गुरुवार, 29 अप्रैल 2010
सरकार बचाने बेचे कैसे-कैसे सपने
कटौती प्रस्ताव पर भाजपा को गच्चा देने वाले झामुमो नेता और झारखंड के मुख्यमंत्री शिबू सोरेन से भाजपा संसदीय बोर्ड ने समर्थन वापसी की घोषणा कर दी है। भाजपा द्वारा लाए गए कटौती प्रस्ताव पर झारखंड मुक्ति मोर्चा के प्रमुख शिबू सोरेन द्वारा यूपीए के समर्थन में वोट दिए जाने पर भाजपा ने कड़ी आपत्ति जताई थी। दूसरी तरफ, कांग्रेस ने शिबू सोरन को धर्मनिरपेक्ष नेता बताकर अपनी रणनीति साफ कर द ी है। इसके पहले कटौती प्रस्ताव पर मतदान में भाग लेने शिबू को दिल्ली पहुंचा देख भाजपा उनका मत अपने साथ गिन रही थी, लेकिन उनका मत सरकार के पक्ष में गया देख पार्टी सन्न रह गई । सोरेन झारखंड में भले ही भाजपा का साथ लेकर सरकार चला रहे हों, लेकिन केंद्र में संप्रग के साथ थे। शिबू जिस भाजपा के सहयोग से झारखंड में सरकार चला रहे हैं, उसके नेताओं का मानना है कि उनका कांग्रेस से समझौता हो गया है। उनके मुताबिक समझौता यह हो सकता है कि शिबू अपने बेटे हेमंत सोरेन को झारखंड का उप मुख्यमंत्री बनवा कर खुद केंद्र की राजनीति में लौट जाएंगे। ऐसा लग रहा है कि कांग्रेस और झारखंड विकास मोर्चा-प्रजातांत्रिक, शिबू की झारखंड मुक्ति मोर्चा के साथ मिल कर नई सरकार बनाने का दावा करेंगी। 81 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस के 14, झारखंड विकास मोर्चा के 11 और शिबू के 18 विधायक हैं। याद रखने वाली बात है कि लोकसभा में मंगलवार को सरकार के खिलाफ कटौती प्रस्ताव के विरोध में मतदान करने के बाद झारखंड मुक्ति मोर्चा ने बुधवार यहां हालात संभालने के इरादे से पहल करते हुए कहा था कि सरकार के पक्ष में मतदान गलती से हुआ। झारखंड में कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाने की कोई योजना नहीं है। यह बयान शिबू सोरेन के पुत्र हेमंत सोरेन ने दिया था। कहा था कि यह मानवीय भूल है जो मतदान के दौरान पैदा हुए भ्रम के चलते हुई। झारखंड में कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाने की अटकलों को हेमंत सोरेन ने खारिज कर दिया था। भाजपा ने पहले दावा किया था कि सोरेन और झामुमो का एक अन्य सांसद कामेश्वर बैठा राजग का साथ देते हुए मतदान करेंगे। बैठा जेल में हैं और वह मंगलवार मतदान के दौरान लोकसभा में नहीं आए। यानि ठगी गई भाजपा। खैर पासा फेंका जा चुका है और रणनीतिकार माथा-पच्ची में लगे हैं लेकिन इतना तो तय है कि महंगाई को लेकर विपक्ष पर द्वारा लाए गए कटौती प्रस्ताव पर बहुमत जुटाने के लिए सरकार ने पूरी कवायद की थी। यहां तक कि एक वोट की अहमियत रखने वाले एक सदस्यीय दलों के सांसदों को विदेश की सैर तक करा दी। सत्रावकाश के बीच इस महीने की शुरुआत में ऐसे सांसदों को गुडविल विजिट के नाम पर फ्रांस और स्विट्जरलैंड की यात्रा कराई गई। इसके जरिए सरकार ने इन सांसदों से समर्थन के आश्वासन भी बटोर लिए। बताते चलें कि सरकार ने एक-एक सदस्य वाली पार्टियों के संसदीय प्रतिनिधमंडल की अगुवाई के लिए संसदीय कार्यमंत्री पवन बंसल और उनके जूनियर नारायण सामी को भेजा था। सांसदों के 28 मार्च से 4 अप्रैल बीच हुए इस विदेश दौरे में एक-एक सदस्य संख्या वाले सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट, केरल कांग्रेस, बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट, नागालैंड पीपुल्स फ्रंट, स्वाभिमानी पक्ष समेत कुल नौ दलों के सांसद शामिल थे। सांसदों के प्रतिनिधमंडल ने फ्रंास और स्विट्जरलैंड में द्विपक्षीय संबंधों में गुडविल के लिए राजनेताओं और स्थानीय लोगों से मुलाकात की। वहीं दोनों देशों की प्राकृतिक खूबसूरती व सांस्कृतिक छटा का भी लुत्फ उठाया। ज्यूरिख स्थित भारतीय दूतावास के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक, स्थानीय समुदाय के बीच सांसदों के इस दौरे को खूब सराहा गया। लोगों को पहली बार भारत की छोटी राजनीतिक पार्टियों के प्रतिनिधियों से मुलाकात का मौका मिला। छोटे धड़ों को साधने की कवायद मतदान से पहले तक भी जारी रही। इस कड़ी में सरकार ने भाजपा से अलग हुए जसवंत सिंह और जदयू से बगावत कर निर्दलीय जीते दिग्विजय सिंह समेत पांच सांसदों से भी संपर्क किया। खुद प्रधानमंत्री ने मंगलवार की सुबह जसवंत सिंह से मुलाकात की। सरकार के संकटमोचकों ने सपा से अलग हुई जया प्रदा के अलावा अन्य निर्दलीय सांसदों को भी साधा। सदन की प्रबंधन व्यवस्था में शामिल एक नेता के अनुसार इंतजाम तो समर्थक सांसदों को हेलीकाप्टर से बुलवाने के भी किए गए थे।
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें