गुरुवार, 29 अप्रैल 2010
रसीली बातों को सुनने का चस्का
मंहगाई से जूझ रहे देश में आईपीएल के साथ-साथ फोन टेपिंग गुंजायमान है। नक्सलवाद और आतंकवाद को भी इन दोनों मुद्दों ने गौण कर दिया है। सरकार की बातें भी समझ में नहीं आ रही हैं। गृहमंत्री पी. चिदंबरम नक्सलियों के खिलाफ ग्रीन हंट को बंद नहीं करने की बात करते हैं तो गृह राज्यमंत्री अजय माकन को पता ही नहीं ग्रीन हंट क्या है। उनकी मानें तो भारत सरकार ने 'ग्रीन हंट अभियानÓ नामक कोई कार्रवाई शुरू ही नहीं की है। लोग पसोपेश में हैं। यह सोचकर हैरान हैं कि सरकार के इस दो बयानों के क्या अर्थ हो सकते हैं। दूसरी घटना भी कम हैरतअंगेज नहीं। बिहार से कर्नाटक तक आवाज उठाई गई कि नेताओं की टेलीफोन पर हो रही बातें सुनी जा रही हैं। सरकार फंसने ही वाली थी कि केंद्रीय गृहमंत्री पी. चिदंबरम ने सोमवार को लोकसभा में कहा कि फोन टेपिंग की ही नहीं गई। तब या तो वे झूठे हैं, जो नाहक ही चिल्ला-चिल्लाकर सरकार को बदनाम कर रहे हैं या फिर सरकार झूठी है जो करनी करने के बाद उसकी लीपापोती में लगी है। फिर आडवाणी ने सदन में क्यों कहा कि यह बेहद गंभीर मसला है और सदन प्रधानमंत्री के सिवाय किसी और के जवाब से संतुष्ट नहीं होगा। उन्होंने फोन टेपिंग मामले को एक प्रकार से आपातकाल की वापसी करार देते हुए कहा कि यह सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का भी उल्लंघन है। आडवाणी ने तो इस संबंध में नए सिरे से कानून बनाए जाने और प्रधानमंत्री के जवाब की मांग की। अभी अमर सिंह की 'रसीली बातोंÓ वाले फोन टेपिंग के रहस्यों से पर्दा हटा नहीं है । नि:संदेह विपक्षी नेताओं या किसी भी व्यक्ति के निजी जीवन में इस तरह की दखल सरकार की तरफ से होना गंभीर है। अचरज नहीं कि यह मामला और कुछ दिन संसद में छाया रहेगा। जब से यह प्रकरण फूटा है, तब से कभी सुप्रीम कोर्ट के एक पूर्व प्रधान न्यायाधीश के पुत्र द्वारा कीमती जायदाद की खरीद, तो कभी गोर्शकोव सौदे में दलाली खाने और दोषी अधिकारी की रूसी महिला के साथ अंतरंग क्षणों वाली तस्वीरें जैसे अनेक प्रसंग सामने आए हैं। स्वयं आईपीएल में भी मोदी बनाम थरूर से शुरू हुए विवाद के तथ्य अब मोदी बनाम पटेल-पवार-वसुंधरा की तरफ मुड़ते लगते हैं। संभव है, फोन टेपिंग के कुछ पुराने प्रसंगों को नए से जोड़कर इसी विवाद को थोड़ा और सक्रिय करने का प्रयास किया जाए। अक्सर कॉरपोरेट लड़ाई में दोनों पक्ष एक-दूसरे की ताकत और कमजोरियों को जानते हैं। वे सिर्फ यह जांचने की कोशिश करते हैं कि दूसरे पक्ष के तरकश में नया तीर तो नहीं आ गया है या वह पक्ष लड़ाई में कहां तक जा सकता है। यह समझ लेने के बाद अक्सर वे थोड़ा झुककर समझौता कर लेते हैं। इसलिए जरूरी है कि आईपीएल की जांच अपनी रफ्तार से चलने दी जाए और फिर टेपिंग तथा निजता के हनन के सवाल को उठाया जाए।
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें