकार की मजबूरी रही है क्योंकि मामला मुस्लिम वोटों का है। डीजीपी जैकब पन्नूस कहते हैं कि मैं किसी भी संगठन का नाम नहीं लेना चाहता हूं क्योंकि मैं एक जिम्मेदार कुर्सी पर बैठा हूं। वरिष्ठ बीजेपी नेता पीजी जयेन कहते हैं कि केरल में कट्टरवाद रोकने के लिए सरकार ने कोई कदम नहीं उठाया है। ये सभी लोग कहते हैं क्योंकि पीडीपी और पीएफआई दोनों ही केरल की राजनीति की वजह से मौजूद हैं। दोनों का एलडीएफ और यूडीएफ साथ दे रही हैं। केरल से बाहर भी पीएफआई फैलने की कोशिश में है। यूपी में कई जगह पीएफआई ने काडर तैयार किया। हैदराबाद में सांप्रदायिक भावनाएं भड़काने वाले पोस्टर लगाए और मुसलमानों का हमदर्द बनकर उभरने की कोशिशें की हैं। पता चला कि मलप्पुरम के चार मुस्लिम नौजवान जेहादी बनकर कश्मीर गए थे और सीमा पार करते हुए पुलिस मुठभेड़ में मारे गए थे। इनमें एक था अब्दुल रहीम सो हम रहीम के घरवालों से मिलने के लिए मलप्पुरम पहुंच गए। रहीम के रिश्तेदार एम यूसुफ ने बताया कि क्या हुआ, किसी को मालूम नहीं है। हम लोगों ने भी सुना है कि पाकिस्तान जाते हुए वो कश्मीर में मारा गया। वो इलेक्ट्रानिक माल बेचने जाता था, इस वक्त भी ऐसे ही गया। फिर आदमी लोग आकर बोले फिर उसकी मां को पता चला। अगर ऐसा पता चलता तो हम उसको जरूर रोकते। साफ है कि मजलूमों के हक की लड़ाई लडऩे का लबादा ओढऩे वाली पीएफआई और पीडीपी के चरित्र में लोकतंत्र और सेक्युलरिज्म के लिए जगह ही नहीं है।
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