गुरुवार, 13 जनवरी 2011

महंगाई पर छल

केंद्रीय गृहमंत्री और दो बार वित्तमंत्री रह चुके पी. चिदंबरम का यह कहना आघातकारी है कि उन्हें इस पर यकीन नहीं कि उनके अर्थात सरकार के पास खाद्य वस्तुओं की मुद्रास्फीति नियंत्रित करने के लिए सभी तरह के उपाय हैं। इसका एक अर्थ है कि खाद्य पदार्थो की महंगाई पर लगाम लगने के कहीं कोई आसार नहीं। इसका ताजा सबूत यह है कि कुछ सप्ताह पहले जो खाद्य मुद्रास्फीति 14.44 प्रतिशत के रूप में भयावह नजर आने लगी थी वह अब 18.32 प्रतिशत तक पहुंच चुकी है। यह जितना अस्वाभाविक है उतना ही अनुचित भी कि जब महंगाई रौद्र रूप धारण किए हुए है तब आम आदमी के हित की बात करने वाली केंद्र सरकार के नीति-नियंता यह कह कर पल्ला झाड़ रहे हैं कि हमारे पास उससे निपटने के उपाय ही नहीं। अब तो वित्त मंत्रालय के मुख्य आर्थिक सलाहकार ने भी यह कह दिया कि खाद्य महंगाई पर अंकुश लगाने के मामले में सरकार के उपायों की एक सीमा है। आखिर जब सरकार को यह पता ही नहीं कि खाद्य पदार्थो के बढ़ते दामों पर अंकुश कैसे लगाया जाए तब फिर महंगाई से निजात मिलने की उम्मीद कैसे की जा सकती है? यदि केंद्र सरकार के पास खाद्य मुद्रास्फीति पर लगाम लगाने के उपाय थे ही नहीं जैसा कि चिदंबरम ने कहा तो फिर प्रधानमंत्री, वित्तमंत्री और अन्य अनेक नेता यह झूठा आश्वासन क्यों देने में लगे हुए थे कि महंगाई बस थमने ही वाली है? यह देश के साथ किया जाने वाला छल नहीं तो और क्या है कि महंगाई थामने के मामले में यहां तक कहा गया कि अमुक-अमुक माह तक बढ़ते दामों पर अंकुश लग जाएगा? देश जानना चाहेगा कि पहले बहानेबाजी की जा रही थी या अब नए बहाने ढूंढे जा रहे हैं? केंद्र सरकार के रवैये से तो यह लगता है कि वह दिन दूर नहीं जब उसकी ओर से यह भी कहा जाएगा कि किसी भी तरह की महंगाई पर रोक लगाना उसके वश की बात नहीं। चूंकि यह पहले से स्पष्ट है कि रिजर्व बैंक की नीतियां खाद्य वस्तुओं की महंगाई पर काबू पाने में एक हद तक ही कारगर हो सकती हैं इसलिए देश की निरीह जनता के सामने महंगाई से जूझने के अतिरिक्त और कोई उपाय नहीं। वर्तमान में चिदंबरम भले ही गृहमंत्री के पद पर हों, लेकिन उनकी पहचान एक अर्थशास्त्री के रूप में है और इसीलिए उनका बयान कहीं अधिक हैरान-परेशान करने वाला है। महंगाई और विशेष रूप से खाद्य महंगाई ने देश को पहले भी आक्रांत किया है, लेकिन आजादी के बाद यह पहली बार है जब किसी सरकार की ओर से यह कहा जा रहा है कि वह मूल्य वृद्धि पर लगाम लगाने में नाकाम है। यदि चिदंबरम सही हैं तो इसका मतलब है कि कृषि और खाद्य एवं आपूर्ति मंत्रालय व्यर्थ में ही अस्तित्व में हैं। आज यदि केंद्र सरकार इस नतीजे पर पहुंच रही है कि उसके पास खाद्य महंगाई से निपटने के तौर-तरीके नहीं रह गए हैं तो इससे यह भी स्पष्ट हो जाता है कि न तो कृषि का उत्थान उसके एजेंडे में है और न ही खाद्यान्न के भंडारण और वितरण की समुचित व्यवस्था करना। इसके अनेक सबूत भी सामने आ चुके हैं और सबसे बड़ा सबूत है कृषि और खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री शरद पवार की नाकामियां।

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