गुरुवार, 29 अप्रैल 2010

गुनाहों के देवता बन गए ललित मोदी

ललित मोदी आईपीएल की अपनी पहली पारी हार गए हैं लेकिन अभी बहुत सारे खुलासे होने बाकी है। तीन साल से करतूतों का कारोबार चला रहे ललित मोदी की बहुत सारी गफलतें और पोलें होंगी मगर उनके पास उन पर हमला करने वालों का काफी बड़ा कच्चा चि_ा है। जाहिर है कि ललित मोदी और आईपीएल की यह कहानी खत्म नहीं हुई है, इसमें कई मोड ़ आने बाकी हैं। ललित मोदी का इतिहास गवाह है कि वे जो चाहते है ंवह करने से उनको कोई नहीं रोक सकता। ललित मोदी के खिलाफ गुनाहों की लंबी सूची है मगर वे अपने आपको गुनाहों का देवता साबित करने में जुटे हुए हैं। मोदी की जिंदगी जिद का दूसरा नाम है। एक जिद, एक हठ, एक जुनून का नाम ललित मोदी। तमाम विरोध के बावजूद सपना देखना, उन सपनों में हकीकत के रंग भरने और हर कीमत पर उसे कामयाब बनाने का नाम ललित मोदी। आईपीएल का मंत्र देकर देश को देकर दीवाना बना देने वाले शख्स का नाम ललित मोदी। 20 हजार करोड़ रुपए कम नहीं होते लेकिन जब किसी के साथ ललित मोदी का नाम जुड़ा हो तो एक छोटा सा आइडिया सिर्फ तीन साल में 20 हजार करोड़ रुपए में बदल सकता है। बड़े सपनों के लिए बड़ी जिद जरूरी होती है। जितनी बड़ी जिद, उतना ही बड़ा जोखिम। 46 साल के ललित मोदी ने अपनी जिंदगी में जितनी जिद की उतना ही जोखिम भी उठाया। ललित मोदी ने आज तक जो भी चाहा उसे पाकर ही दम लिया है। अगर वो चीज किसी दूसरे के पास हुई तो उसे छीना भी है। ये ललित मोदी की शख्सियत का ऐसा पहलू है जो दुनिया नहीं जानती। बचपन में ललित मोदी का एक ही सपना था अमेरिका के स्कूल में पढऩा। इस सपने को पूरा करने के लिए ललित मोदी भारत के बड़े-बड़े स्कूलों में जानबूझकर फेल हुए। अपना सपना पूरा करने का ये अजीब तरीका था। शिमला का बिशप कॉटन स्कूल हो या फिर नैनीताल का सेंट जोसफ कॉलेज ललित हर जगह से भागे। उस वक्त मकसद एक ही था अमेरिका में पढ़ाई। थक हारकर घरवाले ललित मोदी को अमेरिका भेजने के लिए तैयार हो गए। ललित मोदी की जिद का एक और सबूत अमेरिका में पढ़ाई के दिनों का है। ये किस्सा एक बाप-बेटे के बीच जिद का है लेकिन उससे बड़ा सबूत खुद मोदी की शख्सियत का है जो ठान लिया वो ठान लिया।मर्सिडीज कार को देखते ही ललित मोदी की आंखों में चमक-सी आ जाती है। ये चमक उस वक्त भी थी जब वो अमेरिका की ड्यूक यूनिवर्सिटी में पढ़ाई कर रहे थे। ललित के पिता उनसे मिलने अमेरिका गए तो मोदी ने उनके एक मर्सिडीज मांग ली। चार हजार करोड ़का कारोबार करने वाले पिता के लिए मर्सिडीज छोटी-सी बात थी, लेकिन उन्होंने ललित मोदी को 5000 डॉलर देते हुए कहा कि कोई सस्ती कार खरीद लो। अगले ही दिन मोदी ने कार खरीदी लेकिन सस्ती नहीं चमचमाती हुई मर्सिडीज। ललित