गुरुवार, 13 जनवरी 2011

पारदर्शिता के कड़वे सच

बात सौ टक्के सही है। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र को पारदर्शी बनाने की प्रक्रिया तेजी पर है, लेकिन बात यह भी है कि पारदर्शिता का दावा करने वाली हर नियमों को राजनीतिक गलियारों में या तो मसल दिया जाता है या फिर उसका मुंह काला कर छोड़ दिया जाता है। गुजरे वर्ष के दौरान तो घोटालों की बाढ़ सी आई। देश के कई भाग इस सैलाब में अंदर तक डूब गए। सूचना के अधिकार का अमोघ शस्त्र लगातार संधान किया जाता रहा है। जानकारी से पता चला है कि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री, उप-मुख्यमंत्री, एवं मंत्रियों को शपथ लेेने के बाद भले ही अपनी संपत्ति घोषित करने की बाध्यता हो, मगर 1995 से आज तक किसी भी मंत्री ने ऐसा करने की जहमत नहीं उठाई है। यह खुलासा आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली द्वारा प्राप्त सूचना से पता चला है। उन्होंने अपने सवाल में 1995 से मौजूदा कार्यकाल तक मुख्यमंत्री, उप-मुख्यमंत्री, एवं मंत्री ने अपनी घोषित की हुई संपत्ति की जानकारी मांगी थी। सामान्य प्रशासन विभाग के अवर सचिव एवं सूचना अधिकारी डी. ए. शिंदे ने अपने जवाब में स्पष्ट किया है कि केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा केंद्र और राज्य सरकार के मंत्रियों के लिए बनाई गई आचार संहिता में यह प्रावधान किया है कि शपथ लेने के पूर्व एवं मंत्री पद का कार्यभार ग्रहण करने के दो महीने के भीतर प्रधानमंत्री एवं मुख्यमंत्री अपने तथा अपने परिवार के सदस्यों की संपत्ति के साथ-साथ उनके व्यावसायिक हित-संबंध प्रकट करेंगेे, लेकिन इसका पालन करने की बाध्यता नहीं बताई गई है। हाल ही में मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने अपने मंत्रिमंडल के सदस्यों को पत्र लिखकर उन्हें अपनी संपत्ति घोषित करने का आदेश जारी किया है। इससे पहले विलासराव देशमुख, सुशील कुमार शिंदे और अशोक चव्हाण भी ऐसा ही पत्र लिखकर अपने काबीना के लोगों से उनकी संपत्ति घोषित करने का आदेश दिया था। मगर सभी मुख्यमंत्रियों के आदेश सिर्फ रवायत भर के रह गए और किसी भी मंत्री ने ऐसा नहीं किया। ऐसे में यह देखना है कि हाल ही पृथ्वीराज चव्हाण जिन्हेें क्लीन गवर्नेंस के नाम पर यहां लाया गया है, वो अपने मंत्रियों से उनकी संपत्ति की घोषणा करा पाते हैं या नहीं। आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली का कहना है कि महाराष्ट्र सरकार को बिहार की सरकार से कुछ सबक लेना चाहिए, जहां के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के मौखिक आदेश पर ही सभी मंत्रियों ने अपनी संपत्ति की घोषणा कर दी और उसकी सूचना वेबसाइट पर दे दी। अब मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण को चाहिए कि वो खुद मिसाल कायम करें और सबसे पहले अपनी संपत्ति को सार्वजनिक करें। इससे दूसरे मंत्रियों पर मनोवैज्ञानिक दबाव बढ़ेगा और उन्हें अपनी मिल्कियत बतानी ही पड़ेगी। दरअसल, बिहार में जब से पारदर्शिता की वकालत शुरू हुई है, तब से राजधानी सहित देश के कई भागों में इसकी तोता रट जारी है। बिहार को पिछड़ी नजर से देखने वाले महाराष्ट्र सरीखे प्रदेश के मंत्रियों की लापरवाही ने उन्हें आत्मपरीक्षण का मौका दिया है। मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण के सामने यह किसी चुनौती से कम नहीं। इसे इस नजर से भी देखने की जरूरत है कि आखिर इतने वर्षों के दौरान क्यों नहीं कड़े संज्ञान लिए गए? अथवा जनप्रतिनिधि कहलाने पर गर्व करने वाले चेहरे खुद आगे क्यों नहीं आए? 15 साल की अवधि कम नहीं होती और इस दौरान की संपति का ब्यौरा फिर किस एजेंसी के द्वारा मुहैय्या कराया जाएगा। सवाल अनुतरित है, जवाब चाहिए।

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