घर से स्कूल तक बच्चों की सुरक्षा राम भरोसे है। कहीं साजिश की बू तो कहीं नकारेपन की हद। ख्वाब आंखों में सजाए माता-पिता उन्हें तब तक अपलक निहारते रहते हैं, जब तक उनका वाहन नजरों से ओझल नहीं होता। वापसी के दौरान घड़ी की सूइयों की टिक-टिक और दिल की धड़कन साथ-साथ हो जाती हैं। उन्हें मालूम है कि बेपरवाह रिक्शा चालक बच्चों को किस कदर रिक्शों में ठूंस कर ले जाते हैं। इससे भी वाकिफ हैं कि खस्ताहाल स्कूली बसें कैसे मासूमों की जिंदगी से खिलवाड़ कर रही हैं। नहीं भूलते वे क्षण जब दाखिला लेेने गए थे। मोटी फीस बटोरने के लिए खीसें निपोरते हुए बड़ी-बड़ी सुविधाओं का दावा किया गया था। प्रवेश हो चुका है। घटिया वाहन व अनुभवहीन चालक, यही हकीकत है। सरकार ने भौंहें तानी तो वाहन चालक संगठनों ने आस्तीनें चढ़ा लीं। कानून सख्त हुआ तो पस्त हुए, लेकिन समय बीतने के साथ फिर मस्त हो गए। दो माह का समय मांगा था। आरटीओ के मापदंडों के अनुसार केवल १२७ बसें तैयार हैं। साफ है-नियम कागजों पर, वाहन सड़कों पर और भविष्य दांव पर...।
मुख्याध्यापक के लिए निर्देश
1. विद्यार्थियों के सुरक्षित यात्रा की जिम्मेदारी विद्यालय के मुख्याध्यापक की है
2. प्रत्येक विद्यार्थी के आवाजाही पर विशेष ध्यान हो
3. विद्यार्थी सुरक्षित घर पहुंचे, इसकी यातायात पुलिस से विचार-विमर्श करें। यातायात नियमन के लिए आवश्यकता अनुसार यातायात रक्षक की नियुक्ति करें
4. स्थानीय प्रशासन नगरपलिका या महानगर पालिका की सहायता से विद्यालय परिसर के आस-पास आवश्यक चिन्ह लगाए जाएं
5. नेत्ररोग तज्ञ व वैद्यकीय अधिकारी से वाहन चालकों को वैद्यकीय प्रमाणपत्र दिए गए हैं या नहीं, इसकी जांच करें
6. वाहन चालक ने यदि वैद्यकीय प्रमाणपत्र हासिल नहीं किया तो प्रतिबंध लगाएं
8. वाहन चालक के पास वाहन चलाने का पांच वर्ष का अनुभव, अनुज्ञप्ति की वैधता व सार्वजनिक बिल्ला आदि की जांच हो
9. वाहन में नियुक्त महिला सहायक व सहवर्ती का पहचान पत्र जांचे
10. नया सत्र शुरू होने से पहले साल में दो बार प्रथमोपचार की प्रक्रिया क्रि यान्वित की जाए
11. अग्निशमन यंत्र की जांच करें
12. बस की स्वच्छता पर विशेष ध्यान दे
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स्कूल बस विद्यार्थियों को पालन करने के नियम
1. अपना पास हमेशा साथ रखें
2. स्थानक पर बस आने के पूर्व विद्यार्थी पहुंचें
3. बस से उतरते व चढ़ते समय अनुशासन का पालन करें
4. बस शुरू होने से पूर्व अपने स्थान पर बैठें। चलती बस में खड़े न हों
5. बड़े विद्यार्थी पीछे बैठें
6. दो सीट पर तीन व तीन सीट पर चार विद्यार्थी बैठ सकते हैं
7. शांति बनाए रखें। शोरगुल से वाहन चालक का ध्यान भटक सकता है और दुर्घटना घट सकती है।
8. शरीर का कोई भी भाग वाहन से बाहर न निकालें
9. धक्का-मुक्की न करें
10. गैरव्यवहार करनेवाले विद्यार्थियों की बस की मान्यता रद्द की जा सकती है
11. बस में पेट्रोल, डीजल, गॅस, स्टोव, फटाके जैसे ज्वलनशील पदार्थ दिखाई देने पर प्राचार्य को इसकी जानकारी दें।
12. बस चालते समय यदि बस चालक मोबाइल फोन का इस्तेमाल कर रहें हो तो इसकी जानकारी प्राचार्य को दें
13. संशयात्मक घटना की जानकारी प्राचार्य को दें।
14. अपनी वस्तुएं स्वयं संभालें
15. बस में स्वच्छता रखी जाए
16. बस स्थानक बदलने की जानकारी 24 घंटे पूर्व विद्यालय व वाहन चालक को बताएं
17. बस का नुकसान करने पर प्राचार्य को जानकारी दें
18. बस में प्राप्त वस्तु विद्यालय में जमा कराएं
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बस चालक की पात्रता व कर्तव्य
1. वाहन चलाने का पांच वर्ष का अनुभव हो
2. प्रवासी सेवा का बिल्ला लगा होना अनिवार्य
3. स्वच्छ गणवेश पहने व व्यक्तिक स्वच्छता रखें
4. धुम्रपान न करें। मोबाइल का उपयोग न करें। हेडफोन कान में न लगाएं, रेडियो या टेपरिकार्डर का उपयोग न करें
5. बार बार ब्रेक न लगाए, गति नियंत्रित रखें
6. विद्यार्थियों चढ़ते व उतरते समय वाहन स्थिर रखें
7. वाहन शुरू होने पर दरवाजे बंद हो
8. वाहन में कर्कश हॉर्न का उपयोग न करें
9. इलेक्ट्रिक वायरिंग की समय-समय पर जांच क रें
10. विद्यार्थियों के लिए अपशब्दों का प्रयोग न करें और न ही व्यक्तिगत स्तर पर कोई सजा दें
11. परमिट, फिटनेस, इंश्योरेंस, टैक्स, पीयूसी, लाइसेंस आदि दस्तावेजों की वैधता नियमित जांचें
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हंगामा है यूं बरपा
शहर और शहर से बाहर के इलाकों में आरटीओ के नियमों को ताक पर रख कर स्कूल बसें और वैन चल रही हैं। कार्रवाई के बावजूद वे बाज नहीं आ रहे हैं। मार्च में जब आरटीओ ने इन बसों पर कार्रवाई शुरू की थी, तब बच्चों की परीक्षा होने की दुहाई देकर इन्होंने २ माह का समय मांगा था। उस समय सभी ४५२ बसों को आरटीओ के मापदंडों के अनुसार तैयार करने का आश्वासन दिया था। दो माह बीत गए, किंतु अब तक केवल १२७ बसें ही पूरी तरह से तैयार हैं। उस समय तो राजनेताओं के हस्तक्षेप के बाद कार्रवाई रोक दी गई, किंतु अब आरटीओ सख्त दिखाई दे रहा है। स्कूल शुरू होते ही कार्रवाई भी शुरू कर दी गई है। पहले दिन कुल २०० बसों की जांच की गई, जिनमें से ६९ बसों के खिलाफ कार्रवाई की गई। गुरुवार को कार्रवाई में १०० बसों की जांच की गई, जिसमें से ५१ पर कार्रवाई हुई। २८ बसों को डिटेन किया गया है और अन्य से दंड वसूला गया।वर्ष भर का आंकड़ा देखा जाए तो मार्च २०१३ तक आरटीओ ने ९०६ बसों की जांच की थी, जिनमें से ३४१ बसें आरटीओ के मापदंडों के अनुसार नहीं थी। इन बस चालकों से २१ लाख ९३ हजार रुपए का जुर्माना वसूला गया। अप्रैल माह में भी ९४ बसों की जांच की गई थी, जिनमें से ३० बसें से २१००० रुपए जुर्माना वसूला गया।
विधायकों ने की थी मध्यस्थता
आरटीओ जब सख्ती से कार्रवाई कर जुर्माना लगा रहा था उस समय शहर के तीन विधायकों ने स्कूल बस और वैन चालकों की ओर से मध्यस्थता की थी। चालक-मालक के हवाले से उन्होंने कार्रवाई की समय सीमा बढ़ाने की मांग की थी, किंतु दो माह का समय बीतने पर भी स्कूल बसें पूरी तरह तैयार नहीं हुई है।
बच्चे हैं, पार्सल नहीं
विद्यार्थी परिवहन के लिए आसन (बैठने) क्षमता निश्चित है। सामान्यत: तीन और छह आसनी ऑटो-रिक्शा का उपयोग किया जाता है, लेकिन उसमें क्षमता से अधिक विद्यार्थियों को ठूंसा जाता है। बच्चे ठीक से बैठ भी नहीं पाते हैं। कभी सिर बाहर निकलता है तो कभी हाथ। कुछ बच्चे तो मानते हैं कि दम भी घुटता है। ऐसा लगता है मानों हम बच्चें नहीं, रेलवे का पार्सल हैं।
बस्ते और डिब्बे बाहर
बच्चों को ऑटो में तो ठूंस दिया जाता है, लेकिन उनके बस्ते और डिब्बे की जगह नहीं रहती। ऑटो-रिक्शा के बाहर दोनों झूलते रहते हैं। गिर गए तो बच्चे उतरकर वापस रखते हैं। ऐसे में दुर्घटनाओं का अधिक डर बना रहता है।
बसों की दयनीय अवस्था
ऑटो से ज्यादा स्कूल बसों को महफूज माना जाता है। स्कूल प्रशासन ने इन्हें अधिकृत भी किया है, किन्तु इनकी स्थिति देखकर पालक दूरी बना लेते हैं। फटी सीटें, टपकता पानी इन बसों की कहानी है। लोहे के टूटे रॉड अलग खामी बताते हैं। अतिरिक्त विद्यार्थियों को बैठा लेना तो जैसे फितरत में शामिल है। चालक गाड़ी चलाने में व्यस्त रहता है पर बच्चों पर ध्यान देने वाला कोई नहीं रहता। दुर्घटना की आशंका इसके कारण भी रहती है।
स्कूल वैन की हालत भी समान
स्कूल वैन की हालत भी ऑटो रिक्शा और स्कूल बस की ही तरह है। क्षमता से अधिक विद्यार्थी, असुविधा होने से खतरा बना रहता है। दूसरी ओर अप्रशिक्षित चालक, परिवहन नियमों की जानकारी नहीं होने से अनेक बार नियमों का उल्लंघन करते हैं। इससे भी दुर्घटनाओं का डर बना रहता है।
मुंह में दबा रहता खर्रा-पान
इन वाहनों के चालकों के मुंह में खर्रा-पान दबा रहता है। कई बार तो बच्चे शिकायत यह भी करते हैं कि वाहन रोककर ये अपनी आदतों को पूरा करते हैं। अविकसित मन-मस्तिष्क पर इसका भी बुरा असर पड़ता है।
गैस-कीट पर धड़ल्ले की दौड़
अनेक मामलों में खुलासा हुआ कि वैन में रसोई गैस का धड़ल्ले से उपयोग हो रहा है। निकृष्ट दर्जे की गैस-कीट होने से विद्यार्थियों की जान दांव पर लगी रहती है। आरटीओ द्वारा शहर में अधिकृत 79 वैन गैस-कीट पर दौड़ रही हैं। लेकिन जानकार गैस-कीट पर दौडऩे वाले वाहनों का आंकड़ा हजारों में बता रहे है। इन पर आरटीओ का कोई अंकुश नहीं। आरटीओ में अधिकृत नहीं होने से नियमों का भी यह धड़ल्ले से उल्लंघन करते हैं। इसके अलावा बच्चों के लिए यह वाहन और मायने में भी घातक बन गए हैं। वैन का कांच खुला रहने पर बच्चे हाथ-सिर बाहर निकालते हैं। उतरते समय अनेक बार पैर फिसल जाता है और चालक वैन शुरू कर आगे निकलता रहता है।
कर रहे हैं नजरअंदाज
स्कूल बस, ऑटो रिक्शा और स्कूल वैन के अवैध परिवहन पर रोक लगाने की जिम्मेदारी यातायात पुलिस और प्रादेशिक परिवहन अधिकारी (आरटीओ) कार्यालय की है। लेकिन दोनों इसे नजरअंदाज कर रहे हैं। मिलीभगत के कारण कार्रवाई की आवश्यकता महसूस नहीं होती।
डेढ़ हजार से अधिक स्कूलों में समिति नहीं
स्कूल बस और स्कूल वैन पर नियंत्रण और निगरानी रखने के लिए जिलास्तरीय और शालास्तरीय समिति बनायी गई है। पुलिस आयुक्त जिलास्तरीय समिति के अध्यक्ष हैं। समिति में शिक्षणाधिकारी, उप-आरटीओ, एसटी के जिला नियंत्रक शामिल हैं। शाला में मुख्याध्यापक, पालक प्रतिनिधि और परिवहन शाखा के पुलिस निरीक्षक शामिल हैं, लेकिन शाला समिति को लेकर उदासीनता बरती जा रही है। लगभग 400 स्कूलों में समिति गठित होने की जानकारी है। डेढ़ हजार से अधिक शालाओं में समिति का गठन नहीं हुआ है। शिक्षणाधिकारी माध्यमिक शाला के श्री ठमके ने बताया कि विभाग ने समिति गठन को लेकर सभी स्कूलों को निदेशित किया है लेकिन कई स्कूल इसे लेकर कोई प्रतिक्रिया नहीं दे रहे हैं। जल्दी ही विभाग ऐसी स्कूलों को नोटिस जारी कर कार्रवाई करने की तैयारी में है। सीबीएसई स्कूलों के लिए कार्रवाई करने का मामला उपनिदेशक के पास भेजेंगे। उन्होंने यह भी दोहराया कि नियमों का पालन नहीं करनेवाले स्कूलों की मान्यता रद्द भी की जा सकते हैं।
प्रमाणपत्र देने में उदासीनता
आरटीओ की नियमावली में स्कूल द्वारा परिवहन प्रमाणपत्र देने की शर्त जोड़ी गई है। लेकिन, जिन स्कूलों से विद्यार्थियों का परिवहन स्कूल बस, स्कूल वैन और ऑटो रिक्शा से होता है, उन्हें स्कूल व्यवस्थापन और प्राचार्य ने प्रमाणपत्र देने से इनकार किया है। पालक भी उदासीन हैं। बच्चा स्कूल में सुरक्षित जा रहा है या नहीं? इसकी कभी चिंता नहीं करते। शाला समिति के लिए पालक प्रतिनिधि का अभाव या नहीं मिलना भी बड़ा सवाल बना हुआ है। इस कारण शाला समिति बनाने में दिक्कतें आने की जानकारी मिल रही है।
प्रश्न फिर भी खड़ा
अधिकृत स्कूल बस, स्कूल वैन और ऑटो रिक्शा कैसे चलाएं, यह प्रश्न खड़ा हो रहा है। शहर की नामी स्कूलों से ऐसे प्रमाणपत्र नहीं मिलने से चालक संगठित हो रहे हैं। दो हजार स्कूल बसों में से आधे में सभी सुविधा हैं, मगर आरटीओ एनओसी देने के लिए तैयार नहीं है।
नियमावली स्पष्ट नहीं
फिलहाल स्कूल वैन या बसों के लिए नियमावली स्पष्ट नहीं है। संगठनों ने अनेक बार मांग की है कि स्कूल वैन के लिए स्वतंत्र नियमावली हो। किन्तु इस पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है।
नियमों की फेहरिस्त लंबी, व्यवस्था ठिगनी
स्कूल बस वैन, आटो संचालकों ने नए नियमों के अनुरूप कमर कस ली है, प्रशासन ने भी मुस्तैदी का मुखौटा पहन लिया है। हाल में हुई दुर्घटनाओं के आलोक में जिन नियमों का खाका राज्य सरकार ने परिपत्रक में खींचा है, उसे अमलीजामा पहनाने की तैयारी आधी अधूरी है। स्कूली छात्रों की सुरक्षा को लेकर राजपत्र में प्रशासनिक स्तर से लेकर स्कूल संचालकों व स्कूल बस, वैन व आटो संचालकों तक की भूमिकाएं स्पष्टï की गई हैं। लेकिन सारा ध्यान स्कूल बस और आटो वैन चालकों के खिलाफ कार्रवाई पर लाकर टिका दिया जा रहा है।
आरटीओ का वाहन जांच जिम्मा
सरकार के परिपत्रक में सकूल वाहनों के लिए सुरक्षा नियमों और मानकों को लेकर क्षेत्रीय परिवहन कार्यालय को प्रमुख जिम्मेदारियां दी गई हैं। आरटीओ ने बीते वर्ष नकेल भी कसी, जिसके खिलाफ स्कूल वाहन धारकों ने विरोध प्रदर्शन, धरना एवं घेराव का सहारा लिया। देखते-देखते पिछला शिक्षा सत्र विरोध और खींचतान की भेंट चढ़ गया। गर्मियों की छुट्टिïयां लगने के बाद स्कूल बस धारकों और आरअीओ ने चैन की सांस ली। इस वर्ष स्कूल शुरू होने के साथ आरटीओ द्वारा विशेष जांच मुहिम चलाया जाना कई सवालों को जन्म दे रहा है।
नियमों की अनदेखी करते आटोरिक्शा
स्कूल बसों के मुकाबले आटो रिक्शा की संख्या दोगुनी है, मगर सुरक्षा अनिवार्य उपकरणों की अनदेखी साफ झलकती है। ये निरीक्षण का विषय भी हो सकता है कि स्कूली आटो में कितने आटो के इंडिकेटर, लाइट, हार्न, दाहिना हिस्सा बंद, फस्र्ट एड बाक्स की जांच-पड़ताल की गई है या इनकी अनदेखी की जा रही है। रोड सेफ्टी स्वयंसेवी संस्था के तुषार मंडलेकर ने कहा कि आरटीओ को कितने ओवर सीट व खराब स्थिति वाले आटो को परमिट दे चुका है, इसकी जांच करनी चाहिए। परिपत्रक को अमलीजामा पहनाने वाली अधिकृत एजेंसियों की ढिलाई सुरक्षा में सेंध लग रही है।
दिखते नहीं स्कूल बस स्टॉप
राजपत्र में निर्देश हैं कि सभी स्कूलों के स्कूल वाहन धारकों को छात्रों के मार्ग के अनुसार स्कूल बस स्थानक चिन्हित कर उसकी व्यवस्था करना चाहिए। लेकिन ऐसे स्कूली बस स्थानक दिखाई नहीं देते। शहर में डेढ़ हजार से अधिक स्कूले हैं। प्रशासन स्कूली छात्रों की सुरक्षा को लेकर संजीदा भी है, लेकिन आंखें भी बंद है।
घटी वैनों की संख्या
नागपुर शहर स्कूल बस संचालक एसोसिएशन के अध्यक्ष राजेंद्रसिंह चौहान ने कहा कि सभी स्कूल बस संचालक व अन्य वाहनधारक कड़ाई से नियमों का पालन कर रहे हैं। एसोसिएशन नियमों की अनदेखी करनेवाले स्कूल वाहनधारकों पर कार्रवाई के पक्ष में है। वैनों पर बरती जा रही कड़ाई से इस वर्ष कई वैनों की संख्या घटी है। लिहाजा पालक अधूरे नियमों की स्थिति में अपने बच्चों को स्कूल भेजने पर मजबूर हैं।
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मुख्याध्यापक के लिए निर्देश
1. विद्यार्थियों के सुरक्षित यात्रा की जिम्मेदारी विद्यालय के मुख्याध्यापक की है
2. प्रत्येक विद्यार्थी के आवाजाही पर विशेष ध्यान हो
3. विद्यार्थी सुरक्षित घर पहुंचे, इसकी यातायात पुलिस से विचार-विमर्श करें। यातायात नियमन के लिए आवश्यकता अनुसार यातायात रक्षक की नियुक्ति करें
4. स्थानीय प्रशासन नगरपलिका या महानगर पालिका की सहायता से विद्यालय परिसर के आस-पास आवश्यक चिन्ह लगाए जाएं
5. नेत्ररोग तज्ञ व वैद्यकीय अधिकारी से वाहन चालकों को वैद्यकीय प्रमाणपत्र दिए गए हैं या नहीं, इसकी जांच करें
6. वाहन चालक ने यदि वैद्यकीय प्रमाणपत्र हासिल नहीं किया तो प्रतिबंध लगाएं
8. वाहन चालक के पास वाहन चलाने का पांच वर्ष का अनुभव, अनुज्ञप्ति की वैधता व सार्वजनिक बिल्ला आदि की जांच हो
9. वाहन में नियुक्त महिला सहायक व सहवर्ती का पहचान पत्र जांचे
10. नया सत्र शुरू होने से पहले साल में दो बार प्रथमोपचार की प्रक्रिया क्रि यान्वित की जाए
11. अग्निशमन यंत्र की जांच करें
12. बस की स्वच्छता पर विशेष ध्यान दे
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स्कूल बस विद्यार्थियों को पालन करने के नियम
1. अपना पास हमेशा साथ रखें
2. स्थानक पर बस आने के पूर्व विद्यार्थी पहुंचें
3. बस से उतरते व चढ़ते समय अनुशासन का पालन करें
4. बस शुरू होने से पूर्व अपने स्थान पर बैठें। चलती बस में खड़े न हों
5. बड़े विद्यार्थी पीछे बैठें
6. दो सीट पर तीन व तीन सीट पर चार विद्यार्थी बैठ सकते हैं
7. शांति बनाए रखें। शोरगुल से वाहन चालक का ध्यान भटक सकता है और दुर्घटना घट सकती है।
8. शरीर का कोई भी भाग वाहन से बाहर न निकालें
9. धक्का-मुक्की न करें
10. गैरव्यवहार करनेवाले विद्यार्थियों की बस की मान्यता रद्द की जा सकती है
11. बस में पेट्रोल, डीजल, गॅस, स्टोव, फटाके जैसे ज्वलनशील पदार्थ दिखाई देने पर प्राचार्य को इसकी जानकारी दें।
12. बस चालते समय यदि बस चालक मोबाइल फोन का इस्तेमाल कर रहें हो तो इसकी जानकारी प्राचार्य को दें
13. संशयात्मक घटना की जानकारी प्राचार्य को दें।
14. अपनी वस्तुएं स्वयं संभालें
15. बस में स्वच्छता रखी जाए
16. बस स्थानक बदलने की जानकारी 24 घंटे पूर्व विद्यालय व वाहन चालक को बताएं
17. बस का नुकसान करने पर प्राचार्य को जानकारी दें
18. बस में प्राप्त वस्तु विद्यालय में जमा कराएं
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बस चालक की पात्रता व कर्तव्य
1. वाहन चलाने का पांच वर्ष का अनुभव हो
2. प्रवासी सेवा का बिल्ला लगा होना अनिवार्य
3. स्वच्छ गणवेश पहने व व्यक्तिक स्वच्छता रखें
4. धुम्रपान न करें। मोबाइल का उपयोग न करें। हेडफोन कान में न लगाएं, रेडियो या टेपरिकार्डर का उपयोग न करें
5. बार बार ब्रेक न लगाए, गति नियंत्रित रखें
6. विद्यार्थियों चढ़ते व उतरते समय वाहन स्थिर रखें
7. वाहन शुरू होने पर दरवाजे बंद हो
8. वाहन में कर्कश हॉर्न का उपयोग न करें
9. इलेक्ट्रिक वायरिंग की समय-समय पर जांच क रें
10. विद्यार्थियों के लिए अपशब्दों का प्रयोग न करें और न ही व्यक्तिगत स्तर पर कोई सजा दें
11. परमिट, फिटनेस, इंश्योरेंस, टैक्स, पीयूसी, लाइसेंस आदि दस्तावेजों की वैधता नियमित जांचें
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हंगामा है यूं बरपा
शहर और शहर से बाहर के इलाकों में आरटीओ के नियमों को ताक पर रख कर स्कूल बसें और वैन चल रही हैं। कार्रवाई के बावजूद वे बाज नहीं आ रहे हैं। मार्च में जब आरटीओ ने इन बसों पर कार्रवाई शुरू की थी, तब बच्चों की परीक्षा होने की दुहाई देकर इन्होंने २ माह का समय मांगा था। उस समय सभी ४५२ बसों को आरटीओ के मापदंडों के अनुसार तैयार करने का आश्वासन दिया था। दो माह बीत गए, किंतु अब तक केवल १२७ बसें ही पूरी तरह से तैयार हैं। उस समय तो राजनेताओं के हस्तक्षेप के बाद कार्रवाई रोक दी गई, किंतु अब आरटीओ सख्त दिखाई दे रहा है। स्कूल शुरू होते ही कार्रवाई भी शुरू कर दी गई है। पहले दिन कुल २०० बसों की जांच की गई, जिनमें से ६९ बसों के खिलाफ कार्रवाई की गई। गुरुवार को कार्रवाई में १०० बसों की जांच की गई, जिसमें से ५१ पर कार्रवाई हुई। २८ बसों को डिटेन किया गया है और अन्य से दंड वसूला गया।वर्ष भर का आंकड़ा देखा जाए तो मार्च २०१३ तक आरटीओ ने ९०६ बसों की जांच की थी, जिनमें से ३४१ बसें आरटीओ के मापदंडों के अनुसार नहीं थी। इन बस चालकों से २१ लाख ९३ हजार रुपए का जुर्माना वसूला गया। अप्रैल माह में भी ९४ बसों की जांच की गई थी, जिनमें से ३० बसें से २१००० रुपए जुर्माना वसूला गया।
विधायकों ने की थी मध्यस्थता
आरटीओ जब सख्ती से कार्रवाई कर जुर्माना लगा रहा था उस समय शहर के तीन विधायकों ने स्कूल बस और वैन चालकों की ओर से मध्यस्थता की थी। चालक-मालक के हवाले से उन्होंने कार्रवाई की समय सीमा बढ़ाने की मांग की थी, किंतु दो माह का समय बीतने पर भी स्कूल बसें पूरी तरह तैयार नहीं हुई है।
बच्चे हैं, पार्सल नहीं
विद्यार्थी परिवहन के लिए आसन (बैठने) क्षमता निश्चित है। सामान्यत: तीन और छह आसनी ऑटो-रिक्शा का उपयोग किया जाता है, लेकिन उसमें क्षमता से अधिक विद्यार्थियों को ठूंसा जाता है। बच्चे ठीक से बैठ भी नहीं पाते हैं। कभी सिर बाहर निकलता है तो कभी हाथ। कुछ बच्चे तो मानते हैं कि दम भी घुटता है। ऐसा लगता है मानों हम बच्चें नहीं, रेलवे का पार्सल हैं।
बस्ते और डिब्बे बाहर
बच्चों को ऑटो में तो ठूंस दिया जाता है, लेकिन उनके बस्ते और डिब्बे की जगह नहीं रहती। ऑटो-रिक्शा के बाहर दोनों झूलते रहते हैं। गिर गए तो बच्चे उतरकर वापस रखते हैं। ऐसे में दुर्घटनाओं का अधिक डर बना रहता है।
बसों की दयनीय अवस्था
ऑटो से ज्यादा स्कूल बसों को महफूज माना जाता है। स्कूल प्रशासन ने इन्हें अधिकृत भी किया है, किन्तु इनकी स्थिति देखकर पालक दूरी बना लेते हैं। फटी सीटें, टपकता पानी इन बसों की कहानी है। लोहे के टूटे रॉड अलग खामी बताते हैं। अतिरिक्त विद्यार्थियों को बैठा लेना तो जैसे फितरत में शामिल है। चालक गाड़ी चलाने में व्यस्त रहता है पर बच्चों पर ध्यान देने वाला कोई नहीं रहता। दुर्घटना की आशंका इसके कारण भी रहती है।
स्कूल वैन की हालत भी समान
स्कूल वैन की हालत भी ऑटो रिक्शा और स्कूल बस की ही तरह है। क्षमता से अधिक विद्यार्थी, असुविधा होने से खतरा बना रहता है। दूसरी ओर अप्रशिक्षित चालक, परिवहन नियमों की जानकारी नहीं होने से अनेक बार नियमों का उल्लंघन करते हैं। इससे भी दुर्घटनाओं का डर बना रहता है।
मुंह में दबा रहता खर्रा-पान
इन वाहनों के चालकों के मुंह में खर्रा-पान दबा रहता है। कई बार तो बच्चे शिकायत यह भी करते हैं कि वाहन रोककर ये अपनी आदतों को पूरा करते हैं। अविकसित मन-मस्तिष्क पर इसका भी बुरा असर पड़ता है।
गैस-कीट पर धड़ल्ले की दौड़
अनेक मामलों में खुलासा हुआ कि वैन में रसोई गैस का धड़ल्ले से उपयोग हो रहा है। निकृष्ट दर्जे की गैस-कीट होने से विद्यार्थियों की जान दांव पर लगी रहती है। आरटीओ द्वारा शहर में अधिकृत 79 वैन गैस-कीट पर दौड़ रही हैं। लेकिन जानकार गैस-कीट पर दौडऩे वाले वाहनों का आंकड़ा हजारों में बता रहे है। इन पर आरटीओ का कोई अंकुश नहीं। आरटीओ में अधिकृत नहीं होने से नियमों का भी यह धड़ल्ले से उल्लंघन करते हैं। इसके अलावा बच्चों के लिए यह वाहन और मायने में भी घातक बन गए हैं। वैन का कांच खुला रहने पर बच्चे हाथ-सिर बाहर निकालते हैं। उतरते समय अनेक बार पैर फिसल जाता है और चालक वैन शुरू कर आगे निकलता रहता है।
कर रहे हैं नजरअंदाज
स्कूल बस, ऑटो रिक्शा और स्कूल वैन के अवैध परिवहन पर रोक लगाने की जिम्मेदारी यातायात पुलिस और प्रादेशिक परिवहन अधिकारी (आरटीओ) कार्यालय की है। लेकिन दोनों इसे नजरअंदाज कर रहे हैं। मिलीभगत के कारण कार्रवाई की आवश्यकता महसूस नहीं होती।
डेढ़ हजार से अधिक स्कूलों में समिति नहीं
स्कूल बस और स्कूल वैन पर नियंत्रण और निगरानी रखने के लिए जिलास्तरीय और शालास्तरीय समिति बनायी गई है। पुलिस आयुक्त जिलास्तरीय समिति के अध्यक्ष हैं। समिति में शिक्षणाधिकारी, उप-आरटीओ, एसटी के जिला नियंत्रक शामिल हैं। शाला में मुख्याध्यापक, पालक प्रतिनिधि और परिवहन शाखा के पुलिस निरीक्षक शामिल हैं, लेकिन शाला समिति को लेकर उदासीनता बरती जा रही है। लगभग 400 स्कूलों में समिति गठित होने की जानकारी है। डेढ़ हजार से अधिक शालाओं में समिति का गठन नहीं हुआ है। शिक्षणाधिकारी माध्यमिक शाला के श्री ठमके ने बताया कि विभाग ने समिति गठन को लेकर सभी स्कूलों को निदेशित किया है लेकिन कई स्कूल इसे लेकर कोई प्रतिक्रिया नहीं दे रहे हैं। जल्दी ही विभाग ऐसी स्कूलों को नोटिस जारी कर कार्रवाई करने की तैयारी में है। सीबीएसई स्कूलों के लिए कार्रवाई करने का मामला उपनिदेशक के पास भेजेंगे। उन्होंने यह भी दोहराया कि नियमों का पालन नहीं करनेवाले स्कूलों की मान्यता रद्द भी की जा सकते हैं।
प्रमाणपत्र देने में उदासीनता
आरटीओ की नियमावली में स्कूल द्वारा परिवहन प्रमाणपत्र देने की शर्त जोड़ी गई है। लेकिन, जिन स्कूलों से विद्यार्थियों का परिवहन स्कूल बस, स्कूल वैन और ऑटो रिक्शा से होता है, उन्हें स्कूल व्यवस्थापन और प्राचार्य ने प्रमाणपत्र देने से इनकार किया है। पालक भी उदासीन हैं। बच्चा स्कूल में सुरक्षित जा रहा है या नहीं? इसकी कभी चिंता नहीं करते। शाला समिति के लिए पालक प्रतिनिधि का अभाव या नहीं मिलना भी बड़ा सवाल बना हुआ है। इस कारण शाला समिति बनाने में दिक्कतें आने की जानकारी मिल रही है।
प्रश्न फिर भी खड़ा
अधिकृत स्कूल बस, स्कूल वैन और ऑटो रिक्शा कैसे चलाएं, यह प्रश्न खड़ा हो रहा है। शहर की नामी स्कूलों से ऐसे प्रमाणपत्र नहीं मिलने से चालक संगठित हो रहे हैं। दो हजार स्कूल बसों में से आधे में सभी सुविधा हैं, मगर आरटीओ एनओसी देने के लिए तैयार नहीं है।
नियमावली स्पष्ट नहीं
फिलहाल स्कूल वैन या बसों के लिए नियमावली स्पष्ट नहीं है। संगठनों ने अनेक बार मांग की है कि स्कूल वैन के लिए स्वतंत्र नियमावली हो। किन्तु इस पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है।
नियमों की फेहरिस्त लंबी, व्यवस्था ठिगनी
स्कूल बस वैन, आटो संचालकों ने नए नियमों के अनुरूप कमर कस ली है, प्रशासन ने भी मुस्तैदी का मुखौटा पहन लिया है। हाल में हुई दुर्घटनाओं के आलोक में जिन नियमों का खाका राज्य सरकार ने परिपत्रक में खींचा है, उसे अमलीजामा पहनाने की तैयारी आधी अधूरी है। स्कूली छात्रों की सुरक्षा को लेकर राजपत्र में प्रशासनिक स्तर से लेकर स्कूल संचालकों व स्कूल बस, वैन व आटो संचालकों तक की भूमिकाएं स्पष्टï की गई हैं। लेकिन सारा ध्यान स्कूल बस और आटो वैन चालकों के खिलाफ कार्रवाई पर लाकर टिका दिया जा रहा है।
आरटीओ का वाहन जांच जिम्मा
सरकार के परिपत्रक में सकूल वाहनों के लिए सुरक्षा नियमों और मानकों को लेकर क्षेत्रीय परिवहन कार्यालय को प्रमुख जिम्मेदारियां दी गई हैं। आरटीओ ने बीते वर्ष नकेल भी कसी, जिसके खिलाफ स्कूल वाहन धारकों ने विरोध प्रदर्शन, धरना एवं घेराव का सहारा लिया। देखते-देखते पिछला शिक्षा सत्र विरोध और खींचतान की भेंट चढ़ गया। गर्मियों की छुट्टिïयां लगने के बाद स्कूल बस धारकों और आरअीओ ने चैन की सांस ली। इस वर्ष स्कूल शुरू होने के साथ आरटीओ द्वारा विशेष जांच मुहिम चलाया जाना कई सवालों को जन्म दे रहा है।
नियमों की अनदेखी करते आटोरिक्शा
स्कूल बसों के मुकाबले आटो रिक्शा की संख्या दोगुनी है, मगर सुरक्षा अनिवार्य उपकरणों की अनदेखी साफ झलकती है। ये निरीक्षण का विषय भी हो सकता है कि स्कूली आटो में कितने आटो के इंडिकेटर, लाइट, हार्न, दाहिना हिस्सा बंद, फस्र्ट एड बाक्स की जांच-पड़ताल की गई है या इनकी अनदेखी की जा रही है। रोड सेफ्टी स्वयंसेवी संस्था के तुषार मंडलेकर ने कहा कि आरटीओ को कितने ओवर सीट व खराब स्थिति वाले आटो को परमिट दे चुका है, इसकी जांच करनी चाहिए। परिपत्रक को अमलीजामा पहनाने वाली अधिकृत एजेंसियों की ढिलाई सुरक्षा में सेंध लग रही है।
दिखते नहीं स्कूल बस स्टॉप
राजपत्र में निर्देश हैं कि सभी स्कूलों के स्कूल वाहन धारकों को छात्रों के मार्ग के अनुसार स्कूल बस स्थानक चिन्हित कर उसकी व्यवस्था करना चाहिए। लेकिन ऐसे स्कूली बस स्थानक दिखाई नहीं देते। शहर में डेढ़ हजार से अधिक स्कूले हैं। प्रशासन स्कूली छात्रों की सुरक्षा को लेकर संजीदा भी है, लेकिन आंखें भी बंद है।
घटी वैनों की संख्या
नागपुर शहर स्कूल बस संचालक एसोसिएशन के अध्यक्ष राजेंद्रसिंह चौहान ने कहा कि सभी स्कूल बस संचालक व अन्य वाहनधारक कड़ाई से नियमों का पालन कर रहे हैं। एसोसिएशन नियमों की अनदेखी करनेवाले स्कूल वाहनधारकों पर कार्रवाई के पक्ष में है। वैनों पर बरती जा रही कड़ाई से इस वर्ष कई वैनों की संख्या घटी है। लिहाजा पालक अधूरे नियमों की स्थिति में अपने बच्चों को स्कूल भेजने पर मजबूर हैं।
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