मोदी 5000 डॉलर से नई कार की पहली किश्त दे आए थे। मोदी खानदान में पहली बार कोई कार किश्तों में खरीदी गई। शायद यही वजह है कि ललित मोदी के पिता कृष्ण कुमार मोदी ने एक बार कहा था कि मेरे बेटे ललित के साथ दिक्कत ये है कि वो कुछ करने के लिए एक बात ठान लेता है तो ठान लेता है। पिता की ये बात बेटे पर आज भी लागू होती है। सपना पूरा करने की जिद चाहे इसके लिए कुछ भी करना पड़े। खुद ललित की शादी भी ऐसी ही जिद का नतीजा है। अपनी मां की करीबी दोस्त और उम्र में नौ साल बड़ी मीनल से एक बार शादी का मन कर गया तो पीछे नहीं हटे। नतीजा ये कि मीनल को अपने पहले पति को तलाक देकर मोदी से शादी करनी पड़ी। ललित मोदी ने घरवालों की नाराजगी तक की परवाह नहीं की। मीनल की बिटिया करीमा की शादी पंजाब किंग्स इलेवन के फ्रेंचाइजी मोहित बर्मन के भाई गौरव बर्मन से हुई है। ललित मोदी के बारे में एक बात कही जाती है या तो आप उसके साथ हो या फिर उसके खिलाफ। बीच का कोई रिश्ता ललित मोदी कभी नहीं रखते। मीडिया हो, बीसीसीआई या फिर राजनीति ललित मोदी के दोस्त भी हैं और दुश्मन भी। यही वजह है कि ललित की जिंदगी में लगातार उतार-चढ़ाव आते रहे। ड्यूक यूनिवर्सिटी में पढ़ाई के दौरान ही 1985 में ललित मोदी पर 400 कोकीन रखने रखने, अपहरण और हमला करने का आरोप लगा। कहा जाता है कि ललित मोदी ने नॉर्थ कैरोलाइना कोर्ट में ये बात कबूल भी की। नतीजा ये कि मोदी को दो साल की सजा हुई। हालांकि उन्हें जुर्म कबूलने के बाद छोड़ दिया गया लेकिन मोदी पर लगा ये दाग आज भी उनका पीछा नहीं छोड ऱहा है। विरोधियों के लिए मोदी की सबसे कमजोर नस है ड्रग्स रखने का आरोप। विवादों के भंवर में फंसने से पहले मोदी ने जो कुछ किया उसका माद्दा हर किसी में नहीं होता। ऐसा नहीं था कि ललित मोदी को क्रिकेट से शुरू से लगाव रहा हो। उनके लिए तो फुटबॉल और टेनिस ही असली खेल थे। शायद टेनिस देखते हुए ही ललित मोदी को पहली बार टी-20 का आइडिया आया। जब टेनिस का मैच तीन घंटे में खत्म हो सकता है तो फिर क्रिकेट पांच दिन या फिर आठ घंटे का क्यों हो। क्रिकेट के रोमांच को तीन घंटे में समेटने के इस आइडिया को ललित मोदी ने बुझने नहीं दिया। मोदी अपना घरेलू कारोबार करने में वैसे भी बहुत इच्छुक नहीं थे। जब 1996 में वॉल्ट डिजनी के साथ मिलकर ललित मोदी ने भारत में ईएसपीएन लॉन्च किया तब तक उनके दिमाग में क्रिकेट पूरी तरह हावी हो चुका था। शुरू में वॉल्ट डिजनी क्रिकेट को लेकर थोड़ी हिचक रही थी। लेकिन मोदी की जिद यहां भी जीती। पहली बार भारत में ईएसपीएन स्टार स्पोर्ट्स पर क्रिकेट मैच का प्रसारण शुरू हुआ। ये वो वक्त था जब ललित मोदी के लिए क्रिकेट ही सब कुछ बन गया। मोदी के दिमाग में हर वक्त एक मंत्र गूंज रहा था। क्रिकेट का एक ऐसा फॉर्मेट जिसमें नतीजा तीन घंटे में निकले, जिसमें रोमांच भी हो, मस्ती भी हो और पैसा भी। ललित मोदी ने इसी साल लिमिटेड ओवर के मैच कराने की योजना पर काम करना शुरू कर दिया। उस वक्त के कुछ बड़े क्रिकेटर ललित मोदी के फॉर्मूले पर खेलने के लिए तैयार हो गए। खुद ईएसपीएन भी इन मैचों को स्पॉन्सर करने के लिए राजी हो गया। यानी ललित मोदी का सपना 1996 में ही पूरा होने वाला था लेकिन तभी उस वक्त के बीसीसीआई अध्यक्ष जगमोहन डालमिया का ब्रह्मा चला। डालमिया ने मोदी का साथ देने वाले खिलाडिय़ों को सीधी धमकी दी कि अगर दूसरी लीग में खेले तो बीसीसीआई से पत्ता साफ। इस एक धमकी ने मोदी का सपना चकनाचूर कर दिया। खिलाडिय़ों ने अपने पैसे वापस पर मोदी से दूरी बना ली। जो इंसान जिद पर चलता हो वो सपना टूटना बर्दाश्त नहीं कर पाता। ललित मोदी भी पहले वार में पिटने के बाद उस वार की जड़ को ही खत्म करने में जुट गए। जिस बीसीसीआई ने ललित को उनकी जिद नहीं पूरी करने दी, उसी बीसीसीआई में शामिल होना ललित मोदी का एजेंडा बन गया। साल 1999 में ललित ने हिमाचल प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन का हाथ थामा। मोदी ने एसोसिएशन को गर्मियों में मैच खेलने के लिए एक स्टेडियम बनवाने का आइडिया बेच दिया। लेकिन इस बीच कुछ ऐसा हुआ कि ललित मोदी को एचपीसीए का साथ छोडऩा पड़ा। इसके बाद ललित मोदी अगले तीन साल तक किसी ना किसी क्रिकेट एसोसिएशन से जुडऩे की कोशिश करते रहे। लेकिन मोदी की मन की मुराद पूरी हुई दिसंबर 2003 में। वसुंधरा राजे राजस्थान की मुख्यमंत्री बन गईं। बहुत कम ही लोगों को पता है कि ग्वालियर राजघराने के साथ ललित मोदी के पुराने रिश्ते रहे हैं। ललित मोदी की दादी और वसुंधरा राजे की मां बहुत अच्छी दोस्त थीं। बरसों पुरानी वो दोस्ती 2004 में ललित मोदी के काम आई। अपनी जिद पूरा करने की ठान चुके ललित मोदी ने साम-दाम-दंड-भेद- हर तरीके से राजस्थान क्रिकेट एसोसिएशन से जुडऩे की कोशिश की। राजस्थान क्रिकेट एसोसिएशन पर पिछले 40 साल से रूंगटा परिवार का कब्जा था। 32 जिलों से आने वाले एसोसिएशन के सभी 57 सदस्य रूंगटा परिवार से ही जुड़े थे। ऐसे में ललित मोदी के लिए एसोसिएशन में इंट्री आसान नहीं थी। ललित मोदी के पास एक ही रास्ता था राजस्थान क्रिकेट एसोसिएशन से रूंगटा समर्थकों की विदाई। विरोधियों की मानें तो मोदी को इसमें मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का पूरा साथ मिला। अचानक राजस्थान स्पोर्ट्स एक्ट में बदलाव करते हुए क्रिकेट एसोसिएशन से सभी रूंगटा समर्थकों को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। अब मोदी के लिए इंट्री का रास्ता साफ हो चुका था। नागौर से ललित मोदी राजस्थान क्रिकेट एसोसिएशन के सदस्य बने और फिर उसके अध्यक्ष। अपने सपने को पूरा करने के लिए बीसीसीआई तक पहुंचने की पहली जरूरत ललित मोदी पूरा कर चुके थे। लेकिन शायद ललित मोदी को भी अंदाजा नहीं था कि उनकी जिद को पूरा करने के लिए अब खुद किस्मत कितना बड़ा खेल खेलने जा रही है। शोले फिल्म से ललित मोदी का गहरा रिश्ता है। 25 साल पहले मोदी की देखी हुई ये आखिरी हिंदी फिल्म है। लेकिन शोले के किरदारों की तरह ही सपना देखना और सपना पूरा करने की जिद ललित मोदी में आज तक खत्म नहीं हुई। साल २००५ में ललित मोदी ने पूरी दुनिया के सामने भारतीय क्रिकेट को दो बिलियन डॉलर के कारोबार में बदल डालने का दावा किया। उस वक्त किसी को अंदाजा नहीं था कि ललित मोदी की बात का मतलब क्या है। तभी भारतीय क्रिकेट में एक और जबरदस्त हलचल हुई। मराठा सरकार शरद पवार की नजर बीसीसीआई अध्यक्ष पद की कुर्सी पर पड़ी और जगमोहन डालमिया की कुर्सी हिल गई। पुरानी कहावत है कि जब दुश्मन एक हो तो दो अजनबी भी दोस्त बन जाते हैं। ललित मोदी और शरद पवार ऐसे ही करीब आए और आखिरकार ललित मोदी वो मोहरा बने जिसे चलकर पवार ने भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड पर कब्जा कर लिया। ये जीत सिर्फ शरद पवार की ही नहीं ये जीत ललित मोदी की भी थी। लेकिन अध्यक्ष बनने के बाद शरद पवार की सबसे बड़ी चिंता थी टीवी चौनलों से मिलने वाली कमाई थी। जगमोहन डालमिया ने ही क्रिकेट को टीवी से कमाना सिखाया था। सारी जोड़-तोड़, सारी तिकड़म डालमिया के पास दबी थी। ऐसे में ललित मोदी ने फिर पवार का साथ दिया। टीवी कंपनियों के साथ अपना पुराना अनुभव भुनाते हुए ललित मोदी ने डालमिया की कमी पूरी कर दी। यही वो वक्त था जब मोदी ने अपना सपना और अपनी जिद पूरी करने के लिए दांव खेला। ललित मोदी की मानें तो साल 2007 में विंबलडन के दौरान कॉफी पीते हुए उन्हें ये आइडिया आया कि अलग अलग शहरों की टीमें हों। उनमें देसी और विदेशी खिलाड़ी हों और उन पर मालिकाना हक हो फिल्म और उद्योग जगत के बड़े दिग्गजों का। 2008 में मोदी आखिरकार 8 टीमों के साथ मोदी ने अपना सपना पूरा करने की शुरुआत की। आईपीएल ने पहले ही साल 1000 करोड़ रुपए का मुनाफा कमाया। 2009 में ललित मोदी ने एक और चमत्कार दिखाया। सरकार ने साफ कर दिया कि आईपीएल का दूसरा सीजन और आम चुनाव एक साथ नहीं हो सकते। मोदी ने मुश्किल वक्त में किसी से भी भिडऩे की ताकत एक बार फिर दिखाई। सिर्फ तीन हफ्ते के वक्त में मोदी सभी टीमों, सभी स्पॉन्सरों और देश के करोड़ों लोगों की दीवानगी को लेकर दक्षिण अफ्रीका पहुंच गए। उस वक्त हर किसी की जुबान पर एक ही सवाल था कि क्या मोदी इस बार कामयाब हो पाएंगे। इस सवाल का जवाब मोदी की जिद ने दिया। 21 दिन में आईपीएल की तैयारी दूसरे देश में कराना आसान नहीं था। लेकिन ललित मोदी ने अपने पिता की ये बात साबित कर दी कि उनका बेटा जब कुछ ठान लेता है तो दुनिया की कोई भी ताकत उसे हरा नहीं सकती। आईपीएल दो की कामयाबी भी पूरी दुनिया ने देखी। दूसरे देश में मैच कराने के बावजूद आईपीएल से मुनाफा हुआ 774 करोड ़रुपए। ये वो वक्त था जब बाकी खेलों में मंदी की मार नजर आ रही थी लेकिन मोदी के आगे मंदी भी हार गई। मोदी ने आईपीएल को 2 बिलियन डॉलर के कारोबार में ही बदलकर दम लिया। सीजन तीन में स्पॉन्सर, यू ट्यूब और फिल्म थिएटर के अधिकार बेचकर ही आईपीएल ने 170 करोड़ रुपए कमाए। ब्रॉडकास्टिंग फीस और फ्रैंचाइजी फीस मिला दें तो ये आंकड़ा 634 करोड़ पहुंचता है। किस्मत अचानक बदलती है। जिस शख्स ने बीसीसीआई से मिले 200 करोड़ से आईपीएल को 18 हजार करोड़ के कारोबार में बदल दिया। वो एक झटके में विवादों के तूफान से घिर गया। आईपीएल की दो नई टीमों की हजारों करोड़ में नीलामी ने ललित मोदी को सातवें आसमान पर पहुंचा दिया। लेकिन इसके बाद शुरू हुआ जमीन पर गिरने का सिलसिला। मोदी ने ट्विटर पर कोच्चि टीम के हिस्सेदारों का राज खोल दिया उसमें एक नाम शशि थरूर की दोस्त सुनंदा पुष्कर का भी था। सुनंदा पर आरोप लगा रॉन्देवू से 79 करोड़ की स्वेट इक्विटी हासिल करने का। सवाल उठे कि आखिर क्यों आईपीएल फ्रैंचाइजी के बदले एक केंद्रीय मंत्री की दोस्त को 79 करोड़ का तोहफा दिया गया। इस सवाल ने आखिरकार शशि थरूर की बलि ले ली। उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। लेकिन शशि थरूर का इस्तीफा इस हाई प्रोफाइल ड्रामे का अंत नहीं था। जिस शख्स ने दुनिया को आईपीएल का मंत्र दिया अब बारी उसके खलनायक बनने की थी। शशि थरूर के जाने के बाद अचानक सरकार के तमाम विभाग सक्रिय हो उठे। आयकर विभाग खोज-खोज कर आईपीएल से जुड़ी फाइलें खंगालने लगा। जो गड़बडिय़ां पिछले तीन साल में किसी को नजर नहीं आईं उन पर मोदी से जवाब मांगा जाने लगा। आईपीएल में हवाला की रकम का भी आरोप लगा। कहा ये भी गया कि क्रिकेट को हजारों करोड़ का बना देने वाले ललित मोदी ने भी इसका जमकर फायदा उठाया। तेवर बीसीसीआई और खुद ललित मोदी के गॉडफादर शरद पवार के भी बदल गए। मोदी को आईपीएल थ्री की शुरुआत में अंदाजा भी नहीं होगा कि फाइनल तक पहुंचते-पहुंचते वो खुद क्लीन बोल्ड हो जाएंगे।अपनी जिद के दम पर आईपीएल को खड़ा करने वाला इंसान ऐसे ही हार नहीं मानने वाला। ललित मोदी अब बीसीसीआई से सीधे भिड ़चुके हैं। ललित का साफ कहना है कि पिछले चार साल की मेहनत को वो यू हीं बर्बाद नहीं होने देंगे। तैयारी पूरे मामले को कोर्ट तक ले जाने की है। यहां भी ललित की जिद काम कर रही है।

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